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दिल्ली की सीमाओं पर खंदक, बैरिकेड और बिछी हुई कीलों के बीच डटे किसानों का अटूट मनोबल

न्यूज़क्लिक के पत्रकारों ने सभी पांच सीमावर्ती “संघर्ष क्षेत्रों” का दौरा किया और उन्होंने इन पांचों जगहों पर किसानों और स्थानीय निवासियों के बीच जीवंत तालमेल पाया।
Farmers

राष्ट्रीय राजधानी की सीमाओं पर स्थित किसानों के अलग-अलग विरोध स्थल, किसानों को लेकर सरकार के बैर की एक चौंकाने वाली तस्वीर पेश करते हैं। पुलिस ने मज़बूत कंक्रीट के बैरिकेड की कई परतें लगायी हैंसबसे  ऊपर रेज़र वायर(धातु के तेज़ कंटीले तार) लगाये गये हैं, फिर सड़कों को लोहे की छड़ों और कीलों से भर दिया गया हैख़ाली कंटेनरों से मुख्य सड़कों को बंद कर दिया गया है, जबकि इन सड़कों पर खुलने वाले छोटे-छोटे गलियों को कंक्रीट से बंद कर दिया गया है। आवाजाही पर सख़्त प्रतिबंध हैआवाजाही के रास्ते को बदल दिया गया है और किसान साफ़-सफ़ाईशौचालय, और नेट कनेक्टिविटी से भी वंचित कर दिये गये हैं। किसान पिछले साल नवंबर से ही मोदी सरकार की तीन कृषि कानूनों और अन्य किसान विरोधी नीतियों के विरोध में डेरा डाले हुए हैं।

लेकिन, इन मनहूस बैरिकेड के पीछे भी हज़ारों किसानों और उनके परिवारों के तीन काले क़ानूनों को वापस करवाने के दृढ़ निश्चय पूरी तरह अटल है। चाहे कुछ भी हो, लेकिन सरकार की खुली दुश्मनी ने इन किसानों के भीतर ऊर्जा का संचार कर दिया है। इन्हें ताज़ा-ताज़ा समर्थन हरियाणापंजाब और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के गांवों से मिल रहा है। सरकार की इन रुकावटों को देखते हुए उन्हें खाना-पानी मुहैया कराकर, शौचालय का इस्तेमाल करने की अनुमित देकर और यहां तक कि किसानों के धरने में शामिल होकर इन राज्यों के स्थानीय लोगों ने किसानों को मदद पहुंचाना शुरू कर दिया है।

न्यूज़क्लिक के पत्रकारों ने इसी तरह के नज़ारे टिकरीग़ाजीपुर, सिंघू बॉर्डर और हरियाणा के अंदर कई किलोमीटर भीतर स्थित पलवल और शाहजहांपुर के विरोध स्थलों पर भी देखे।

समर्थन में आगे आते टिकरी के लोग

रौनक छाबड़ा / बहादुरगढ़: “सरकार हमें जितना डराएगीहमारा आंदोलन उतना ही मज़बूत होगा।” ये शब्द दिल्ली के बाहरी इलाक़े में स्थित उस टिकरी बॉर्डर पर गूंज रही है, जहां पिछले साल नवंबर से हज़ारों किसान डेरा डाले हुए हैं।

यह बात दिल्ली पुलिस की तरफ़ से सुरक्षा को बढ़ाये जाने और विरोध स्थल को किसी क़िले  में तब्दील किये जाने के कुछ ही दिनों बाद से इस बात को अपेक्षाकृत ज़्यादा महसूस किया जा रहा है।

अब यहां विरोध स्थल तक पहुंचने वाले रास्तों में पीले बैरिकेड के साथ नुकीले पत्थर, बड़े-बड़े बोल्डर, कंसर्टिना वायर (नुकीले तार), कीलें, क्रेन और दूसरी कई चीज़ें के साथ-साथ शिपिंग कंटेनर भी हैं, दिल्ली पुलिस के मुताबिक़ ये सब क़दम गणतंत्र दिवस विवाद के बाद ज़रूरी उपाय के तौर पर उठाये गये हैं।

( फ़ोटो:टिकरी बॉर्डर पर पुलिस की बैरिकेडिंग)

