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ट्रंप ने अर्थशास्त्रियों के नौकरी के 'रिकॉर्ड' नुकसान के पूर्वानुमान को आख़िर किस तरह पीछे छोड़ा

पिछले महीने जिस अमेरिका ने 2.5 मिलियन नौकरियां पैदा की हैं, वह अमेरिका इस समय अपने सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 10-11% रक़म प्रत्यक्ष नकद हस्तांतरण, वित्तीय सहायता और आसान ऋणों पर ख़र्च कर रहा है।
Donald Trump
Image Courtesy: Wikimedia Commons

डोनाल्ड ट्रंप ज़्यादातर समय ग़लत होते हैं। लेकिन, उनके पास एक चीज़ है, जिस पर उन्हें महारत हासिल है, और वह यह कि वह कभी भी विशेषज्ञों की बातें नहीं सुनते। अपनी यही कुछ ख़ासियत अमेरिकी राष्ट्रपति को उन अर्थशास्त्रियों को मात देने में मदद की है, जिन्होंने मई में नौकरी के रिकॉर्ड नुकसान की भविष्यवाणी की थी। इसके बजाय, अमेरिका ने पिछले महीने 2.5 मिलियन नौकरियां जोड़ीं हैं। जानकारों ने कहा था कि बेरोज़गारी 20% को पार कर जायेगी। लेकिन, जो गिरावट आयी है, 13% से अधिक थोड़ा ज़्यादा है। ठीक है कि कुछ हिसाब-किताब में त्रुटियां रही होंगी। हालांकि, इसके साथ भी बेरोज़गारी की दर कम से कम 5 प्रतिशत अंक नीचे थी, जिसका अनुमान अर्थशास्त्रियों ने लगाया था।

चूंकि भारत ने अपने दो महीने के लॉकडाउन को ख़त्म कर दिया है, इसलिए इस वाक़ये में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए भी एक सबक निहित है और यह सबक बहुत ही अहम है। अमेरिका में रोज़गार का सबसे बड़ा लाभ सबसे संकटग्रस्त क्षेत्रों- रेस्तरां, हॉस्पिटलिटी और खुदरा क्षेत्र को मिला है। विश्लेषकों ने सोचा था कि इन्हें ठीक होने में सबसे लंबा समय लगेगा, क्योंकि उपभोक्ता बाहर खाने, सफ़र करने और ख़रीदारी करने से डरेंगे, भले ही वे आधिकारिक तौर पर अपने घरों से बाहर निकल रहे हों।

आख़िर इस अप्रत्याशित उछाल की वजह क्या है ?

इसके तीन प्रमुख कारण हैं- सरकारी ख़र्च, सरकारी ख़र्च और सरकारी ख़र्च। अमेरिका अपने सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 10-11% प्रत्यक्ष नकद हस्तांतरण, वित्तीय सहायता और आसान ऋणों में ख़र्च कर रहा है।

चतुराई से डिज़ाइन की गयी ऋण-योजना-पेचेक प्रोटेक्शन प्रोग्राम वस्तुतः नौकरियों को बचाने की ख़ातिर व्यवसायों को रफ़्तार देने के लिए पैसा देती है। कंपनियों को वेतन देने और नियमित ख़र्चों को पूरा करने के लिए ऋण दिया जाता है। उन्हें तीन नियमों का पालन करना है-जून के अंत तक सभी को फिर से नौकरी पर रखना, मज़दूरी और वेतन का भुगतान करने पर ऋण राशि का 75% ख़र्च करना, और शेष राशि किराया और उपयोगिता बिल जैसे कारोबार व्यय पर ख़र्च करना। यदि वे ऐसा करते हैं, तो पूरी कर्ज़ की रक़म माफ़ कर दी जायेगी।

न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक़, मई में लोगों को काम पर रखने वाले कई व्यवसायों ने कहा कि वे पेचेक सुरक्षा कार्यक्रम की वजह से ऐसा कर सकते हैं। लेकिन, वह कहानी का एक पक्ष भर है। उद्यमी तभी अपने कर्मचारियों को अपने साथ रख पायेंगे, जब उन्हें इस बात की उम्मीद होगी कि वे लॉकडाउन के बाद अपने कारोबार को फिर से खड़ा कर लेंगे। यह उपभोक्ताओं पर निर्भर करता है कि वे कितना ख़र्च कर पाते हैं। सामान्य ज्ञान हमें बताता है कि अगर लोग अपनी नौकरी खो देते हैं, तो वे अपना ख़र्च कम कर  देते हैं। सिर्फ़ एक चीज़ ऐसी है, जो इस सूरत को बदल सकती है, और वह यह है कि अगर सरकार उन्हें भी पैसा देती है, जिनके पास काम नहीं है।

ठीक यही बात ट्रंप ने भी की है। वहां लॉकडाउन के दौरान लाखों अमेरिकियों को अतिरिक्त नक़दी मिली है। एक सप्ताह के भीतर बेरोज़गारी के लिए भुगतान 600 डॉलर (45,000 रुपये) से ज़्यादा का हो गया है, और यही कारण है कि बिना नौकरी के भी लोग दुकानों, रेस्तरां और फ़ास्ट-फ़ूड चेन में जा रहे हैं। उपभोक्ताओं के हाथों में आ रहे पैसों से मांग को बढ़ावा मिला है, जिससे उद्यमियों को निवेशित रहने की एक वजह मिल गयी है। ठीक उसी तरह, वेतन भुगतान के लिए मिली सहायता राशि ने उन्हें लोगों को तब भी काम पर रखने में मदद की है, जब उनके पास कोई राजस्व नहीं है।

