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दिल्ली: संसद सत्र के बीच स्कीम वर्कर्स का प्रदर्शन, नियमितीकरण और बजट आवंटन में वृद्धि की मांग

इस प्रदर्शन में आंगनवाड़ी कार्यकर्ता और सहायिका, मध्याह्न भोजन (मिड डे मिल) कार्यकर्ता और आशाकर्मी  शामिल थीं। इन सभी ने कहा कि केंद्र सरकार ने केंद्रीय बजट में इन सभी योजनाओ के लिए "बजट आवंटन में कमी" की है।
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संसद के बजट सत्र के दूसरे भाग की शुरुआत हो चुकी है, दोनों सदन में कार्यवाही चल रही है। इस बीच अपनी मांगो पर केंद्र सरकार के ध्यानाकर्षण के लिए संसद के पास देशभर की सैकड़ो स्कीम वर्कर ने जंतर मंतर पर विरोध प्रदर्शन किया।

इस प्रदर्शन में लगभग सभी महिलाऐं थीं, जिसमें आंगनवाड़ी कार्यकर्ता और सहायिका, मध्याह्न भोजन (मिड डे मिल) कार्यकर्ता और आशा कर्मी थीं। इन सभी ने कहा कि केंद्र सरकार ने केंद्रीय बजट में इन सभी योजनाओ हेतु "बजट आवंटन में कमी" की है। जिससे इन लोगो में केंद्र सरकार के प्रति भारी नाराज़गी दिखी।

इस प्रदर्शन का नेतृत्व सेंटर ऑफ़ इंडियन ट्रेड यूनियन(सीटू) द्वारा समर्थित राष्ट्रीय यूनियनों, अर्थात् अखिल भारतीय आंगनवाड़ी कार्यकर्ता और सहायिका यूनियन (एआईएफएडब्ल्यूएच), मिड डे मील वर्कर्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (एमडीएमडब्ल्यूएफआई) और आशा वर्कर्स की अखिल भारतीय समन्वय समिति (एआईसीसीएडब्ल्यू) द्वारा किया गया था।

आंदोलनकारी कार्यकर्ताओं ने मंगलवार को तर्क दिया कि वर्षों से, देश में महिलाओं और बच्चों को स्वास्थ्य सेवाओं के साथ भोजन और पोषण का बुनियादी प्रावधान, सरकार द्वारा संचालित योजनाओं द्वारा किया जा रहा है। जो इस प्रकार हैं- सक्षम आंगनवाड़ी और पोषण 2.0 योजना , पीएम पोषण (पहले ये स्कूल मिड डे मील योजना के रूप में जाना जाता था) और राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम)

इन योजनाओ के माध्यम से 14 वर्ष से कम के 20 करोड़ बच्चे और लगभग तीन से पांच करोड़ महिलाओं का ख्याल रखा जा रहा है। इस पर यूनियन ने कहा है- ‘’ये स्कीम वर्कर को सरकार कर्मचारी नहीं मानती हैं। वर्तमान में, उन्हें मानद कर्मचारी माना जाता है और इसलिए इन्हे कर्मचारी होने का कोई लाभ नहीं मिलता है।’’

मंगलवार को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को सौंपे गए एक संयुक्त ज्ञापन में तीनों महासंघों ने तर्क दिया कि इस तरह की श्रम व्यवस्था का परिणाम यह है कि "इन महत्वपूर्ण योजनाओं" के कार्यकर्ता खुद को उपेक्षित महसूस करती हैं।

उन्होंने अन्य बातों के अलावा, उपरोक्त तीन योजनाओं के लिए बजट आवंटन में वृद्धि के साथ-साथ प्रति माह 26,000 रुपये के न्यूनतम वेतन और 45वें भारतीय श्रम सम्मेलन (आईएलसी) के द्वारा तय मनको को मानते हुए स्कीम वर्कर को सामाजिक सुरक्षा देने की मांग की।

महिला एवं बाल विकास मंत्रालय (डब्ल्यूसीडी) द्वारा कार्यान्वित, सक्षम आंगनवाड़ी और पोषण 2.0 योजना एक केंद्र प्रायोजित योजना है, जिसका उद्देश्य छह साल से कम उम्र के बच्चों, गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं का "समग्र विकास" है। इसी के तह विभिन्न शहरों और गांवों में आंगनवाड़ी सेवाएं चल रही हैं।

आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, देश में 13.77 लाख आंगनवाड़ी केंद्र संचालित हैं, जिनमें 12.8 लाख कार्यकर्ता और 11.6 लाख सहायिका हैं। सभी महिला देखभालकर्ता पात्र लाभार्थियों को पूरक पोषण और प्री-स्कूल गैर-औपचारिक शिक्षा प्रदान करने के लिए जिम्मेदार हैं, इसके लिए इन्हे मासिक पारिश्रमिक दिया जाता है, जिसमें से 60 प्रतिशत केंद्र सरकार और शेष राज्य सरकार द्वारा भुगतान किया जाता है।

इसी तरह, पीएम पोषण का खर्च, जो सरकारी और सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों में कक्षा I से VIII तक के हर बच्चे को हर रोज कक्षाओं या परीक्षाओं में पौष्टिक भोजन उपलब्ध कराने के लिए है, केंद्र और राज्यों के बीच 60:40 में विभाजित किया जाता है। शिक्षा मंत्रालय (MoE) द्वारा प्रशासित इस योजना से 11.2 लाख स्कूलों में लगभग 11.8 करोड़ छात्र लाभान्वित होते हैं, जिसके लिए देश भर में 25 लाख से अधिक रसोइया और सह-सहायक काम करती हैं।

