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Exclusive: "शेरपुरिया महाठग है तो मनोज सिन्हा ने उससे क़र्ज़ क्यों लिया?" संजय राय का आरएसएस के भागवत और ‘दिव्यदर्शी मोदी’ से क्या है कनेक्शन !

"सवाल यह उठना चाहिए कि अगर संजय राय शेरपुरिया महाठग है तो मनोज सिन्हा ने उससे क़र्ज़ क्यों लिया? ठग से महामहिम का आख़िर कैसा याराना? क्या ठग को अब तक संरक्षण देते रहे हैं मनोज सिन्हा? पर ये सवाल पूछेगा कौन? "
Sanjay Sherpuriya Rai
फाइल फ़ोटो।

उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल में संजय राय शेरपुरिया एक ऐसा नाम है जो हर किसी की जुबान पर है। इसके ऊपर करोड़ों रुपये की ठगी के आरोप हैं। यह शख्स इस वजह से भी सुर्खियों में है कि वह तस्वीरों में कहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह के साथ नजर आता है, तो कहीं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत, भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा, केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर, उप मुख्यमंत्री सीएम केशव प्रसाद मौर्य, ब्रजेश पाठक वगैरह के साथ। फकत हाईस्कूल पास इस व्यक्ति के नाम से कई किताबें छपी हैं। आरएसएस के सर संघचालक मोहन भागवत ने साल भर पहले संजय शेरपुरिया की किताब 'मैं माधो भाई, एक पाकिस्तानी हिंदू' का लोकार्पण करने गाजीपुर के मोहम्मदाबाद में आए थे। सत्ता के गलियारों में अपनी हनक का सिक्का चलाने वाला संजय शेरपुरिया फिलहाल एसटीएफ के शिकंजे में है। प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) भी उसके काले कारनामों की जांच कर रहा है।

उत्तर प्रदेश के अखबारों में संजय शेरपुरिया के बारे में प्रायः हर रोज नई-नई कहानियां सुर्खियां बन रही हैं। कोई इसे महाठग, चालबाज, फिक्सर बता रहा है तो कोई निर्दोष और बलि का बकरा? असम में जन्मे शेरपुरिया का असली नाम संजय प्रकाश राय है और उसकी जिंदगी की कहानी फिल्मों जैसी है। उसके पिता बालेश्वर राय असम में परचून की दुकान चलाया करते थे। उनके हालात बहुत खराब थे। शेरपुरिया के पास स्कूल की फीस देने तक के पैसे तक नहीं थे। इसके लिए वह हफ्ते में दो दिन कूड़ा बीनता था, जिसे बेचकर उसने अपने भाइयों की पढ़ाई कराई। वह खुद मुश्किल से दसवीं की पढ़ाई पूरी कर सका। मुंबई और अहमदाबाद के रेस्तराओं में उसने कभी वेटर, कभी सिक्योरिटी गार्ड और कभी ड्राइवर की नौकरी की। शेरपुरिया की ढेरों कहानियों में एक बिंदु पर हर कोई सहमत है कि उसकी किस्मत तब चमकी जब गुजरात के गांधीधाम के एक कारोबारी की बेटी कंचन से उससे आशिकी हुई। गुजरात के कच्छ स्थित गांधीधाम में एक मरीना होटल था, जहां वह वेटर के तौर पर काम करता था। होटल के मालिक थे सिप्पी सेठ और उनकी बेटी थी कंचन सिप्पी। कंचन बाद में कंचन राय बन गईं। शादी के बाद शेरपुरिया ने अपने ससुर के एक कीमती प्लाट को बैंक में गिरवी रखा। उस पर लोन लिया और बाद में डिफॉल्टर हो गया।

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, प्रेम विवाह करने के बाद संजय शेरपुरिया ने सबसे पहले देना बैंक से सात साल के लिए 90 हजार का लोन लिया। उसने फुटपाथ पर काम शुरू किया और फिर किराए की दुकान ली। इसके बाद उसने थोक विक्रेता का काम शुरू किया। बाद में पेट्रोलियम का धंधा चालू कर दिया। साथ ही अपने ससुर के कारोबार को भी संचालित करने लगा। दिन फिरे तो उसने कई बड़ी कंपनियां खड़ी कर ली और उसने देश के तमाम दिग्गज नेताओं से अपने सियासी रंग भी गाढ़े कर लिए। कुछ ही सालों में वह करोड़ों का लेन-देन करने लगा।