पंजाब के मुख़्तार साहिब के 45 वर्षीय गुरप्रीत सिंह कहते हैं, “यहां इंटरनेट डाउन है, अस्थायी शौचालय को हटा दिया गया हैजबकि 26 जनवरी के बाद से नगर पालिका कर्मियों के यहां नहीं आने से कचरे जमा हो रहे हैं। पुलिस खाने के सामान और पीने के पानी के टैंकरों को भी हम तक पहुंचने की अनुमति नहीं दे रही है।"

हालांकि, वे आगे बताते हुए कहते हैं कि हरियाणा और यहां के स्थानीय लोग विरोध के समर्थन में आगे आये हैं, और उनका आना पुलिस सुरक्षा को बढ़ाये जाने के एक अनपेक्षित प्रभाव का नतीजा है।

यहां के इंतज़ाम पर गहरी नज़र डालने से इस बात का भी पता चलता है कि विरोध करने वाले किसानों के जोश ज़बरदस्त हैऔर वे अब यहां से हिलने के मूड में नहीं दिखते हैंऔर ऐसा लगता है कि वे इस मानसिक स्थिति में है कि अब जो भी होगा, देखा जायेगा।

भारतीय किसान यूनियन (मानसा) के उपाध्यक्ष, मेज़र सिंह रंधावा कहते हैं, “जब से उन्होंने हमें डराना शुरू किया हैहमें यहां के स्थानीय लोगों का समर्थन मिल रहा है। यहां के कारखाना मालिक हमें अपने निजी बिजली कनेक्शन का इस्तेमाल करने दे रहे हैंयहां के लोग किसानों को अपने शौचालय का इस्तेमाल करने दे रहे हैं।

इसी तरह की भावना हरियाणा के हिसार ज़िले की एक सामाजिक कार्यकर्ता, सुदेश गोयत की बातों से भी झलकती है, वह कहती हैं कि पुलिस ने हाल ही में जो क़दम उठाये हैं, उनसे ख़ासकर यहां की महिला और बुज़ुर्ग प्रदर्शनकारियों की परेशानियां बढ़ गयी हैं।

लेकिन, हमें उन स्थानीय लोगों से मदद मिल रही है, जिन्होंने हमें अपने शौचालय का इस्तेमाल करने की अनुमति दी हैवे हमें सुबह नहाने के लिए गर्म पानी भी मुहैया करा रहे हैं।

45 साल के अशोक कुमार एक किसान परिवार से आते हैं और उसी सड़क के किनारे एक दुकान चलाते हैंजहां इस समय किसान डेरा डाले हुए हैंउनका कहना है कि यहां तक़रीबन सभी लोग प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नीतियों से प्रभावित हुए हैं और यही कारण है कि वे किसान के डर को समझते हैं। वह कहते हैं, पहले किसान अपनी मर्ज़ी से जो कुछ भी लेना चाहते थे, आस-पड़ोस से ले आते थेलेकिन अब ऐसा इसलिए मुमकिन नहीं रह गया है, क्योंकि उनका खुलकर कहीं आना-जाना नामुमकिन हो गया है। ऐसे समय में हमस्थानीय लोगअक्सर उनके लिए रोज़मर्रे के इस्तेमाल की चीज़ें ले आते हैं।"

वह आगे कहते हैं, "हम ऐसा इसलिए करते हैं, क्योंकि हमें लगता है कि प्रदर्शनकारी किसानों और उनके मक़सद के साथ हमारा खड़ा होना हमारी ज़िम्मेदारी है।"

बुधवार, 3 फ़रवरी को हरियाणा के आस-पास के गांवों से ट्रैक्टरों का आना जारी रहा। इनमें सतरोल खाप की 60 वर्षीय शीला देवी भी शामिल थीं, जो हिसार की नारनौद तहसील से कुल 150 पुरुषों और महिलाओं के एक समूह के साथ यहां पहुंची थीं। वह कहती हैं, “हर हफ़्ते हम टिकरी सीमा पर आते हैं और अपने साथ किसानों के लिए रोज़मर्रे की ज़रूरी चीज़ें ले आते हैं। हमे मालूम था कि पुलिस ने राशन-पानी बंद कर दिया हैइसलिए इस बार हम अपने साथ लोगों की तरफ़ से मुहैया कराये गये 100 लीटर दूधलस्सीएक पानी का टैंकरऔर कुछ 100 के आस-पास गद्दे ले आये हैं।

