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विशेष: दिल्ली की दलित बस्तियां— भाग एक, रंजीत नगर का हाल

दलितों की बात सिर्फ़ आरक्षण तक सीमित नहीं रहनी चाहिए। वे कैसे रहते हैं? किन परिस्थितियों में रहते हैं? विकास और जाति का क्या रिश्ता है?
Ranjeet nagar

दिल्ली में बहुत सी दलित बस्तियां हैं। इनमे सर्वाधिक संख्या उन दलित बस्तियों की हैं जिनमें सफाई कर्मचारी समुदाय के लोग रहते हैं। ये बस्तियां दो तरह की हैं। एक जिन्हें रिसेटलमेंट कॉलोनी कहा जाता है। ये 22 से 25 गज में बने मकान होते हैं। दूसरी वे होती हैं जिन्हें मलिन बस्ती या झुग्गी बस्ती कहा जाता है। कहीं–कहीं ये लोग डी. डी. ए. या दिल्ली नगर निगम द्वारा दिए गए फ्लैट्स में रहते हैं।

दलितों की बात सिर्फ आरक्षण तक सीमित नहीं रहनी चाहिए। वे कैसे रहते हैं? किन परिस्थितियों में रहते हैं? विकास और जाति का क्या रिश्ता है? 4 दिसंबर 2022 को दिल्ली में दिल्ली नगर निगम (एम.सी.डी.) के चुनाव हैं। क्या हैं इन दलित बस्तियों के चुनावी मुद्दे? इसकी जमीनी पड़ताल की एक छोटी-सी कोशिश देश की राजधानी दिल्ली से।

दिल्ली की दलित बस्तियों के क्या हैं हालात? कैसे लोग बिता रहे हैं अपना जीवन? क्या है उनके रोजगार, स्वास्थ्य और शिक्षा की स्थिति? क्या हैं यहां की बुनियादी समस्याएं? इसका जायजा लेने के लिए इस लेखक ने न्यूज़क्लिक के साथ मिलकर दलित बस्तियों का जायजा लेने की योजना बनाई। शुरुआत पश्चिमी दिल्ली की एक बस्ती रंजीत नगर के ई-ब्लॉक वार्ड संख्या 96 से। पेश है इस बस्ती का सूरते हाल:

रंजीत नगर बस्ती की महिलाएं 

रणजीत नगर जिसे बातचीत में रंजीत नगर बोला जाता है पश्चिमी दिल्ली में सत्यम सिनेमा के पास स्थित एक दलित बस्ती है। इसके ई-ब्लाक का जायजा लिया। यहां लगभग 700 मकान/ फ्लेट्स हैं। कुल आबादी 3, 500 के करीब है। यह वाल्मीकि बहुल वार्ड है। अधिकतर लोग सफाई पेशे से जुड़े हैं।

खस्ता हाल है पार्कों की हालत: आशा पंवार

रंजीत नगर निवासी आशा पंवार एक जागरूक दलित महिला हैं। उनका कहना है कि यहां से भाजपा के तेजराम फौर निगम पार्षद हैं। विकास के नाम पर यहां कोई ऐसा काम नहीं हुआ जिसे उल्लेखनीय कहा जा सके। सड़क की एक बार टूट-फूट हो जाए तो उसे रिपेयर नहीं किया जाता। अभी सत्यम सिनेमा के पास केएम चौक से लेकर पांडव नगर तक जो सड़क जाती है उसकी खुदाई हुई थी जिस अभी तक रिपेयर नहीं किया गया है। कूड़ा उठाने वाली गाड़ी अन्दर हमारी कॉलोनी में नहीं आती। ऐसा लगता है कि वह कूड़ा उठाने का काम कम और बीजेपी का प्रचार अधिक करती है। सबसे ज्यादा बुरा हाल पार्कों का है। पिछले 25-30 साल से पार्कों पर ध्यान नहीं दिया गया है। वे कूड़ा घर में तब्दील हो गए हैं। चुनाव के समय तो निगम पार्षद और विधायक सभी कहते हैं कि पार्क ठीक कराएंगे। पर जीतने के बाद कोई काम नहीं करता। पार्कों का सौन्दर्यीकरण होना चाहिए यानी उनमे में हरियाली-फूल, झूले, बेंच, जिम उपकरण होने चाहिए। निगम पार्षद किसी भी पार्टी के हों वे काम नहीं करते। उन्होंने राजनीति को बिजनेस बना लिया है। पहले अपना पेट भरते हैं। जनता जिन सुविधाओं के लिए उन्हें चुनती है उन कार्यों को कराना उनकी प्राथमिकता नहीं होती।

