Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

दिल्ली एमसीडी चुनाव: ऊंट किस करवट बैठेगा?

गुजरात और हिमाचल प्रदेश की राज्य विधानसभा की चुनावी सरगर्मी के बीच दिल्ली के यह चुनाव काफी दिलचस्प होने जा रहे हैं।
mcd

दिल्ली में सोमवार, 14 नवंबर दिल्ली नगर निगम के चुनावों के लिए नाम दाखिल करने का आख़िरी दिन था और इसी के साथ सभी पार्टियों की तरफ से चुनावी अभियान तेज हो गया है। गुजरात और हिमाचल प्रदेश की राज्य विधानसभा की चुनावी सरगर्मी के बीच यह चुनाव काफी दिलचस्प होने जा रहे हैं। इन तीनों चुनावों में भाजपा सत्ताधारी पार्टी है। कई चुनावी पर्यवेक्षकों के अनुमान के अनुसार भाजपा की हालत हिमाचल प्रदेश में खराब है और वह गुजरात में भी सत्ता में रहने के लिए काफी संघर्ष कर रही है। इसी का नतीजा है कि प्रधानमंत्री मोदी लगातार गुजरात के दौरे कर रहे हैं।

दिल्ली नगर निगम के चुनाव के नतीजे राजनीतिक तौर पर भाजपा के लिए बहुत मायने रखते हैं, क्योंकि पिछले 15 सालों से वह निगम की सत्ता पर क़ाबिज़ है। यदि भाजपा दिल्ली नगर निगम चुनाव हार जाती है तो यह उसके लिए बड़ी भारी राजनीतिक हार होगी। क्योंकि भाजपा दिल्ली विधानसभा के चुनाव पहले ही हार चुकी है जिससे वह अभी तक उबर नहीं पाई है और दिल्ली की जनता ने भाजपा को आप पार्टी का बेहतर विकल्प मानने से इनकार कर दिया है।

याद रखें कि एमसीडी चुनावों को तब रद्द कर दिया गया था जब केंद्र सरकार ने दिल्ली के पूर्ववर्ती नगर निगमों को भंग कर उन्हें एक ही निकाय में सम्मिलित करने का फैसला किया था। इस प्रक्रिया में वार्डों की संख्या को 272 से घटाकर 250 कर दिया गया है। 5 दिसंबर को मतदान होगा और सभी 250 वार्डों के नतीज़े 7 दिसंबर को घोषित किए जाएंगे। इसमें कोई शक नहीं कि राजनीतिक दलों के लिए इन चुनावों के नतीजे भी हिमाचल और गुजरात की तरह काफी महत्वपूर्ण होंगे।

दिल्ली में सत्ता की संरचना

जैसा कि सब जानते हैं कि दिल्ली की सत्ता की संरचना कई नागरिक निकायों में बंटी हुई है जिसमें नई दिल्ली नगरपालिका परिषद (एनडीएमसी) जो लुटियंस दिल्ली के प्रशासन को चलाती है, जिसमें राजनयिक मिशन, महत्वपूर्ण सरकारी कार्यालय और केंद्रीय सरकार के अफसरों और स्टाफ के लिए बने आवास और बड़ी पॉश कॉलोनियां शामिल हैं। दिल्ली छावनी बोर्ड (डीसीबी) रक्षा विभाग से जुडे छावनी क्षेत्र का प्रशासन चलाती हैं। हालाँकि, दोनों निकाय मिलकर दिल्ली के केवल तीन प्रतिशत हिस्से को नियंत्रित करते हैं। राष्ट्रीय राजधानी का बाकी का 97 प्रतिशत हिस्सा जिसमें दिल्ली के लाखों लोग बसर करते हैं वह एमसीडी के अधिकार क्षेत्र में आता है। जिसे दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा नागरिक निकाय भी माना जाता है।

