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दिल्ली : कार्यकर्ताओं ने हिमांशु कुमार पर लगाए जुर्माने को बताया ग़लत, न्याय प्रक्रिया पर उठाए गंभीर सवाल!

छत्तीसगढ़ के गोमपड़ नरसंहार मामले में हिमांशु कुमार को जुर्माना भरने के आदेश का विरोध करते हुए कार्यकर्ताओं ने कहा कि आदिवासी आने वाले हफ़्तों में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के ख़िलाफ़ अपना विरोध दर्ज कराने के लिए दिल्ली आएंगे।
press club

आदिवासी बचाओ- संविधान बचाओ के बैनर तले दिल्ली के प्रेस क्लब ऑफ़ इडिया मे एक प्रेस वार्ता हुई। इस प्रेसवार्ता के माध्यम से छत्तीसगढ़ गोम्पाड नरसंहार पीड़ितों के लिए न्याय कि मांग उठाई गई।इस मामले को कोर्ट मे उठाने वाले मानव अधिकार कार्यकर्ता हिमांशु कुमार पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा लगाए गए जुर्माना का भी विरोध जताया गया।

प्रेसवार्ता को भीम आर्मी के नेता चंद्रशेखर, दिल्ली विश्वविधालय के प्रोफ़ेसर लक्ष्मण यादव, आदिवासी के अधिकारों के लिए लड़ने वाली सोनी सोरी, वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण, लेखक नंदिनी सुंदर अरुंधति रॉय और गाँधीवादी मानव अधिकार कार्यकर्ता हिमांशु कुमार ने संबोधित किया।

क्या है गोमपड़ नरसंहार

छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले (तत्कालीन दंतेवाड़ा) के गांवों में आदिवासियों की गैर-न्यायिक हत्याओं की गई थी। इस हादसे को गोम्पाड नरसंहार के रूप में जाना जाता है जिसमें सितंबर और अक्टूबर 2009 में हुई हिंसा की दो प्रमुख घटनाएं शामिल हैं, जो गोम्पाड और गच्चनपल्ली के गांवों में हुई थीं, जिनके साथ आसपास के गाँवों की दो-तीन छोटी घटनाएं भी शामिल हैं जिसमें कम से कम 17 आदिवासी मारे गए थे।

ये मामला एक बार फिर चर्चा मे आया क्योंकि 14 जुलाई 2022 को सर्वोच्च न्यायालय ने 2009 के एक मामले में हिमांशु कुमार और बारह अन्य लोगों द्वारा दायर एक रिट याचिका को खारिज कर दिया सुप्रीम कोर्ट ने इस रिट याचिका को खारिज करते हुए हिमांशु कुमार पर पाँच लाख रुपये का जुर्माना लगाया है। साथ ही फैसले में सुझाव दिया है कि छत्तीसगढ़ राज्य / सीबीआई द्वारा याचिकाकर्ताओं के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की आपराधिक साजिश रचने की धारा और पुलिस और सुरक्षा बलों पर झूठा आरोप लगाने के लिए आगे की कार्रवाई की जा सकती है जिसमें अन्य धाराएं भी शामिल की जा सकती हैं।

कार्यकर्ताओं ने न्याय प्रक्रिया पर उठाए गंभीर सवाल

जिसके बाद से देशभर के मानवअधिकार कार्यकर्ता और नागरिक समाज इस फैसले का विरोध कर रहे है । इसी क्रम मे आज कि प्रेसवार्ता हुई थी ।

कार्यकर्ता सोनी सोरी ने कहा, "आज भी बस्तर में लोगों की हत्या की जा रही है।  हमारी महिलाओं के साथ अभी भी बलात्कार हो रहे हैं। हमे ही नक्सली बताकर जेल मे डाल देते है और सालों बाद हम निर्दोष बाहर आते है लेकिन कौन हमें हमारा जीवन और हमारा समय वापस देगा? जो हमने जेल मे बिताऐं है । चाहे कांग्रेस हो या बीजेपी। जब हम अपने अधिकारों के लिए लड़ते हैं तो हमें नक्सली करार दिया जाता है। हिमांशु का मामले मे बात पैसे कि नहीं है, यह आदिवासियों के लिए लड़ाई को कमजोर करने के बारे में है। गोमपाड़ से लोग दिल्ली आने को तैयार हैं। हम आएंगे और राष्ट्रपति से मिलेंगे। और अपना दर्द बताएंगे"

हिमांशु ने अपनी याचिका में कहा था कि में गोम्पड़ में पुलिस और सुरक्षा बलों द्वारा 16 आदिवासियों की "हत्या" की गई थी। मारे गए लोगों में महिलाएं, बच्चे और बुजुर्ग शामिल थे और डेढ़ साल के लड़के की उंगलियां काट दी गईं। कुमार ने पुलिस द्वारा बलात्कार और लूट सहित कथित अत्याचार के 519 मामलों में याचिका दायर की गई थी।

