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क्या हम सचमुच बराबरी के अर्थ जीते हैं?

हम ऐसे समाज में रहते हैं जहां अतीत से चली आ रही मान्यताओं, पूर्वाग्रहों, अंध-विश्वासों और लैंगिक जालों के कुहासे में ही डूबे हम नए समाज के गीत गा रहे हैं।
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कला अभिव्यक्ति का वह माध्यम है जिसके द्वारा हम जी रहे समय की सच्चाई और गंभीरता को समझ पाते हैं। कलात्मक प्रस्तुतियां अपने समय से आंख चुराने के लिए तैयार किए हुए जन को यथार्थ से परिचित कराती है। इस क्रम में भी कुछ मतभेद है जिसकी उपस्थिति समाज में गाहे-बगाहे ही देखने मिलती है वो है क्वीयर और ट्रांस कम्युनिटी। कहने को तो हम ऐसे समाज में रहते हैं जहां हमारा संविधान हमें धर्म, जाति, लिंग की बराबरी देता है पर ज़मीनी सच्चाई से हम मुंह नहीं मोड़ सकते। हम ऐसे समाज में रहते हैं जहां अतीत से चली आ रही मान्यताओं, पूर्वाग्रहों, अंध-विश्वासों और लैंगिक जालों के कुहासे में ही डूबे हम नए समाज के गीत गा रहे हैं जिसका दुष्प्रभाव हमें इंसान बनने की राह से भटका रहा है और इसी कुहासे को चीरते  आज़ादी के उस गीत की तान भी सुन रहे हैं जो हमारे बनाए बराबरी के मूल्य को पुनर्परिभाषित कर रहा है जिसमें किसी भी आधार पर समाज में भेद न रहे।

ट्रांस कम्युनिटी की उपस्थिति हम अपने आसपास सिर्फ ख़ास मौकों पर देखते हैं वो भी अपने स्वार्थ के लिए यानी  जन्म और शादी में दुआओं के लिए गाए गीत में जो अब शहरी सभ्यता में (फ्लैट-सोसाइटी संस्कृति में) और भी सिमटता-सिकुड़ता चला जा रहा है यानी अब बहुत लोग उनकी उपस्थिति को अपने से दूर करने के उपाय भी सोच रहे हैं जिसकी परिणिति कहीं न कहीं विचित्र से अलगाव और आजीविका के संघर्ष के रूप में सामने आ रहा है जिसका सामाजिक-आर्थिक और मनोवैज्ञानिक  दुष्प्रभाव ट्रांस कम्युनिटी पर प्रत्यक्ष रूप से पड़ रहा है, यह हमारे समाज की ऐसी कड़वी सच्चाई है जिस पर विचार-विमर्श के स्पेस सीमित हैं। आप ज़रा दिमाग में ज़ोर लगाकर सोचिए कि सार्वजनिक स्थानों जैसे स्कूल, अस्पताल, पार्क, मॉल, होटल या अन्य जगहों में हमें वे दिखाई नहीं देते इसकी क्या वजहें हो सकती हैं निश्चित ही हम बाइनरी सोच (स्त्री-पुरुष) रखने वाले लोग इसमें शामिल हैं। हमने उन्हें समाज की किन अंधेरी गुफाओं में रहने को मजबूर किया है कि आज़ादी के 75 वर्षों के बाद हम उनके स्पेस बनाने की कोशिश कर रहे हैं और वे भी शिद्दत के साथ इस काम में पूरी दुनिया में लगे हैं। प्रगतिशीलता में इस द्वंद के क्या मायने है?