इसी समूह के 35 वर्षीय राजबीर शर्मा बताते हैं कि किस तरह से इसके लिए पैसों का इंतज़ाम किया गया। वह न्यूज़क्लिक से बताते हैं, हमारे पंचायत ने दान की एक दर तय कर दी है- जिनके पास ज़मीन है, उन्हें 2,00 रुपये प्रति एकड़ दान करने के लिए कहा जा रहा हैजबकि, कुल 200 रुपये ऐसे परिवार से लिये जा रहे हैंजिनके पास ज़मीन नहीं हैवेतनभोगी आय वाले परिवार से 5,100 रुपये दान दिये जाने के लिए कहा जा रहा है।”  

नारनौद तहसील के पटवार गांव के शर्मा कहते हैं, '' 10-20 लाख रुपये का इंतज़ाम तो हमारे गांव से ही हो गया है।

इसके अलावाभले ही इंटरनेट की नाकेबंदी ने प्रदर्शनकारी को अपने गांवों में रह रहे परिवार से निजी वीडियो कॉल करने में रुकावट पैदा कर दी हो, लेकिन प्रदर्शनकारी किसान सूचनाओं के प्रवाह को बनाये रखने में कामयाब रहे हैं।

टिकरी बॉर्डर पर सक्रिय एक  मीडिया समूह-"किसान सोशल आर्मी" के संयोजक, अनूप सिंह बताते हैं कि इंटरनेट नाकाबंदी से शुरुआत में संचार को बनाये रखने में बड़ी चुनौतियां पेश आयी थीं।

लेकिन, उनके मुताबिक़ अब इस समस्या से पार पा लिया गया है। वह कहते हैं, "हममें से कुछ लोग दिल्ली की ओर 1 किमी के आस-पास चले जाते हैं और वहां से इंटरनेट का इस्तेमाल कर लेते हैं।" सिंह के नेतृत्व में तक़रीबन 90 लोग सूचना के प्रसार को लेकर एक विशाल नेटवर्क बनाते हुए पंजाब और हरियाणा में व्हाट्सएप समूहों को बनाए हुए हैं।

यह पूछे जाने पर कि इन दिनों उन समूहों में किस तरह की बातें शेयर की जा रही हैंसिंह इसका जवाब देते हुए कहते हैं कि इस समय उस चक्का जाम से जुड़ी जानकारियां ही इन समूहों में चर्चा का विषय हैं, जिसका आह्वान 6 फ़रवरी को किया गया है। वह बताते हैं, “हम यह सुनिश्चित कर रहे हैं कि चक्का जाम को लेकर कोई भी फ़र्ज़ी ख़बर प्रसारित न हो। हम चाहते हैं कि कार्यक्रम शांतिपूर्ण तरीके से आयोजित हो।”

ग़ाज़ीपुर के किसानों के मुताबिक़ जब तक हमारे नौजवान रिहा नहीं होते, तब तक कोई वार्ता नहीं

तरिक़ अनवर / ग़ाज़ीपुर: दिल्ली-मेरठ एक्सप्रेसवे पर ग़ाज़ीपुर विरोध स्थल के पास कई स्तर की बैरिकेडिंग की गयी है। जिन बैरिकेड में कंक्रीट ब्लॉक हैंवहां भी कंटीले तार लगाये गये हैं। अलग-अलग लेन में लोहे के बैरिकेड को इलेक्ट्रिक वेल्डिंग से एक दूसरे के साथ जोड़ दिया गया है।

दिल्ली के नज़दीक ग़ाज़ियाबाद और आस-पास स्थित कालोनियों की ओर जाने वाली तंग गलियों को भी पुलिस ने अवरुद्ध कर दिया है। यहां तक कि डॉक्टरों और अर्धसैनिक कर्मचारियों तक को फ़्लाईओवर के नीचे से गुज़रने वाली सड़क का इस्तेमाल करते हुए आने-जाने की अनुमति नहीं है।