वकील प्रशांत भूषण ने फैसले की आलोचना करते हुए कहा, "यह एक बिल्कुल हास्यास्पद है कि उस कार्यकर्ता के खिलाफ एक झूठा मामला दर्ज किया गया है जिसने वास्तव में इस मुद्दे को उजागर किया था। जुर्माना लगाने का यह पैटर्न शक्तियों का दुरुपयोग है। जो न्यायाधीश सेवानिवृत्ति के बाद नौकरी चाहते हैं, उनके फैसले नयायधीश रहते हुएउनके फैसले प्रभावित होते है । ये न्यायपालिका की स्वतंत्रता के लिए गंभीर खतरे हैं।

न्यायपालिका की स्वतंत्रता खत्म हो रही है, सरकार की सनक के आगे झुक रही है। हमें न्यायपालिका के इस तरह के गलत निर्णयाओं का हमे खुलकर विरोध करना चाहिए, और अगर वो कोई अच्छा फैसला करते है तो हमे उसकी तारीफ करनी चाहिए।”

पत्रकार सम्मेलन में बोलते हुए, कार्यकर्ता और लेखक नंदिनी सुंदर ने बताया कि विभिन्न अदालतों की कई पीठों ने पुलिस के कामकाज पर गंभीर सवाल उठाए हैं।

सुंदर ने सवाल उठाए “इस घटना मे इतने सारे सवालों के बावजूद, पीड़ितों को मुआवजा नहीं दिया गया है और जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ कोई प्राथमिकी दर्ज नहीं की गई है। 2022 में पुलिस को क्लीनचीट दे गईऔर कहा गया पुलिस ने जो किया वो बिल्कुल सही है। यह पीड़ितों और हिमांशु कुमार और खुद सुप्रीम कोर्ट की अवमानना है। "

उन्होंने आगे कहा, "पीठ कह रही है कि उन्हें सुप्रीम कोर्ट की पिछली बेंचों पर कोई भरोसा नहीं है। छत्तीसगढ़ पुलिस बिल्कुल सही है। कोर्ट तीस्ता सीतलवाड़ और जकिया जाफरी से सवाल पूछ रही है, जिस महिला ने अपने पति को अपने सामने कटा हुआ देखा, उस पर मनगढ़ंत कहानी बनाने का आरोप लगाया जा रहा है। सरकार के खिलाफ हमारा अवमानना का मामला लंबित है। सवाल यह है कि कौन किसका समय बर्बाद कर रहा है? मेरे मन में इस तरह के फैसला देने वालों के लिए कोई सम्मान नहीं है।"

"जेल जाएंगे लेकिन जुर्माना नहीं देंगे"

प्रेस कॉन्फ्रेंस में बोलते हुए हिमांशु कुमार ने कहा कि वह उन पर लगाए गए जुर्माने का भुगतान नहीं करेंगे, भले ही उन्हें जेल जाना पड़े।

“जो लोग सच्चाई और न्याय की मांग कर रहे हैं, उन्हें निशाना बनाया जा रहा है और उन्हें पकड़ा जा रहा है। एक युद्ध चल रहा है। राज्य अपने ही लोगों से लड़ रहा है।"

उन्होंने सवाल उठाया, "क्या आदिवासी इलाकों मे आदिवासियों की रक्षा के लिए सैनिक हैं? वे अमीरों के लिए संसाधनों पर कब्जा करने के लिए हैं। यह आदिवासियों के खिलाफ एक पूर्ण युद्ध है। इसमें सब कुछ है यहाँ हत्या बलात्कार और साजिश सब हो रहा है । गोमपड़ ऐसा ही एक मामला है। लेकिन इसक विस्तार होगा ये छतीसगढ़ से निकलर पंजाब, हरियाणा जैसे राज्यों मे भी पहुंचेगा।”

हिमांशु ने आगे कहा, "अदालत ने कहा है कि छह लोगों ने कहा कि वो नहीं पहचानाते है कि हत्यारे कौन थे? लेकिन जब पुलिस ने उनकाअगवा किया गया था ,उन्हे पुलिस ने बिना नंबर प्लेट वाली गाड़ियों मे उठाकर लाई थी। आप बताइए अगर पुलिस किसी का अपहरण कर रही है और गोली मारने की धमकी दे रही है, तो उन्हें छह महीने के अंदर रखें और फिर उन्हें बयान देने के लिए मजबूर करें तो क्या वो बोलेंगे।"

आगे उन्होंने कहा, "हमने कोई गुनाह थोड़े किया है हम तो जांच कि मांग कर रहे है , अदालत जांच क्यों नहीं कर रही है । जिसने याचिका दायर की है, उसे जुर्माना क्यों देना चाहिए? यह सुप्रीम कोर्ट का फैसला नहीं है बल्कि यह एकडरे हुए जज का फैसला है जो सरकार से डरता है।"

हिमांशु ने कहा “अगर मैं जुर्माना भरता हूं, तो इसका मतलब होगा कि याचिका गलत थी और आदिवासी झूठ बो रहे थे। आदिवासी दिल्ली आएंगे और सुप्रीम कोर्ट से जवाब मांगेंगे जिन्होंने अपनी जान गंवाई है, उनका हत्यारा कौन है?

कार्यकर्ताओं ने कहा कि आदिवासी आने वाले हफ्तों में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के खिलाफ अपना विरोध दर्ज कराने के लिए दिल्ली आएंगे।

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