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हर दिन हमें जकड़ रहा है मीम्स का शिकंजा

देखते ही देखते मीम्स का चस्का ऐसा बढ़ चुका है कि इंटरनेट पर जारी यह मीम्स एशिया भर में सबसे प्रभावी डिजिटल मार्केटिंग रणनीतियों में से एक बन गए हैं।
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बात नवंबर 2017 की है। कांग्रेस की एक ऑनलाइन पत्रिका में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर एक मीम छपता है। इसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ उस समय के अमरीकी प्रेजिडेंट डोनाल्ड ट्रम्प और ब्रिटेन की प्रधानमंत्री थेरेसा मे मौजूद हैं। मीम में उनके ‘चाय वाला’ होने पर तंज़ किया जाता है। इस मुद्दे पर होने वाले विवाद के बाद पत्रिका से मीम डिलीट कर दिया जाता है। व्यंग इतना अपमानजनक था कि आईएनसी के जनरल सेक्रेटरी रणदीप सिंह सुरजेवाला बाक़ायदा इसका खंडन करते हैं। तक़रीबन पांच वर्षों बाद भी आज ये मीम जब तब सोशल मीडिया पर तैरता नज़र आ जाता है। इतना ही नहीं आम जनता के फ़ोन की फोटो गैलरी से लेकर ट्वीटर पर समाचार के तौर पर आज भी ये मीम मौजूद है।

देखते ही देखते मीम्स का चस्का ऐसा बढ़ चुका है कि इंटरनेट पर जारी ये मीम्स एशिया भर में सबसे प्रभावी डिजिटल मार्केटिंग रणनीतियों में से एक बन गया है। पूरी दुनिया में विशेष रूप से एशिया में इस क्षेत्र होने वाली वृद्धि हैरान करती है। आंकड़ों के अनुसार जनवरी 2018 में दक्षिण पूर्व एशिया में डिजिटल क्षेत्र फलफूल रहा था, जिसमें 370 मिलियन इंटरनेट उपयोगकर्ता ज्यादातर आसियान देशों, जैसे इंडोनेशिया, थाईलैंड, सिंगापुर, फिलीपींस और वियतनाम में पाए गए। रिकॉर्ड बताते हैं कि इन देशों में 70 से 90 प्रतिशत आबादी अब नियमित रूप से इंटरनेट का उपयोग करती है। एक अनुमान के मुताबिक़ 2025 तक यह दक्षिण पूर्व एशिया के डिजिटल बाजार की वैल्यू लगभग 197 बिलियन डॉलर हो जाएगी। ऐसे में डिजिटल मार्केट का ध्यान तेजी से दक्षिण पूर्व एशिया की तरफ होना कोई आश्चर्य की बात नहीं है। इस शौक़ को बरक़रार रखने के लिए  कंपनियां अब और अधिक प्रभावी डिजिटल मार्केटिंग रणनीति के विकास को बढ़ावा देंगी, जिनमे मीम का उपयोग चारे की हैसियत रखेगा।

ये आंकड़े मीम की ताकत का पुरजोर समर्थन करते हैं। डिजिटल मार्केटिंग में इंटरनेट मीम कल्चर ने एक नए और शक्तिशाली युग की शुरुआत की है। मीम की मदद से किसी भी उत्पाद या घटना को लोकप्रियता के दायरे में लाकर वायरल करना बड़ा ही आसान नुस्ख़ा है। किसी भी घटना को महज़ तंज़ या मज़ाक से जोड़ कर जहां मीम एक ओर बड़ी ही सरलता और हल्केपन के साथ अपनी बात कह देते हैं वहीं इसका पैनापन एक क्षेत्र विशेष में आपको स्मार्ट और समय के साथ अपग्रेड होने का एहसास दिलाता है। नतीजे में आप इस मीम के संसार का हिस्सा बन जाते हैं और इससे प्यार करने लगते हैं। छोटे मैसेज के साथ चलन में आयी कट टू कट भाषा से भी छोटा और पैना ये माध्यम आपका चस्का बनता चला जाता है। हर अवसर पर, चाहे वो चुनाव के नतीजे हों, किसी खिलाड़ी का हारना हो या किसी दंगे पर प्रतिक्रिया, अब त्वरित टिप्पणी या वीडियो एनालिसिस से पहले ही उसके मीम अपनी भाषा में आप तक पहुंच कर अपना काम कर जाते हैं।

