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फिर गरमाने लगा किसानों का मोर्चा: 20 को दिल्ली कूच

जाहिर है अपने आंदोलन को फिर से नई धार देने और एक निर्णायक लड़ाई में उतरने के अलावा किसानों के पास कोई विकल्प नहीं बचा है। 20 मार्च का दिल्ली कूच किसान आंदोलन के पुनर्जीवन का गम्भीर प्रयास है।
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फोटो साभार: द ट्रिब्यून

किसानों का मोर्चा फिर गरमाने लगा है। कल 13 मार्च को दिल्ली के जंतर-मंतर पर पंजाब की भारतीय किसान यूनियन (बीकेयू) राजेवाल, ऑल इंडिया किसान फेडरेशन, किसान संघर्ष कमेटी पंजाब, बीकेयू मनसा और आजाद किसान संघर्ष कमेटी से जुड़े किसानों ने गुरुद्वारा बांग्ला साहब से मार्च कर संसद मार्ग, जंतर-मंतर पर अपनी मांगों को लेकर प्रदर्शन किया और प्रधानमंत्री कार्यालय जाकर अपना ज्ञापन सौंपा। किसानों ने कहा कि केंद्र की ओर से दिए हुए आश्वासन अब तक पूरे नहीं हुए, इसलिए वे एक बार फिर प्रदर्शन के लिए पहुंचे हैं।

यह 20 मार्च को संयुक्त किसान मोर्चा के आह्वान पर दिल्ली में होने जा रहे विराट संसद मार्च की पूर्व पीठिका और ट्रेलर जैसा था।

20 मार्च को होने वाले संसद मार्च की तैयारी में 10 मार्च को मेरठ कमिश्नरी पर पश्चिम उत्तरप्रदेश के किसानों की बड़ी पंचायत हुई जिसमें मेरठ, बिजनौर, शामली, मुजफ्फरनगर, हापुड़, मुरादाबाद समेत कई जिलों के किसानों ने भाग लिया। इसे सम्बोधित करते हुए राकेश टिकैत ने किसानों से 20 मार्च को बड़ी संख्या में दिल्ली पहुंचने की अपील की।

सरकार पर हमला बोलते हुए टिकैत ने कहा, " किसान बिना यह जाने ही कि उन्हें क्या कीमत मिलेगी, मिलों को गन्ना बेचने को मजबूर किये जा रहे हैं। गन्ना पेराई का आधा समय बीत गया लेकिन सरकार ने अब तक गन्ना मूल्य नहीं घोषित किया। " उन्होंने आरोप लगाया कि न तो मिलों को गन्ना देने के 14 दिन के अंदर उन्हें भुगतान हो रहा है, न ही विलम्ब होने पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय के निर्देशानुसार उन्हें ब्याज दिया जा रहा है।

रैली में आवारा जानवरों द्वारा भाजपा राज में सालों से ही रही किसानों की फसलों की बर्बादी का मुद्दा भी जोरशोर से उठा। इस सवाल पर तो स्वयं प्रधानमंत्री ने UP विधानसभा चुनाव के समय बड़ी ' संवेदना ' दिखाई थी और समाधान का वायदा किया था। लेकिन यह एक और हवा-हवाई जुमला ही साबित हुआ।

पिछले महीने मुजफ्फरनगर में ऐसी ही एक विराट किसान महापंचायत हुई थी, जिसमें पश्चिम उत्तरप्रदेश के साथ साथ पंजाब, हरियाणा और उत्तराखंड के किसान भी शामिल हुए थे।

इन रैलियों की भारी कामयाबी के बाद मीडिया में तरह तरह के कयास लगाए जा रहे हैं, क्या 20 मार्च को गाजीपुर बॉर्डर फिर जाम होगा ? किसानों का दिल्ली कूच अनिश्चितकालीन होगा ?

दरअसल, 20 मार्च के दिल्ली कूच का ऐलान पिछले दिनों कुरुक्षेत्र में संयुक्त किसान मोर्चा की बैठक में हुआ था। आंदोलन वापसी के समय मोदी सरकार द्वारा किये गये सभी वायदों से उसके पीछे हटने और वायदाखिलाफी से किसान बेहद नाराज हैं।

MSP की कानूनी गारंटी के सवाल पर तो सरकार की बदनीयत पहले से ही स्पष्ट थी। दूसरे वायदे भी सरकार ने पूरे नहीं किये- न किसानों के मुकदमे खत्म हुए, न बिजली संशोधन बिल वापस हुआ। ऊपर से किसानों को मुँह चिढ़ाते हुए लखीमपुर, तिकोनिया जनसंहार के आरोपी- किसानों पर गाड़ी चढ़ाकर रौंदने वाले-मोनू मिश्रा के पिता अजय टेनी को मोदी जी मंत्रिमंडल में अब तक बनाये हुए हैं।

सरकार के ताजा बजट ने आग में घी का काम किया है और साबित कर दिया है कि सरकार पूरी तरह कारपोरेटपरस्त और गाँव, गरीब, किसान विरोधी है तथा केवल और केवल अपने चहेते घरानों के अकूत मुनाफे के लिए काम कर रही है।

संयुक्त किसान मोर्चा के बयान में कहा गया कि केंद्र सरकार ने बजट 2023 में भारत के किसानों को धोखा दिया है- "SKM को उम्मीद की थी कि दिल्ली में हुए किसानों के लम्बे और दृढ़ विरोध के बाद सत्तारूढ़ पार्टी खेती और ग्रामीण कृषक समुदाय, जो भारत की आबादी का बहुमत हैं, की आय और भविष्य को सुरक्षित करने की आवश्यकता को समझेगी। लेकिन केंद्रीय बजट 2023 के प्रावधानों से स्पष्ट है कि यह देश के इतिहास का सबसे अधिक किसान-विरोधी बजट है।"

