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दिल्ली: पुनर्वास के बिना बेघर किए जाने की सरकार की योजना के ख़िलाफ़ प्रदर्शन

दक्षिणी दिल्ली के तुग़लकाबाद रेलवे स्टेशन के क़रीब भाटा कैंप एक बड़ी झुग्गी बस्ती है। यहां हजारों कलाकार रहते हैं। इनमें ज़्यादातर राजस्थान से हैं।
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बिना पुनर्वास के जबरन बेदख़ली के ख़िलाफ़ अपनी आवाज़ बुलंद करने के लिए मंगलवार 3जनवरी को राजधानी दिल्ली में संसद के पास सैंकड़ों परिवार प्रदर्शन करने पहुंचे। ये प्रदर्शन भाटा कैंप के सैकड़ों परिवारों ने किया। दक्षिणी दिल्ली के तुग़लकाबाद रेलवे स्टेशन के क़रीब भाटा कैंप एक बड़ी झुग्गी बस्ती है। यहां हजारों कलाकार रहते हैं। इनमें ज़्यादातर राजस्थान से हैं। इस बस्ती के लोगों ने मज़दूर आवास संघर्ष समिति के आह्वान पर जंतर मंतर पर एक दिवसीय धरना दिया। इस धरने में बड़ी संख्या में कलाकारों और मज़दूरों ने भाग लिया। जिस ज़़मीन पर ये लोग पिछले 50 सालों से रहने का दावा कर रहे हैं अब अचानक वहां से हटाने का आदेश दिया जा रहा है जिससे ये लोग परेशान हैं। दिल्ली के जंतर मंतर के पास हुए धरना प्रदर्शन में बदरपुर भाट कैंप के कलाकारों के साथ कई जन संगठन एवं यूनियन, सामाजिक कार्यकर्ता, कलाकार, मज़दूर नेताओं ने भाग लिया और प्रधानमंत्री को ज्ञापन सौंपा। इस मौक़े पर मज़दूर आवास संघर्ष समिति के कन्वेनर निर्मल गोराना अग्नि ने धरने पर बैठे कलाकारों और मज़दूरों को संबोधित करते हुए कहा की किसी मज़दूर या कलाकार को घर मिले या न मिले या कोई ज़िंदगी भर बेघर रह जाएं इससे सरकार को कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता है इसलिए सरकार को आवास की गारंटी हेतु एक मज़बूत क़ानून बनाकर ग़रीब मज़दूर कलाकारों के मानवाधिकार की रक्षा करनी चाहिए। भाट कैंप का एक हिस्सा कुछ साल पहले ही प्रशासन तोड़ चुकी है जिसके बाद से वे परिवार आज तक सड़कों पर रहने को मजबूर हैं। अपने बच्चों के भविष्य को लेकर ये लोग सड़कों पर उतरें और अपनी संस्कृति के प्रतीक मुल्तानी मिट्टी को चहरे पर लगाकर विरोध जताया। दिल्ली श्रमिक संगठन की टीम ने आवास के मुद्दे पर गीत प्रस्तुत करते हुए बताया की कोरोना के दौरान ही लगातार ग़रीब मज़दूरों की बस्तियों को कभी राज्य सरकार, कभी नगर निगम, कभी वन विभाग तो कभी कोर्ट के आदेश पर बुलडोज़र चलाकर उनके घरों को निर्ममता से तोड़ दिया गया है। लाखों मज़दूर परिवारों को जबरन बेदख़़ली का शिकार बनाया जा रहा है। विस्थापित लोगों का आंकड़ा लगातार बढ़ता जा रहा है। कुछ राज्यों में पुनर्वास की नीति होने के बावजूद भी बेदख़ल हुए परिवार पुनर्वास को अब भी तरस रहे है। मेहनतकश असोसिएशन के समन्वयक लाल चंद राय ने कहा की भारत सरकार द्वारा 2022 तक सभी को घर देने का वादा किया गया लेकिन आज भी भाट कैंप (डोरा तंबू कैंप) बदरपुर, दिल्ली के साथ देश के अनेकों मज़दूर और कलाकारों को सरकार की ओर से आवास मिलने का इंतज़ार है। इसी इंतजार के बीच सरकार द्वारा झुग्गियों को तोड़ कर गिराया जा रहा है। ऐसा कोई सख़्त क़ानून नहीं है जिससे हमारा आवास सुरक्षित हो। बस्ती सुरक्षा मंच के निलेश कुमार ने बताया की दिल्ली में 40,000 से ज़्यादा घर खाली पड़े हैं जिसमें मज़दूरों को पुनर्वासित करने की बजाय उन घरों को खंडर में तब्दील किया जा रहा है। इसी प्रकार हर राज्य में सरकार द्वारा बनाए गए घर खाली पड़े है जिन्हें शहरी ग़रीब मज़दूर परिवार को दिया जाना चाहिए क्योंकि इस शहर के निर्माण एवं विकास में मज़दूर एवं कलाकारों का महत्त्वपूर्ण योगदान है। प्रदर्शनकारियों की मांग है कि जबरन बेदख़ली के ख़िलाफ़ ज़ीरो इविक्शन पॉलिसी लागू किया जाए, भारत के हर परिवार को आवास की गारंटी दिया जाए, सरकार के नारे "जहां पर झुग्गी वहीं मकान" को साकार किया जाए, तत्काल दिल्ली के कलाकारों और मज़दूरों को आवास आवंटित किया जाए साथ ही पुनर्वास के लिए डीयूएसआईबी की पॉलिसी लागू किया जाए।

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