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देश में क्यों इतनी तेजी से घट रही है हाथियों की संख्या?

1980 के दशक तक एशिया में लगभग 93 लाख हाथी थे, लेकिन अब केवल 50 हजार बचे हैं। क्यों?
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प्रतीकात्मक तस्वीर विकिपीडिया से।

मानवीय गतिविधियों में बढ़ोतरी और अतिक्रमण के कारण वन संसाधनों में लगातार कमी आ रही है। इसके चलते वन्य जीव-जंतुओं की संख्या और उनके आवासीय क्षेत्र भी प्रभावित होते जा रहे हैं। एशियाई हाथी भी इससे बच नहीं सके हैं। पिछले कुछ दशकों में एशियाई हाथियों का आवास भी कम हुआ है। वहीं, हाथी-दांत के लिए भी हाथियों का बड़े पैमाने पर शिकार किया जा रहा है।

मुख्य तौर पर इसे उनकी संख्या के तेजी से घटने के पीछे की वजह बताया जा रहा है। इसके अलावा रेल दुर्घटना के कारण भी बड़ी तादाद में हाथी मारे जा रहे हैं। इन सबके बावजूद, हाथियों की संख्या का लगातार घटना यह दर्शाता है कि हम उनके प्रति संवेदनशील नहीं हैं और शिकार से लेकर दुर्घटना को कम करने जैसे कारकों पर लगाम लगाने में नाकाम साबित रहे हैं।

यही वजह है कि 1980 के दशक तक एशिया में लगभग 93 लाख हाथी थे, जो अब घट कर महज 50 हजार रह गए हैं। इसलिए, हाथी जैसे सहज उपलब्ध होने वाले प्राणी को भी 'इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर' की रेड लिस्ट में शामिल किया गया है।

असम से महाराष्ट्र तक पहुंचे हाथी

कहा जाता है कि महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, गोवा और मध्य प्रदेश में जहां हाथियों का आतंक हैं और मनुष्य व हाथियों के बीच संघर्ष को देखा जा रहा है, वह स्थान हाथियों के लिए पारंपरिक क्षेत्र नहीं थे। लेकिन, पिछले 15 वर्षों में दो राज्यों महाराष्ट्र और गोवा में खासी संख्या में हाथी आ गए हैं। गौर करने वाली बात यह है कि बांदीपुर, मुदुमलाई, वायनाड, नागरहोले से हाथी इंसानों की बस्ती में आए हैं।

हाल ही में कुछ महीने पहले महाराष्ट्र में कई सारे हाथी आए, जब इनके बारे में शोध किया गया तो पता चला कि ये असम से महाराष्ट्र तक पहुंचे हैं। जानकर हैरानी हो सकती है कि ये हाथी कोल्हापुर में आजरा-चंदगड होते हुए खानापूर, कनकुंभी व जांबोटी और डोडा मार्ग होते हुए वन क्षेत्र में आए। बता दें कि हाथी पहली बार अक्टूबर 2002 में डोडा मार्ग से गोवा से सटे सिंधुदुर्ग जिले में पहुंचे थे।

हाथियों के प्रवास के क्या कारण हैं?

सवाल है कि हाथियों के प्रवास के कारण क्या हैं? उदाहरण के तौर पर दक्षिण भारत की स्थिति को देखें। वहां के जंगलों में बड़ी संख्या तक हाथी पाए जाते हैं। लेकिन, विगत कुछ समय से दक्षिण भारत के जंगलों में घनेणी और रानमोडी जैसी वनस्पतियों की अत्यधिक कमी हो गई है। इसके कारण हाथियों और अन्य शाकाहारी जीवों के लिए प्राकृतिक भोजन की भी कमी हो गई है।

यही हाल जल-संकट का भी नजर आता है। भोजन और पानी के लिए नए क्षेत्र खोजना हाथियों का स्वभाव है। दूसरी तरफ, महाराष्ट्र का कोंकण बेल्ट में सिंधुदुर्ग जिला और पश्चिमी महाराष्ट्र के कोल्हापुर जिले में आजरा-चंदगड वन संसाधनों के मामले में समृद्ध हैं। लिहाजा, हाथी नए आवास की तलाश में पलायन कर रहे हैं, क्योंकि हाथियों के कई पारंपरिक आवास में वन संसाधनों में कमी देखी गई है।

हाथियों पर पड़ रही विकास की गाज

एशियाई हाथियों की संख्या में तेज गिरावट का मुख्य कारण उनके आवासीय क्षेत्र का लगातार सिकुड़ता जाना है, विकास योजनाओं के कारण उनके रहने के ठिकाने तेजी से नष्ट हो रहे हैं। एशिया के कुछ हिस्सों में हाथी-दांत के लिए हाथियों का व्यापक रूप से शिकार किया जाता है। नतीजा यह हुआ है कि उनकी संख्या दिन-ब-दिन घटती जा रही है।