( फ़ोटो: ग़ाज़ीपुर बॉर्डर पर पुलिस की तरफ़ से लगाये गये बैरिकेड और कंटीले तार)

पहले, एलिवेटेड रोड पर सिर्फ़ एक लेन पर ही किसानों का कब्ज़ा था, जबकि बाक़ी आठ लेन लोगों के आने-जाने को लिए खुले हुए थे। अबपुलिस ने सभी लेने पर बैरिकेडिंग कर दी हैजिससे उन लोगों को मुश्किलें पेश आ रही हैं, जो नियमित रूप से अपने-अपने मंज़िल तक पहुंचने के लिए सड़क का इस्तेमाल करते रहे थे।

पास स्थित ईएसआई अस्पताल में काम करने वाले और मैक्स अस्पताल में काम करने वाले उन दो डॉक्टरों को दिल्ली पुलिस के अधिकारियों के साथ बहस करते देखा गया गया, जो उन्हें ग़ाज़ियाबाद जाने की अनुमति नहीं दे रहे थे। इन डॉक्टरों में से एक ने ड्यूटी पर तैनात एक पुलिसकर्मी से अपने वरिष्ठ अधिकारी से बात कराने की मांग करते हुए पूछा, "मैं पेशे से डॉक्टर हूं। मुझे मरीज़ों की देखभाल करने की ज़रूरत है। अगर आप हमें जाने नहीं देंगेतो मैं अपने अस्पताल कैसे पहुंच पाऊंगा। क्या आपको नहीं लगता कि आप कई ज़िंदगियों को दांव पर लगा रहे हैं?”

उनके साथ मौजूद दूसरे डॉक्टर एक बहुत ही संकरी जगह से बैरिकेड के दूसरी ओर जाने में कामयाब तो रहेलेकिन उन्हें जल्द ही पीछे धकेल दिया गया। बैरिकेड्स पार कर चुके उस डॉक्टर को पुलिस पर ग़ुस्सा उतारते सुना जा सकता था, जो कह रहे थे," आप नागरिकों को स्वतंत्र आवाजाही के उनके अधिकार से वंचित कर रहे हैं। बिना किसी कारण के सड़कों को अवरुद्ध करना व्यवस्था का मखौल उड़ाना है। लोगों के अधिकार का इस अतिक्रमण से ज़्यादा क्रूर और कुछ नहीं हो सकता। वे कौन से क़ानून हैं, जो नागरिकों की असुविधा पैदा करने की अनुमति आपको देते हैं ?”

यहां तक कि मरीज़ों को ले जाने वाली एंबुलेंस को भी गुज़रने का रास्ता नहीं दिया जाता है। अक्षरधामआनंद विहार आदि की तरफ़ जाने वाले रूट को बदल दिया गया हैजिससे वैकल्पिक मार्गों पर भारी जाम लग गया है।

ज़बरदस्त आलोचना के बाद विरोध स्थल पर पानी और बिजली की आपूर्ति को बहाल कर दिया गया है।

पश्चिमी उत्तर प्रदेशहरियाणा और उत्तराखंड के हज़ारों किसानों का ग़ाज़ीपुर पहुंचना अब भी जारी है। 26 जनवरी की घटनाओं के बाद जो भीड़ थोड़ी हल्की पड़ गयी थी, वह फिर से बढ़ती हुई दिखायी दे रही है। प्रदर्शनकारी ज़्यादा लचीले दिख रहे हैं और इस विरोध को कमज़ोर करने वाली सरकार नियोजित हर कथित चाल को ध्वस्त करने की लड़ाई को लड़ने को लेकर प्रतिबद्ध दिख रहे हैं।

किसानों के बीच से एक किसान का कहना है, "हम शांतिपूर्ण बने हुए हैं और आगे भी बने रहेंगे। लेकिन, हम सरकार को आगाह करते हैं कि आगे वह किसी भी तहर का दुस्साहस न करे। हम अनुशासित हैं और अपने उन नेताओं का अनुसरण कर रहे हैंजिन्हें निशाना बनाया जा रहा है। सरकार को हमारे सब्र को हल्के में नहीं लेना चाहिए।”

