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दिल्ली दंगा: नफरत की फसल की कटाई

हाल के महीनों में राजधानी के भीतर जो नफरत फैलाई गई अब उसे वीभत्स भीड़ की हिंसा में बदला जा रहा है।
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मंगलवार 25 फरवरी की सुबह, उत्तर-पूर्वी दिल्ली में अर्धसैनिक बलों की 35 टुकड़ियों को तैनात किया गया और पुलिस आयुक्त अमूल्य पटनायक ने दावा किया था कि स्थिति नियंत्रण में है, लेकिन मौजपुर इलाके में हिंसा भड़की और दुकानों में तोड़फोड़ के साथ आग लगा दी गई, वाहनों को भी आग के हवाले कर दिया गया और दो समुदायों के बीच जमकर पथराव हुआ।

जैसे-जैसे दिन गुजरता गया, दिल्ली के उत्तर-पूर्व जिले में घनी आबादी वाले निम्न मध्यम वर्ग और गरीब कॉलोनियों में हिंसा जारी रही। यह हिंसा आसपास के जुड़े इलाकों में भी फैल गई। शाम तक मरने वालों की संख्या 10 बताई जा रही थे और दर्जनों घायल हो चुके थे।

उसी रात, गोकुलपुरी में टायर बाजार में आग लगाने सहित आगजनी की करीब 45 घटनाएं हुईं। 24 फरवरी को ही एक पुलिस हेड कांस्टेबल समेत सात लोग मारे जा चुके थे। रिपोर्टों से पता चलता है कि पास के जीटीबी अस्पताल में अकेले ही कम से कम 165 लोगों का गोली लगने और चोटों से जख्मी का इलाज कराया गया। गिरफ्तार होने के डर से दर्जनों अन्य घायल लोगों ने अस्पतालों में जाने की भी हिम्मत नहीं की।

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेता, जो पूर्व में विधायक थे, और पहले आम आदमी पार्टी के साथ थे, उनकी अगुवाई में लोगों की एक छोटी सी भीड़ ने रविवार 23 फरवरी को हिंसा को भड़काया और सीएए के प्रदर्शनकारियों के साथ झड़प को हवा दी। दिल्ली पुलिस को नियंत्रित करने वाले गृह मंत्री अमित शाह के शीर्ष अधिकारियों के साथ बैठक करने की सूचना मिली।

हिंसा के समय एसिड की बोतलें, पेट्रोल बम और हथियारों से लैस गिरोह के लोग इलाके की तंग गलियों में घूमते हुए हमला कर रहे थे और जहां चाहा वहां आग लगा रहे थे। सोमवार को गामरी में स्थित एक सूफी संत की दरगाह को जला दिया गया। मंगलवार को अशोक नगर में एक मस्जिद पर हमला किया गया। हिंसा के इस तांडव को स्थानीय लोगों ने अपने फोन के कैमरे में कैद किया और इनके जरिए कई वीडियो आए जिनमें कथित तौर पर जय श्री राम ’चिल्लाते हुए समूह दिखाए दिए और वे दुकानों में तोड़फोड़ कर रहे थे और आग लगा रहे थे। पुलिस कर्मियों पर भी आरोप है कि उन्हें भी कई इलाकों में पथराव करते देखा गया है।

मंगलवार को, दंगाई काफी सतर्क हो गए और उन्होंने कई पत्रकारों पर हमला किया और उन्हें वीडियो डिलीट करने पर मजबूर किया। सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों, मुख्य रूप से मुस्लिम समुदाय और जिन्हें कई हिंदुओं का समर्थन हासिल था, ने भी कथित तौर पर प्रतिक्रिया में पत्थर और बोतलें फेंकी। लेकिन, जैसा कि इस तरह के हालात में होता है, संख्या बल और पुलिस पूर्वाग्रह के कारण हालात उनके पक्ष में नहीं थे। पुलिस आयुक्त ने माना है कि पर्याप्त पुलिस बल उपलब्ध नहीं थे।