बढ़ती लागत कीमतों के बीच MSP की कानूनी गारंटी का सवाल किसानों के लिए जीवन-मरण प्रश्न बन गया है। आंदोलन के दबाव में इसके लिए कमेटी बनाने के वायदे पर मोदी सरकार पहले ही धोखा-धड़ी कर चुकी है। किसानों की आंख में धूल झोंकने के लिए एक कमेटी बनाई भी तो उसमें कुख्यात कृषि कानूनों के समर्थक कृषि-विशेषज्ञों, नौकरशाहों और कथित किसान नेताओं को भर दिया और कई अन्य मुद्दे जोड़कर MSP का पूरा मामला ही dilute कर दिया।

जाहिर है अपने आंदोलन को फिर से नई धार देने और एक निर्णायक लड़ाई में उतरने के अलावा किसानों के पास कोई विकल्प नहीं बचा है। 20 मार्च का दिल्ली कूच किसान आंदोलन के पुनर्जीवन का गम्भीर प्रयास है।

इसी बीच पंजाब में कुछ बुद्धिजीवियों/विश्लेषकों द्वारा यह शरारतपूर्ण तर्क दिया जा रहा है कि किसान-आंदोलन की जीत से पंजाब में कट्टरपंथी अमृतपाल परिघटना को बल मिला है। सच्चाई इसके ठीक उलट है और वह यह है कि किसान आंदोलन के उतार और बिखराव ने अमृतपाल परिघटना के लिए जमीन तैयार की है जिसे सचेत ढंग से किसान उभार की किसी नई संभावना को ध्वस्त कर देने के लिए योजनाबद्ध ढंग से manufacture किया गया है और खाद-पानी दिया जा रहा है।

किसान-संगठनों को हर हाल में अपने मुद्दों के चयन और आंदोलन की रणनीति में सावधानी बरतनी होगी ताकि कट्टरपंथी शक्तियां, जो खतरनाक राजनीतिक ताकतों का मोहरा हो सकती हैं, उनके आंदोलन का नाजायज इस्तेमाल न कर सकें।

ऐतिहासिक किसान आंदोलन के एक समय के सम्मानित, बुजुर्ग नेता बलबीर सिंह राजेवाल के नेतृत्व में दिल्ली में कल सोमवार को हुए मार्च में पंजाब के जल संकट, फैक्ट्रियों से निकलने वाले रासायनिक प्रदूषण जैसे किसानों के मुद्दे के साथ-साथ हरियाणा-पंजाब के बीच के जल विवाद और पंजाब में बंदियों की रिहाई जैसे राजनीतिक चरित्र के मुद्दे भी उठे।

इनमें कुछ मुद्दे ऐसे हैं जो किसानों के बीच विभाजनकारी potential लिए हुए हैं। बेहतर होता अलग कार्यक्रम की बजाय वक्त की नजाकत को समझते हुए, राजेवाल साहब ऐतिहासिक किसान आंदोलन की लंबित मांगों तथा आम सहमति के अन्य मुद्दों पर संयुक्त किसान मोर्चा के साथ ही 20 मार्च को आयोजित संसद मार्च में शामिल होते !

किसानों का यह दिल्ली मार्च राष्ट्रीय जीवन के एक बेहद नाजुक क्षण में होने जा रहा है जब विधानसभा चुनावों की श्रृंखला के साथ आपातकाल के बाद के सबसे महत्वपूर्ण 2024 के आम चुनाव के लिए बिगुल बज चुका है। सत्तारूढ़ भाजपा हर हाल में सत्ता पर अपना कब्जा बरकरार रखना चाहती है। इसके लिए वह अपने खिलाफ विरोध की हर आवाज को चुप करा देने पर आमादा है। न सिर्फ विपक्ष के उन सभी नेताओं के ख़िलाफ़ जो भाजपा के लिए चुनौती बन सकते हैं, एजेंसियों को लगा दिया गया है और जरूरी होने पर जेल में डाला जा रहा है तथा नागरिक समाज की सभी असहमत आवाजों को कुचला जा रहा है, बल्कि चुनाव आयोग आदि को जेबी बनाने के बाद इकलौती बची संवैधानिक संस्था न्यायपालिका को भी समर्पण के लिए मजबूर करने हेतु चौतरफा दबाव बनाया जा रहा है।

इसी बीच टिकैत परिवार को बम से उड़ाने की धमकी का मामला भी सरगर्म है। क्या यह विपक्षी नेताओं के पीछे पड़ी सरकारी एजेंसियों की ही तरह जन-आंदोलन के नेताओं को चुप कराने के लिए एक और औजार ( instrumentality ) है ?

2024 का चुनाव आपातकाल के बाद का ही नहीं, कई अर्थों में आज़ाद भारत का सबसे अहम चुनाव है। यह तय करेगा कि भारत में electoral autocracy और फासीवाद पूरी तरह संस्थाबद्ध हो जाएगा और अपने लिए एक नई वैधता manufacture कर लेगा या देश में संविधान का राज जिंदा रहेगा और लोकतंत्र की पुनर्बहाली होगी। क्या 20 मार्च का किसानों का संसद मार्च हमारे संकटापन्न लोकतंत्र की रक्षा की नई राह दिखायेगा ?

(लेखक इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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