छोटी कोशिशों से होंगे बड़े परिवर्तन

जब हम People with diverse SOGIESC (Sexual orientation, Gender identity, Gender expression and sex characteristic) यानी क्‍वीयर और ट्रांस कम्युनिटी के लोगों के बारे में सोचना शुरु करते हैं तो हमारा सामना सबसे पहले ख़ुद से इस रूप में होता है कि आख़िर इतने समय तक हमारे लिए यह बात अबूझी और अछूती कैसे रही? अपनी दॄष्टि के अति-संकुचित होने का आभास होता है। क्वीयर और ट्रांस समुदाय के सदस्यों को बचपन से किशोरावस्था की दहलीज़ पहुंचते ही एहसास हो जाता है कि वे सुरक्षित, सहज स्वीकार्य और सहज परिचित समाज में नहीं है। अपनी आइडेंटिटी को बयां करना तक उनके लिए निषिद्ध है और यही उनकी सबसे बड़ी बाधा होती है। इनमें से कईयों को घरेलू प्रताड़ना और सामाजिक बहिष्कार झेलना पड़ता है। स्कूल पहला सार्वजनिक स्थान होता है जिसे अच्छा नागरिक बनाने के योगदान के लिए रेखांकित किया जाता है पर जब  यहां किसी छात्र/छात्रा की पहचान उजागर होती है तो उन्हें कई तरह के दंश झेलने पड़ते हैं। इस उम्र में डर का प्रवेश उनके जीवन को असहज बनाता है, हर कदम में एक काली छाया साथ चलती है जो उनके शारीरिक परिवर्तनों के साथ मेंटल हेल्थ पर बुरा असर डालती है जिसका हमें लेश मात्र भी अंदाज़ा नहीं है। अगर इस बात का अंदेशा होता तो हम अपने परिवार, स्कूल और समाज के हर हिस्से में जेंडर संवेदनशीलता के लिए काम कर रहे होते, बात कर रहे होते। हमारे यहां तो जब किसी की आइडेंडिटी के लिए खुले आम बात ही नहीं होती तो उनके जीवन के अन्य पहलुओं पर विचार फिलहाल मंगल ग्रह की यात्रा है। शिक्षा, रोज़गार और स्वास्थ्य हर जगह वे संघर्ष कर रहे हैं क्योंकि संवेदनशील नागरिक बनना और बनाने की कवायद के लिए सिस्टम में किसी को जल्दी नहीं है अभी और भी मुद्दे हैं।                                                          

बहरहाल आते हैं उनके बारे में बात करने जो अपनी ज़िद और जुनून से कोशिश कर रहे हैं। "पीपुल्स फॉर चेंज और जमशेदपुर क्‌वीर सर्किल जो कि कोविड काल में ट्रांस-कम्युनिटी से तब जुड़ा जब इन्हें पता चला कि उस दौर में इनकी आय बुरी तरह से प्रभावित हुई है तो इन्होंने उन्हें भोजन उपलब्ध कराया। इस के बाद इस सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए एक ऐसा स्पेस बनाने की कोशिश जारी है जो उन्हें अदृश्य स्पेस से निकाल मुख्यधारा में ला सके। पीपुल्स फॉर चेंज और जमशेदपुर क्वीयर सर्किल लगातार संवाद बना कर उन्हें एक मंच प्रदान कर रहा है उनके जीवन से जुड़ी तमाम पहेलियों को हल करने के रास्ते में साथ चलने की कोशिश कर रहा है। शिक्षा, स्वास्थ्य, रोज़गार के अलावे मेंटल हेल्थ से जुड़े कई पहलू हैं जिसकी जटिलता एकरेखीय नहीं होती है बल्कि हर केस में यह नया पेंच जोड़ती है इन सभी चुनौतियों के लिए रास्ता बनाने के ही साथ सामाजिक और सांस्कृतिक स्तर पर इनकी उपस्थिति के लिए भी ये प्रतिबद्ध हैं। ट्रांस जेंडर विजिबिलिटी डे, रैलियां, स्कूलों में क्‌वालिटी क्लब के अलावा सार्वजनिक स्थानों में जागरूकता की पहल इस सफ़र को गति दे रहा है। कई जगह छोटे-छोटे पॉकेट्स में इस तरह की पहल अपने आसपास के समाज को बदलने की ज़िद में है जिसका असर दूरगामी होगा।

कई सवालों,चुनौतियों के साथ जूझते, लड़ते यह कम्युनिटी पीपुल्स फॉर चेंज और जमशेदपुर क्वीयर सर्किल के साथ कभी ऑनलाइन तो कभी आमने-सामने बैठ अभिव्यक्ति के उपाय कर एक सुरक्षित स्पेस बनाने की दिशा से एक कदम आगे बढ़ अब सार्वजनिक स्थानों में अपनी उपस्थिति दर्ज़ कर रहा है। पिछ्ले वर्ष जून में प्राइड मंथ में पहली बार धातकीडीह कम्युनिटी सेंटर में स्थानीय ट्रांस साथियों के अलावा कुछ अन्य जगह के साथियों ने भी अपनी प्रतिभा का जलवा बिखेरा था। उस दिन महसूस किया कि असल में बाइनरी यानी  सिर्फ स्त्री-पुरुष तक अपनी दुनिया सीमित करने वाले लोग कितने घमंड में जी रहे हैं जिन्हें अपने आसपास के लोगों की कोई फिक्र नहीं जबकि वे ख़ुद को ज़िम्मेदार नागरिक मानते हैं। हुआ यह कि जब आयोजन स्थल पहुंची तो मुख्य द्वार में एक ताला लगा था और वहां एक साथी थे जिन्होंने ताला खोल मुझे एंट्री दी। अंदर जाने पर पता चला कि आसपास के लोग जो अपने आपको तथाकथित सामान्य मानते हैं वहां पत्थर फेंक, शोर मचाकर  अपने तथाकथित ज़िम्मेदाराना व्यवहार का प्रदर्शन कर रहे थे, शर्म और गुस्से का मिलाजुला एहसास तारी रहा और पढ़े-लिखे समाज की असलियत तार-तार हुई। बहरहाल लौटते हैं इस कड़ी के अगले आयोजन में। इसी कड़ी में जमशेदपुर में क्‌वीर और ट्रांस जेंडर कम्युनिटी के कलाकारों द्वारा 26 मार्च,2023 को सांस्कृतिक प्रस्तुतियां हुई जिसके सपोर्टिंग पार्टनर रहे इप्टा, टाटा स्टील फाऊंडेशन, हमसफ़र ट्रस्ट,क्‌वीर क्राफ़्ट, ट्रांस्सेंड। डिजिटल पार्टनर रहे जमशेदपुर टेल्स, ग्लिम्प्स ऑफ जमशेदपुर, जमशेदपुर वाला।