सबको पता था कि ऐसी स्थिति होने वाली थी। जिस तेज़ी के साथ भाजपा और उसके सहयोगी संगठन के सशस्त्र गिरोहों पुलिस की निष्क्रियता का फायदा उठाकर हमला कर रहे थे वह कोई स्वयस्फुर्त घटना तो हो नही सकती थी। न ही यह हो सकता था कि कपिल मिश्रा ( पूर्व-विधायक) नफरत फैलाने वाला व्यक्ति घृणा फैलाए और गायब हो जाए।

लेकिन रविवार से पहले ही जमीन तैयार कर दी गई थी। और इसे ही दिल्ली और देश के बाकी हिस्सों को देखने की जरूरत है।

पहला काम अल्पसंख्यकों की घेराबंदी

जब से बीजेपी ने पिछले साल मई-जून में आम चुनाव जीता है और सत्ता में वापस आई है तब से वह खुले तौर पर आरएसएस (राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ) के एजेंडे के साथ आगे बढ़ रही है, जो मुसलमानों को दुश्मन मानता है। इस समुदाय को हाशिए पर लाने के लिए कई अन्यायपूर्ण कदम उठाए गए हैं: जिसमें अनुच्छेद 370 को निरस्त करना और जम्मू-कश्मीर (अकेला मुस्लिम बहुल राज्य) को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित करना; बार-बार कहा जाता है कि "विदेशियों" को भारत से बाहर निकाला जाएगा; नागरिकों का राष्ट्रीय रजिस्टर (एनआरसी) तैयार करने का बार-बार वादा किया जाता है; हिंदुओं के पक्ष में अयोध्या विवाद को निपटाने का दावा; और भेदभावपूर्ण नागरिकता कानून (सीएए) का पारित होना।

भड़काऊ भाषणों और अभियानों के जरिए इन कदमों को उठाया जा रहा है – फिर चुनाव हो या धार्मिक त्योहार - आक्रामक हिंदू राष्ट्रवाद, दोनों सार्वजनिक और सोशल मीडिया नेटवर्क के माध्यम से घृणा के लिए फैलाया जा रहा है। यह पहले से चल रहा था लेकिन भाजपा की चुनावी जीत के बाद इसने एक नई ताक़त के साथ काम करना शुरू किया। शायद उन्होंने सोचा कि हिंदू राष्ट्र स्थापित करने का सपना सीधे तौर पर और जल्दी से पूरा हो सकता है?

इसमें ध्यान देने की खास बात यह है कि भाजपा के वरिष्ठ नेता खुद इस घृणा को फैलाने में लिप्त हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और राज्यों में छोटे नेताओं से लेकर विभिन्न स्तरों पर चुने हुए प्रतिनिधियों ने "विदेशियों" और "घुसपैठिए" को देश से बाहर निकालने के लिए भड़काऊ भाषण दिए और पड़ोसी देशों में हिंदू अल्पसंख्यकों की दुखद स्थिति, (मुस्लिम देशों में) को लेकर मगरमच्छ के आंसू बहाए।

जहरीला रहा दिल्ली का चुनाव प्रचार

इस महीने के शुरू में दिल्ली विधानसभा चुनावों के लिए विशेष रूप से भाजपा का प्रचार भी जहर से भरा था। न्यूज़क्लिक ने विभिन्न रिपोर्टों में जहर, झूठ, अर्ध-सत्य और घृणा के इस कभी-न-देखे जाने वाले अभियान के बारे में बार-बार रिपोर्ट किया था। भाजपा नेताओं ने खुलेआम ‘देशद्रोहियों’ को गोली मारने के लिए दर्शकों को उकसाया, और जोर शोर से कहा कि "वे (मुसलमान) हमारे घरों में घुसेंगे और हमारी बेटियों के साथ बलात्कार करेंगे और यदि भाजपा को बहुमत नहीं दिया गया तो वे हमें घर में घुस कर मारेंगे।" संसद के प्रमुख बीजेपी के सदस्यों ने लोगों को कहा कि अगर सतर्कता न बरती गई तो मूगल राज वापस आ जाएगा।

जैसा कि बार-बार बताया गया है, यह योजना न तो कुछ जोर शोर से बोलने वाले नेताओं के मुंह से निकल रही थी और न ही यह गुप्त रूप से धीमा बोलने वाले प्रचारों के माध्यम से चल रही थी। यह सबके सामने अपने खुले तौर पर मौजूद थी वह भी खुलेआम माइक के जरिए इस नफरत की घोषणा की जा रही थी।

