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दिल्ली: प्लास्टिक सामान बनाने वाली फैक्टरी में लगी आग, दो लोगों की मौत

दिल्ली आउटर-नॉर्थ के डीसीपी देवेश कुमार महला ने बताया कि 20 लोगों को बचाया गया है, 18 लोग घायल हैं और 2 लोगों की मृत्यु हुई है। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक  फैक्ट्री में जिस समय आग लगी, उस समय उसमें 300 लोग काम कर रहे थे।
delhi fire
फ़ोटो साभार: पीटीआई

नरेला औद्योगिक क्षेत्र में मंगलवार को प्लास्टिक का सामान बनाने वाली एक फैक्टरी में आग लग गई।  जिसमें झुलसकर 2 लोगों की मौत हो गई है। जिनकी पहचान की कोशिश जारी है। आग की सूचना के बाद दमकल की कई गाड़ियां मौके पर मौजूद हैं और आग पर काबू पाने की कोशिश में जुटी हैं।
 
दमकल विभाग के अनुसार, सुबह नौ बजकर 35 मिनट पर आग लगने की सूचना मिली थी। इसके बाद दमकल की 10 गाड़ियां मौके पर भेजी गईं ।
 
दिल्ली आउटर-नॉर्थ के डीसीपी देवेश कुमार महला ने बताया कि 20 लोगों को बचाया गया है, 18 लोग घायल हैं और 2 लोगों की मृत्यु हुई है। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक  फैक्ट्री में जिस समय आग लगी, उस समय उसमें 300 लोग काम कर रहे थे।

पुलिस के मुताबिक कारखाने से जूते-चप्पल चिपकाने की मशीन में ब्लास्ट हुआ। इसके बाद आग लग गई। नरेला की जिस बिल्डिंग में आग लगी उसमें फायर की एनओसी नहीं थी।  सके अलावा कारखाने में अवैध निर्माण हुआ भी पाया गया है। फैक्ट्री के एंट्री और एग्जिट गेट पर भी कच्चा माल रखा हुआ है।

जबकि दिल्ली फायर विभाग के अधिकारी संदीप दुग्गल ने समाचार एजेंसी एएनआई  से बातचीत में कहा कि यहां पर जूते-चप्पल बनाने का काम होता था। हम अभी मृत्यु का आंकड़ा नहीं बता सकते हैं। मौजूदा स्थिति में 15 गाड़ियां घटनास्थल पर हैं। यहां के एक ठेकेदार के मुताबिक छत के माध्यम से 300 लोग सुरक्षित बाहर निकल आए थे, अभी सर्च ऑपरेशन जारी है ।

यह कोई अकेली घटना नहीं है। दिल्ली में बीते दिनों में कई फैक्ट्रियों और कार्यस्थलों में आग लग चुकी है, जिसमें कई मज़दूरों ने अपनी जान भी गँवा दी है। ये घटनाएं सरकारी तंत्र पर सवाल खड़ा करती हैं। इन घटनाओं का कौन जिम्मेदार है? अब तक इन सभी घटनाओं में किसी पर कठोर कार्रवाई होती नहीं दिखाई दी है? शायद किसी पर नहीं। कुछ लोगों पर कार्रवाई हुई तो उसे बस खानापूर्ति कह सकते हैं।

पिछले कुछ सालों में बड़ी आग की घटनाओं पर नजर डाले तो दिखता है कि सरकार मजदूरों के सुरक्षा को लेकर कितनी उदासीन है ।

13 मई 2022 को राजधानी के पश्चिमी इलाके में मुंडका मेट्रो स्टेशन के पास स्थित चार मंजिला व्यावसायिक इमारत में  आग लगने से कम से कम 27 लोगों की मौत हो गई थीं। इसमें सीसीटीवी कैमरा और राउटर बनाए जाते थे ।

8 दिसंबर 2019 को करोलबाग के रानी झांसी रोड  स्थित अनाज मंडी में फैक्ट्री में आग लगने से 43 लोगों की मौत हुई थी। इस हादसे में 50 लोग घायल भी हुए थे।

इसी तरह 12 फरवरी 2019 करोलबाग के ही अर्पित होटल में आग लगने से 17 लोगों की जान चली गई थी। साथ ही इस हादसे में 35 लोग भी घायल हुए थे।

जबकि 21 जनवरी 2018 में बवाना में पटाखा फैक्ट्री में आग लगने से 17 लोगों की मौत हुई थी। मरने वालों में 10 महिलाएं भी थीं। साथ ही हादसे में 2 लोग झुलस गए थे।

इसके अलावा कई ऐसी घटनाएं हुई है जिनमें श्रमिक वर्ग के लोगों ने अपनी जान गंवाई है। लेकिन सरकारों ने कुछ मुआवजा देकर अपना पल्ला झाड़ लिया । कभी भी दोषी अधिकारियों और भ्रष्ट नेताओं पर कोई कार्रवाई नहीं हुई है ।

इस तरह की घटनाएं प्रशासन और  मालिकों के मिलीभगत से होती हैं। चंद पैसे बचने के लिए  मालिक मज़दूरों की जान से खेलते हैं। दिल्ली की अधिकतर फैक्ट्रियों और ऑफिस में मज़दूरों की सुरक्षा के नाम पर बड़ा शून्य होता है।

मज़दूर संगठनों ने समय-समय पर कई बार इस बात के लेकर कहा है कि “ऐसी घटनाएं प्रशासन की लापरवाही से होती हैं। भ्रष्ट अधिकारी जिनकी जिम्मेदारी है कि वो फैक्ट्री का दौरा करें और नियमों का लागू कराएं लेकिन अधिकारी भ्रष्ट हैं और अकसर नियमों के उल्लंघन को नज़रअंदाज़ कर देते हैं।”
 
(समाचार एजेंसी भाषा के इनपुट के साथ)

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