साल 2015 आते-आते संजय शेरपुरिया की गुजरात स्थित उसकी कई कंपनियां मुश्किल में पड़ गईं और उन्हें ब्लैकलिस्ट कर दिया गया, जिसमें कांडला एनर्जी एंड केमिकल्स लिमिटेड (केईसीएल) भी थी। रिपोर्ट के मुताबिक, शेरपुरिया स्टेट बैंक ऑफ इंडिया से कुल 349 करोड़ 12 लाख रुपये का लोन लिया और बैठ गया। बाद में उसे एसबीआई को डिफॉल्टर घोषित करना पड़ा। 31 दिसंबर 2022 तक उसकी फर्म का कुल बकाया 349.12 करोड़ से अधिक था।

सूत्र बताते हैं कि संजय की कंपनी का दफ्तर दुबई में भी था, जहां से वह अपना प्रोडक्ट साउथ कोरिया भेजता था। गेल इंडिया, आईओसीएल से वह बायो प्रोडक्ट मंगाता था और कांडला एनर्जी में पेट्रोलियम पदार्थ बनाकर स्थानीय बाजारों में बेचता था। उसकी गिरफ्तारी के बाद से दुबई का दफ्तर बंद है और कर्मचारी लापता हैं। करीब पांच बरस पहले भी गुजरात में उसके खिलाफ रपट दर्ज हुई थी, लेकिन वह बचने में कामयाब हो गया था।

कैसे हुई गिरफ्तारी

शेरपुरिया की कथित प्रेम कहानी का अंत शायद परीलोक की कहानियों जैसा होता, अगर यूपी पुलिस उसे गिरफ्तार नहीं करती। देश के ताकतवर लोगों के साथ अपनी निकटता का ढोंग करके व्यापारियों और नौकरशाहों को छलने वाले संजय शेरपुरिया को यूपी की एसटीएफ ने 25 अप्रैल 2023 को उस समय गिरफ्तार किया जब वह दिल्ली से गाजीपुर लौट रहा था। पुलिस ने उसे कानपुर रेलवे स्टेशन पर दबोच लिया और एसटीएफ के इंस्पेक्टर सचिन कुमार ने लखनऊ के विभूतिखंड थाने में उसके खिलाफ दफा 420, 467, 468, 469 और आईटी एक्ट की धारा 66 (डी) के तहत रिपोर्ट दर्ज कराई। संजय की गिरफ्तारी के बाद उसके बारे में इतने किस्से-कहानियां सामने आने लगे, जितना शायद दुनिया के मशहूर ठग नटवरलाल के बारे में भी नहीं सुने गए होंगे।

‘अमर उजाला’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, "संजय शेरपुरिया ने पांच कंपनियां बना रखी थी, जिनके जरिए उसने करोड़ों की हेरफेरी की। कांडला एनर्जी एंड केमिकल लिमिटेड के जरिए वह केमिकल और रसायनिक उत्पाद बेचता था। दूसरी कंपनी कच्छ एंटरप्राइज प्राइवेट लिमिटेड, तीसरी कंपनी काशी फार्म फ्रेश प्राइवेट लिमिटेड, चौथी कंपनी कांडला एंटरप्राइज प्राइवेट लिमिटेड और पांचवी कंपनी राय कॉर्पोरेशन लिमिटेड है। इन पांच कंपनियों के अलावा उसकी दर्जनों ऐसी शेल कंपनियां भी हैं, जिनमें संजय राय और उनकी पत्नी कंचन की हिस्सेदारी है। इनके जरिए भी उसने करोड़ों की हेरा-फेरी की थी। गिरफ्तारी के बाद शेरपुरिया के पास से एसटीएफ को दो आधार कार्ड बरामद हुए हैं। एक में नाम है संजय प्रकाश बालेश्वर राय और दूसरे में संजय शेरपुरिया। उसके पास से एक वोटर आईडी कार्ड और तीन मेंबरशिप कार्ड भी मिले हैं।"

कोर्ट ने भेजा जेल

पुलिस रिपोर्ट के मुताबिक, "संजय राय शेरपुरिया ने दिल्ली के एक नामी कारोबारी गौरव डालमिया से छह करोड़ रुपये इस बात के लिए ले रखे थे कि वह उसे केंद्रीय जांच एजेंसी ईडी (Enforcement Directorate) के केस से बाइज्जत बरी करा देगा। तयशुदा डील के तहत डालमिया ने शेरपुरिया के एनजीओ 'यूथ रूरल एंटरप्रेन्योर फाउंडेशन' (वाईआरईएफ) के यूनियन बैंक खाता संख्या 441501010250495 में 21 और 23 जनवरी 2023 को क्रमशः पांच करोड़ और एक करोड़ यानी कुल छह करोड़ रुपये जमा हुआ है। बैंक डिफ़ॉलटर होने के बाद वह दिल्ली और गाजीपुर में रह रहा था।"