जहां चाह वहां राह

आयोजन से पहले इसमें शामिल होने की पृष्ठभूमि संक्षिप्त में साझा करना चाहूंगी। जमशेदपुर में इप्टा छोटे स्तर पर एक चहारदीवारी में ही अपने आयोजन कर रही है, जिसमें इप्टा को आगे बढ़ाने वाले साथी, संस्कृतिकर्मी और दोस्त शामिल हो रहे हैं। यहां यह याद किया जाना ज़रूरी है कि पिछले वर्ष इप्टा द्वारा पांच राज्यों में निकाली गई " ढाई आखर प्रेम" की यात्रा जमशेदपुर भी आई थी जिसमें शहर की पाँच जगहों में विभिन्न संगठनों और संस्थाओं द्वारा सांस्कृतिक प्रस्तुतियां आमंत्रित की गई थीं जिसमें प्रेम, सद्भाव और इंसानियत के मूल्य समाहित थे। ढाई आखर प्रेम की यात्रा सिर्फ इप्टा का आयोजन नहीं था बल्कि स्थानीय संस्था और संगठनों के साथ साझा आयोजन हुआ। इसके बाद से इप्टा की कोशिश रही है कि प्रगतिशील विचार रखने वाले संगठनों के साथ मिलकर काम करे। इसी क्रम में 30 जनवरी,2023 को गांधी जी के शहादत दिवस को मनाने के लिए गांधी शांति प्रतिष्ठान आगे आया और अन्य संगठनों को जोड़ते हुए सांगीतिक आयोजन की पहल की जो अपने आप में ख़ास रही, जिसमें शहर के कई युवा साथी विभिन्न साज़ों और भाषाओं में अपनी प्रस्तुति से गांधी को याद किए। संयोग से यह आयोजन इप्टा के नियमित आयोजन स्थल में हुआ। इसके बाद इप्टा ने फ़ैज़ के जन्मदिन पर एक मुशायरा आयोजित किया जिसमें शहर के जानेमाने शायरों के साथ युवा शायर भी शामिल रहे। इन दोनों आयोजनों में पीपुल्स फॉर चेंज और जमशेदपुर क्‌वीर सर्किल के सौविक साहा आए जो युवा और बहुत ऊर्जावान है। वो इन दोनों आयोजनों को देख सहसा ही पूछ बैठे कि क्वीयर और ट्रांस कम्युनिटी का एक ओपन माइक कार्यक्रम हम यहां कर पाएं जिसमें समाज के विभिन्न थियेटर समूह के साथी और अन्य लोग शामिल हों, इसमें असहमति का सवाल ही नहीं था और बस! इप्टा इस आयोजन से जुड़ गई जो हमारे लिए बहुत ज़रूरी पहल रही। इप्टा एक सांस्कृतिक संगठन है जिसमें हर वर्ग, जाति, धर्म और लिंग के कलाकार शामिल हो सकते हैं पर मेरी इप्टा की जीवन यात्रा में इस तरह के सीधे जुड़ाव का अनुभव ज्ञात नहीं। हालांकि हमारे रायगढ़ इप्टा की टीम में हमारे कुछ साथी अपनी जेंडर पहचान के साथ शामिल थे, निश्चित ही इसे पढ़कर संभावना है कि अन्य जगहों की इकाइयों से भी कुछ ज़रूरी और सकारात्मक पहल के बारे में पता चले जो हम सबकी बतौर कलाकार बराबरी की आवाज़ को मज़बूत करे। इप्टा उस विरासत को लेकर आगे बढ़ने के लिए प्रतिबद्ध है जो एक बेहतर और सुन्दर समाज बनाने की राह पर चल रहे हैं इस सूत्र वाक्य के साथ हम अपने आसपास के कई संगठनों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, व्यक्तित्वों जो अलग-अलग क्षेत्रों के प्रतिनिधि हैं उनका स्वागत करते हैं इसी कड़ी में यहां जमशेदपुर में पीपुल्स फॉर चेंज और जमशेदपुर क्‌वीर सर्किल के साथ हमें क्वीयर और ट्रांस जेंडर कम्युनिटी के साथियों से जुड़ने का मौका मिला। आयोजन से पहले इस एन जी ओ के अन्य साथियों से दो संक्षिप्त मुलाकातें हुई और फिर 26 मार्च 2023 को इस ख़ास दिन ने दस्तक दी। उस दिन लिटिल इप्टा के साथियों के साथ सुबह के समय बातचीत करने की कोशिश की कि हम अपने आसपास किन्हें देखते हैं, अपने सार्वजजनिक स्थलों में स्त्री-पुरुष के अलावा कोई और क्यों नहीं दिखाई देता है, हमारे आसपास स्त्री-पुरुष के अलावा अन्य जेंडर के लोग भी मौजूद हैं जिनकी अनुपस्थिति हमें अखरती क्यों नहीं। यदि वे कहीं दिखते हैं तो हमारा सहज प्रचलित व्यवहार अनुचित और गरिमाहीन क्यों होता है। उन्होंने बड़ी सहजता से बातों को समझा और आयोजन के लिए अपनी भूमिका ज़िम्मेदारी से निभाई।

