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किसानों की अपील का देशभर में व्यापक असर, आम जनता ने किया दिनभर का उपवास

किसान आंदोलन के समर्थन में देशभर में किसान, मज़दूर छात्र ,नौजवान और महिला संगठनों के साथ ही कई राजनीतिक दल के नेताओं ने भी एक समय भोजन छोड़कर उपवास रखा।
किसान

दिल्ली: केन्द्र के तीन नए कृषि कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे किसान गतिरोध खत्म करने के लिए सरकार द्वारा नए सिरे से दिए गए चर्चा के प्रस्ताव पर चर्चा कर रहे हैं। साथ ही आज पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह की जयंती पर मनाए जाने वाले ‘किसान दिवस’ के मौके पर किसानों की ओर से किए गए सांकेतिक उपवास की अपील का देशभर में जबर्दस्त असर हुआ है और जनसामान्य ने आज एक दिन का भोजन न कर अपना सहयोग और समर्थन जाहिर किया।

आपको बता दें कि 23 दिसंबर के दिन का संबंध तमाम उतार-चढ़ावों से है, लेकिन भारत में इस दिन को ‘किसान दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। दरअसल इसी दिन भारत के पांचवें प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह का जन्म हुआ था, जिन्होंने किसानों के जीवन और स्थितियों को बेहतर बनाने के लिए कई नीतियों की शुरुआत की थी। सिंह को उनकी किसान हितैषी नीतियों के लिए पहचाना जाता है। भारत सरकार ने वर्ष 2001 में चौधरी चरण सिंह के सम्मान में हर साल 23 दिसंबर को किसान दिवस के रूप में मनाने का फैसला किया।

इस दिनों को किसान सम्मान के रूप में मनाया जाता था परन्तु इसबार किसान सड़क पर भूख हड़ताल कर रहा है।

कई किसानों ने बुधवार सुबह ‘किसान घाट’ पहुंच चौधरी चरण सिंह को श्रद्धांजलि भी अर्पित की।

‘किसान दिवस’ के मौके पर प्रदर्शन कर रहे किसानों ने गाजीपुर बॉर्डर पर हवन भी किया।

किसान नेता कुलवंत सिंह संधू ने बताया कि पंजाब के 32 किसान यूनियन के नेताओं ने मंगलवार को बैठक की और आगे की रणनीति पर चर्चा की।

जबकि सिंघु और टिकरी बॉर्डर पर भी किसान उपवास पर बैठे हैं साथ ही वहां आज दोपहर का लंगर भी नहीं लगया गया। जबकि इसी तरह शाहजहाँ पुर बॉर्डर पर भी किसान क्रमिक अनशन के साथ ही दोपहर के भोजन का बहिष्कार किया है।

किसान आंदोलन के समर्थन में देशभर में किसान, मज़दूर छात्र ,नौजवान और महिला संगठनों के साथ ही कई राजनीतिक दल के नेताओं ने भी एक दिन का उपवास रखा। कवि, लेखक, संस्कृतिकर्मियों ने भी आज एक समय का भोजन छोड़कर किसानों के प्रति एकजुटता जाहिर की।

केरल के मुख्यमंत्री ने आंदोलनरत किसानों के साथ एकजुटता प्रदर्शित की

केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने बुधवार को केंद्र सरकार की आलोचना करते हुए कहा कि उद्योगपतियों के हितों का ध्यान रखा जा रहा है, लेकिन किसानों का नहीं।

विजयन ने कहा कि केंद्र सरकार को तीनों कृषि कानून वापस लेने चाहिए, जिनके विरोध में दिल्ली की सीमाओं पर प्रदर्शन हो रहा है।

उन्होंने कहा कि वर्तमान में जो किसान आंदोलन चल रहा है, ऐसा देश में पहले कभी नहीं हुआ।

विजयन ने कहा कि किसान देश के अन्नदाता हैं, इसलिए उनकी मांग को राष्ट्र के हित में देखा जाना चाहिए।

शहीद स्मारक पर यहां स्थित किसानों के प्रति एकजुटता दिखाने के लिए वामदलों के समर्थन से आयोजित एक बैठक का उद्घाटन करते हुए उन्होंने केंद्र सरकार पर रय्यत के खिलाफ लगातार दमनकारी कदम उठाने का भी आरोप लगाया।

मुख्यमंत्री ने कहा, “केंद्र की भाजपा सरकार किसानों के हितों का ध्यान नहीं रख रही है। वह उद्योगपतियों के हितों को सबसे ज्यादा महत्व दे रही है। केंद्र को किसानों की मांग स्वीकार कर लेनी चाहिए।”

उन्होंने कहा कि अगर देश में खाने की चीजों की कमी होती है तो इससे केरल समेत सभी राज्य प्रभावित होंगे इसलिए किसान आंदोलन को किसी एक राज्य तक सीमित कर के नहीं देखना चाहिए।

खेती-किसानी बचाने के लिए गांव-गांव में गठित हों संघर्ष समितियां : चौधरी

नए कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के प्रदर्शन के बीच उत्तर प्रदेश विधानसभा में सपा और विपक्ष के नेता रामगोविंद चौधरी ने खेती-किसानी की रक्षा के लिए गांव-गांव में संघर्ष समितियों के गठन की अपील की है।