ग़ाज़ीपुर में डेरा डाले हुए किसानों के नेताभारतीय किसान यूनियन (BKU) के राष्ट्रीय प्रवक्ता, राकेश टिकैत ने भी दोहराया कि वे लंबी लड़ाई के लिए तैयार हैं। टिकैत ने न्यूज़क्लिक को बताया, "हम इस साल अक्टूबर तक यहां डेरा डाले रहेंगे। बिल वापसी नहीं, तो घर वापसी नहीं। इस आंदोलन को आगे बढ़ाने की रणनीति अक्टूबर के बाद घोषित की जायेगी।"

यह पूछे जाने पर कि अगर किसान और सरकार दोनों वार्ता फिर से शुरू नहीं करेंगे,  यह गतिरोध कैसे ख़त्म होगा, इसका जवाब देते हुए वह कहते हैं कि किसानों की यूनियनों को वार्ता में शामिल होने से कभी कोई गुरेज़ नहीं है।

वह आगे बताते हैं, "लेकिन,  अब कोई भी संवाद तभी होगा,जब हमारे नौजवानों को रिहा कर दिया जायेगा और उनके ख़िलाफ़ मामले निरस्त कर दिये जायेंगे। दूसराअगर आगे कोई वार्ता होती है, तो यह वार्ता एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) पर बने इन क़ानूनों को निरस्त करने और एमएसपी की क़ानूनी गारंटी से कुछ भी कम पर नहीं होगी। हमने अब अपने एजेंडे में गन्ने के लिए समय पर किये जाने वाले भुगतान को भी जोड़ लिया है,ब तक सरकार अपने अहंकार को नहीं छोड़ती और किसी भी पूर्व शर्त के बिना बातचीत की मेज पर आने को लेकर सहमत नहीं होती है, तब तक यह मांग बढ़ती ही रहेगी।"

उनका दावा है,"यह जन-आंदोलन है और ऐसा ही बना रहेगा। सरकार इसे जितना ही ज़्यादा दबाने की कोशिश करेगीउतना ही यह आंदोलन मज़बूत होता जायेगा। हमें स्थानीय लोगों का ज़बरदस्त समर्थन मिल रहा है। लोग अब महसूस कर रहे हैं कि ये क़ानून न सिर्फ़ किसान विरोधी हैंबल्कि उपभोक्ताओं के भी ख़िलाफ़ भी। जमाखोरी से ज़रूरी सामानों के दाम बहुत बढ़ जायेंगे।यह विरोध सामाज की मनोवृत्ति को बहुत तेज़ी से बदला रहा है।"  

दिल्ली पुलिस ने तक़रीबन उन 200 लोगों की एक सूची जारी की है,जिन्हें राष्ट्रीय राजधानी और उस ऐतिहासिक लाल क़िले में हुई घटनाओं के बाद गिरफ़्तार कर लिया गया था,जहां 26 जनवरी (गणतंत्र दिवस) पर किसानों की ट्रैक्टर रैली के दौरान एक सिख धार्मिक झंडा उसके प्राचीर पर फ़हराया गया था।

उस घटना के बाद देशद्रोही होने के आरोपों पर टिप्पणी करते हुए उन्होंने कहा कि उन्होंने इस घटना की निष्पक्ष जांच की भी मांग की है। लेकिन, इसके साथ ही उन्होंने सत्तारूढ़ हुक़ूमत को चेतावनी भी दी है कि वे उन "निर्दोष" किसानों के ख़िलाफ़ साज़िश न करेंजो अब तक शांतिपूर्ण हैं।

वह कहते हैं, "हमें सत्ता में रह रहे लोगों से देशभक्ति के उपदेश लेने की ज़रूरत नहीं है। हमें अपने लड़कों के शव तक़रीबन हर रोज़ तिरंगे में लिपटे हुए मिलते हैं। इसके बावजूद, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, हरियाणा और पंजाब के नौजवान राष्ट्र के लिए अपने जीवन का बलिदान देना नहीं छोड़ते।" जिस पुलिस को हमारे ख़िलाफ़ कर दिया गया हैदरअस्ल वे भी तो किसानों के परिवार से ही आते हैं। इसलिएपुलिस की यह तैनाती और बैरिकेडिंग हमें नहीं रोक पायेंगे।"