नगर निगम के काम

दिल्ली नगर निगम के काम में अस्पताल और औषधालय, जल आपूर्ति प्रबंधन, जल निकासी व्यवस्था को बनाए रखना और शहर में बाजारों के रखरखाव और कुछ हद तक स्कूली शिक्षा चलाना भी है। नगर निगम पार्कों और पार्किंग स्थलों का निर्माण और रख-रखाव भी करते हैं, प्राथमिक विद्यालयों के कामकाज की निगरानी करते हैं, सड़कों और ओवर-ब्रिजों का निर्माण और रखरखाव करते हैं, स्ट्रीट लाइट लगाने और उनके रखरखाव का काम करते हैं। इसके अलावा ठोस कचरे के प्रबंधन की देखभाल भी निगम करता है। यह संपत्ति और पेशेवर करों की वसूली करता है और टोल बूथों का संचालन भी करता है। टैक्स संग्रह प्रणाली, श्मशान घाट चलाना और इलाके के जन्म और मृत्यु रिकॉर्ड को बनाए रखता है।

शिक्षा की हालत खस्ता

शैक्षिक संस्थानों को चलाने के मामले में एमसीडी केवल प्राथमिक स्कूलों को चलाती है। हालांकि पिछले दो साल में प्राथमिक स्कूलों में बच्चों के दाखिले में 17 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है लेकिन इसके साथ ही अध्यापक-छात्र का अनुपात भी बढ़ा है जो दर्शाता है कि स्कूलों में अध्यापकों की भारी कमी है। मीडिया रिपोर्टस के अनुसार दिल्ली नगर निगम के स्कूलों में 14,994 नियमित शिक्षक हैं और संविदा शिक्षकों की संख्या 2380 है। नर्सरी अध्यापकों में भी 170 नियमित और 170 संविदा शिक्षक हैं। यह भी नोट करने की बात है कि 2018 में 1660 स्कूल थे जो अब घटकर 1535 रह गए हैं। शिक्षा के क्षेत्र में काम करने वाली राजबाला सैनी ने बताया कि नजफ़गढ़ इलाके के ईसापुर खेड़ी में दो प्राथमिक स्कूल चलाए जाते थे जिसमें से एक को बंद कर दिया गया और दूसरे में मात्र 18 छात्र और दो अध्यापक हैं। राजबाला ने आगे बताया कि सरकारी स्कूलों की हालत इतनी खराब कर दी गई है कि माँ-पिता आने बच्चों को निगम स्कूलों में भेजने से कतराते हैं।

स्कूली बच्चों पर काम कर रहे एक एनजीओ ने बताया कि "दिल्ली में प्राथमिक विद्यालयों में बच्चों की उपस्थिति काफी दयनीय है। लर्निंग डेफ़िसिट बहुत ज्यादा है और शिक्षक बच्चों की पढ़ाई पर ध्यान नहीं देते हैं। वह इसलिए कि इन स्कूलों नितांत गरीब परिवारों के बच्चे पढ़ते हैं।"

यह भी सामने आया है कि जब त्योहारों के सीजन में माता-पिता अपने गावों को जाते हैं तो बच्चों की पढ़ाई का कोई इंताजाम नहीं किया जाता है जिससे वे पढ़ाई में पीछे छूट जाते हैं और इसलिए काफी सारे बच्चे स्कूलों से नाता तोड़ लेते हैं।   

स्वास्थ्य क्षेत्र

स्वास्थ्य क्षेत्र में एमसीडी डिस्पेंसरी और कुछ अस्पताल चलाती है जिनकी स्थिति कुछ बेहतर नहीं है। डिस्पेंसरियों में अक्सर डॉक्टरों और दवाई की कमी नज़र आती है इसलिए लोग मुख्यत मोहल्ला क्लीनिक तरफ रुख करते हैं जहां हर किस्म की दवाई और मेडिकल जांच की सुविधा हासिल है।