चौधरी ने बुधवार को भूतपूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह की जयंती के अवसर पर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए एक कार्यक्रम में कहा, "लोकतंत्र और समाजवाद में विश्वास रखने वाले देश के सभी लोगों से अपील है कि वे खेती किसानी की रक्षा के लिए गांव-गांव में खेती बचाओ संघर्ष समितियों का गठन करें और किसान आंदोलन के साथ तन, मन, धन से जुड़ें, नहीं तो इस लड़ाई में किसान कमजोर पड़ जाएंगे।" उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता संग्राम हो या तानाशाही से मुक्ति का संग्राम, इसमें 'बागी' बलिया और समाजवादियों की अग्रणी भूमिका रही है। कॉरपोरेट बनाम किसान के इस संघर्ष में भी बलिया और समाजवादियों को आगे आना चाहिए।

किसान देश की रीढ़ हैं लेकिन सरकार उन्हें नजरअंदाज कर रही है: राउत

शिवसेना सांसद संजय राउत ने बुधवार को किसानों को देश की “रीढ़” बताया और कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि सरकार किसानों की समस्याओं को नजरअंदाज कर रही है।

राष्ट्रीय किसान दिवस के अवसर पर राउत ने यहां संवाददाताओं से कहा कि कुछ उद्योगपतियों को फायदा पहुंचाने के लिए किसानों को कमजोर करने का प्रयास किया जा रहा है।

दिल्ली की सीमाओं पर जारी किसान आंदोलन के मुद्दे पर राउत ने कहा कि केंद्र सरकार को अहंकार त्याग कर किसानों से बात करनी चाहिए।

उन्होंने कहा कि बुधवार को मनाया जा रहा राष्ट्रीय किसान दिवस किसानों के लिए एक “काला दिन” है।

उन्होंने कहा, “किसान हमारे देश की रीढ़ हैं लेकिन कुछ उद्योगपतियों को फायदा पहुंचाने के लिए उन्हें कमजोर किया जा रहा है।”

उन्होंने केंद्र सरकार की ओर इशारा करते हुए कहा, “अपना अहंकार त्याग कर किसानों से बात कीजिए। मैं हाथ जोड़कर प्रार्थना करता हूं।”

दुर्भाग्यपूर्ण है कि किसानों के अपने हक के लिये लड़ाई लड़नी पड़ रही है: पवार

राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) प्रमुख शरद पवार ने बुधवार को कहा कि किसानों का सम्मान करना सत्ता में बैठे लोगों की जिम्मेदारी है , लेकिन अफसोस की बात है कि किसानों को अपने हक के लिये भी लड़ाई लड़नी पड़ रही है।

पवार ने ट्वीट किया, 'हमारी अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले किसानों का सम्मान करना सत्ता में बैठे लोगों की जिम्मेदारी है। लेकिन यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि देश के किसानों को अपने हक और मांगों के लिये प्रदर्शन करना पड़ रहा है।'

उन्होंने कहा, 'राष्ट्रीय किसान दिवस पर किसानों को न्याय मिलने की कामना कर रहा हूं।'

उधर, कृषि मंत्रालय के संयुक्त सचिव विवेक अग्रवाल ने करीब 40 किसान संगठनों के नेताओं को रविवार को पत्र लिखकर कानून में संशोधन के पूर्व के प्रस्ताव पर अपनी आशंकाओं के बारे में उन्हें बताने और अगले चरण की वार्ता के लिए सुविधाजनक तारीख तय करने को कहा है ताकि जल्द से जल्द आंदोलन खत्म हो। किसान इस बारे में भी विचार कर रहे हैं। हालांकि उनका कहना है कि सरकार बार-बार यह क्यों पूछ रही है कि किसानों को क्या आशंका हैं जबकि पिछली पांच दौर की बातचीत में वे इन क़ानूनों की विसंगतियां बताकर इन्हें वापस लिए जाने की दो टूक मांग कर चुके हैं, लेकिन फिर भी सरकार बार-बार एक ही बात दोहरा रही है।

कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर ने मंगलवार को कहा था कि उन्हें उम्मीद है कि प्रदर्शन कर रहे किसान संगठन जल्द आंतरिक चर्चा पूरी करेंगे और गतिरोध खत्म करने के लिए जल्द सरकार के साथ दोबारा बातचीत शुरू करेंगे।

किसान नेता 23 से 26 दिसम्बर तक ‘शहीदी दिवस’ मनाएंगे।

गौरतलब है कि केन्द्र सरकार सितम्बर में पारित इन तीनों कृषि कानूनों को जहां कृषि क्षेत्र में बड़े सुधार के तौर पर पेश कर रही है, वहीं प्रदर्शनकारी किसानों ने आशंका जताई है कि नए कानूनों से एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) और मंडी व्यवस्था खत्म हो जाएगी और वे बड़े कॉरपोरेट पर निर्भर हो जाएंगे।

(समाचार एजेंसी भाषा इनपुट के साथ)

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