वह आगे आरोप लगाते हुए कहते हैं कि 26 जनवरी को हुई हिंसा को सरकार विरोध स्थलों के आस-पास की जा रही इस क़िलेबंदी के पीछे की वजह बता रही हैऔर उस हिंसा को गुप्त रूप से आयोजित बता रही है।

वह कहते हैं, "मोटरबाइक पर सवार सादे कपड़ों में पुलिसकर्मियों ने उपद्रवियों को शहर में सुरक्षित दाखिल होने दिया था। उन्हें लाल क़िले की तरफ़ ले जाया गया था, ताकि हिंसा को अंजाम दिया जा सके और हमारे आंदोलन को बदनाम किया जा सके। सरकार इसमें कामयाब रही। लेकिन, लोगों को इस साज़िश का एहसास हो गया है। बहरहाल, जो कुछ भी हुआ, वह निंदनीय था और हम पहले ही उन लोगों से दूरी बना चुके हैं, जिन्होंने क़ानून और व्यवस्था को अपने हाथों में ले लिया था।”

वह यह भी सवाल उठाते हैं कि क्या इस कड़क सर्द मौसम में विरोध प्रदर्शन करते हुए 170 से ज़्यादा किसानों की ज़िदगी के मुक़ाबले ये क़ानून ज़्यादा अहम हैं। वह बताते हैं, "सरकार को अहंकार छोड़ देना चाहिए और हमारी मांगों को मान लेना चाहिए।"

टिकैत कहते हैं कि देश 6 फ़रवरी को संयुक्त किसान मोर्चे के आह्वान पर देश भर के विभिन्न ज़िलों के लोग की तरफ़ से किये जाने वाले उस 'चक्का जामकी कामयाबी को देखेगा। वह यह भी कहते हैं कि भले ही सभी राजनीतिक गलियारों से इस विरोध प्रदर्शन को लेकर एकजुटता का समर्थन किया गया हो, लेकिन राजनीतिक नेताओं को मंच से संबोधित करने की अनुमति नहीं दी जा रही है।

पलवल के स्थानीय गांव के लोग विरोध प्रदर्शन में शामिल

पलवल / शिंजनी जैन: 26 जनवरी को हरियाणा पुलिस की तरफ़ से किसानों की ट्रैक्टर परेड पर लाठीचार्ज शुरू होने के बाद से पलवल से सीकरी तक तक़रीबन 20 किलोमीटर दूर पलवल सीमा पर किसानों का आंदोलन तेज़ हो गया है।

गणतंत्र दिवस पर हुई उन घटनाओं के बाद पलवल बॉर्डर पर विरोध प्रदर्शन स्थल को पुलिस बलों द्वारा ख़ाली करा दिया गया था। हालांकिदिल्ली के आसपास अलग-अलग बॉर्डरों पर विरोध प्रदर्शन कर रहे किसानों पर सरकार की तरफ़ से शुरू की गयी कार्रवाई ने चल रहे आंदोलन को फिर से मज़बूती दे दी है और इससे पलवल में भीड़ लामबंद होना शुरू हो गयी है।

इस आंदोलन को दबाने के लिए सरकार के प्रयासों को लेकर अखिल भारतीय किसान सभा के अखिल भारतीय संयुक्त सचिवबादल सरोज कहते हैं, “जिस तरह से किसानों को अपमानित किया जा रहा है, उसने एक संदेश तो चला ही गया हैऔर उस संदेश ने देश भर के किसानों और पलवल के किसानों को प्रतिक्रिया के लिए प्रेरित किया है।”

 

( फ़ोटो: पलवल में महापंचायत)