पुलिस के मुताबिक, "शेरपुरिया की डालमिया से डील तय हुई थी कि वह शीर्ष राजनेताओं और नौकरशाहों के साथ अपने रसूख का इस्तेमाल करके ईडी के मामले को निपटा देगा। हालांकि डालमिया फ़ैमिली ट्रस्ट इन आरोपों को खारिज कर रही है और दावा कर रही है कि दान की राशि जनसेवा के मकसद से सीएसआर फंड (कॉर्पोरेट सामाजिक जिम्मेदारी) से संजय के एनडीओ को भेजी गई थी।"

संजय प्रकाश राय 'शेरपुरिया' को मनी लॉन्ड्रिंग के एक मामले में दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट ने 16 जून 2023 को 30 जून तक के लिए न्यायिक हिरासत में लखनऊ जेल भेजने का निर्देश दिया है। प्रवर्तन निदेशालय ने उसे दो जून को रिमांड पर लिया था। कोर्ट ने उसके दो वकीलों को लखनऊ जेल जाने की अनुमति मांगने वाली अर्जी खारिज कर दी थी। कोर्ट ने अपने दो जून 2023 के आदेश में कहा था कि यूपी पुलिस की प्राथमिकी ने राज खोला है कि आरोपी ने खुद को भारत के शीर्ष राजनेताओं और मंत्रियों के करीबी के रूप में चित्रित किया और डालमिया फैमिली ऑफिस ट्रस्ट से दान के रूप में वाईआरईएफ के खाते में कथित रूप से छह करोड़ रुपये ले लिए। प्रवर्तन निदेशालय ने हाल ही में शेरपुरिया के चार शहरों दिल्ली, बनारस, लखनऊ और गाजीपुर के ठिकानों पर छापेमारी की है। उसकी कंपनियों और उसके एनजीओ यूथ रूरल एंटरप्रिन्योर फाउंडेशन से जुड़े दस्तावेज भी बरामद किए हैं। इस बीच उसके कई साथी भूमिगत हो गए हैं, जिनके बारे में लखनऊ पुलिस और एसटीएफ टीम पता लगाने में जुटी है।

संजय राय कैसे बना शेरपुरिया

पुलिस की नजर में महाठग संजय राय शेरपुरिया के बारे में "न्यूजक्लिक" ने कई स्रोतों से जानकारी जुटाई। गाजीपुर का मूल निवासी संजय राय शेरपुर कला गांव का रहने वाला है। यहां आने के बाद उसने अपने नाम के आगे शेरपुर का नाम जोड़ लिया। दरअसल, आजादी के बलिदानियों की वजह से शेरपुर देश भर में मशहूर है। इसे स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के गांव के नाम से भी जाना जाता है। दैनिक हिन्दुस्तान के लिए कई सालों से मिशनरी पत्रकार के रूप में काम करने वाले खबरनवीश जयशंकर राय (61 साल) शेरपुर खुर्द के निवासी हैं। संजय राय के घर से इनका मजरा करीब दो किमी दूर है। बातचीत हुई तो उन्होंने शेरपुरिया का पूरा सजरा खोल दिया। वह कहते हैं, "संजय सिर्फ हाईस्कूल पास है। उसके पिता का नाम बालेश्वर राय है। कुल पांच भाइयों में सबसे बड़े हैं त्रिलोकी राय। फौज से रिटायर होने के बाद वह गुजरात में रहते हैं। दूसरे भाई ओम प्रकाश राय हैं, चंदौली के मुगलसराय में नौकरी करते हैं, जो पहले जमीनों की खरीद-फरोख्त का काम करते थे। तीसरे भाई रामप्रकाश राय ने गुजरात में ठिकाना बना रखा है। संजय शेरपुरिया चौथे नंबर का भाई है। सबसे छोटे भाई जयप्रकाश राय गुजरात में प्लाईवुड का काम करते है। पिता बालेश्वर राय और उनके छोटे भाई की असम में छोटी सी परचून की दुकान थी। नक्सली हमले में बालेश्वर के भाई की मौत हो गई। साल 1980 के दशक में उल्फा उग्रवादियों द्वारा राज्य में ‘बाहरी लोगों’ को निशाना बनाए जाने की घटना सामने आने के बाद बालेश्वर राय अपने गृहनगर गाजीपुर लौट आए। संजय राय की अपने पिता बालेश्वर राय के साथ कुछ खटपट हुई तो वह मुंबई चला गया। वहां सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी की और कुछ दिनों तक उसने एक होटल में वेटर का भी काम किया।"

