संयुक्त किसान मोर्चा ने राष्ट्रपति मुर्मू को दिए ज्ञापन में दल्लेवाल की जान बचाने और एमएसपी पर चर्चा करने की मांग की

एसकेएम के आह्वान पर किसान संगठनों ने एमएसपी पर कानूनी गारंटी की मांग और अनशनकारी नेता जगजीत सिंह दल्लेवाल के साथ एकजुटता दिखाते हुए सोमवार, 23 दिसंबर, 2024 को पूरे देश में विरोध प्रदर्शन किया।
नई दिल्ली: किसान नेता जगजीत सिंह दल्लेवाल के आमरण अनशन के प्रति “निरंतर उदासीनता” और देश भर में किसानों के “लगातार उत्पीड़न” पर अपना असंतोष ज़ाहिर करते हुए किसानों के मंच संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) से जुड़े हजारों किसान सोमवार को सड़कों पर उतर आए।
भारतीय किसान यूनियन (सिद्धूपुर) के अध्यक्ष दल्लेवाल एमएस स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों के अनुसार न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) तय करने और सरकारी बैंकों और निजी साहूकारों से एकमुश्त कर्ज़ माफी दिलाने के लिए सरकार पर दबाव बनाने के लिए 28 दिनों से आमरण अनशन कर रहे हैं। इसके साथ एकजुतता जताते हुए सोमवार को आंध्र प्रदेश, ओडिशा, पंजाब, हरियाणा, केरल, तमिलनाडु से लेकर कश्मीर और उत्तराखंड तक में व्यापक विरोध प्रदर्शन की खबरें आईं हैं।
उत्तर प्रदेश के ग्रेटर नोएडा में कथित तौर पर फ़र्जी एफ़आईआर दर्ज किए जाने और गिरफ़्तारियों को लेकर भी किसान संगठन नाराज़ हैं, जहाँ वे आवासीय सोसाइटियों और उद्योगों के लिए खरीदी गई ज़मीन के बदले दिए गए 10 फीसदी आवासीय भूखंडों के विकास की माँग कर रहे हैं। प्रदर्शनकारी किसानों ने कृषि विपणन पर राष्ट्रीय नीति रूपरेखा के मसौदे की एक प्रति भी जलाई, जिसके बारे में उनका आरोप है कि यह “निरस्त किए गए कृषि क़ानूनों को पिछले दरवाजे से लाने की चाल है।”
हिमाचल प्रदेश के मंडी के जोगिंदरनगर में प्रदर्शनकारी किसानों में शामिल कुलदीप सिंह ने न्यूज़क्लिक को फोन पर बताया कि उन्होंने मंडी के खंड विकास अधिकारी के ज़रिए भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को एक ज्ञापन सौंपा और प्रस्तावित कृषि विपणन नीति का मसौदा जलाया।
"हमने दिल्ली की सीमाओं पर एक साल तक संघर्ष किया और 750 किसानों की शहादत ने नरेंद्र मोदी सरकार को तीन काले कृषि कानूनों को निरस्त करने के लिए मजबूर किया। अब, यह नीति हमारे उत्पादों को उचित मूल्य के बिना निजी व्यापारियों को हस्तांतरित करना चाहती है। नीति दस्तावेज में एमएसपी शब्द का उल्लेख तक नहीं है। इसी तरह, इसने अनुबंध खेती की सिफारिश की है।"
प्रदर्शनकारी किसान कृषि विपणन पर राष्ट्रीय नीति रूपरेखा के मसौदे की प्रतियां जलाते हुए।
किसान संगठन भी इस बात से नाराज हैं कि ऐसी महत्वपूर्ण नीति के निर्माण में परामर्श नहीं किया गया, क्योंकि यह नीति लाखों किसानों और उनके परिवारों की आजीविका से जुड़ी हुई है।
एसकेएम ने कहा कि, ये विरोध प्रदर्शन केंद्र सरकार को एमएसपी को कानूनी ढांचे में लाने के तरीके तैयार करने के अपने वादे की याद दिलाने के लिए किया जा रहा है। जहां कुछ किसान संगठन राज्य एजेंसियों के माध्यम से उपज की पूरी खरीद के लिए दबाव डाल रहे हैं, वहीं अन्य एमएसपी से नीचे उपज खरीदने के लिए दंडात्मक शुल्क चाहते हैं।
केंद्र ने अपने सचिव (किसान कल्याण) संजय अग्रवाल के ज़रिए एसकेएम को आश्वासन दिया था कि वह केंद्र और राज्य सरकारों के प्रतिनिधियों, कृषि वैज्ञानिकों और विभिन्न यूनियनों के किसान नेताओं को शामिल करके एक समिति का गठन करेगी, जिसे एमएसपी को लागू करने के तरीके विकसित करने का अधिकार होगा।
अग्रवाल के 9 दिसंबर, 2021 के सर्कुलर में यह भी उल्लेख किया था कि केंद्र सरकार सैद्धांतिक रूप से ऐतिहासिक किसान संघर्ष में भागीदारी के लिए अपनी एजेंसियों द्वारा दर्ज आपराधिक मामलों को वापस लेने पर सहमत हो गई है और वह राज्य सरकारों से भी मामले वापस लेने की अपील करेगी। केंद्र ने किसानों को यह भी आश्वासन दिया है कि वह बिजली संशोधन अधिनियम में किसानों को प्रभावित करने वाले प्रावधानों पर चर्चा करेगी।
हालांकि, शून्य बजट खेती पर समिति में एसकेएम को सरकार के निमंत्रण को मोर्चा नेताओं ने ठुकरा दिया, जिन्होंने आरोप लगाया कि समिति के बहुमत सदस्यों ने ‘काले’ कृषि कानूनों का समर्थन किया था।
एमएसपी क्यों महत्वपूर्ण है?