दूसरा, हाथियों के अधिकांश आवासों से रेलमार्गों का जाल बिछ चुका है। हालांकि, कई पर्यावरणविद इन रूटों पर ट्रेनों की संख्या को कम करने की मांग कर रहे हैं। लेकिन, यह मांग पूरी होती संभव नहीं दिख रही है कि ट्रेनों की संख्या और उनकी गति को बढ़ाने के लिए आमतौर नागरिकों की मांगों को अधिक प्राथमिकता दी जाती रही है। वहीं, लापरवाही के कारण ट्रेन की टक्कर में हाथियों की मृत्यु-दर का आंकड़ा बढ़ता ही जा रहा है।

बिजली के तारों से हो रही मौतें

इसके अलावा, हाथियों के घटने का तीसरा कारण बताया जा रहा है बिजली के तारों से उलझ कर हादसे का शिकार होना। यही कारण है कि आंकड़े से यह बता सामने आई है कि गए कुछ वर्षों में हाथियों की ज्यादातर मौतें बिजली के झटके से हो रही हैं, क्योंकि ज्यादातर जंगली जगहों पर बिजली पहुंच तो गई है, लेकिन वहां अमूमन बिजली के तार लटके रहते हैं। इस तरह की लापरवाही का परिणाम यह होता है कि जब कभी कोई हाथी इन बिजली के तारों को छू लेता है तो करंट से उसकी मौत हो जाती है।

हालिया अनुभव बताते हैं कि जब से वनों के संसाधनों में कमी आई है और हाथियों के आवास प्रभावित हुए हैं, तब से हाथी बसाहट और खेतों की ओर कूच कर रहे हैं। इस दौरान वे किसानों की खेतों में लगी फसल को ज्यादा नुकसान पहुंचा रहे हैं। कई किसान और ग्रामीण हाथियों से अपनी फसल को बचाने के लिए बचाने के लिए बिजली के तारों का इस्तेमाल कर रहे हैं। इसके कारण कई बार हाथी बिजली के तारों के करंट से मारे जा रहे हैं। बता दें कि पिछले दस वर्षों में अकेले बिजली के झटके से भारत में लगभग 482 हाथियों की मौत का आंकड़ा सामने आया है।

भारत में हाथियों की संख्या कितनी?

केंद्रीय पर्यावरण, वन व जलवायु परिवर्तन विभाग द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक भारत में करीब 27,312 हाथी हैं। अहम बात यह है कि यह दुनिया की हाथियों की आबादी का लगभग 55% है। इससे जाहिर होता है कि भारत में हाथियों का एक बड़ा आवास क्षेत्र है। इस लिहाज से देश के लिए यह गर्व की बात होनी चाहिए।

ऐसे में कोशिश तो यही होनी चाहिए कि हम न सिर्फ वन संसाधनों में बढ़ोतरी को वरीयता दें, बल्कि हाथियों के आवासों को भी सुरक्षित रखें और उनकी संख्या को बढ़ाने के लिए कारगर योजनाओं को अमलीजामा पहनाएं, लेकिन हकीकत यह है कि इस समस्या की ओर अब तक कम ध्यान दिया गया है। आंकड़े बताते हैं कि भारत के 27 हजार से अधिक हाथी 15 राज्यों में 29 हाथी अभयारण्यों और दस हाथियों के रहवासी स्थलों से आते हैं। जाहिर है कि हमारे पास हाथियों के अनुकूल आवासीय क्षेत्र उपलब्ध हैं, इसलिए इनके संरक्षण की नीति बनाने में आसानी होगी।

'प्रोजेक्ट हाथी' की स्थिति क्या है?

पूरे देश में बाघों की संख्या को लेकर भी चर्चा होती रहती है और उनके संरक्षण से लेकर संवर्धन तक के प्रयास हो रहे हैं, लेकिन सरकारी रिकार्ड के मुताबिक बाघों की संख्या में मामूली बढ़ोतरी देखी गई है, जबकि हाथियों की संख्या में लगातार कमी आ रही है।

इसके पीछे हाथी-दांत की तस्करी पर रोक न लगा पाने के कारण पर्यावरणविद और वन्यजीव संरक्षण के मुद्दे पर कार्य कर रहे कार्यकर्ता समय-समय पर प्रशासन को घेरते रहे हैं। वहीं, देखा गया है कि 65 हजार वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैले हाथियों के लिए 29 संरक्षित क्षेत्र में भी हाथी कई दूसरी चुनौतियों का भी सामना कर रहे हैं। सरकार ने कुछ साल पहले प्रोजेक्ट 'हाथी परियोजना' को हाथ में लिया था। यह एक अच्छी पहल थी। इसमें हाथियों के आवास की सुरक्षा का मुद्दा भी शामिल था। हालांकि, हाथियों के आवास की वर्तमान स्थिति को देखते हुए, यह स्पष्ट नहीं हो पा रहा है कि इस परियोजना से अब तक क्या हासिल हुआ? 

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