पत्रकार जयशंकर कहते हैं, "मुंबई के बाद संजय गुजरात पहुंचा और वहां खुद को स्थापित करना शुरू कर दिया। काफी पैसा कमाने के बाद उसने गाजीपुर की ओर रुख किया। गाजीपुर से करीब 15 किलोमीटर दूरी पर करहेला गांव के पास सहेड़ी में उसने पांच बीघा जमीन खरीदी। वहां कोई फैक्ट्री लगाने की योजना थी। इस वाबत वहां एक भव्य कार्यक्रम आयोजित किया गया था, जिसमें कई सांसद, विधायक और मंत्री पहुंचे थे। गाजीपुर के कलेक्टर और कप्तान तो संजय के आगे-पीछे दौड़ लगा रहे थे। शेरपुरिया को फोटो खिंचवाने और उसके जरिये लोगों को प्रभावित करने की कला आती थी। रसूखदार लोगों के साथ फोटो खिंचवाने के लिए वह कुछ भी करने के लिए तैयार रहता था। दरअसल, वह बहुत शो ऑफ करता था। इसी खेल से उसने कई राज्यों के गर्वनर से अपने रिश्ते गांठ लिए थे। कई राजभवनों में उसका बेरोक-टोक आना-जाना था। इसके खेल और तिकड़म का अंदाज इस बात से भी लगाया जा सकता है कि हाईस्कूल पास इस शख्स को यूरोप की यूरो एशियन यूनिवर्सिटी ने डाक्टरेट की मानद उपाधि भी दे रखी थी। ग्रामीण अर्थव्यवस्था और युवा सशक्तीकरण के लिए वर्ल्ड रिकॉर्ड से भी सम्मानित किया गया था।"

"अपना सिक्का चलाने के लिए उन्होंने दो साल पहले श्रृंगेरी मठ के शंकराचार्य को गाजीपुर बुलाया था। इस मौके पर आयोजित रंगारंग कार्यक्रम में सांसद मनोज तिवारी और भोजपुरी गायक पवन सिंह ने गाने गाए थे। अखिल गायत्री विश्व परिवार के तत्वाधान में आयोजित एक कार्यक्रम में देव संस्कृति विश्वविद्यालय के प्रति कुलपति डॉ. चिन्मय पांड्या गाजीपुर आए तो मंच साझा करने के लिए शेरपुरिया ने खूब जोड़-तोड़ की। बात नहीं बनी तो उसने आयोजकों को एक लाख रुपये नकद चंदा दिया और उनके साथ बैठने, सम्मानित होने व फोटो सेशन कराने में कामयाब हो गया। संजय ने कुछ अच्छे काम भी किए, लेकिन उसके पीछे प्रसिद्धी बटोरने की मंशा थी। करीब साल भर पहले उसने मोहम्मदाबाद इंटर कॉलेज में रोजगार मेले का आयोजन कराया, जिसमें कई कंपनियों ने सैकड़ों लड़कों को रोजगार के लिए चुना था। कुछ लोगों को लगता है कि वह केंद्र और यूपी सरकार की राजनीति का शिकार हुआ। उसे सुनियोजित षड्यंत्र के तहत फंसाया गया है। लेकिन सच क्या है, कहा नहीं जा सकता।"

जयशंकर यह भी बताते हैं, "वह फोटोग्राफ और अपने लुभावने ट्रिक से लोगों को अपनी तरफ आकर्षित करता था। कोरोना के समय उसने इलाके के एक प्रभावशाली व्यक्ति से पैसे लेकर लकड़ी बैंक बनाया और खूब शोहरत बटोरी। यही नहीं, शेरपुर में उसने वॉलीबाल खिलाड़ियों की प्रतियोगिता भी कराई, जिसमें राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी पहुंचे। इस प्रतियोगिता पर उसने लाखों रुपये खर्च किए। शेरपुर ऐसा गांव हैं जहां करीब दो सौ लोगों को वॉलीबाल के चलते रोजगार मिला हुआ है। राष्ट्रीय स्तर की वॉलीबाल प्रतियोगिता के आयोजन के बाद समूचा गाजीपुर उसके ऊपर फिदा हो गया। अपनी धाक जमाने के लिए उसने गाजीपुर के तीस पत्रकारों और इलाके के कई प्रभावशाली लोगों को दिल्ली की सैर कराई थी। तामझाम के बीच शेरपुरिया ने फर्जी तरीके से अपने पिता बालेश्वर राय को स्वतंत्रता संग्राम सेनानी घोषित कर दिया। यही नहीं, गांव की एक सड़क का नामकरण भी अपने पिता के नाम पर कर दिया।"

"कुछ रोज पहले प्रवर्तन निदेशालय के अफसर शेरपुर आए थे और उसके एनजीओ के खातों की जांच-पड़ताल की थी। उसके पास कुछ पैसा सऊदी से भी आता था, जिसके बारे में उसके परिवार वालों से पूछताछ की गई। दरअसल वह शुरू से ही फितरती दिमाग का आदमी था। गौर करने की बात यह है कि हाईस्कूल पास आदमी ढेरों किताबें कैसे लिख सकता है? उनके साथ रहने वाले बताया करते थे कि वो किताबें दिल्ली के एक अखबार में काम करने वाले नामी-गिरामी पत्रकार को पैसे देकर लिखवाया करता था। उन किताबों के जरिये वह देश के दिग्गजों के साथ अपना सीधा संबंध जोड़ लेता था। अगर वह राजनीतिक रूप से ताकतवर होता तो उसके यहां छापेमारी क्यों होती और वह गिरफ्तार क्यों होता? "

‘दिव्यदर्शी मोदी' और गुजरात कनेक्शन

दिल्ली के अखबार जनसत्ता के पोर्टल में दीप्तिमान तिवारी अपनी एक रिपोर्ट में मनोज शेरपुरिया को फेवर करते हैं। उनकी रिपोर्ट कहती है, "सोशल एंटरप्रेन्योर, कोविड हीरो, सीरियल इन्वेस्टर और लेखक जैसे आधा दर्जन से अधिक उपाधियां संजय राय शेरपुरिया के नाम से जुड़ी हुई हैं। उनका एक म्यूजिक वीडियो भी आ चुका है। उत्तर प्रदेश पुलिस का आरोप है कि शेरपुरिया ने ये सब प्रधानमंत्री कार्यालय में पहुंच होने का दावा कर हासिल किया है। अपने सोशल मीडिया पेजों पर खुद को सोशल एंटरप्रेन्योर बताने वाले शेरपुरिया ने कई वरिष्ठ राजनीतिक नेताओं के साथ अपनी तस्वीरें पोस्ट की है। पिछले कुछ वर्षों में शेरपुरिया की आधा दर्जन पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं- आई एम माधोभाई: ए पाकिस्तानी हिंदू, हिंदू धर्म की धारोहर: भारतीय संस्कृति, टीचर्स, मेगा टैंट्रम्स ऑफ ममता: द वेलिंग बंगाल आदि। शेरपुरिया ने एक किताब ‘दिव्यदर्शी मोदी’ नाम से भी लिखी है। इन किताबों के विमोचन समारोह में कई जानी-मानी हस्तियां शामिल हुईं। ये सभी पुस्तकें दिल्ली स्थित प्रभात प्रकाशन से प्रकाशित हुईं हैं।"

दिप्तिमान आगे लिखते हैं, "शेरपुरिया की नवीनतम किताब का नाम ‘जल प्रबंधन’ है, जिसे 17 अप्रैल को दिल्ली के इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में रिलीज किया गया था। स्वच्छ और सुरक्षित जल पर आयोजित जी-20 के जिस कार्यक्रम में किताब का विमोचन हुआ, उसका आयोजन नरेंद्र मोदी अध्ययन केंद्र और युवा भारती ट्रस्ट ने किया था। कई आरएसएस नेताओं की लिखी किताबें प्रकाशित करने वाले प्रभात प्रकाशन के प्रभात कुमार कहते हैं कि वह शेरपुरिया की कथित संदिग्ध पृष्ठभूमि से अवगत नहीं थे। वह किसी के माध्यम से हमारे पास आए। उस समय उन्हें पाकिस्तान से आए हिंदू शरणार्थियों के कल्याण के लिए काम करने के लिए जाना जाता था। हमें उनका कन्टेंट पसंद आया, इसलिए हमने उनकी पुस्तकें प्रकाशित कीं। इनमें से दो पुस्तकों का विमोचन आरएसएस के सरसंघचालक मोहन भागवत ने किया। हम किसी की किताबें प्रकाशित करने से पहले उसकी बैलेंसशीट नहीं मांगते।"

जनसत्ता लिखता है, "संजय शेरपुरिया ताइक्वांडो एसोसिएशन ऑफ गुजरात के अध्यक्ष भी रहे। यह संस्था भारतीय ओलंपिक संघ के तहत आने वाला एक खेल निकाय है। अपने गृहनगर गाजीपुर में एक ‘सोशल एंटरप्रेन्योर’ के रूप में नाम कमाया। महामारी के दौरान ‘लकड़ी बैंक’ खोला, जो दाह संस्कार की सुविधा के लिए मृतक के परिवारों को लकड़ी मुहैया करता था। उन्होंने महामारी के दौरान ऑक्सीजन सिलेंडर, मास्क और दवाएं भी बांटी थीं, जिसके कारण उन्हें फोर्ब्स इंडिया में जगह मिली थी। साल 2019 में शेरपुरिया ने यूथ रूरल एंटरप्रेन्योर फाउंडेशन (वाईआरईएफ) नाम से एक एनजीओ खोला। इस एनजीओ ने गाजीपुर में ‘आत्मनिर्भर भारत’ थीम पर आधारित "युवा-उन्मुख और रोजगार सृजन" कार्यक्रम आयोजित किए। इंडियन एक्सप्रेस ने 29 अप्रैल 2023 को बताया था कि केंद्रीय मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय ने राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड के माध्यम से दो करोड़ रुपये की सब्सिडी की मंजूरी दी थी। साल 2021 में दिल्ली में शेरपुरिया ने पाकिस्तान से आए हिंदू शरणार्थियों के लिए मजलिस पार्क में एक आश्रय स्थल खोला था। उन्होंने शहर में स्वरोजगार के अवसर पैदा करने का भी दावा किया है।"

संजय शेरपुरिया की एक किताब का लोकार्पण वरिष्ठ पत्रकार राम बहादुर राय ने किया था। विमोचन समारोह में भीड़ जुटाने और गाजीपुर के लोगों पर अपना प्रभुत्व जमाने के लिए वह करीब साठ लोगों को वहां से दिल्ली ले गया। इनमें तीस पत्रकार शामिल थे। इस टुअर में शामिल पत्रकार राहुल पांडेय से ‘न्यूजक्लिक’ ने बात की तो उन्होंने बताया, "पत्रकारों के दल में मेरे अलावा आलोक त्रिपाठी, अनिल कश्यप, अजित सिंह समेत कई पत्रकारों को बंदे भारत ट्रेन से दिल्ली ले जाया गया और एक शानदार होटल में ठहराया गया। संजय सीधे तौर पर पत्रकारों को पैसा नहीं देते थे, लेकिन विज्ञापन के नाम पर सभी को पैसा मिल जाता था। गाजीपुर के लोगों को शेरपुरिया ने बड़े-बड़े सपने दिखाए थे। वह मदारियों की तरह हरकत करता था तो युवाओं को लगता था कि उनके दिन फिर जाएंगे और वो उसके पीछे चलने लगते थे। उसने गाजीपुर के कई जनप्रतिनिधियों को अपना भक्त बना लिया था। एक एमएलसी और एक पूर्व विधायिका से उसके अच्छे रिश्ते बन गए थे। हालांकि अब शेरपुरिया को गाजीपुर ने नकार दिया है। खासतौर पर उन लोगों ने जिन्होंने उस पर भरोसा किया, लेकिन वो इतना बड़ा फ्रॉड निकला। हमें लगता है कि बैंकों से क़र्ज़ लेकर उसे वापस नहीं देना शेरपुरिया की पुरानी आदत थी। इसको सबसे ज्यादा पैसा ऐसे ही मिले हैं।"

पत्रकार राहुल के मुताबिक, "संजय राय शेरपुरिया साल 2017 में गाजीपुर विधानसभा क्षेत्र से भाजपा के टिकट का दावेदार था। हालांकि, वह टिकट हासिल करने में असफल रहा। साल 2019 में वह पीएम नरेंद्र मोदी के चुनाव अभियान में शामिल था। सोशल मीडिया के तमाम पन्नों पर शेरपुरिया ने सत्तारूढ़ दल के दिग्गज नेताओं के साथ अपनी तमाम तस्वीरें पोस्ट की हैं, जो असली मालूम पड़ती हैं। बीजेपी के उन सभी नेताओं ने अब संजय शेरपुरिया से किनारा कर लिया है जो पहले उसके आगे-पीछे दौड़ा करते थे। बीजेपी के लोग अब सफाई दे रहे हैं कि शेरपुरिया ने उनकी पार्टी की कभी सदस्यता ही नहीं ली थी।"

