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चुनाव नतीजे और किसान आंदोलन का बढ़ता दायित्व

अब जब 2024 का आम चुनाव महज 15 महीने दूर है, जन-मुद्दों पर आंदोलनात्मक पहल, विशेषकर किसान आंदोलन के ताक़तवर पुनरुत्थान की urgency और उसका महत्व बहुत बढ़ गया है।
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फ़ोटो साभार: फेसबुक

ताजा चुनाव जिनमें भाजपा गुजरात को छोड़कर हिमाचल और दिल्ली नगर निगम समेत अधिकांश जगह हार गई, उनका मूल सन्देश बिल्कुल साफ है कि जहां जनता के जीवन से जुड़े सवालों को केन्द्र कर सेकुलर डेमोक्रेटिक एजेंडा पर किसी संगठित राजनीतिक ताकत द्वारा भाजपा को दृढ़प्रतिज्ञ चुनौती मिलेगी, उसे हराया जा सकता है। गोदी मीडिया द्वारा अर्धसत्यों के आधार पर उनकी 'अपराजेयता ' का मिथक चाहे जितना गढ़ा जाय, मोदी जी का  'तिलिस्म' और कारपोरेट-हिंदुत्व की  'अजेयता' आखिर गुजरात में ही सिमट कर क्यों रह गई?

हिमाचल प्रदेश के नतीजों में पुरानी पेंशन योजना (OPS) की बहाली के मुद्दे की चर्चा तो हो रही है लेकिन किसानों-बागवानों और उन्हीं परिवारों से आने वाले युवाओं की बेरोजगारी और अग्निवीर योजना के संगठित विरोध की भूमिका पर उस तरह गौर नहीं किया जा रहा है, जब कि चुनाव परिणाम को निर्णायक ढंग से भाजपा के खिलाफ मोड़ने में इनकी अहम भूमिका रही। संयुक्त किसान मोर्चा ने भी इसके लिए किसानों से अपील की थी।

प्रधानमंत्री मोदी ने चुनाव प्रचार के दौरान किसानों को फुसलाने की बहुत कोशिश की लेकिन किसानों ने उनके ऊपर यकीन नहीं किया। उन्होंने  खाद पर हमेशा से मिलने वाली सब्सिडी का एहसान किसानों पर लादना चाहा और दावा किया कि सरकार उनकी फिक्र कर रही है। किसान सम्मान निधि हिमाचल में 6000 से बढ़ाकर 9000 करने का वायदा किया गया। सेब की पैकेजिंग पर  GST जो 12% से बढ़ाकर 18% कर दी गयी थी और जिसके ख़िलाफ़ किसान आंदोलित थे, उसे फिर घटाकर 12% करने का घोषणपत्र में वायदा किया गया। लेकिन किसान सरकार की इन चिकनी-चुपड़ी बातों के बहकावे में नहीं आये। ऊपर से किसानों के बेटे, प्रदेश का युवा समुदाय अग्निपथ योजना के खिलाफ लगातार संघर्षरत था।

जाहिर है, अब जब 2024 का आम चुनाव महज 15 महीने दूर है, जन-मुद्दों पर आंदोलनात्मक पहल, विशेषकर किसान आंदोलन के ताकतवर पुनरुत्थान की urgency और उसका महत्व बहुत बढ़ गया है। देश में लोकतन्त्र पर मंडराते खतरे के संदर्भ में यह सुकूनदेह है कि संयुक्त किसान मोर्चा लगातार इस दिशा में आगे बढ़ रहा है।

ऐतिहासिक किसान आंदोलन के 2 वर्ष पूरे होने के अवसर पर किसानों ने पूरे देश में जोश-खरोश के साथ राजभवन मार्च आयोजित किये। किसान नेताओं के अनुसार 26 नवम्बर को चंडीगढ़, लखनऊ, पटना, कोलकाता, त्रिवेंद्रम, चेन्नई हैदराबाद, भोपाल, जयपुर समेत 25 राज्यों की राजधानियों, 300 से अधिक जिला मुख्यालयों और अनेक तहसील मुख्यालयों पर विरोध सभाएँ आयोजित की गईं। कुल मिलाकर, अनुमान है कि पूरे भारत में 3000 से अधिक विरोध प्रदर्शन हुए और 5 लाख से अधिक किसान सड़कों पर उतरे। पंजाब के मोहाली में संयुक्त किसान मोर्चा के आह्वान पर 50 हजार से ज्यादा किसान जुटे।

यह ऐलान करते हुए कि यह राष्ट्रव्यापी "राजभवन मार्च" किसानों के विरोध के अगले चरण की शुरुआत का प्रतीक है, संयुक्त किसान मोर्चा ने देश के सभी किसानों का आह्वान किया है कि , " जब तक किसानों की सारी मांगें पूरी नहीं हो जाती हैं, वे राष्ट्रव्यापी संघर्ष के लिए तैयार रहें और इसमें शामिल हों।"

दरअसल, आंदोलन वापसी के समय किसानों से किये गए सारे वायदों से सरकार पूरी नंगई के साथ मुकर चुकी है। कई अन्य मुद्दों के साथ जोड़कर MSP को प्रभावी बनाने के नाम पर पर बनी कमेटी का एकमात्र मकसद MSP की कानूनी गारंटी की मांग को dilute करना, उससे किसानों को भटकाना और उनकी आंख में धूल झोंकना लगता है। टीवी चैनल पर बैठकर MSP कमेटी में शामिल कथित किसान नेता और विशेषज्ञ इस तरह बोलते हैं जैसे वे सरकार के प्रवक्ता हों और उन्होंने संयुक्त किसान मोर्चा को खत्म करने की सुपारी ले रखी हो !

