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क़ानून और सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद बिना सुरक्षा उपकरण के सीवर में उतारे जा रहे सफाईकर्मी

गुजरात के गांधीनगर के नवरात्रि चौक के पास एक दलित व्यक्ति अमर सिंह वसावा को बंद पड़े सीवर की सफाई करने के लिए मजबूर किया गया और उसे साफ करने के लिए गहरे सीवर में उतरना पड़ा।
Manual scavenging

कानून और सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद बिना सुरक्षा उपकरणों के सीवर की सफाई आज भी लगातार जारी है। तीन दिन पहले बीजेपी शासित गुजरात के गांधीनगर के नवरात्रि चौक के पास एक दलित व्यक्ति अमर सिंह वसावा को बंद पड़े सीवर की सफाई करने के लिए मजबूर किया गया और उसे साफ करने के लिए गहरे सीवर में उतरना पड़ा। ये घटना गांधीनगर के सेक्टर 3 बी की है जहां बिना सुरक्षा उपकरणों के सफाईकर्मी सीवर के भीतर सफाई का काम कर रहा था। सोशल मीडिया पर वायरल हुई तस्वीर में देखा जा सकता है कि सफाईकर्मी गहरे सीवर में केवल एक रस्सी के सहारे काम कर रहा है।

ये घटना उस समय सामने आई जब वडगाम से स्वतंत्र विधायक जिग्नेश मेवानी ने इस तस्वीर को ट्वीट किया और एफआईआर दर्ज कर दोषियों को गिरफ्तार करने की उन्होंने मांग की। मेवानी ने ट्वीट में लिखा पिछले तीन महीने तीसरी घटना सामने आई है।

सबरंग इंडिया के हवाले से न्यूजक्लिक पर प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक मेवानी के ट्वीट के बाद पुलिस ने गांधी नगर सेक्टर सात पुलिस थाने में सुपरवाइजर पार्थिव लाठिया के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया। पार्थिव नवी मुंबई की कंपनी खिलाड़ी इंफ्रा प्राइवेट लिमिटेड के लिए काम करता है। इस इलाके में नाले की देखरेख और साफ सफाई के लिए इस कंपनी का छह महीने का अनुबंध है। लाठिया पर अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (एससी/ एसटी) अत्याचार निवारण अधिनियम, प्रोहिबिशन ऑफ एम्प्लायमेंट एंड देअर रिहैबिलिटेशन एक्ट और मानव जीवन को खतरे में डालने वाले लापरवाहीपूर्ण कार्य के लिए आईपीसी 336 की धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया।

मेवानी ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि यह प्रोहिबिशन ऑफ एम्प्लायमेंट एंड देअर रिहैबिलिटेशन एक्ट-2013 सेक्शन 5 का स्पष्ट उल्लंघन है। उन्होंने कहा कि ऐसा लगता है कि सरकार और अथॉरिटी सफाईकर्मियों की दुर्दशा को लेकर पूरी तरह उदासीन है। मेवानी ने कहा, पिछले कुछ महीनों में ऐसी कुछ घटनाएं सामने आई है जहां सफाईकर्मियों को बिना किसी सुरक्षा उपकरण के सीवर में जाने को कहा गया।

सफाई कर्मियों के लिए क़ानून

प्रोहिबिशन ऑफ एम्प्लायमेंट एंड देअर रिहैबिलिटेशन एक्ट-2013 सीवर और नाले की सफाई मैनुअल स्कैवेंजिंग के लिए सफाईकर्मियों को काम करने से रोकता है। वर्ष 2019 के जुलाई में गुजरात सरकार ने एक याचिका प्रतिक्रिया में गुजरात उच्च न्यायालय के समक्ष कहा था कि राज्य के नगर निकायों को निर्देश दिया गया है कि सीवर की सफाई के लिए मैनहोल में किसी व्यक्ति जाने के लिए न कहा जाए। वर्ष 1993 में देश में पहली बार मैला ढोने की प्रथा पर बैन लगाया गया था। इसके बाद वर्ष 2013 में कानून बनाकर इस पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाया गया लेकिन देश में आज भी मैला ढोने की प्रथा जारी है। इस कानून में प्रवाधान था कि यदि कोई सफाईकर्मी आपात स्थिति में सीवर के अंदर जाता है तो उसे पर्याप्त सुरक्षा उपकरण उपलब्ध हो। इस कानून के तहत सफाईकर्मियों को आर्थिक सहायता देने का भी प्रावधान है।

सुप्रीम कोर्ट का आदेश

वर्ष 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने अहम फैसला सुनाते हुए सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को 2013 का कानून पूरी तरह से लागू करने का आदेश दिया था। साथ ही यह भी आदेश दिया था कि सीवर और सैप्टिक टैंकों में होने वाली मौतों को रोका जाए और 1993 के बाद सीवर और सैप्टिक टैंक की सफाई के दौरान मरने वालों के आश्रितों को दस लाख रुपये का मुआवजा दिया जाए।

