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दिल्ली दंगे : पुलिस की चार्जशीट में क्यों नहीं है कपिल मिश्रा के नफ़रती भाषण का ज़िक्र?

पुलिस ने उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुई सांप्रदायिक हिंसा का आरोप सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों पर ही जड़ दिया है।
दिल्ली दंगे

नई दिल्ली: दिल्ली पुलिस की अपराध शाखा ने इंटेलिजेंस ब्यूरो (आईबी) के कर्मचारी अंकित शर्मा (दयालपुर पुलिस स्टेशन में दर्ज एफआईआर संख्या 65/2020) की हत्या के मामले में दायर चार्जशीट में एक "कालक्रम" या कहे कि घटनाक्रम का बखान किया है जिसके चलते इस साल फरवरी में 50 से अधिक लोगों की मौत हो गई थी और सैकड़ों लोग घायल हो आगे थे।

घटनाओं के इस क्रम को "नॉर्थ-ईस्ट  दिल्ली में दंगों के लिए जिम्मेदार घटनाओं का कालक्रम" शीर्षक दिया गया है इसके माध्यम से पुलिस एक कहानी चला रही है जिसमें वह दंगों को अंजाम देने और दंगो के बीज़ बोने के लिए विवादास्पद नागरिकता (संशोधन) अधिनियम के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे कार्यकर्ताओं को जिम्मेदार ठहरा रही है। और इसने दंगों को "पूर्व-नियोजित साजिश" कहा है जिसके  जवाब में प्रतिशोध की कार्यवाही की गई है। 

दिलचस्प बात यह है कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेता कपिल मिश्रा, जिनके द्वारा 23 फरवरी को मौजपुर में कथित रूप से भड़काऊ भाषण देने के बाद हिंसा हुई, का जिक्र भी उस "कालक्रम" या घटनाक्रम में नहीं है।

जैसा की सबको पता है, कपिल मिश्रा ने जफ़राबाद मेट्रो स्टेशन के नज़दीक मौजपुर ट्रैफ़िक सिग्नल पर सीएए-समर्थक रैली का आयोजन किया था, यह वह जगह है जहाँ करीब 500 लोग विवादास्पद कानून के विरोध में धरना दे रहे थे, जो कानून सभी धर्मों को भारतीय नागरिकता देने की बात करता है - सिवाय मुस्लिम समुदाय के – उन्हे जो 2014 तक बांग्लादेश, अफगानिस्तान और पाकिस्तान से पलायन करके हिंदुस्तान आए हैं। इस कानून को पिछले साल दिसंबर में संसद के दोनों सदनों में पारित कर दिया था।

मिश्रा ने मौजपुर में एक सभा को संबोधित करते हुए कहा था, “वे (यानि सीएए विरोधी प्रदर्शनकारी) दिल्ली में परेशानी पैदा करना चाहते हैं। इसलिए उन्होंने सड़कें बंद कर दी हैं। और उन्होंने यहां दंगे जैसी स्थिति पैदा कर दी है। हमने कोई पथराव नहीं किया है। जब तक अमेरिकी राष्ट्रपति भारत में हैं, हम क्षेत्र को शांतिपूर्ण छोड़ रहे हैं। उसके बाद, यदि सड़कें खाली नहीं की गई तो हम आपकी (पुलिस की) बात भी नहीं सुनेंगे।”

बाद में, उन्होंने एक वीडियो ट्वीट करते हुए लिखा था, “हमने दिल्ली पुलिस को तीन दिन की मोहलत दी है ताकि सड़क से प्रदर्शनकारियों को साफ कर दिया जाए। पुलिस जाफराबाद और चांदबाग रोड को साफ करवाएं। ”

उनके भड़काऊ भाषण देने के कुछ घंटे बाद ही, मौजपुर चौक पर दो समूहों के बीच पथराव शुरू हो गया और पूर्वोत्तर दिल्ली के कई इलाकों में शाम तक दंगा भड़क गया था। मौजपुर क्षेत्र सांप्रदायिक हिंसा का केंद्र बन गया था।

लेकिन मिश्रा की यह अभद्र भाषा पुलिस के "कालक्रम" में पूरी तरह से गायब है, जिसकी वजह से 22 और 23 फरवरी को सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों द्वारा सड़कों को अवरुद्ध करने की बात का उल्लेख करने के बाद हिंसा भड़क जाती है।

घटनाक्रम

13 दिसंबर, 2019 को जामिया मिलिया यूनिवर्सिटी रोड पर हिंसा की घटना घटती है।

15 दिसंबर, 2019 को एनएफसी (न्यू फ्रेंड्स कॉलोनी) की विभिन्न सड़कों पर हिंसा की घटना घटती है।

15 दिसंबर, 2019 को जामिया मिलिया विश्वविद्यालय में हिंसा की घटना घटती है।

जामिया समन्वय समिति (जेसीसी) के नाम पर एक समिति का गठन किया जाता है, जिसमें जामिया मिलिया इस्लामिया के छात्र और पूर्व छात्र शामिल होते हैं ताकि विरोध को जीवित रखा जा सके।

