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दिवालिया टेलीकॉम कंपनियों का बक़ाया : क्या कोई चूक जियो और एयरटेल के पक्ष में जा रही है?

रिलायंस कम्यूनिकेशन्स और एयरसेल, दो ऐसी दिवालिया कंपनियां हैं, जिन्हें सरकार को 37,500 करोड़ रुपये का बक़ाया चुकाना है। इस बक़ाए को किस तरह चुकाया जाए, यह काफ़ी विवादित मुद्दा बन गया है, सुप्रीम कोर्ट के सितंबर में आए कथित AGR फ़ैसले ने भी इस विवाद को अधर में छोड़ दिया। अब एक अपीलेट ट्रिब्यूनल को विवाद पर फ़ैसला करना है। लेकिन क़ानूनी प्रावधानों की एक चूक दो प्रभुत्वशाली दूरसंचार खिलाड़ियों- रिलायंस जियो और एयरटेल को मदद करती नज़र आ रही है। इससे यह दोनों कंपनियां एक बड़ी देनदारी से बच सकती हैं। फिलहाल AGR की कहानी खत्म होने से कहीं दूर नज़र आ रही है।
दिवालिया टेलीकॉम कंपनियों का बक़ाया

गुरुग्राम/बेंगलुरू: 3 सितंबर को तथाकथित 'एडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू (AGR)' केस में आया फ़ैसला इस सवाल का जवाब देने में नाकामयाब रहा है कि क्या दिवालिया प्रक्रिया (इंसॉल्वेंसी प्रोसेस) से गुजर चुकीं या गुजरने वाली टेलीकॉम कंपनियों को संचार मंत्रालय के दूरसंचार विभाग (DoT-डिपार्टमेंट ऑफ टेलीकम्यूनिकेशन) को बकाया चुकाना चाहिए या नहीं? यहां दांव पर 38,959 करोड़ रुपये लगे हैं। यह पैसा तीन कंपनियों- एयरसेल, रिलायंस कम्यूनिकेशन (आरकॉम) और वीडियोकॉन टेलीकम्यूनिकेशन द्वारा दूरसंचार विभाग को चुकाया जाना है।

वीडियोकॉन का AGR बकाया कम विवादास्पद मुद्दा है। लेकिन एयरसेल और आरकॉम के AGR बकाया के भुगतान पर बड़ी और कड़ी कानूनी लड़ाई होने की संभावना है। अगर किसी को लगता है कि दस साल पुराने AGR बकाया का सवाल खत्म हो गया है, इसका जवाब भी मिल गया है कि सरकार से किस राजस्व को साझा करना होगा, तो वह गलत सोच रहा है। क्योंकि अभी कहानी खत्म होने से बहुत दूर है। इन सवालों ने टेलीकॉम इंडस्ट्री को बहुत बाधित किया है और संतुलन को रिलायंस जियो के पक्ष में झुका दिया है। 

दूरसंचार विभाग का कहना है कि इन कंपनियों द्वारा इलेक्ट्रो-मैग्नेटिक स्पेक्ट्रम का इस्तेमाल करने के चलते विभाग को कंपनियों द्वारा बकाया चुकाया जाना चाहिए। लेकिन यहां बड़ा सवाल यह है कि क्या इन बीमारू कंपनियों (ऑरकॉम और एयरसेल) द्वारा 'इंसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्टसी कोड (IBC)' की दिवालिया प्रक्रिया के तहत स्पेक्ट्रम को बेचा जा सकता है। इसके विपरीत यह तर्क भी दिया जा रहा है कि स्पेक्ट्रम के किसी भी तरह के हस्तांतरण के लिए सरकार की अनुमति जरूरी है।

ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के मुताबिक़, बैंकों को कर्ज़ में फंसी इन तीन कंपनियों से करीब़ 42 हजार करोड़ रुपये मिलने की उम्मीद है। यह पैसा AGR बकाये से अलग है और इसकी गणना ज़मा की गई प्रस्तावित योजना (रेज़ोल्यूशन प्लान) के तहत हुई है। उसी रिपोर्ट में कहा गया कि उद्योग मंत्रालय इन दिवालिया टेलीकॉम कंपनियों की बिक्री की प्रक्रिया को तेज करना चाहता है।