31 जनवरी को पलवल सीमा पर एक महापंचायत का आयोजन किया गया था, जिसमें पलवल के आसपास के 52 पालों या पंचायतों के किसानों और पंचायत प्रमुखों (पाल पंच) ने बैठक की थी और पूरे जोश के साथ आंदोलन को जारी रखे जाने का प्रस्ताव पारित किया था। इस महापंचायत में 4,000 से ज़्यादा किसानों ने भाग लिया था। यह फ़ैसला लिया गया था कि अन्य राज्यों से आने वाले किसानों के समर्थन के साथ स्थानीय किसानों की ज़्यादा से ज़्यादा भागीदारी से पलवल में इस आंदोलन को मज़बूती दी जायेगी। उन्होंने फ़ैसला लिया था कि 52 गांवों में से हर एक गांव से कुल 20 लोग, यानी नौजवान और 10 बुज़ुर्ग इस विरोध प्रदर्शन में शामिल होंगे।

शुरुआती दो महीनों में इस पलवल बॉर्डर पर जमा हुई भीड़ में मध्य प्रदेशछत्तीसगढ़उड़ीसाउत्तर प्रदेशपंजाब और हरियाणा के किसान और संगठन शामिल हुई थे। लेकिन, अब पलवल के आसपास के गांवों के किसानों बड़े पैमाने पर संगठित होना शुरू हो गये हैं। 1 फ़रवरी को पुलिस बलों की भारी भीड़ के बीच, 2,000 से ज़्यादा किसानों की भागीदारी के साथ एक धरना और भूख हड़ताल फिर से शुरू हो गये हैं। आने वाले दिनों में उम्मीद है कि यह भीड़  5,000 लोगों तक पहुंच जायेगी।

सरकार की तरफ़ से विरोध स्थलों को क़िले में बदल दिये जाने और अन्य दमनकारी उपायों के अपनाने के जवाब में संयुक्त किसान मोर्चा ने 6 फ़रवरी को 12 बजे और 3 बजे के बीच राष्ट्रीय और राज्यों के हाईवे पर चक्काजाम (यातायात नाकेबंदी) का आह्वान किया है। पलवल से गुज़रने वाले हाईवे भी 6 फ़रवरी को अवरुद्ध किया जायेगा।

एआईकेएस की इस कार्रवाई योजना पर चर्चा करते हुए बादल सरोज कहते हैं कि किसानों के इस आंदोलन ने अब एक नया आकार ले लिया है और इस आंदोलन का ज़्यादा ध्यान स्थानीय गांवों के लोगों तक पहुंच बनाने और श्रमिकों के साथ अपने हाथ मिलाने पर है। इसी सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए एआईकेएस ने 3 फ़रवरी को बिजली विभाग के कर्मचारियों, इंजीनियरों और श्रमिकों से भी नये बिजली संशोधन बिल के विरोध में प्रदर्शन का आह्वान किया है।

बिना क़िलेबंदी के धरना प्रदर्शन जारी

शाहजहांपुर / रौनक छाबड़ा: इस स्थल पर पुलिस की नियमित मौजूदगी तो है,लेकिन सिंघूटिकरी और ग़ाज़ीपुर के विरोध स्थलों के उलट यहां क़िलेबंदी नहीं की गयी है। यह विरोध स्थल, हरियाणा-दिल्ली सीमा से तक़रीबन 80 किलोमीटर दूर राजस्थान सीमा पर स्थित है। यहां 53 दिनों से विरोध प्रदर्शन चल रहा है।

राजस्थान के किसान यहां डेरा डाले हुए हैं और 26 जनवरी के बाद यहां आने वालों की तादाद लगातार बढ़ रही हैइनमें सैकड़ों स्थानीय निवासी शामिल हो रहे हैं।इनके साथ ओडिशा और केरल से आने वाले किसान प्रतिनिधि भी शामिल हो गये हैं।

( फ़ोटो:शाहजहांपुर बॉर्डर पर किसानों का विरोध प्रदर्शन)

राजस्थान के अखिल भारतीय किसान सभा के नेता, संजय माधव कहते हैं, “हमें स्थानीय ग्रामीणों का अच्छा-ख़ासा समर्थन मिल रहा है। वे खाने-पीनेबिस्तर आदि के साथ मदद कर रहे हैंऔर धरने में भी शामिल हो रहे हैं।”

किसानों की मनोदशा मज़बूत और जोश से भरी हुई है। वे उसी बात को दोहराते हैं, जिसे दूसरे बाक़ी विरोध स्थलों में कहा जा रहा है और वह यह कि वे तब तक अपना विरोध जारी रखेंगे, जब तक कि काले क़ानून वापस नहीं ले लिए जाते।