शाहीन बाग विरोध 15 दिसंबर, 2019 से शुरू होता है।

"15 जनवरी से 26 जनवरी तक पूर्वोत्तर दिल्ली की मुख्य सड़कों को व्यवस्थित ढंग से रोका जाता है।"

जाफराबाद मेट्रो स्टेशन (66-फुटा रोड) के तहत सड़क को रोका जाता है। यह वह महत्वपूर्ण बिंदु है, जहां पुलिस ने 23 फरवरी की घटनाओं को हिंसा भड़काने के रूप में चित्रित किया है, लेकिन पुलिस कपिल मिश्रा पर आरोप के मामले में चुप्पी साध गई है। भाजपा नेता ने 23 फरवरी को अपना नफरती भाषण दिया था, और उसी दिन पूर्वोत्तर दिल्ली में हिंसा भड़क गई थी।

"उदाहरण दिखाते हैं कि विरोध प्रदर्शन करने आए लोग हिंसा करने का मन बना कर आए थे।" इस बयान से, दंगों का दोष पूरी तरह से सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों पर डाल दिया गया है।

आरोपपत्र के हिसाब से 23 फ़रवरी का घटनाक्रम 

चार्जशीट में 23 फरवरी की घटनाओं का वर्णन इस तरह किया गया है:

22 फरवरी को, लगभग 10: 30 से 11.00 बजे के बीच, लगभग 400-500 महिलाओं और बच्चों सहित लगभग 1,000 लोगों की भीड़, बड़े अनुशासित ढंग से, जाफराबाद मेट्रो स्टेशन के नीचे 66 फुटा रोड पर इकट्ठा हुई और धरने पर बैठ गई थी। यह भीड़ भीम आर्मी के रावण उर्फ चंद्र शेखर आज़ाद के भारत बंद के आह्वान के जवाब में हुई थी। प्रदर्शनकारी सरकार के खिलाफ नारे लगा रहे थे और दिल्ली के मौजपुर की ओर सीलमपुर टी-पॉइंट से जाने वाले 66-फुटा रोड पर यातायात रोक दिया था।

23 फरवरी 2020 को, पुलिस को सूचना मिली कि 3.00 बजे जाफराबाद मेट्रो स्टेशन के नीचे 66-फुट रोड को खोलने की मांग को लेकर लोग मौजपुर चौक पर इकट्ठा होंगे, जो जाफराबाद मेट्रो स्टेशन से लगभग 750 मीटर की दूरी पर है। इसके बाद, हजारों की संख्या में जाफराबाद और कर्दमपुरी (जो मेट्रो स्टेशन रोड को रोकने का समर्थन कर रहे थे) के सभी निवासी इकट्ठे हो गए और दोनों तरफ से भीड़ द्वारा पथराव शुरू हो गया। पुलिस ने हस्तक्षेप किया और आंसू गैस के गोले और लाठीचार्ज कर दोनों तरफ से भीड़ को तितर-बितर कर दिया।

हालांकि, हालात अशांत हो गए थे और वेलकम, जाफराबाद, दयालपुर, उस्मानपुर, भजनपुरा, गोकलपुरी और खजूरी खास जैसे अन्य क्षेत्रों में तनाव फैलने लगा था। सीएए विरोधी  प्रदर्शनकारियों की तरफ से शेरपुर चौक और चांद बाग से पथराव की घटनाएं भी हुईं। 03.18 बजे, 1000 सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों की भीड़ ने सीलमपुर टी-पॉइंट पर सड़क को अवरुद्ध करने की कोशिश की।

23 फरवरी 2020 की सुबह तक, जफराबाद मेट्रो स्टेशन पर प्रदर्शनकारियों का जमावड़ा 2000/3000 तक पहुँच गया था क्योंकि आसपास के क्षेत्रों की महिला और पुरुष विरोध प्रदर्शन में शामिल होते जा रहे थे। स्थानीय लोगों ने प्रतिक्रिया में, जो 66-फुटा रोड और जफराबाद मेट्रो स्टेशन रोड को खोलने की मांग कर रहे थे, भी मौजपुर चौक पर एकत्र हो गए थे।

इसके अलावा, 23 फरवरी 2020 को 12.29 बजे सूचना मिली कि कुछ सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों ने बी-ब्लॉक यमुना विहार की सड़क को रोक दिया है। चांद बाग के पास वज़ीराबाद के स्लिप रोड पर बैठे सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों ने वज़ीराबाद रोड को अवरुद्ध कर दिया था और वे बहुत आक्रामक हो गए थे।

24 फरवरी 2020 को लगभग 12.30 बजे, मौजपुर चौक के पास दो समुदायों के बीच झड़पें शुरू हो गई जहाँ दोनों समूहों में 5000/10000 लोग शामिल थे, जो लगातार एक-दूसरे पर भारी पथराव कर रहे थे। यहां तक कि बीच-बीच में गोलीबारी भी हो रही थी। वेलकम, भजनपुरा, जाफराबाद, उस्मानपुर, कर्दमपुरी, ब्रह्मपुरी, मौजपुर, चांद बाग, भागीरथी विहार, शेरपुर चौक, विजय पार्क आदि क्षेत्रों में भी भारी भीड़ जमा हो गई थी। जिसमें इन इलाकों में 500 से 1000 लोगों के इकट्ठा होने की खबर मिली थी। 