वीडियोकॉन के 1,376 करोड़ रुपये के कर्ज़ को एयरटेल को चुकाना होगा। क्योंकि 2016 में एयरटेल ने वीडियोकॉन का अधिग्रहण कर लिया था। लेकिन पांच विशेषज्ञों ने न्यूज़क्लिक को बताया कि RCom और एयरसेल के नाम पर जारी हुए स्पेक्ट्रम का उपयोग कर रहीं एयरटेल और रिलायंस जियो, क्रमश: 25,194 करोड़ रुपये और 12,389 करोड़ रुपये भरने से बच जाएंगी। ऐसा कैसे होगा, यही इस लेख में बताया गया है। जिन पांच विशेषज्ञों ने न्यूज़क्लिक से बात की, उनमें से तीन ने नाम ना छापने की शर्त रखी।

पिछली कहानी

ताजा फ़ैसला जस्टिस अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली बेंच (जिसमें जस्टिस एस अब्दुल नजीर और एम आर शाह शामिल थे) ने दिया था। यह फ़ैसला 3 सितंबर को जस्टिस अरुण मिश्रा के रिटायर होने से पहले, उनके अंतिम फ़ैसलों में से एक था। फ़ैसला दूरसंचार विभाग द्वारा लगाई गई याचिका और टेलीकॉम कंपनियों द्वारा 'अलग-अलग वक़्त पर किस्तों में बकाया चुकाने की अनुमित' देने के लिए लगाई गई याचिका पर दिया गया है। दूरसंचार विभाग को AGR बकाया चुकाने का फ़ैसला भी इसी बेंच ने 24 अक्टूबर, 2019 को दिया था। बेंच ने AGR की परिभाषा के दायरे को बढ़ाकर गैर-टेलीकॉम राजस्व को भी इसमें शामिल कर दिया है। टेलीकॉम कंपनियों ने बकाया को चुकाने के लिए "15 साल तक चलने वाली व्यवस्था" की मांग की है। वहीं दूरसंचार विभाग ने कंपनियों को बकाया चुकाने के लिए "20 साल तक चलने वाली व्यवस्था" बनाए जाने की अपील की है। जबकि सुप्रीम कोर्ट ने सिर्फ़ 10 साल में ही पूरा पैसा चुकाने को कहा है।

प्रतिस्पर्धी स्पेक्ट्रम नीलामी हासिल करने के बाद, टेलीकॉम कंपनियों ने सरकार के साथ राजस्व बंटवारे समझौते के तहत अपने AGR के एक हिस्से को दूरसंचार विभाग को देने पर सहमति जताई थी। यह पैसा लाइसेंसिंग शुल्क और स्पेक्ट्रम के इस्तेमाल करने के लिए चार्ज के तौर पर देना था। 2019 के फ़ैसले में सुप्रीम कोर्ट ने दूरसंचार विभाग के तर्क के साथ सहमति जताई थी और आदेश दिया था कि AGR की गणना, स्पेक्ट्रम हासिल करने वाली कंपनी द्वारा कमाए सभी तरह के राजस्व के आधार पर की जानी चाहिए। इस राजस्व में स्पेक्ट्रम के प्रत्यक्ष उपयोग के बिना कमाया गया पैसा भी शामिल होगा। उससे पहले AGR की गणना, कंपनियों द्वारा स्पेक्ट्रम का प्रत्यक्ष उपयोग कर कमाए गए राजस्व के आधार पर की जाती थी। इससे टेलीकॉम कंपनियों के कुल राजस्व का एक बड़ा हिस्सा बाहर होता था। फ़ैसला आने के बाद, दूरसंचार विभाग ने नई गणना कर इन कंपनियों से पुराने AGR बकाया की मांग की।

दिवालिया कंपनियों का बकाया कौन चुकाएगा?

सुनवाई करने के दौरान जजों ने जो टिप्पणियां कीं, उनसे उनके सोचने के आधार का पता चलता है। 22 अगस्त को कोर्ट ने कहा, अगर टेलीकॉम ऑपरेटर ने दूसरे ऑपरेटर से स्पेक्ट्रम खरीदा है, तो पुराने बकाया को भी चुकाए जाने की जरूरत है। अगर स्पेक्ट्रम बेचने वाला पुराने बकाये को नहीं चुकाता, तो खरीददार को उस बकाये को चुकाना होगा। वीडियोकॉन के वकील को संबोधित करते हुए बेंच ने कहा: "व्यापारिक दिशा-निर्देशों के मुताबिक़, स्पेक्ट्रम हस्तांतरित करने के पहले पुराने बकाये को चुकाना होगा। अगर आप बकाया नहीं चुकाते, तो भारती एयरटेल, जिसने वीडियोकॉन का स्पेक्ट्रम खरीदा, उसे बकाया चुकाना होगा।"