एक रिसर्च के दौरान शोधकर्ताओं ने अलग अलग विषयों से सम्बंधित दस मिलियन मीम्स का जायज़ा लिया। औसतन 20-30 मीम्स हमारी निगाहों से हर दिन गुज़रते हैं। शोध का खुलासा बताता है कि जिस मार्केटिंग में फेसबुक और इंस्टाग्राम से 5 प्रतिशत लोगों तक पहुँच मुमकिन थी, वहीं मीम्स की मदद से ये आंकड़ा 10 गुना बढ़कर 60 फीसद हो जाता है। यक़ीनन ये एक अतुलनीय माध्यम है।

इस सम्बन्ध में एक हेल्थ केयर इंडस्ट्री से भी मिलने वाले आंकड़े मीम का सशक्त माध्यम होने की दावेदारी करते हैं। उनका कहना है कि आम तरीके से ई-मेल के ज़रिये की गई मार्केटिंग जहां अपनी पहुंच 6 प्रतिशत दर्ज कराती है, वहीँ मीम्स के साथ ये क्लिक 14 प्रतिशत पहुँच जाता है। मीम कल्चर के प्रयोग से कम्पनी की सेल्स टीम को अच्छा फीडबैक मिलता है और उपभोक्ता में अगले मीम के इन्तिज़ार की इच्छा पैदा करता है। उससे भी ख़ास बात ये है कि कि कंपनी के लिए इसका क्रिएशन कहीं आसान होता है। कम्पनी की मार्केटिंग टीम के वेब डिज़ाइनर सम्बंधित मीम में कम्पनी का लोगो लगा देते हैं और जैसे जैसे में मीम वाइरल होता है कम्पनी का कपनी का ब्रांड भी उसी रफ़्तार से फैलता है।

वैसे तो मीम का अस्तित्व करीब साढ़े चार दशक पुराना है मगर सोशल मीडिया के ज़माने में इसने क्रिएटिविटी और हाज़िरजवाबी की जो ऊंचाइया छुई हैं, उसने भी नित नए आयाम रचे हैं। आज अगर आपके पास एक स्मार्ट फ़ोन है और दिमाग़ में कुलबुलाता कोई शरारती विचार तो आप खुद भी मीम निर्माता बन जाते हैं। इसका नतीजा ये हुआ है कि कि सोशल मीडिया की दुनिया में मीम का एक सैलाब है और इसमें ग़ोता लगाने वालों का एक हुजूम।

आम तौर पर मीम व्यंग का वह माध्यम है जिसमे किसी तस्वीर या छोटी सी वीडियो के सहारे बड़े ही चुटीले अंदाज़ में बात की जाती है। क्योंकि ये इंटरनेट पर शेयर किया जाता है तो देखते ही देखते इसके असंख्य शेयर और दुनिया के किसी भी कोने तक इसकी पहुंच मुमकिन हैं। मीम शब्द को अस्तित्व में लाने का श्रेय रिचर्ड डॉकिन्स को जाता है। 26 मार्च 1941 में केन्या में जन्मे रिचर्ड ब्रिटिश विकासवादी जीवविज्ञानी और लेखक होने के साथ आस्तिक हैं। 1995 से 2008 तक ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में पब्लिक अंडरस्टैंडिंग ऑफ़ साइंस के प्रोफ़ेसर रहे रिचर्ड डॉकिन्स ने आलोचना और सृजन के क्षेत्र में ख्याति पाई है। मीम शब्द का सबसे पहले प्रयोग रिचर्ड डॉकिन्स ने 1976 में अपनी किताब 'द सेल्फिश जीन' में किया था। रिचर्ड ने ये शब्द प्राचीन ग्रीक शब्द मिमेमे  (mimeme= something imitated) से लिया था जिसका अर्थ होता है ‘नक़ल किया हुआ’।