वर्ष 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने देश में मैनुअल स्कैवेंजिंग और सीवर सफाई के दौरान हो रही लोगों की मौत पर गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए कहा था कि दुनिया में कहीं नहीं लोगों को मरने के लिए गैस चैंबर में भेजा जाता है। इस प्रथा पर सख्त टिप्पणी करते हुए शीर्ष अदालत ने कहा था कि आजादी के 70 वर्षों से भी अधिक समय बीत जाने के बाद भी देश में जातिगत भेदभाव कायम है। जस्टिस अरुण मिश्रा की बेंच ने अदालत में केंद्र की ओर से उपस्थित हुए अटॉर्नी जनरल केके वेनुगोपाल से पूछा था कि सीवर या मैनहोल की सफाई और मैनुअल स्कैवेंजिंग में शामिल कर्मियों को मास्क और ऑक्सीजन गैस सिलेंडर जैसे सुरक्षा उपकरण क्यों नहीं दिए जा रहे थे। बेंच में शामिल अन्य जज जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस बीआर गवई ने कहा था कि इसके चलते हर महीने चार से पांच लोगों की मौत हो जाती है। बेंच ने कहा था कि संविधान में व्यवस्था है कि सभी मानव समान हैं लेकिन अथॉरिटी की तरफ से उन्हें समान सुविधाएं नहीं दी जा रही हैं। बेंच ने इसे अमानवीय करार देते हुए कहा था कि यह ऐसी स्थिति है जहां लोगों को सुरक्षा उपकरण नहीं दी जा रही है और देश भर में मैनहोल और सीवर की सफाई के दौरान वे मर रहे हैं।

अनुसूचित जाति के 97 प्रतिशत लोग हैं मैनुअल स्कैवेंजर

पिछले साल केंद्र सरकार ने आरजेडी सांसद मनोज झा के एक सवाल के जवाब में संसद को बताया था कि मैला ढोने के काम में 58,098 लोग लगे हुए हैं। इनमें से 43,797 लोगों के जाति से संबंधित आंकड़े हैं जिसमें से 42,594 लोग अनुसूचित जाति के हैं अर्थात 97 प्रतिशत के करीब मैनुअल स्कैवेंजर अनुसूचित जातियों से संबंधित हैं। अनुसूचित जाति के 42,594 लोगों के अलावा 421 अनुसूचित जनजातियों के हैं जबकि 431 अन्य पिछड़े वर्गों और 351 अन्य वर्गों से हैं।

अगस्त 2021 में केंद्र सरकार ने संसद को बताया था कि राज्य सरकारों द्वारा साझा किए गए आंकड़ों के अनुसार सीवर और सैप्टिक टैंक की सफाई के दौरान 941 सफाईकर्मियों की मौत हुई।

ज़हरीली गैस से सफाई कर्मियों की मौत

बता दें कि राजधानी दिल्ली समेत देश के अन्य हिस्सों में सीवर की सफाई के दौरान जहरीली गैस की चपेट में आने से सफाईकर्मियों की मौत के लगातार मामले सामने आते रहे हैं।

बीते साल दिसंबर में भोपाल में सीवर की सफाई के दौरान दम घुटने से दो कर्मियों की मौत हो गई थी। दोनों सफाईकर्मी गांधीनगर इलाके में सफाई करने के लिए 20 फीट गहरे सीवर में गए थे। बताया जाता है कि ऑक्सीजन की कमी के चलते दोनों सफाईकर्मी की मौत हो गई थी। उनके पास कोई सुरक्षा उपकरण भी नहीं था।

अक्टूबर 2021 में हरियाणा के पानीपत में सीवर की सफाई के दौरान दम घुटने से एक साइट इंजीनियर और सफाईकर्मी सहित तीन लोगों की मौत हो गई थी।

पिछले साल मार्च में राजधानी दिल्ली के पटपड़गंज इलाके के पर्ल ग्रैंड बैंक्वेट हॉल में सीवर की सफाई के दौरान दो सपाईकर्मियों की मौत हो गई थी। परिजनों ने आरोप लगाया था कि उन्हें सफाई के लिए जबरन सीवर में उतारा गया था। जहरीली गैस के चलते वे टैंक में ही बेहोश कर गिर गए थे। उन्हें अस्पताल ले जाया गया लेकिन डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया था। इसी महीने में अयोध्या में सीवर की सफाई के लिए उतरे एक सफाईकर्मी की मौत जहरीली गैसे के चलते हो गई जबकि सफाईकर्मी को बचाने उतरे अन्य दो कर्मी इसी सीवर में बेहोश हो गए थे।

अक्टूबर 2018 में राजधानी दिल्ली के जहांगीरपुरी इलाके में सीवर की सफाई के दौरान जहरीली गैस के चलते तीन सफाईकर्मी बेहोश हो गए थे जिनमें से एक सफाईकर्मी की अस्पताल में इलाज के दौरान मौत हो गई थी।

सितंबर 2018 में दिल्ली के मोती नगर इलाके में सफाई के दौरान 4 सफाई कर्मचारियों की मौत हो गई थी। डीएलएफ निर्माणाधीन सोसाइटी में 5 कर्मचारी सफाई के लिए सीवर में उतरे थे। इनमें से चार कर्मचारियों की अस्पताल में इलाज के दौरान मौत हो गई थी।

अगस्त 2017 में दिल्ली के लाजपत नगर इलाके में गहरे सीवर की सफाई के दौरान दम घुटने से तीन सफाईकर्मियों की मौत हो गई थी। ये लाजपत नगर में कबीर राम मंदिर के पास सीवर की सफाई कर रहे थे। 

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