लेकिन अपने अंतिम फ़ैसले में कोर्ट ने मामले में स्पष्ट राय नहीं रखी। कोर्ट ने इस सवाल पर जवाब नहीं दिया कि NCLT के सामने दिवालिया प्रक्रिया से गुजर रहीं कंपनियां, जिनके पास स्पेक्ट्रम के अधिकार हैं, क्या वे इन स्पेक्ट्रम को बेच सकती है और उन कंपनियों का बकाया AGR चुकाने के लिए कौन जिम्मेदार होगा? उच्चतम न्यायालय ने कहा कि इस मुद्दे पर फ़ैसला लेने के लिेए NCLT सही फोरम है। कोर्ट ने एक अहम टिप्पणी करते हुए कहा कि दिवालिया प्रक्रिया से गुजरने वाली इन कंपनियों के स्पेक्ट्रम हासिल करने वाली कंपनियां, इनके पिछले बकाया AGR को चुकाने के लिए जिम्मेदार नहीं होंगी।

25 सितंबर को दिए एक अंतरिम आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस मामले का फ़ैसला "नेशनल कंपनी लॉ अपीलेट ट्रिब्यूनल (NCLAT)" करेगा। इस तरह कोर्ट ने अपने पिछले फ़ैसले से अपील का एक स्तर कम कर दिया।

यहां विवाद के केंद्र में नीतिगत् सवाल है। टेलीकॉम स्पेक्ट्रम एक सीमित प्राकृतिक संसाधन है। भारत की टेलीकॉम नीति इस मूल्य पर आधारित है कि सरकार ही अंतिम तौर पर स्पेक्ट्रम की मालिक होती है और इस स्पेक्ट्रम से लाइसेंस के ज़रिए सेवादाता अपनी सेवाएं उपलब्ध करवाते हैं।

विदेश संचार निगम लिमिटेड के पूर्व अध्यक्ष ब्रिजेंद्र के स्यांगल और इंडस्ट्री के एक विशेषज्ञ ने अपनी व्याख्या में कहा कि किसी स्पेक्ट्रम के व्यापार और साझाकरण की नीति के पीछे सरकार का उद्देश्य अधिकतम मुनाफ़ा कमाना और इसका सबसे बेहतर उपयोग सुनिश्चित करना होता है।

2015 में सरकार द्वारा बनाए गए स्पेक्ट्रम नियमों के मुताबिक़, स्पेक्ट्रम का आदान-प्रदान करने वाले दोनों संस्थानों के पास संबंधित क्षेत्र में स्पेक्ट्रम उपयोग करने का लाइसेंस होना चाहिए। साथ ही लेन-देन के पहले दूरसंचार विभाग का बकाया चुकता होना चाहिए।

2016 में एयरटेल ने एयरसेल के देश में 8 टेलीकॉम सर्किल्स में 2300 मेगाहर्ट्ज वाले 4G बैंड के 20 मेगाहर्ट्ज (MHz) का सौदा किया। वहीं रिलायंस जियो ने RCom के 800 मेगाहर्ट्ज वाले बैंड में 47.50 मेगाहर्ट्ज की खरीद की। यह खरीद जनवरी से मार्च, 2016 के बीच में हुई थीं। यह स्पेक्ट्रम देश के 13 सर्किल्स में खरीदा गया था और इसका फिलहाल 4G सर्विस देने के लिए रिलायंस जियो इस्तेमाल कर रहा है। साथ ही RJio 15 सर्किल्स में RCom के साथ स्पेक्ट्रम शेयर कर रहा है। इस तरह RCom के 800 मेगाहर्ट्ज बैंड में रिलायंस जियो फिलहाल 58.75 मेगाहर्ट्ज स्पेक्ट्रम का इस्तेमाल कर रहा है।

यहां NCLAT को यह फ़ैसला करना है कि अतिरिक्त AGR बकाया, जो RCom के मामले में 25,194 करोड़ रुपये और एयरसेल के मामले में 12,389 करोड़ रुपये है, उसे कौन चुकाएगा? साथ ही इस बकाये को, दिवालिया प्रक्रिया में इन कंपनियों के स्पेक्ट्रम बिकने से पहले चुकाने की बात का फ़ैसला भी करना होगा। दूरसंचार विभाग ऐसा ही चाहता है। या फिर कोई दूसरा प्रबंध किया जाएगा?