द सेल्फिश जीन में रिचर्ड डॉकिन्स लिखते हैं - 'इंसान के बारे में जो कुछ भी असामान्य है उसका खुलासा मात्र एक शब्द में किया जा सकता है और वह है 'संस्कृति'। डॉकिन्स इस शब्द का और छोटा स्वरूप चाहते थे और इस तरह से ये मीमेम से मीम बन गया। मीम का स्पष्टीकरण करते हुए डॉकिन्स कहते हैं कि मीम केवल एक विचार है जो फैशन या तकियाकलाम से लेकर मेहराब बनाने की विधि तक कुछ भी हो सकता है।

किसी भी आम या ख़ास बात को हास्यास्पद या व्यंग्यात्मक तरीके से प्रस्तुत करने के लिए मीम में फ़ोटो या वीडियो का प्रयोग किया जाता है। इसमें कोई कैरेक्टर या पंच लाइन होती हैं। मीम का संसार इतना व्यापक है कि अभी तक इसका कोई स्पष्ट  वर्गीकरण देखने को नहीं मिला है। मगर इस बाद की भी अनदेखी नहीं की जा सकती कि इनकी कुछ सब-कैटेगरीज़ हो सकती हैं। जैसे पारंपरिक मीम्स में किसी फोटो या वीडियो क्लिप को शामिल कर सकते हैं, जिसमे आम तौर पर सम्बंधित टेक्स्ट होता है। संदर्भ-रहित और मज़ाक उड़ाने वाले मीम डेंक मीम कहलाते हैं। इनमे उन हास्य मटीरियल को शामिल कर सकते हैं जिनमे किसी पुराने या घिसे पिटे मीम को बार बार प्रयोग करते हुए उसे जिलाये रखा जाता है। वीडियो पर किसी एक पल को महत्व देते हुए आवाज़ को विकृतकर देना भी मीम है।

चूंकि मीम्स अक्सर वर्तमान घटनाओं की एक हास्यास्पद व्याख्या होते हैं, मीम ह्यूमर असंवेदनशील अथवा आमाजिक रूप से अनुचित हो सकते हैं। मीम ह्यूमर अकसर मूर्खतापूर्ण या बिलकुल बेवकूफ़ी भरे हो सकते हैं, जिनमें इनका मक़सद ये होता है कि मीम का हास्यास्पद होना ही उनको मनोरंजक बनाएगा।

मीम बनाने के लिए किसी कागज़ी करवाई या अप्रूवल की ज़रूरत नहीं होती और आज तमाम ऐसे टूल या ऐप मौजूद हैं जिनकी मदद से कम से कम जानकारी रखने वाला भी अपनी चतुराई से कुछ न कुछ शाहकार बना ही डालता है। इस बंधन मुक्त क्रिएशन का नतीजा ये होता है कि अकसर हमारे सामने कुछ ऐसे मीम भी आ जाते है जिन्हे आप बेदर्द केटेगरी में रखने को मजबूर हो जाते हैं। इन असंवेदनशील मीम्स के उदाहरण भी हमें समय समय पर देखने को मिल ही जाते हैं। हंसाने, गुदगुदाने या भावुक बनाने वाले इन मीम्स की रफ़्तार और प्रभाव बहुत ही तेज़ है, जबकि इनके अच्छे या बुरे प्रभावों से सम्बंधित कुछ भी दूर दूर तक नज़र नहीं आता। इन मीम्स को बनाने के लिए मीम जेनेरेटर ऐप किसी भी फ़ोन में डाउनलोड करते हुए उसके ज़रिए पैसे कमाना भी चलन में है। जहां हर पल बिना रोक टोक के किसी भी विचार को वाइरल किये जाने की सुविधा है। ऐसे में इन मीम्स और उनसे जुड़े प्रभावों पर बड़े पैमाने पर शोध किये जाने की ज़रूरत है। कहीं ऐसा न हो कि मौज मस्ती की गरज़ से देखा जाने वाला ये मीम मार्केट का लबादा पहनकर हमारे हवासों पर कब्ज़ा जमाने की साज़िश में कामयाब हो जाए और हमें खबर भी न हो। 

(लेखिका स्वतंत्र पत्रकार हैं। यह उनके के निजी विचार हैं।)

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