कम्युनिटी हाल नहीं है/बारातघर नहीं हैं: पुष्पा देवी

पुष्पा देवी वाल्मीकि समुदाय से हैं और लम्बे समय से रंजीत नगर की निवासी है। उनका कहना है कि चाहे निगम पार्षद हों या विधायक, कोई काम नहीं करता। त्योहारों के समय आते हैं और हाल-चाल पूछ कर चले जाते हैं। हमारी समस्याओं के बारे में कोई नहीं पूछता। न कोई समाधान करता है। हमारे यहां शादी –विवाह के लिए कम्युनिटी हॉल नहीं हैं। पर न पार्षद न विधायक कोई इस और ध्यान नहीं देता। साफ़-सफाई का भी यहां कोई ख्याल नहीं रखता। बड़ी जाति वालों के यहां तो सफाई हो जाती हैं वहां लोग साफ-सफाई का मामले में सख्त होते हैं। उनके यहां सफाई न होने पर उनके खिलाफ एक्शन लिया जाएगा इसलिए भी सफाई हो जाती है। पर हमारे यहां सफाई कर्मचारी रहते हैं फिर भी सफाई नहीं होती।

बिजली के भरने पड़ रहे बिल, पीने का नहीं पानी, वोट लेने के बाद जन प्रतिनिधि नहीं सुनते परेशानी: विमला देवी

रंजीत नगर निवासी विमला देवी कहती हैं कि अरविन्द केजरीवाल कहते हैं कि बिजली फ्री में दे रहे हैं लेकिन ऐसा कुछ नहीं है। पांच-पांच छह-छह हजार के बिल मैं भरती हूँ। और मैं ही नहीं सभी बस्ती वाले पांच-पांच हजार के बिल भरते हैं जबकि हमारे यहां तो AC भी नहीं हैं। दूसरी समस्या पानी की है। यहां सिर्फ खारा पानी आता है। वो भी कभी-कभी दो-दो तीन-तीन दिन नहीं आता। पीने का पानी खरीदना पड़ता है।

ये पूछने पर कि क्या यहां के निवासी निगम पार्षद तेजराम फौर से पीने के पानी की न आने की शिकायत करते हैं? उनका कहना है कि शिकायत तो करते हैं पर कोई सुनवाई नहीं होती।

ई-ब्लॉक वार्ड 96 रंजीत नगर : एक नज़र

यहां के अधिकतर दलित खुद को हिन्दू मानते हैं। हिन्दू त्योहारों को धूम-धाम से मनाते हैं। वाल्मीकि जयन्ती भी यहां खूब उत्साह से मनाई जाती है। आर.एस.एस. शाखाएं नियमित रूप से लगती हैं।

रंजीत नगर में दो वाल्मीकि मंदिर हैं एक सी-ब्लाक में और दूसरा ई-ब्लाक में।

कहने को तो यहां नशा मुक्ति केंद्र भी है पर यहां की अधिकांश युवा पीढ़ी नशे की आदी है। बीडी-सिगरेट, गुटखा, भांग से लेकर शराब तक हर प्रकार का नशा करते हैं।

यहां बारहवीं पास या स्नातक तक पढ़े-लिखे बच्चे एक-दो प्रतिशत ही हैं। ज्यादातर बच्चे नौवीं-दसवीं में पढ़ाई छोड़ देते हैं। युवाओं खासकर लड़कों से बात करने पर पता चला कि उनको मां-बाप तो पढ़ाना चाहते हैं पर उनका पढाई-लिखाई में मन नहीं लगता। कुछ काम मिलने पर काम करते हैं नहीं तो यूंही बेरोजगार घूमते हैं। नशे के आदी हो जाते हैं।

लड़कियों ने यह भी कहा कि वे पढ़ना-लिखना चाहती हैं पर माता-पिता लड़कियों को पढ़ाने-लिखाने में अधिक रुचि नहीं लेते। वे उनकी शादी की चिंता ज्यादा करते हैं। कुछ लड़कियां घर की आर्थिक स्थिति ठीक न होने पर कोठियों में झाडू-बर्तन, साफ-सफाई का काम करती हैं।

रंजीत नगर में घरों के सामने पार्क जो पार्क लगता ही नहीं

पुरुष सफाई कर्मचारी अपने काम से लौटने के बाद पार्क में सुस्ताते दिखे, कुछ ताश खेलते नजर आए।