स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के NHM के तहत आशा, देश में आबादी के वंचित वर्गों, विशेष रूप से महिलाओं और बच्चों की स्वास्थ्य संबंधी किसी भी समस्या के लिए प्राथमिक व्यवस्था करती हैं।

यकीन मानिए, देश भर में इन योजनाओं से जुड़ी ज्यादातर महिलाएं दशकों से काम कर रही हैं। फिर भी, वर्षों से लंबे संघर्ष के बाद उनके मानदेय में मामूली वृद्धि को छोड़कर, उनके काम करने की स्थिति में पर्याप्त सुधार नहीं हुआ है।

जंतर मंतर पर प्रदर्शन में शामिल महिलाओं ने कहा कि पारिश्रमिक में मामूली वृद्धि भी अक्सर काम में भारी वृद्धि, धन की कमी के कारण भुगतान में देरी होती है।

उदाहरण के लिए, 60 वर्षीय जसवीर कौर का मामला लें, जिसने मंगलवार को इस बात पर अफसोस जताया कि पंजाब के फतेहगढ़ जिले के एक केंद्र में आंगनवाड़ी सहायिका के रूप में दशकों की सेवा ने उसका कोई भला नहीं किया। कौर ने कहा, "इतने वर्षों के बाद भी, अब भी, मैं अपनी कमाई से अपने परिवार के लिए मासिक राशन नहीं खरीद सकतीं, वे बहुत कम है। और फिर भी, मैं अब पहले की तुलना में अधिक काम कर रही हूं।" वो 1997 में आंगनवाड़ी सेवाओं में है उन्होंने कहा उनका मासिक पारिश्रमिक वर्तमान में केवल 4000 रूपए है ।

कौर पास बैठी 40 वर्षीय शीला देवी को भी ऐसी ही स्थिति का सामना करना पड़ता है। हरियाणा के पानीपत के एक सरकारी स्कूल में मिड मील वर्कर के रूपए कार्यरत शिला ने कहा, "यह अस्तित्व के लिए संघर्ष है।" उन्होंने मंगलवार को कहा, "जब भी हम विरोध करते हैं, तो हमें स्थानीय अधिकारियों द्वारा बर्खास्त करने की धमकी दी जाती है।"

“मुझे इस (पीएम पोशन योजना) से जुड़े हुए अब 18 साल हो चुके हैं। अगर चीजें नहीं बदलती हैं, तो हम कब तक ऐसे ही चलते रहेंगे।"

AICCAW की संयोजक सुरेखा ने न्यूज़क्लिक को बताया कि यह "यह उचित समय है जब कि केंद्र सरकार स्किम वर्कर को नियमित करने पर गंभीरता से विचार करे । परन्तु यह संभव नहीं है क्योंकि सरकार वर्षों से इन योजनाओं के लिए बजट आवंटन को कम कर रही है। पहला कदम इन योजनाओं के लिए पर्याप्त बजटीय आवंटन की मांग है, तभी विभाग अपने सभी श्रमिकों को न्यूनतम मजदूरी और सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित कर सकता है।

केंद्रीय बजट 2022-23 में, मंगलवार को, तीनों महासंघों ने दावा किया कि संबंधित योजनाओं के लिए बजट आवंटन पिछले कुछ वर्षों में "काफी कम" किया गया है। उनके मुताबिक, पूर्ववर्ती आईसीडीएस के आवंटन में पिछले साल 30% की कटौती दर्ज की गई, जबकि इस साल आवंटन में कोई वृद्धि नहीं हुई है।

यूनियन ने बताया इसी तरह, पीएम पोषण के नवीनतम बजट में 1,200 करोड़ रुपये की कटौती की गई है। जबकि यूनियन ने मंगलवार को कहा कि इस साल भी एनएचएम के बजट में कोई वृद्धि नहीं की गई है।

एआईएफएडब्ल्यूएच की महासचिव एआर सिंधु ने एक एक बयान में कहा योजनाओं के लिए बजटीय आवंटन में कमी "चौंकाने वाला" है क्योंकि यह ऐसे समय में आया है जब कोविड -19 महामारी और उसके बाद के लॉकडाउन के कारण "देश को हाल ही में स्वास्थ्य और खाद्य संकट का सामना करना पड़ा"।

इस बीच, अपनी पारंपरिक कामकाजी वर्दी में, प्रदर्शनकारी महिलाओं ने मंगलवार को 10 केंद्रीय ट्रेड यूनियनों द्वारा दिए गए आह्वान का समर्थन करते हुए आगामी दो दिवसीय आम हड़ताल में शामिल होने की भी धमकी दी।

46 वर्षीय अनीता के लिए, यह हड़ताल समय की जरूरत है। हरियाणा के सोनीपत की रहने वाली आशा कार्यकर्ता ने कहा कि हड़ताल की कार्रवाई हमारी आवाज बुलंद करेगी। उन्होंने कहा- “महामारी के पिछले दो वर्षों के दौरान, हम यह सुनिश्चित करने के लिए अपने जीवन को जोखिम में डाल रहे हैं कि लाभार्थियों की सेवाएं बंद न हों।"

अंत में उन्होने कहा "जब सरकार अभी भी हमें 'कर्मचारी' नहीं मानती है, तो हमारे पास हड़ताल करने के अलावा और क्या विकल्प है।"

अंग्रेजी में मूल रूप से लिखे गए लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें

Delhi: Regularisation in Mind, Scheme Workers Protest for Increment in Budget Allocations

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