एमसीडी चुनाव का महत्व

एमसीडी के काम लाखों लोगों के जीवन को प्रभावित करते हैं, विशेषकर समाज के सबसे कमजोर वर्ग के लोगों के लिए नगर निगम की दखल काफी महत्वपूर्ण है। क्योंकि इनके स्कूलों में गरीब या निम्न-मध्यम वर्ग के बच्चे जाते हैं। डिस्पेंसरियों में भी गरीब तबका ही जाता है। यह भी एक कारण है कि इन महकमों के काम में कोई सुधार नहीं है। जब भी कभी सफाई या स्वच्छ भारत की बात आती है तो प्रधानमंत्री से लेकर दिल्ली के भाजपा के नेता बड़ी-बड़ी बातें करते हैं लेकिन दिल्ली की 60 प्रतिशत आबादी जो इन इलाकों में रहती है उन्हे रोज़मर्रा की गंदगी, ख़स्ताहाल पार्कों और टूटे रोड से जद्दोजहद करनी पड़ती है।

उदाहरण के लिए मयूर विहार के छोटे से पार्क को खूबसूरत बनाने के लिए लाखों रुपए खर्च किए जाते हैं लेकिन यदि आप त्रिलोकपुरी जोकि मजदूर वर्ग बस्ती है का दौरा करें तो आप पाएंगे जैसे कि वहां से नगर-निगम पूरी तरह से नदारद है।     

राजनीतिक प्रतियोगिता

यह बात सही है कि जहाँ धन और शक्ति है, वहाँ उस शक्ति को हासिल करने के लिए राजनीतिक दौड़ का होना भी स्वाभाविक है। पहले कभी इन चुनावों को क्वार्टर फाइनल के रूप में देखा जाता था, और विधानसभा चुनाव को सेमीफाइनल फिर लोकसभा चुनाव को अंतिम चुनाव के रूप में देखा जाता था।

भाजपा 15 साल से दिल्ली नगर निगम पर शासन कर रही है, जबकि इसी दौरान कांग्रेस और आम आदमी पार्टी (आप) दिल्ली में सरकार में रही हैं। भाजपा ने 2007 में एमसीडी चुनाव तब जीता था जब कांग्रेस केंद्र और दिल्ली दोनों की सत्ता में मौजूद थी। हालाँकि, पार्टी 2008 के विधानसभा चुनावों में जीत हासिल नहीं कर सकी, और तब शीला दीक्षित के नेतृत्व में कांग्रेस ने रिकॉर्ड तीसरी जीत हासिल की थी।

अब, 2022 के चुनाव में आप पार्टी दिल्ली नगर निगम पर जीत की मजबूत दावेदार बनकर उभरी हैं। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने शुक्रवार को एमसीडी चुनावों के लिए जारी अपने घोषणापत्र में शहर की सभी समस्याओं के लिए भाजपा को जिम्मेदार ठहराया है। उन्होंने तीन लैंडफिल साइटों के समाधान की भी पेशकश की है, और दिल्ली की जनता के सामने 10 गारंटी पेश की हैं जैसे कि पार्किंग और आवारा जानवरों के मुद्दों को हल करना और बेहतर सड़कों, स्कूलों, अस्पतालों और पार्कों का निर्माण करना शामिल है।

हाल ही में किए गए एक एबीपी-सी वोटरपोल में पाया गया कि 13 प्रतिशत बिजली-पानी, 23 प्रतिशत प्रदूषण, 20 प्रतिशत सफाई, 13 प्रतिशत भ्रष्टाचार, 24 प्रतिशत महंगाई और 7 प्रतिशत सुरक्षा को मुद्दा मानते हैं। इसी पोल में यह भी पाया गया कि भाजपा को बहुमत जुटाने में कड़ी मशक्कत करनी पड़ेगी।

किस करवट बैठेगा चुनाव

2017 के चुनाव में, भाजपा ने कुल 270 वार्डों में से 181 में जीत हासिल की थी जबकि आप पार्टी ने 48, कांग्रेस ने 30 और अन्य ने 11 सीटों पर चुनाव जीता था। भाजपा सरकार ने नए सरकारी आदेश में तीनों नगर-निगमों को एक नगर-निगम में तब्दील कर दिया है और सीटों की संख्या को घटाकर 270 से 250 कर दिया गया है। लेकिन क्या इससे भाजपा को कोई फायदा होगा? जनता में भारी गुस्से को देखते हुए लगता तो नहीं कि इससे भाजपा को कोई फायदा होगा।

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest