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गणतंत्र दिवस की ट्रैक्टर परेड पर टिकी नज़रें, राजस्थान-हरियाणा सीमा पर महिलाओं ने किया प्रदर्शन का नेतृत्व

चाहे यह मंच के प्रबंधन की बात हो या जनता को भाषण देने की, या फिर किसी मुद्दे पर भूख हड़ताल में भाग लेने की, शाहजहांपुर प्रदर्शन स्थल 18 जनवरी को प्रदर्शनकारियों द्वारा मनाए गए महिला किसान दिवस में हर चीज का प्रबंधन महिलाओं ने किया।
गणतंत्र दिवस की ट्रैक्टर परेड पर टिकी नज़रें, राजस्थान-हरियाणा सीमा पर महिलाओं ने किया प्रदर्शन का नेतृत्व

शाहजहांपुर/अलवर: चाहे यह मंच के प्रबंधन की बात हो या जनता को भाषण देने की, या फिर किसी मुद्दे पर भूख हड़ताल में भाग लेने की, शाहजहांपुर प्रदर्शन स्थल 18 जनवरी को प्रदर्शनकारियों द्वारा मनाए गए महिला किसान दिवस में हर चीज का प्रबंधन महिलाओं ने किया। प्रदर्शनकारियों ने कृषि में महिलाओं के अतुलनीय योगदान को सम्मान देने के लिए महिला किसान दिवस को मनाया था।

महिलाओं ने दिल्ली-जयपुर हाईवे पर ट्रैक्टर भी चलाए। अब सभी की नज़रें गणतंत्र दिवस पर होने वाली ट्रैक्टर परेड पर हैं। इसलिए महिलाओं ने और इसे "ट्रायल रन" भी बताया। दिल्ली-जयपुर हाईवे शाहजहांपुर प्रदर्शन स्थल से होकर गुजरता है। यह राजस्थान और हरियाणा को जोड़ता है।

किसान संगठन के साझा मंच "संयुक्त किसान मोर्चा" ने 26 जनवरी को राजधानी दिल्ली में ट्रैक्टर जुलूस निकालने का आह्वान किया है। संयुक्त किसान मोर्चा दिल्ली की सीमाओं पर हो रहे इस विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व कर रहा है।

सभी प्रदर्शन स्थल, जहां किसान कृषि कानूनों को वापस लिए जाने के लिए प्रदर्शन कर रहे हैं, वहां महिला किसान दिवस मनाया गया।

शाहजहांपुर सीमा पर "ऑल इंडिया डेमोक्रेटिक वीमेन एसोसिएशन (AIDWA)" की प्रदेशाध्यक्ष चंद्रकला वर्मा कहती हैं, "यहां महिलाओं ने प्रदर्शन स्थल का प्रबंधन किया और इस मौके पर सिर्फ़ महिला प्रदर्शनकारियों ने ही जनता को संबोधित किया।"

वर्मा बताती हैं, "जब महिलाएं बोल रही थीं, तब उन्होंने अपनी ज़्यादातर बात गांवों में उनके कृषि में दिए जाने वाले सक्रिय योगदान पर केंद्रित रखी।"

भाषणों को सुनकर महिलाओं सभा में आगे की कतारों में आ गईं। यह महिलाएं राजस्थान, हरियाणा, महाराष्ट्र, पंजाब, केरल, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश और दूसरे राज्यों से आई हैं।

राजस्थान के बीकानेर से आने वाली डॉ सीमा जैन प्रदर्शन स्थल पर महिला वक्ताओं को संभाल रही हैं। उन्होंने न्यूज़क्लिक को बताया, "अलग-अलग राज्यों से आने वाली इन महिलाओं ने यहां नाच-गाने जैसे कई सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन भी किया।"

महिला कृषकों ने इस मौके पर एक और कार्यक्रम चालू किया है, जिसका नाम "थाप मारो मोदी को" है। महिला प्रदर्शनकारियों ने अपने हाथों में एक लंबे सफेद कपड़े से बना बैनर भी थाम रखा था, जिस पर "किसान विरोधी कानून वापस लो" लिखा था। जैन के मुताबिक़ यह "एकता" दिखाने का तरीका था।

47 साल की परमिंदर कौर पंजाब के फिरोजपुर जिले से आती हैं। उनका कहना है कि महिलाएं अपने परिवारों को "बचाने के संघर्ष" में हमेशा सबसे "आगे" रहती हैं। वह कहती हैं, "नए कृषि कानूनों से हमारे परिवारों की आय बहुत कम हो जाएगी, जो पहले ही काफ़ी नीचे जा रही है.... ऐसे में कैसे घर चलेगा और कैसे बच्चे पलेंगे।"

यहां कौर के साथ उनके ही जिले की हमउम्र 15 महिलाएं शामिल हुई हैं। कौर बताती हैं कि वह पिछले एक महीने से भी ज़्यादा वक़्त से यहां डटी हुई हैं। कौर कहती हैं, "जब तक हमारी मांगें नहीं मानी जातीं, हम वापस नहीं जाएंगे।" यह कहते हुए उनकी आंखों में अलग ही आत्मविश्वास उभरता है।