भाजपाइयों से थे गहरे रिश्ते

बनारस में अचूक संघर्ष के संपादक अमित मौर्य बीजेपी नेताओं पर ढेरों सवाल खड़ा करते हैं जो संजय शेरपुरिया से अपने रिश्तों को नकारते फिर रहे हैं। वह कहते हैं, "बीजेपी के तमाम नेता सफाई देते फिर रहे हैं कि शेरपुरिया उनकी पार्टी का सदस्य नहीं था, लेकिन ढेरों सबूत ऐसे हैं जो प्रमाणित करते हैं कि सत्तारूढ़ दल के तमाम नेताओं से उसके गहरे संबंध थे। एक तस्वीर में वह हवाई अड्डे पर पीएम नरेंद्र मोदी का स्वागत करते दिखता है तो दूसरे में वह उनके साथ बैठा हुआ। एक तस्वीर ऐसी भी है जिसमें वह प्रधानमंत्री के मंच पर भी है। सूचना और प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर के साथ अपनी तस्वीरें साझा करते हुए संजय उन्हें अपना करीबी दोस्त बताता रहा है। संजय शेरपुरिया के बारे में यहां तक कहा जा रहा है कि पीएमओ और गृह मंत्रालय में उसने गहरी पैठ रखी थी। वह दिल्ली के 'रेस कोर्स रोड' स्थित एक शानदार बंगले में रहता था। उसने उस जिमखाना क्लब की सदस्यता भी ले रखी थी जिसके लिए देश के नामी-गिरामी लोग कई सालों से इंतजार कर रहे हैं।"

अमित कहते हैं, "बीजेपी के दिग्गज नेताओं के संग संजय शेरपुरिया की तस्वीरें नकली हैं तो पार्टी की आईटी सेल ने चुप्पी क्यों साध रखी है? केंद्र और राज्य की खुफिया एजेंसियों ने उसके बारे में प्रधानमंत्री मोदी और उनके दफ्तर के अफसरों को सजग करने की जरूरत क्यों नहीं समझी? आखिर किसकी सिफारिश पर उसे रेस कोर्ट रोड पर बंगला मिला और दिल्ली के प्रतिष्ठित जिमखाना क्लब की सदस्यता? प्रधानमंत्री से मिलने अथवा पीएमओ और गृह मंत्रालय में जाने के लिए इंटेलिजेंस ब्यूरो और पीएम की सुरक्षा टीम से मंजूरी लेनी पड़ती है। आखिर हाईस्कूल पास संजय इतना ताकतवर कैसे बना कि उसकी पहुंच पीएमओ और गृह मंत्रालय तक में हो गई? "

झूठ गढ़ता है शेरपुरिया

‘अमर उजाला’ के वाराणसी संस्करण में वरिष्ठ पत्रकार अजय राय गाजीपुर के शेरपुरिया गांव के रहने वाले हैं और संजय राय के पड़ोसी भी हैं। वह कहते हैं, "शेरपुरिया ने अपने रुतबे वाले सफर की शुरुआत गुजरात से की थी। उसकी पत्नी कंचन राय संपन्न परिवार से थीं। दोनों ने प्रेम विवाह किया था। शुरू में कारोबार अच्छा चला, लेकिन ज्यादा बैंक लोन के चलते वो दिवालिया हो गया। शेरपुरिया हमेशा झूठ गढ़ता रहा है। बगैर किसी दस्तावेज के उसने अपने पिता को स्वतंत्रता संग्राम सेनानी घोषित कर दिया। हमें लगता है कि संजय महाठग नहीं था। उसे गलत पदवी दी जा रही है। सच यह है कि वह सिस्टम का पैदा किया हुआ आदमी था जो सत्ता के गलियारों में ‘लाइजनर’ का काम करता था। ढूंढ़ेंगे तो पाएंगे कि देश का शायद ही कोई ऐसा नेता होगा, जिसके साथ उसकी तस्वीरें नहीं होंगी। वह सत्तारूढ़ दल के नेताओं और मंत्रियों का चहेता था। अब उसे शिकार बनाया जा रहा है। पुलिस या फिर ईडी चाहे लाख सिर पटक ले, उसे कुछ नहीं मिलेगा। शेरपुरिया ने पीएम नरेंद्र मोदी के 2019 के चुनाव प्रचार में बहुत काम किया। हालांकि आज जो लोग उसे करप्ट बता रहे हैं, उन्हें यह जरूर पता होना चाहिए कि शेरपुरिया ने बनारस में ही सोशल एंटरप्रेन्योरशिप कार्यक्रम शुरू किया था और लोगों को यह भी बताया कि किसी उत्पाद को महंगे दामों पर कैसे बेचा जा सकता है? "