एक ऐसा आंदोलन,जो सरकार को हिलाकर रख देगा: सिंघू बोर्डर से किसान

रवि कौशल / सिंघू: कंटीले तारों और बढ़ती सुरक्षा के बीच हरियाणा के सोनीपत ज़िले के बिदलान गांव से दिल्ली के सिंधू बॉर्डर तक 35 किमी का सफ़र तय करने वाले महिलाओं के एक समूह का रुक-रुककर लगते नारे हवाओं में गूंज रहे हैं। नारे लगाने वाली ये महिलायें उन्हीं पड़ोसी राज्यों-हरियाणा और पंजाब की दोस्ती का जश्न मनाते हुए दिख रही हैंजो कभी पानी के बंटवारे को लेकर आपस में रगड़-झगड़ रहे थे।

इस बड़े समूह के सदस्यों में से एक, मोनिका दहिया का कहना है कि बैरिकेडिंगकांटेदार तार और खड़े किये गये कीलें चाहे जितने भी बिछा लें, मगर इस आंदोलन को अब कोई नहीं रोक सकता, इसमें शामिल होने वालों की भीड़ रोज़-ब-रोज़ बढ़ती ही जा रही है। वह सवाल करती हैं, हिंसा तो इन्हीं पत्थर-कंक्रीट वाले बैरिकेड्स और कंटीले तारों को लगाये जाने का एक ऐसा बहाना थीजो सरकार की तरफ़ से प्रायोजित थी। आख़िर लगातार दो महीनों से लड़े रहे और शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे किसान इस आंदोलन को लेकर हंगामा और हिंसा क्यों करेंगे? ”  

इस संघर्ष को जारी रखने के संकल्प के साथ वह कहती हैं, “हम तो महज़ एक ट्रैक्टर के साथ आये थे, लेकिन अब तो ज़्यादा से ज़्यादा लोग अपने-अपने ट्रैक्टरों के साथ इस बॉर्डर तक पहुँचेंग। मोदी हमारी ताक़त को कम करके आंक रहे हैं। हमने कभी इतने लंबे समय तक अपने ही लोगों की इच्छा का अनादर करने वाले प्रधानमंत्री के बारे में कभी नहीं सुना है। वह तो अंग्रेज़ों की तरह काम कर रहे हैं। पहले तो उन्होंने हमारे अनाज बेच दिये, फिर हमारी मंडियां बेच दीं और अब हमारी ज़मीन पर नजर गढ़ाये हुए हैं।'

( फ़ोटो: सिंघू बॉर्डर पर महिला किसान)

26 जनवरी को हुई घटनाओं और एक न्यायाधीश की उस टिप्पणियों के बाद, जिसमें उन्होंने किसानों के विरोध प्रदर्शनों में महिलाओं की भागीदारी पर सवाल उठाया थाअब और ज़्यादा महिला प्रदर्शनकारी इन विरोध स्थलों पर प्रदर्शन कर रही हैं।

यह पूछे जाने पर कि क्या उन्होंने कभी इस ऐतिहासिक संघर्ष में भाग लेने के बारे में सोचा था, दहिया न्यूज़क्लिक से कहती हैं, “नहींमैंने कभी इतने लंबे आंदोलन का हिस्सा बनने के बारे में कभी नहीं सोचा था, लेकिन मोदी ने हमें ग़लत का विरोध करने के लिए सड़कों पर उतरने के लिए मजबूर कर दिया है।”

बिदलान से ट्रैक्टर के साथ आने वाले राकेश बिदलान का कहना है कि वह हर दिन इस विरोध प्रदर्शन में शामिल होने के लिए दृढ़संकल्पित हैं। वह कहते हैं, सही में इस बात से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता कि पुलिस सड़कों पर कीलें लगा रही है। अगर वे चाहें तो तोप भी तैनात कर सकते हैंलेकिन किसान तब तक नहीं डिगेंगे, जब तक हमारी मांग पूरी नहीं हो जाती।”

 

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

On Delhi’s Borders, Trenches, Barricades and Spikes – But Morale High as Thousands Stream In

 

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