राजनीतिक दलों के समर्थकों की बात करें तो यहां सबसे अधिक समर्थक कांग्रेस के हैं फिर भाजपा का नंबर आता है। 15 से 20 प्रतिशत लोग आम आदमी पार्टी के समर्थक हैं। सत्ता में आने के बाद यानी निगम पार्षद या विधायक बनने के बाद ये जन प्रतिनिधि सामाजिक कार्यों और लोगों से दूर हो जाते हैं। यही कारण है कि यहां विकास कार्य नजर नहीं आता।

यहां कम्युनिटी हाल/बरातघर नहीं है। पार्कों का सौन्दर्यकरण नहीं किया गया है। लोगों का कहना है कि सरकार जानती हैं कि यहां दलित लोग रहते हैं इसलिए इस ओर ध्यान नहीं दिया जाता जबकि पास में ही पटेल नगर हैं वहां आपको सड़कें भी साफ-सुथरी मिलेंगी। पार्क भी सुन्दर मिलेंगे। वहां जिम करने की मशीने भी पार्कों में मिलेंगी। एक तो हम लोगों में भी इतनी जागरूकता और एकता नहीं है। किसी समस्या को लेकर लोग सरकारी अधिकारियों तक जाते भी नहीं। अगर समूह में 50–100 लोग जाएं तो उन पर भी दबाव बने। यहां लोगों को ऐसे काम कराने के लिए समय नहीं है वैसे चाहे पार्क में बैठ कर ताश खेलते रहेंगे। गप्पे मारते रहेंगे।

रंजीत नगर बस्ती में दलितों की मिली जुली स्थिति है। पुरानी विचारधारा हावी है तो कुछ नई सोच के लोग भी हैं। कुछ गरीब लोग हैं तो कुछ समृद्ध हैं। ज्यादातर लोग निम्न मध्यमवर्गीय हैं। लैंगिक समानता की दृष्टि से देखें तो यहां अधिकांश लोग पितृसत्तात्मक व्यवस्था के समर्थक हैं। बहुत कम प्रतिशत लोग ऐसे हैं जो पढ़-लिख कर जागरूक हुए हैं। शिक्षा के क्षेत्र में पिछड़ापन दिखाई देता है। धार्मिक कायर्क्रमों में लोग बढ़चढ़ कर हिस्सा लेते हैं। महर्षि वाल्मीकि की जयन्ती धूमधाम से मनाते हैं। शादी- विवाह में खुलकर खर्च करते हैं और शानदार आयोजन करते हैं।

फुले-अम्बेडकरी विचारधारा से अवगत नहीं कराया जाएगा तब तक इस बस्ती में परिवर्तन नहीं आएगा: राजेश पंवार

40 वर्षीय राजेश पंवार शुरू से रंजीत नगर के ई-ब्लॉक वार्ड 96 में रहते हैं। बैंक कर्मचारी हैं। भारतीय समाज निर्माण संघ के सदस्य हैं। वे सामाजिक कार्यकर्ता हैं। वे कहते हैं कि फुले-अम्बेडकरी विचारधारा से अवगत नहीं कराया जाएगा तब तक इस बस्ती में परिवर्तन नहीं आएगा।

बस्ती के बारे में पूछने पर उन्होंने बताया कि यहां जो बच्चे पढ़-लिख गए हैं वो तो प्राइवेट जॉब में आ गए हैं। जो लोग सरकारी नौकरी कर रहे हैं वे सफाई के काम से जुड़े हैं। कुछ लड़कियां अनपढ़ हैं वो मोहल्ला बस्ती कर रही हैं। झाड़ू-पोछा करना, कूड़ा उठाना आदि का काम करती हैं। कुछ फैक्ट्री में भी निकलना शुरू हुई हैं आजकल। अब शुरू हुआ है ये सिलसिला। कोई स्कूल के अन्दर सफाई का काम कर रही है। कुछ गार्ड की नौकरी कर रही हैं। अब ये कुछ बदलाव दिख रहे हैं। 100 में से 30 महिलाओं ने अपने पारंपरिक काम (सफाई) को बदला है।

कुछ मां-बाप अपने बच्चों को सरकारी स्कूल में ही पढ़ाते हैं। कुछ प्राइवेट स्कूल में भेजते हैं ये सोचकर कि चलो हम तो पढ़ नहीं पाए। पर हमारे बच्चे पढ़-लिख कर आगे बढ़े। मगर यहां प्राइवेट स्कूल भी बहुत हाई-फाई नहीं हैं। छोटे स्तर के हैं। और ये मानकर चलिए कि आधे बच्चे सरकारी स्कूल में पढ़ते हैं तो आधे प्राइवेट स्कूल में।

यहां आरएसएस की शाखाएं लगती हैं क्या?

हां। हमारे यहां दो पार्क हैं। सुबह के समय यहां शाखा लगती है।

क्या यहां वाल्मीकि मंदिर हैं?