कार्यक्रम के दिन शाम अपने रंग में थी। दिन भर की ज़बरदस्त तपिश के बाद तेज़ हवा ने सुकून पहुंचाया और वातावरण में ऐसी रंगत बिखेरी जिसके साथ सभी के चेहरे खिल उठे, अपरिचय की सीमा लांघ सभी एक कलाकार की भूमिका में एक-दूसरे से हाथ मिलाकर, गले मिलकर जोश ज़ाहिर कर रहे थे जो ख़ूबसूरत दुनिया के सच होने जैसा एहसास बना। शाम पौने पाँच बजे समूह नृत्य के साथ कार्यक्रम शुरु हुआ और इसके बाद कई अन्य नृत्य प्रस्तुतियां, सोलो एक्ट, बातचीत, गीत और कई महत्वपूर्ण जानकारी प्रस्तुतकर्ताओं ने दी। नालसा जजमेंट, स्वास्थ्य, शिक्षा, रोज़गार और मुख्यधारा में शामिल होने के संकट और चुनौतियों को इस अंदाज़ में दर्शकों के समक्ष रखा कि वे निश्चित ही बराबरी की अपनी परिभाषा पर पुनर्विचार करेंगे। इस आयोजन में सोशल साइट में इंफ्लुएंसर की भूमिका निभा रहे कुछ स्थानीय साथी पहुंचे जिनकी सोशल साइट में बड़ी संख्या में पहुंच है। कुछ बैंड के युवा साथी पहुंचे जिनके साज़ पर दर्शक थिरके और अपने जज़्बे को बनी-बनाई रवायतों से तोड़ बाहर निकले। कार्यक्रम स्थल में क्वीयर और ट्रांस कम्युनिटी से जुड़ी बुनियादी जानकारियों के अलावा समाज से सवाल उठाते पोस्टर, बुक मार्क, हैंड बैंड, टी-शर्ट के साथ हस्त कला के लुछ नायाब नमूने भी थे जो अन्य सामग्रियों के साथ हाथों-हाथ दर्शकों ने लिए।

इस कार्यक्रम ने एक पहल की जिसमें अभी कई स्तर पर काम किए जाने की आवश्यकता है। जेंडरगत परेशानियों से जूझते साथियों के साथ गीत-संगीत और विचार पर बात करने की आवश्यकता है जिससे थिरकने वाली बीट के साथ बराबरी के गीत शामिल हों जिसकी आवाज़ भी दूर तक पहुंचे। गीतों के चयन पर ख़ास ध्यान दिए जाने की ज़रूरत है जिसके लिए तमाम प्रगतिशील गीतकारों,लेखकों और संगीतकारों से खुली अपील है कि आज के समय के साथ हमारे नृत्य करने वाले प्रगतिशील सभी साथियों को भी जेहन में रख कुछ रचें, बुनें।

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