विपरीत समूहों के बीच झड़पें शुरू हो गई थी। “22 फरवरी 2020 को, लगभग 10:30 से 11.00 बजे के बीच, 1000 से अधिक लोगों की भीड़, जिनमें लगभग 400-500 महिलाएं और बच्चे शामिल थे, जो काफी अनुशासित थे, इकट्ठा हुए और जाफराबाद मेट्रो के नीचे वाले रोड जम कर बैठ गए। भीम आर्मी के चन्द्रशेखर उर्फ रावण द्वारा किए गए भारत बंद के आह्वान के जवाब में 66 फुटा रोड रोक दिया गया था। प्रदर्शनकारी सरकार के खिलाफ नारे लगा रहे थे और दिल्ली के मौजपुर की तरफ सीलमपुर टी-पॉइंट से जाने वाले 66-फुटा रोड पर यातायात रोक दिया गया था।

इस तथ्य के बावजूद भी मिश्रा का नाम चार्जशीट में नहीं है कि जब वह एक गुस्से से भरी भीड़ को संबोधित कर रहे थे, तो मौके पर एक डीसीपी भी मौजूद थे।

मिश्रा का नाम दर्ज़ करने या उसका उल्लेख करने के बजाय, चार्ज-शीट अस्पष्ट रूप से मौजपुर में हुई सभा को संदर्भित करती है और कहती है कि, "कुछ लोग जाफराबाद मेट्रो स्टेशन के 66-फुटा रोड पर इकट्ठा हुए और सड़क खोलने की मांग करने लगे"।

उनके नाम उल्लेख करना [या छोड़ना] या उनकी उपस्थिति और भाषण का उल्लेख करना अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि चार्जशीट में कहा गया है कि 24 फरवरी को मौजपुर में जहां मिश्रा ने अपना भाषण दिया था, वहाँ से बड़ी झड़पें शुरू हुई थीं।

चार्जशीट में अन्य महत्वपूर्ण तथ्य भी गायब हैं, जिन्होंने हिंसा को बढ़ाने में योगदान दिया हो सकता है। मिसाल के तौर पर, दिल्ली विधानसभा चुनाव के वक़्त, भाजपा के केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह समेत कई भाजपा नेताओं (जिनमें सांसद परवेश वर्मा, अनुराग ठाकुर और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ शामिल हैं) ने शाहीन बाग की महिला प्रदर्शनकारियों के खिलाफ भड़काऊ, अशोभनीय और आग लगाउ भाषण दिए और सोशल मीडिया पर फर्जी खबरों की बमबारी कर डाली थी।

मिश्रा के बारे में अदालत ने क्या कहा 

दिल्ली उच्च न्यायालय में दायर एक याचिका, जिसमें मांग की गई थी कि पूर्वोत्तर दिल्ली में सांप्रदायिक हिंसा में जो लोग शामिल हैं उनके खिलाफ प्राथमिकी दर्ज़ की जाए और उन्हे तुरंत गिरफ्तार किया जाए। सुनवाई के दौरान जस्टिस एस मुरलीधर और तलवंत सिंह की खंडपीठ ने भड़काऊ भाषण के लिए मिश्रा को कटघरे में खड़ा करने को कहा था।

अदालत ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और पुलिस उपायुक्त (क्राइम ब्रांच) राजेश देव से पूछा था कि क्या उन्होंने मिश्रा की कथित नफरत फैलाने वाले भाषण की वीडियो क्लिप देखी है?

जवाब में, सॉलिसिटर जनरल ने अदालत को बताया कि उसने टेलीविजन नहीं देखा और इसलिए उन्होने विडियो क्लिप भी नहीं देखा था, देव ने कहा कि उन्होने भाजपा नेता अनुराग ठाकुर और परवेश वर्मा का वीडियो देखा है, लेकिन कपिल मिश्रा का विडियो नहीं देख पाए।

इसका जवाब देते हुए, न्यायमूर्ति मुरलीधर ने टिप्पणी की, "मैं दिल्ली पुलिस की हालत देखकर वास्तव में चकित हूं" और अदालत के स्टाफ़ से मिश्रा की वीडियो क्लिप को चलाने को कहा।

न्यायमूर्ति मुरलीधर ने दिल्ली पुलिस से कहा कि वह मिश्रा की टिप्पणी पर उसके ख़िलाफ़ प्राथमिकी दर्ज करने का निर्णय जल्द से जल्द ले। लेकिन तय समय सीमा समाप्त होने से पहले उनका तबादला हो गया।

अंग्रेज़ी में लिखा मूल आलेख पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

Police’s Charge-sheet Gives Chronology of Delhi Riots, Omits Kapil Mishra’s Crucial ‘Hate Speech’

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