हां। हमारे यहां दो वाल्मीकि मंदिर हैं। एक सी ब्लाक में और एक ई ब्लाक में है।

यहां पर बाबा साहेब के बारे में या गौतम बुद्ध के बारे में या महात्मा फुले के बारे में कितने प्रतिशत लोग जानते हैं?

मुश्किल से पांच प्रतिशत लोग। और पांच प्रतिशत लोग भी इसलिए कि हमने 10 साल काम किया है।

क्या आपकी बस्ती में कोई सामाजिक संगठन काम करता है?

संगठन तो बहुत सारे काम कर रहे हैं। मगर ये संगठन सामाजिक जागरूकता के लिए काम नहीं करते। बच्चों की पढ़ाई-लिखाई के लिए क्या करें। बेरोजगारों के रोजगार के लिए क्या कार्यक्रम लगाएं। समाज में जो बेटियां हैं जिन्होंने बी.ए. कर लिया है, 12 वीं पास हैं, इनके लिए कुछ कार्यक्रम लगाना है। इन पर ये काम नहीं करते। उसका संचालन तो हमारी वाल्मीकि जाति का व्यक्ति ही कर रहा है। अन्य संगठनों ने अपर कास्ट के लोगों को ही भर रखा है।

आप भी कोई संगठन चलाते हैं ?

हमारे संगठन का नाम भारतीय समाज निर्माण संघ है। इसका उद्देश्य है कि हमारा समाज दरअसल समाज ही नहीं है। हम जातियों में बंटे हुए हैं। मान्यवर कांशीराम ने भी कहा कि मैंने बहुजन समाज पार्टी तो बनाई लेकिन मैं बहुजन समाज निर्माण नहीं कर पाया। आगे आने वाली पीढ़ी को समाज निर्माण करना होगा। तभी हमारा सामजिक, राजनीतिक, आर्थिक और धार्मिक उत्थान हो पाएगा। नहीं तो हम विफल हो जाएंगे। इसी प्रोजेक्ट पर काम करते हुए हमारे जो राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं, उन्होंने 2012 में भारतीय समाज निर्माण संघ की स्थापना की। अब इसको 10 साल हो चुके हैं। और हम हर साल वाल्मीकि बस्तियों में कार्यक्रम लगाते हैं। बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर की जयन्ती मनाते हैं। ये हमने बाबा साहब की 125 वीं जयंती से शुरू किया था।

सफाई समुदाय में नशा गुटखा, बीड़ी, सिगरेट, दारू जैसे दुर्व्यसन क्यों देखने को मिलते हैं ? और क्या आपको लगता है कि इस समाज में अन्धविश्वाश व्याप्त है?

धर्म के नाम पर हमारे लोगों को नशा कराया जाता है जैसे जब भोले शंकर की शिवरात्रि आती है। उस समय गुटखा खाते हैं, भांग-धतूरा पीते हैं। उसे धर्म का प्रसाद समझ कर पीते हैं। और जो नहीं भी पीते हैं। वो भी इनका मजा लेने के लिए प्रसाद के तौर पर ग्रहण करते हैं। और फिर वे इसके आदी हो जाते हैं। दूसरी बात जब ये कांवड़ लेकर जाते हैं तब मां-बाप से कर्जा दिलवाकर नशीले पदार्थ लेकर कांवड़ लेने जाते हैं। कहने को हमारे यहां नशा मुक्ति केंद्र है पर नशा करने वालों की कमी नहीं है।

आपको क्या लगता है कि सफाई समुदाय में किस धर्म को मानने वाले लोग ज्यादा हैं?

जिस धर्म का सरकार प्रचार-प्रसार ज्यादा करती है। उसे ही माना जाता है। सरकार ब्राह्मणवादी धर्म को ज्यादा महत्व देती है। जिसे हिन्दू धर्म कहा जाता है। पर हम जो फुले-अम्बेडकरी विचारधारा को लोगों तक पहुँचाना चाहते हैं। उसका प्रभाव पड़ता नहीं है। लोग जल्दी समझ नहीं पाते। हमें दस-पंद्रह साल हो गए इस विचारधारा का प्रचार-प्रसार करते। तब हमें केवल पांच परसेंट रिजल्ट मिला है।

इस बस्ती में कितने प्रतिशत लोग शिक्षित, जागरूक, चेतनाशील हैं।

शिक्षित लोगों को अगर सामाजिक सिस्टम के बारे में नहीं पता तो उनके शिक्षित होने का क्या फायदा। शिक्षित होने का मतलब है कि तर्कशील होना। चेतनशील होना। बुद्धिजीवी होना। पर हमारी सोच सुबह के अखबार से बनती है। हमें वह पढ़ाया जा रहा है जो हम पढ़ना नहीं चाहते। हमें वह दिखाया जा रहा है जो हम देखना नहीं चाहते। प्रशासन की सोच अखबार और टीवी हम पर थोपते हैं और उसी से हमारी सोच बनती है।

अख़बार, टीवी यानी मीडिया, ये किस वर्ग का मीडिया है और क्या सोच निर्माण कर रहा है?