शेरपुरिया के करीबियों को लगता है कि छल और फरेब के चलते उसने न सिर्फ गाजीपुर, बल्कि आजादी के रणबांकुरों के गांव शेरपुरिया का नाम खराब किया है। बीजेपी के ओबीसी मोर्चा के क्षेत्रीय उपाध्यक्ष सोमनाथ विश्वकर्मा के मुताबिक, "संजय शेरपुरिया अक्सर बनारस आते थे। उनके पास भले ही कोई पद नहीं था, लेकिन पार्टी के लोग उन्हें तवज्जो जरूर देते थे। साल 2019 में वह बनारस में मोदी जी का चुनाव दफ्तर भी संभाला करते थे। उन्होंने सत्ता में बैठे लोगों से निकटता का दावा करते हुए और प्रधानमंत्री और कैबिनेट के अन्य मंत्रीगण के साथ अपनी तस्वीरें दिखाकर कई लोगों को धोखा दिया, जिससे उनकी प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचा है। पुलिस जांच-पड़ताल कर रही है। सच सामने आ जाएगा।"

सिन्हा ने ठग से क्यों लिया लोन?

भड़ास के संपादक यशवंत सिंह गाजीपुर के निवासी हैं। संजय शेरपुरिया की गिरफ्तारी के बाद उन्होंने सत्तारूढ़ दल पर कई सवाल खड़े किए हैं। अपने पोर्टल पर लिखे एक लेख में वह कहते हैं, "ऐसा लगता है बीजेपी की गुटबाजी में संजय शेरपुरिया को निपटाया गया है। ग़ाज़ीपुर ज़िले की भूमिहार लॉबी और बाबा की ठाकुर लॉबी में छत्तीस का आंकड़ा रहता है। पॉवर में बाबा की ठाकुर लॉबी है, इसलिए पुलिस का मनमाफ़िक़ उपयोग कर लिया जाता है। वहीं कुछ लोगों का कहना है कि कश्मीर के इशारे पर शेरपुरिया का शिकार किया गया। संजय भूमिहार नेता के रूप में ख़ुद को स्थापित कर रहे थे। ग़ाज़ीपुर से चुनाव लड़ने की तैयारी थी। इसके लिए ग्राउंड पर संजय ने काफ़ी पैसा खर्च किया था। बीजेपी में ग़ाज़ीपुर जिले के मामले में सारे फ़ैसले इन दिनों कश्मीर के इशारे पर होते हैं। उन्हें नापसंद था कि उनके इलाक़े में कोई दूसरा सजातीय नेता पनप जाए। तो संजय शेरपुरिया को निपटाने की पूरी तैयारी की गई।"

यशवंत आगे लिखते हैं, "एफआईआर में डालमिया के अकाउंट से पैसा आया दिखाया जा रहा है। भाई डालमिया ने तो अपनी एनजीओ से इनकी एनजीओ को पैसे दिए। डालमिया इस बारे में कोई शिकायत नहीं कर रहा है, तो फिर अपराध ये कैसे हो गया? एफआईआर पढ़कर समझ आता है कि संजय शेरपुरिया के ख़िलाफ़ बताने के लिए पुलिस के पास फिलहाल कुछ नहीं है। ऐसा लगता है कि ये व्यक्तिगत ख़ुन्नस में गिरफ़्तारी की गई है।"

यशवंत एक दूसरे लेख में कहते हैं, "मनोज सिन्हा ने चुनावी हलफनामे में पच्चीस लाख रुपये को Unsecured Loan के तौर पर जिक्र भी किया है। इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक़ मनोज सिन्हा लोन लौटाने के लिए संजय राय शेरपुरिया को खोजते रहे और ये बंदा मिला ही नहीं। अख़बार वाले लगातार एकतरफ़ा खबरें छाप रहे हैं। जिस व्यक्ति के ख़िलाफ़ अब तक कोई एक भी लिखित शिकायत नहीं है किसी की, उसे सबसे बड़ा फ्रॉड ठग घोषित करने का अभियान जारी है।"

"मनोज सिन्हा ने लोन लिया और अब लौटाने के लिए संजय को खोज रहे हैं पर वो मिल नहीं रहा है…। सोचिए क्या ग़ज़ब कहानी है…। लोन देकर वापस न मांगना भी, अपराध है। लोन लेने वाला चूकि महामहिम है, इसलिए वो भला ग़लत कैसे हो सकता है? सवाल यह उठना चाहिए कि अगर संजय राय शेरपुरिया महाठग है तो मनोज सिन्हा ने उससे कर्ज क्यों लिया? ठग से महामहिम का आख़िर कैसा याराना? क्या ठग को अब तक संरक्षण देते रहे हैं मनोज सिन्हा? पर ये सवाल पूछेगा कौन? "

(लेखक बनारस के वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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