यह वही क़दम है, जिसे भारत को भी उठाना चाहिए। देश की वार्षिक आय का आधे से अधिक हिस्सा सेवा क्षेत्रों से आता है। इसमें से बहुत कुछ हमेशा के लिए खो गया है। मिसाल के तौर पर, अगर लोग दो महीने तक बाहर खाना नहीं खाते हैं, तो वे बाक़ी बचे 10 महीनों में इसके लिए आगे भी तैयार नहीं होंगे। गर्मियों की छुट्टियों के महीनों में पर्यटन को बढ़ावा मिलता है, लेकिन इस साल इसे बंद करने की नौबत है। कल्पना कीजिए कि इस ख़ाली वक्त और हॉस्पिटलिटी क्षेत्र में एक छोटे व्यवसाय के लिए इसका क्या मतलब है। दो महीनों के कारोबार ने सलाना कारोबार के 16% से अधिक की रक़म खो दी है। इस वित्तीय वर्ष के बाकी दिनों में इसकी भरपाई का कोई रास्ता नहीं है।

इनमें से कई छोटे और मझोले उद्यमियों ने कम से कम अपने कर्मचारियों के कुछ हिस्से को बनाये हुए है। इसका मतलब यह है कि उन्होंने बिना किसी कमाई के भी वेतन और मज़दूरी के एक हिस्से का भुगतान किया है। इसके साथ ही किराया और दूरसंचार बिल जैसे नियमित ख़र्च भी हैं। इस तरह के व्यवसायों के चलते रहने को सुनिश्चित करने और उनके अपने कर्मचारियों को भुगतान करते रहने का एक मात्र तरीक़ा वही है, जिसे अमेरिका ने अपनाया है,यानी अमेरिका की तरह भुगतान संरक्षण कार्यक्रम की तरह कुछ रक़म देना। मोदी सरकार की एमएसएमई के लिए ऋण गारंटी योजना इसमें कटौती नहीं करती है।

मैंने पहले भी कहा है कि भारत की अर्थव्यवस्था के जीवित रहने के लिए मध्यम वर्ग की आय को बढ़ाने की ज़रूरत है। हमारी अर्थव्यवस्था का ज़्यादातर हिस्सा शीर्ष 20% आये वाले लोगों की ख़रीदारी पर निर्भर करता है। अगर, वे अपने ख़र्च में कटौती करते हैं, तो संपूर्ण खपत चक्र ढह जायेगा। हमने पिछले कुछ वर्षों में देखा है कि मोदी सरकार मध्यम वर्ग की खपत को बनाये रखने में नाकाम रही है। अभी निम्न मध्यम वर्ग को आय सहायता दी जानी है, और इस तबके से ऊपर के लोगों के निजी उपभोग को बनाये रखने के लिए बड़ी कर राहत देनी होगी।

मुख्यधारा के अर्थशास्त्री बढ़ते सरकारी ख़र्च और राजकोषीय घाटे के विस्तार के ख़तरों के बारे में बात करना जारी रखेंगे। अफ़सोसनाक है कि मोदी अब तक राजकोषीय कट्टरवाद के रास्ते पर ही चले हैं। उनके आर्थिक सलाहकारों ने सार्वजनिक रूप से तपस्या और बलिदान की बात की है। यह आपदा में डालने वाला एक क़दम है और मोदी को या तो उन्हें बदलने की ज़रूरत है या उन्हें पूरी तरह से अनदेखी करनी होगी।

अमेरिकी नौकरियों के आंकड़ों से पता चलता है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था ज़्यादातर अर्थशास्त्रियों के अनुमान से कहीं ज़्यादा तेज़ी से ठीक हो सकती है। यह बात किसी हद तक ठीक भी है, क्योंकि नव-शास्त्रीय अर्थशास्त्र के तीन दशकों के बड़े नियम ने हमारे दिमाग़ से इस बात को हटा दिया है कि अर्थव्यवस्था को मंदी से बाहर निकालने में सरकारी ख़र्च बहुत कामयाब हो सकता है। ज़्यादातर देशों ने अपनी अर्थव्यवस्थाओं को संकट से ऊपर रखने के लिए अपनी तिजोरियां खोल दी हैं। इन प्रोत्साहन पैकेजों का प्रभाव हमारे आर्थिक मॉडल के हिसाब-किताब की तुलना में बहुत अधिक सकारात्मक हो सकता है।

औनिंद्यो चक्रवर्ती एनडीटीवी इंडिया और एनडीटीवी प्रॉफ़िट के वरिष्ठ प्रबंध संपादक रहे हैं। वह यू-ट्यूब चैनल, ‘देसी डेमोक्रेसी’ चलाते हैं और न्यूज़क्लिक पर एक साप्ताहिक शो, ‘इकोनॉमी का हिसाब किताब’ पेश करते हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।

अंग्रेज़ी में लिखा मूल आलेख पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

How Trump Trumped Economists’ Forecast on ‘Record’ Job Losses

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