ये ब्राह्मणवादी मीडिया है और ब्राह्मणवादी विचारधारा का प्रचार-प्रसार कर रहा है। वह हमारे विरोध में काम कर रहा है।

अगर राजनीति की बात करें तो इस बस्ती के लोग किस राजनीतिक पार्टी से जुड़े हैं?

यहां ज्यादा से ज्यादा हमारे लोग तो कांग्रेस पार्टी से जुड़े हैं। कुछ लोग बीजेपी पार्टी से भी जुड़े हुए हैं। वे देखते हुए भी नहीं देख पा रहे। 15 से 20 प्रतिशत लोग आम आदमी पार्टी से जुड़े हुए हैं।

आम आदमी पार्टी की बात करें तो उनका कहना है कि हम मोहल्ला क्लिनिक चला रहे हैं, स्कूलों में सुधार कर रहे हैं। ज़मीनी स्तर पर क्या स्थिति है?

जमीनी स्तर पर स्थिति अलग है। हमारी अन्य समस्याओं पर उनका ध्यान नहीं है। जैसे शादी-विवाह करने के लिए हमारे यहां कोई कम्युनिटी सेंटर नहीं है। कांग्रेस ने अपने समय में छोटी-छोटी धर्मशालाएं बनवा कर दी थीं। उसमे कोई बड़ा कार्यक्रम नहीं हो पाता।

क्या इस बस्ती में सफाई कर्मचारी समुदाय से विधायक, एमपी, पार्षद कोई हैं?

जी हां हैं, 1997 में हमारे यहां मदनलाल वाल्मीकि एमएलए बने थे बीजेपी से। कांग्रेस के राजेश लिलोठिया यहां से विधायक रहे हैं। कृष्णा तीर्थ रहीं। हजारीलाल जी रहे। और आज की डेट में आम आदमी पार्टी से राजकुमार आनंद हैं। उन्हें सर्वश्रेष्ठ विधायक का अवार्ड मिला है अब तो मंत्री भी बन गए हैं । पर ये लोग काम अमीर लोगों के लिए करते हैं। पटेल नगर कोठियों के आस पास देखें वहां सड़कें लम्बी चौड़ी और सा-सुथरी रहती हैं। वहां आबादी भी कम होती है। जबकि हमारी बस्ती में देखिये। यहां नालों से बदबू आती हैं। सड़कें और फुटपाथ खस्ता हाल हैं। पार्क गंदे पड़े हैं। सीवर अक्सर बंद रहती हैं। बुरा हाल है। मारने की तयारी है लोगों को। यहां के जो जीने हैं वो बारिश में टपकते हैं।

रंजीत नगर में अंदर कूड़ा उठाने नहीं आते निगम सफाई कर्मचारी

अपनी चुनौतियों के बारे में राजेश बताते हैं कि हम इस समुदाय की महिलाओं और लड़कियों को बिना जागरूक किए पूरे समुदाय को जागरूक नहीं कर सकते। हमने पुरुषों की बहुत जागरूकता मीटिंग करा लीं। कुछ फर्क नहीं पड़ा। उनकी पत्नियां वही पूजा-पाठ और अंधविश्वास में जकड़ी हुई हैं। इसलिए जब तक पूरे परिवार को जागरूक नहीं किया जाएगा। उन्हें फुले-अम्बेडकरी विचारधारा से अवगत नहीं कराया जाएगा तब तक परिवर्तन नहीं आएगा। लेकिन ये काम बहुत मुश्किल है और यही मुश्किल काम हमें करना है।

हमारी एंटी-विचारधारा (आरएसएस) के लोग निरंतर अपनी विचारधारा का प्रचार हमारी बस्ती में करते रहते हैं। इसलिए हमारी चुनौती और बढ़ जाती है। ये लम्बी लड़ाई है। और हमें बिना रुके बिना थके ये काम लगातार करना होगा। हर व्यक्ति को हर परिवार को हर समाज को अपने हिस्से का काम करना होगा तभी हम सफल हो पाएंगे।

(लेखक सफाई कर्मचारी आंदोलन से जुड़े हैं।)

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