आंदोलन के दौरान किसानों पर लगे मुकदमों की वापसी का आलम यह है कि अभी भारतीय किसान यूनियन के कार्यालय प्रभारी अर्जुन बालियान को राकेश टिकैत के साथ प्रतिनिधिमंडल में नेपाल दौरे पर जाते वक्त दिल्ली में एयरपोर्ट पर रोक दिया गया। अधिकारियों ने बताया कि किसान आंदोलन के दौरान दर्ज किए गए मुकदमे में सरकार की ओर से एनओसी न होने की वजह से उन्हें यात्रा की परमिशन नहीं है। इसलिए उन्हें गिरफ्तार कर जेल भेजा जाएगा। जबकि केंद्र व राज्य सरकारों ने किसान आंदोलन के दौरान दर्ज सभी मुकदमे वापस लेने की घोषणा ही नहीं की थी, बल्कि बाकायदा इस आशय की प्रेस विज्ञप्ति जारी की थी।

8 अगस्त, 2022 को लोकसभा में बिजली (संशोधन) बिल भी पेश हो गया जिसे वापस लेने के लिए सरकार आंदोलन के दबाव में किसान नेताओं के साथ हुई पहली ही वार्ता में तैयार हो गई थी।

सभी कृषि-उत्पादों के लिए MSP की कानूनी गारंटी की बात तो दूर आये दिन खबरें आ रही हैं कि किसान अपनी तमाम फसलें कौड़ियों के दाम बाजार में बेचने को मजबूर हैं, जबकि उत्पादन-लागत लगातार बढ़ती जा रही है। मोदी जी खाद की सब्सिडी के लिए एहसान जताते हुए और रेवड़ी (freebie culture) संस्कृति पर हमला बोलते हुए आने वाले दिनों में खाद्यान्न और फ़र्टिलाइज़र सब्सिडी खत्म करने का ही संकेत दे रहे हैं। किसानों व गरीबों को मिलने वाली कथित market-distorting subsidies को बंद करने की जोरदार वकालत करते हुए कृषि में कारपोरेटपरस्त सुधारों के पैरोकार कृषि अर्थशास्त्री अशोक गुलाटी शिकायत करते हैं, " हमारे बजट resources का बड़ा हिस्सा जिन दो मदों में चला जाता है, वे हैं फ़ूड और फर्टिलाइजर सब्सिडी। "

इसी बीच लखीमपुर खीरी के बहुचर्चित तिकुनिया हिंसा मामले में  कोर्ट ने 6 दिसंबर को केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा 'टेनी' के बेटे आशीष मिश्रा सहित 14 आरोपियों के खिलाफ धारा 147, 148, 149, 302, 307, 326, 120B, 427 और धारा 177 में आरोप तय कर दिए हैं। इसके पूर्व कोर्ट द्वारा आशीष मिश्रा व 13 अन्य आरोपियों की डिस्चार्ज एप्लिकेशन खारिज कर दी गई थी। इन आरोपियों ने कोर्ट में याचिका के जरिए अपना पक्ष रखते हुए कहा था कि वे घटना में शामिल नहीं थे। इसलिए वे पूरी तरह निर्दोष हैं, लेकिन कोर्ट ने आरोपियों की याचिका को खारिज कर दिया।

संयुक्त किसान मोर्चा के लगातार जारी दबाव के कारण मंत्रीपुत्र को इस नृशंस हत्याकांड में बचा पाने की कोशिश तो कामयाब नहीं हो पा रही है, लेकिन गृहराज्य मंत्री टेनी को मोदी जी अब तक मंत्रिमंडल में बनाये हुए हैं। देखने की बात होगी कि जिस बेटे को मंत्री महोदय पूरी तरह निर्दोष बता रहे थे और सर्वोच्च न्यायालय के हस्तक्षेप के बाद ही जिसकी गिरफ्तारी हो पाई थी, उसके खिलाफ 4 किसानों और एक पत्रकार की जीप से रौंदकर बर्बर हत्या का चार्ज फ्रेम होने के बाद भी वे केंद्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफा देते हैं अथवा मोदी जी उन्हें हटाते हैं या नहीं। UP विधानसभा चुनाव के खास स्थानीय समीकरणों में भले ही इसका बहुत असर न दिखा हो, लेकिन लोकसभा चुनाव 2024 में भाजपा के लिए अजय मिश्रा टेनी को वहां से फिर उम्मीदवार बनाना और जिताना आसान नहीं होगा।

ज्ञातव्य है कि तब मंत्री महोदय ने 2 दिन में किसानों को " ठीक " कर देने की धमकी दी थी, उसी के चंद दिनों के अंदर उनके बेटे ने इस जनसंहार को अंजाम दिया था, जिसे अब कोर्ट ने भी मान लिया है और आरोप तय कर दिए हैं।

अजय मिश्रा टेनी को मोदी द्वारा अब तक मंत्रिमण्डल में बनाये रखना किसानों के स्वाभिमान को आहत करने वाला और उन्हें मुँह चिढ़ाने जैसा है। यह किसानों की शहादत का अपमान है। जाहिर है इसे लेकर एक साल बीत जाने के बाद भी किसानों में भारी आक्रोश मौजूद है।

मोदी सरकार किसान-आंदोलन को बांटने और बरगलाने में लगी है। आज किसान नेतृत्व के सामने सबसे बड़ी चुनौती अपनी एकता को पुनर्स्थापित करने तथा MSP को केन्द्र कर बड़ी लड़ाई छेड़ने की है, ताकि 2024 के निर्णायक संग्राम के पहले यह राष्ट्रीय राजनीति का प्रमुख एजेंडा बन जाय। हमारे देश और लोकतन्त्र को बचाने के लिए आज यह किसान-आंदोलन का राष्ट्रीय दायित्व है।

(लेखक इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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