प्रेमलता अपनी उम्र के चौथे दशक में हैं। वह कहती हैं, "कुछ दिन पहले हमसे घर वापस जाने के लिए कहा गया। यह इसलिए कहा गया, क्योंकि अगर महिलाएं ज़्यादा दिन तक सड़कों पर रह गईं, तो मोदी सरकार के पास पीछे हटने के अलावा कोई विकल्प नहीं रहेगा।"

राजस्थान के अलवर से आने वाली प्रेमलता यहां जस्टिस एस ए बोबड़े की टिप्पणी पर बात कर रही थीं। सुप्रीम कोर्ट में किसानों से संबंधित याचिका पर सुनवाई करने के दौरान बोबड़े ने सवाल पूछते हुए कहा था कि महिलाओं और बूढ़ों को प्रदर्शन में क्यों शामिल किया गया है और उनसे वापस जाने की अपील की थी।

प्रेमलता कहती हैं, "सुप्रीम कोर्ट को यह जानना चाहिए कि महिलाएं हमेशा पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ी रही हैं। हमारे खेतों में आइए और खुद देख लीजिए कि हम खेती-किसानी में कितना योगदान देते हैं।" नाराज प्रेमलता तब कहती हैं, "फिर हमें विरोध प्रदर्शन में शामिल क्यों नहीं होना चाहिए?"

महिलाओं द्वारा "अपने फ़ैसले लेने के अधिकार" के इस्तेमाल और सबसे ज़्यादा उसका सम्मान किए जाने को भी बाकी लोगों ने जरूरी बताया।

37 साल की रीना यादव हरियाणा के रेवाड़ी में शिक्षिका हैं। वह कहती हैं कि इस तरह के प्रदर्शन में महिलाओं की भागीदारी से कई बनी-बनाई मान्यताओं को भी चुनौती मिलती है, जो अब भी ग्रामीण इलाकों में उनके जीवन को प्रभावित करती हैं।

यादव कहती हैं, "गांवों में एक महिला को खेत और उसे परिवार की सेवा करनी होती है, वे अब भी अपनी फ़ैसले लेने के लिए स्वतंत्र नहीं होती हैं।"

वे इस बात को समझाते हुए खुद का उदाहरण देती है। वह कहती हैं कि उन्होंने सोमवार को प्रदर्शन में शामिल होने के पहले अपने पति को नहीं बताया था। वह कहती हैं, "अगर मैं उनसे कहती तो वो सीधा मना कर देते।"

शाहजहांपुर में पिछले महीने से हर दिन 11 लोग एक दिन का उपवास रखते हैं। यह उपवास उन लोगों को श्रद्धांजलि के तौर पर रखा जाता है, जिन्होंने मौजूदा किसान आंदोलन में अपनी जिंदगी खो दी। सोमवार को इस लंबी भूख हड़ताल में सभी महिलाओं ने भागीदारी निभाई।

35 साल की अश्विनी चौहान महाराष्ट्र के औरंगाबाद से आती हैं, उन्होंने भी सोमवार को भूख हड़ताल में हिस्सा लिया था। उन्हें कानून वापस लेने के साथ-साथ अपनी स्थानीय मांगों को भी उठाए जाने की उम्मीद है।

वह कहती हैं, "हमारा परिवार पांच एकड़ पर खेती करता है, लेकिन वह ज़मीन हमारे नाम पर पंजीकृत नहीं है। हमारे परिवार पर हमेशा यह डर छाया होता है कि कभी भी हमसे वह ज़मीन छीनी जा सकती है। हमें ज़मीन का पट्टा ही दे दिया जाए.... यह हमारे लिेए कई साल का संघर्ष हो चुका है।"

वह कहती हैं कि नया कृषि कानून उनके लिए चीजों को "बदतर" ही करेगा। उन्हें डर है कि नए सुधारों से फ़सल के बाज़ार मूल्य में और भी ज़्यादा कमी आ जाएगी।

सोमवार को राजस्थान के कोटपुतली के शुक्लावस गांव से 30 ट्रैक्टरों पर 100 के करीब प्रदर्शनकारी शाहजहांपुर सीमा पर पहुंचे हैं। इन्हें महिलाएं चलाकर लाई हैं।

इनका नेतृत्व 24 साल की निशा यादव कर रही हैं, जिनका दावा है कि गणतंत्र दिवस की परेड में महिलाएं "सबसे आगे" होंगी। वह कहती हैं, "आज की रैली बस ट्रायल रन है.... 26 जनवरी को ट्रैक्टर पर सवार महिलाएं मोदी को एक सबक सिखाएंगी।" पिछले 2-3 दिन से कई महिलाएं शाहजहांपुर सीमा पर ट्रैक्टर चलाना सीख रही हैं।

सोमवार को एक प्रेस स्टेटमेंट में "ऑल इंडिया किसान संघर्ष कोआर्डिनेशन कमेटी (AIKSCC) ने कहा, "300 से ज़्यादा जिलों की महिला किसानों ने किसान के तौर पर अपने अधिकारों की दृढ़ता दिखाई है। 75 फ़ीसदी से ज़्यादा कृषि कार्य महिलाओं द्वारा किया जाता है और यह तीन कृषि कानून उनकी आजीविका को तबाह कर देंगे, इससे उनका अस्तित्व ही ख़तरे में आ जाएगा।"

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें।

Eyes on R-Day Tractor Parade, Women Take Charge of Protest at Rajasthan-Haryana Border

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