किसान संगठनों का कहना है कि कृषि लागत और मूल्य आयोग (सीएसीपी), जो किसानों से फसल खरीदने के लिए एमएसपी की घोषणा करता है, वह बीज, उर्वरक, शाकनाशी, कीटनाशक, डीजल और कटाई की इनपुट लागत की गणना के लिए गलत पद्धति का इस्तेमाल कर रहा है। जबकि सीएसीपी ने ए2+एफएल फॉर्मूला का इस्तेमाल किया है, किसान उपज पर उचित रिटर्न के लिए सी2+50 फीसदी मुनाफे की मांग कर रहे हैं। ए2 में उर्वरक, कीटनाशक, शाकनाशी और डीजल जैसी प्रमुख लागतें शामिल हैं और एफएल का मतलब है अवैतनिक पारिवारिक श्रम। सी2 व्यापक लागतों को संदर्भित करता है जिसमें पारंपरिक लागतों के अलावा भूमि पर किराया और छूटे हुए ब्याज को भी शामिल किया जाता है।
दल्लेवाल के अनशन और बिगड़ते स्वास्थ्य पर, एसकेएम नेताओं ने कहा है कि किसी भी अप्रिय घटना की स्थिति में पूरी जिम्मेदारी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान और हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी पर होगी।
एक बयान में, एसकेएम कोर टीम के सदस्य दर्शन पाल ने कहा कि, “किसानों और खेत मजदूरों के सामने आने वाले तीव्र संकट पर चर्चा करने के बजाय, एनडीए-3 सरकार नई राष्ट्रीय कृषि बाजार नीति और डिजिटल कृषि मिशन, राष्ट्रीय सहयोग नीति के ज़रिए, कृषि उद्योग और सेवाओं पर हमला कर रही है, चार श्रम कोड और वैन नेशन वन इलेक्शन लागू कर रही है जो राज्य सरकारों के संघीय अधिकारों को खत्म कर ‘कॉर्पोरेट मुनाफाखोरी के लिए एक राष्ट्र एक बाजार’ के कॉर्पोरेट एजेंडे को सुविधाजनक बनाने के लिए है।
राष्ट्रपति को ज्ञापन
एसकेएम नेताओं द्वारा राष्ट्रपति को सौंपे गए ज्ञापन में कहा गया है कि, "यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी किसान संगठनों के साथ चर्चा करने को तैयार नहीं हैं। इसके बजाय, पंजाब के शंभू और खनूरी बॉर्डर और उत्तर प्रदेश के नोएडा-ग्रेटर नोएडा में किसानों के संघर्ष को बेरहमी से दबाने के प्रयास किए जा रहे हैं, जिसमें आंसू गैस के गोले, रबर की गोलियां, पानी की बौछारें और शांतिपूर्ण प्रदर्शन और धरना देने वाले सैकड़ों किसानों को जेल में डालना शामिल है।"
इसने आगे उल्लेख किया कि गौतम बुद्ध नगर में, 4 दिसंबर, 2024 की एफआईआर संख्या 0538 से पता चला है कि पुलिस कमिश्नरेट ने एक पुलिस सब-इंस्पेक्टर की हत्या के प्रयास में भारतीय नागरिक न्याय संहिता की धारा 109 के तहत 112 किसानों को झूठे आरोपों में फंसाया था...। इसमें कहा गया है, "किसान पिछले 21 दिनों से जेल में हैं।"
ज्ञापन में यह भी कहा गया है कि "नई राष्ट्रीय कृषि बाजार नीति कॉरपोरेट एजेंडे की रणनीति का हिस्सा है, जो पिछले दरवाजे से तीन कृषि कानूनों को फिर से लागू करने की इज़ाजत देती है। पिछले दो वर्षों में पंजाब और हरियाणा में एपीएमसी मंडियों में खरीद को विफल करने, खाद्य सब्सिडी पर नकद हस्तांतरण को बढ़ावा देकर एफसीआई को खत्म करने, पिछले तीन वर्षों में खाद्य सब्सिडी में 60,470 करोड़ रुपये और उर्वरक सब्सिडी में 62,445 करोड़ रुपये की कटौती करने के किए गए सचेत प्रयास, सीमित एमएसपी और देश की खाद्य सुरक्षा की मौजूदा प्रणाली पर कॉरपोरेट हमले हैं।"
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