दिल्ली अविश्वास और चिंता से दंग थी। ऐसी गंभीर भविष्यवाणियां किसी को भी चिंतित और परेशान कर देंगी। जहां तक तात्कालिक चुनावों की बात है, तो ज्यादातर दिल्ली के लोगों ने आम आदमी पार्टी को वोट देना पसंद किया, जिसका नेतृत्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल कर रहे थे। लेकिन दुख की बात है कि दिल्ली में भाजपा के नफरत के अभियान ने अपनी छाप छोड दी है। अब जब चुनाव हो चुके हैं और भाजपा निर्णायक रूप से पराजित हो गई है ऐसे में अब यह सांप्रदायिक प्रभाव जमीन के नीचे उबाल खा रहा है।

याद रखें कि भाजपा केंद्र की सत्तारूढ़ पार्टी है। मुसलमानों, या अन्य अल्पसंख्यकों के प्रति शत्रुता को इसकी मंजूरी, दंगाईयों के भीतर डर को खत्म कर देती है। अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा को न्यायपूर्ण और मज़बूत तरीके से पूरा मुक़ाबला नहीं किया जाएगा, खासकर अगर वह हिंसा भीड़ के जरिए हो। यहां तक कि अगर नकाबपोश लोग लोहे की रॉड से लैस होकर विश्वविद्यालय में प्रवेश करते हैं और शिक्षकों और छात्रों को पीटते हैं – तब भी सरकार कुछ नहीं करेगी। यहां तक कि अगर पुलिस पुस्तकालयों में प्रवेश करती है और छात्रों को पीटती है – तब भी कुछ नहीं होगा। पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश में, योगी आदित्यनाथ की पुलिस ने सीएए के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करने वालों पर क्रूरतापूर्वक हमला किया है, दर्जनों लोगों को गिरफ्तार किया, बदनाम किया, परिवारों पर भारी जुर्माना लगाया और 20 से अधिक लोगों की हत्या कर दी गई।

ज़हर के बीजों की फसल

यह नफरत से भरे शातिर और राजनीतिक रूप से संचालित अभियान का नतीजा है कि नए नागरिकता कानून और प्रस्तावित एनआरसी के खिलाफ अब मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाया जा रहा है। हालांकि यह सच है कि सीएए-एनआरसी-एनपीआर के खिलाफ धरने पर प्रदर्शनकारियों की बड़ी संख्या मुस्लिम महिलाओं की हैं, लेकिन पूरे मुस्लिम समुदाय को देश में सीएए के संघर्ष की पहचान के रूप में दिल्ली चुनाव प्रचार में भाजपा ने पहली बार हथियार के रूप में इस्तेमाल किया है। चुनावों की हार से डगमगाए, हिंसक भीड़ के जरिए हमलों और पूर्ण-सांप्रदायिक हिंसा की अन्य सभी घटकों के साथ बड़े ही योजनाबद्ध तरीके से इसे अंजाम दिया गया है।

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के जाने के बाद, मोदी सरकार और इसके गली के लड़ाके आजाद हो गए होंगे - या तो वे मौजूदा हमलों को जारी रखेंगे या कुछ शांतिपूर्ण तरीके से चीजों को सुलझाने की कोशिश करेंगे। पिछले रिकॉर्ड के आधार पर, सरकार ने दिसंबर के बाद से प्रदर्शनकारियों के साथ कोई राब्ता कायम करने की कोशिश नहीं की है, और उसकी तरफ से लगातार आक्रामकता जारी है, इसकी संभावना कम है कि कोई भी सौहार्दपूर्ण समाधान निकलेगा।

एक ही रास्ता है कि सभी समुदायों के लोग एक साथ आए जो संविधान की रक्षा करने का एकमात्र तरीका हो सकता है, जो संविधान कानून के समक्ष असंतोष और समानता का अधिकार देता है, और एक धर्मनिरपेक्ष राजनीति का भी पक्ष रखता है। अन्यथा, राजधानी अराजकता में डूब जाएगी और हिंसा बेहिसाब कई जिंदगियों को खत्म कर देगी।

अंग्रेजी में लिखा मूल आलेख आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं।

Delhi: Poison Seeds, Bloody Harvest

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