एक अहम सवाल यह भी उठेगा कि इन दिवालिया कंपनियों के स्पेक्ट्रम के जिस हिस्से का दूसरी कंपनियां (एयरसेल का एयरटेल और RCom का Rjio) इस्तेमाल कर रही हैं, क्या इन कंपनियों पुराना बकाया चुकाने के लिए कहा जा सकता है?

कानून में एक चूक

एक बड़ी कंसल्टेंसी फर्म से जुड़े वित्तीय सलाहकार ने नाम ना छापने की शर्त पर न्यूज़क्लिक को बताया, "सुप्रीम कोर्ट के मुताबिक़ सभी संपत्तियां और देनदारी दिवालिया प्रक्रिया का हिस्सा होंगी। मेरी समझ के हिसाब से, NCLAT प्रक्रिया के मुताबिक़, कंपनियों के दिवालिया घोषित होने की प्रक्रिया के लिए आवेदन लगाने के बाद, दूरसंचार विभाग को बकाया चुकाया जाना चाहिए।"

 उन्होंने आगे बताया, "बैंकों ने दूरसंचार विभाग के दावे के खिलाफ़ तर्क दिए हैं।" बैंकों ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि लाइसेंस दिए जाने के वक़्त त्रिपक्षीय समझौते (ऑपरेटर्स, बैंक और दूरसंचार विभाग के बीच) में दूरसंचार विभाग ने यह नहीं लिखा था कि ऑपरेटर्स के दिवालिया होने की स्थिति में स्पेक्ट्रम वापस ले लिया जाएगा।"

IBC के तहत, प्रस्तावित प्रक्रिया के ज़रिए भुगतान के लिए ऑपरेशनल क्रेडिटर्स (जैसे इस मामले में दूरसंचार विभाग), प्राथमिकता में सुरक्षित देनदारों (जैसे बैंक) से पीछे होते हैं। लेकिन बैंकों ने भी सुप्रीम कोर्ट में माना है कि स्पेक्ट्रम के लेनदेन (साझा करने या बेचने) के लिए दूरसंचार विभाग की अनुमति की जरूरत होगी, क्योंकि लाइसेंस सरकार ने जारी किए हैं।

विशेषज्ञ ने आगे कहा, "एक बार को ऐसा लगता है कि NCLT द्वारा नियुक्त इंसॉल्वेंसी रेज़ोल्यूशन प्रोफ़ेशनल (IRP) की प्राथमिकता बैंकों के पक्ष में है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश में कहा गया है कि वीडियोकॉन की संपत्तियों के प्रबंधन के लिए NCLT द्वारा नियुक्त किए गए IRP ने NCLT के सामने गुहार लगाई कि दूरसंचार विभाग को वीडियोकॉन द्वारा जमा की गई बैंक गारंटियों के पूंजीकरण से रोका जाए।' विशेषज्ञ के मुताबिक़, "बैंकों ने कहा कि देनदारों और दूरसंचार विभाग के साथ हुए समझौते के हिसाब से बकाया चुकाया जाए, इसकी ज़िम्मेदारी IRP की है।"

स्वतंत्र इंडस्ट्री एनालिस्ट महेश उप्पल कहते हैं, यहां एक कानूनी अंतर (इसे आप चूक कह सकते हैं) है, लेकिन इसे NCLAT को पाटना होगा। उन्होंने न्यूज़क्लिक को बताया, "स्पेक्ट्रम के साझाकरण और व्यापारिक नियमों से यह साफ़ नहीं है कि एक दिवालिया होने वाली कंपनी और एक दिवालिया न होने वाली कंपनी के बीच किन परिस्थितियों में लेनदेन हो सकता है। करार में ऐसे उपबंध हैं, जिनमें बकाया को स्पेक्ट्रम विक्रेता और खरीददार दोनों की ज़िम्मेदारी बनाया गया है। नियम संख्या 11 और 12 स्पष्ट करते हैं कि ज्ञात सरकारी बकाया को, स्पेक्ट्रम साझा करने वाले समझौते के पहले चुकाया जाना चाहिए और व्यापारिक समझौतों में बाद में उपजने वाले बकाया को जोड़ने का प्रबंध होना चाहिए। लेकिन नियमों में दिवालिया होने वाली कंपनियों को लेकर कुछ भी स्पष्ट नहीं है।" 

सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के मुताबिक़, "क्या किसी लाइसेंस/स्पेक्ट्रम को हस्तांतरित किया जा सकता है? साथ में क्या यह लेनदेन IBC कोड में चालू की गई रेज़ोल्यूशन प्रोसेस का हिस्सा हो सकता है? स्पेक्ट्रम/लाइसेंस किसी टेलीकॉम सेवादाता की संपत्ति के तौर पर दिवालिया प्रक्रिया की प्रस्तावित प्रक्रिया का हिस्सा हो सकते हैं या नहीं? और क्या AGR बकाया ऑपरेशनल है, इन सवालों के जवाब NCLAT तय करेगा।"

स्यांगल के मुताबिक़, सिर्फ़ एयरटेल और वीडियोकॉन के लेनदेन में ही चीजें साफ़ दिखाई पड़ती हैं। स्यांगल कहते हैं, "एयरटेल ने वीडियोकॉन का पूरे तरीके से अधिग्रहण किया है। अधिग्रहण में जो खरीददार होता है, वही तपिश को झेलता है। विलय और अधिग्रहण पर दिशा-निर्देश पूरी तरह साफ़ हैं।"

एक दूसरे विश्लेषक ने न्यूज़क्लिक को बताया, जैसी चीजें हैं, उसके हिसाब से "अगर कोई संस्थान अपने 100 फ़ीसदी स्पेक्ट्रम को साझा करता है या उसका लेनदेन करता है, तो वह पुराने और मौजूदा AGR बकाये को चुकाने के लिए जिम्मेदार होगा। लेकिन अगर कोई 99 फ़ीसदी स्पेक्ट्रम के साथ ऐसा करता है, तो क्या उस संस्थान की पिछले बकाया को लेकर कोई जिम्मेदारी नहीं होगी?"

विश्लेषक आश्चर्य जताते हुए कहता है कि अगर ऐसा प्रावधान है, तो क्या यह "अतार्किक और विचित्र" नहीं लगता? फिर भी एयरसेल के स्पेक्ट्रम के एक हिस्से का एयरटेल द्वारा इस्तेमाल और RCom के स्पेक्ट्रम का जियो द्वारा उपयोग, बिलकुल यही मामला बनाता है।

उप्पल का कहना है कि नियमों की ऐसी व्याख्या, उनके लिए कोई मतलब नहीं बनाती। लेकिन स्यांगल, विश्लेषक के नज़रिए से सहमत हैं। वे कहते हैं, "अंबानी चालाक और चतुर हैं, उन्होंने इस चूक का इस्तेमाल स्पेक्ट्रम ट्रेडिंग और शेयरिंग में करने का फ़ैसला किया, जियो ने काफ़ी चालाकी से पूरी स्थिति का फायदा उठाया।"

एक टेलीकॉम कंपनी के पूर्व CEO ने नाम ना छापने की शर्त पर न्यूज़क्लिक से कहा कि प्रशासन किन सिद्धांतों का उपयोग करता है, इस मामले के केंद्र में यही चीज है।

वह कहते हैं, "सभी अच्छी नीतियों की शुरुआत एक प्रस्तावना से होनी चाहिए, जिसमें बताया जाए कि आप क्या हासिल करने का लक्ष्य रखते हैं। भारतीय संविधान इसका सबसे बेहतर उदाहरण है। राष्ट्रीय दूरसंचार नीति, 1999 भी कुछ हद तक बेहतर थी। लेकिन जब आप सिद्धांतों का पालन नहीं करते, तो नीति का कोई मतलब नहीं रह जाता।"

उन्होंने 19 वीं शताब्दी के स्कॉटिश कवि सर वॉल्टर स्कॉट के शब्दों का इस्तेमाल करते हुए अपनी बात खत्म की। उन्होंने अंत में कहा, "ओह! हमारे सामने कितना उलझा हुआ जाल है, सबसे पहले हमें विश्वासघात का अभ्यास करना चाहिए।"

लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं।

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिेए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें।

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