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गृह राज्यमंत्री की बर्ख़ास्तगी के लिए लखीमपुर में किसानों का आज से 75 घंटे का महापड़ाव

यह आज़ादी के 75 वर्ष के बाद भी, ‘अमृत महोत्सव’ वर्ष में  किसानों के साथ हो रहे महा-अन्याय के प्रतिकार का संकल्प है।
kisan andolan
Image courtesy : The Indian Express

संयुक्त किसान मोर्चा का आज से लखीमपुर में 75 घंटे का महापड़ाव है। यह आज़ादी के 75 वर्ष के बाद भी, अमृत महोत्सव वर्ष में  किसानों के साथ हो रहे महा-अन्याय के प्रतिकार का संकल्प है। किसान लखीमपुर जनसंहार के मुख्य अभियुक्त आशीष मिश्र मोनू के पिता, जिन्हें किसान साजिशकर्ता मानते हैं- मोदी सरकार के गृह राज्यमंत्री अजय मिश्र टेनी की बर्खास्तगी की माँग कर रहे हैं।

आरोप है कि पिछले साल 3 अक्टूबर को लखीमपुर के तिकोनिया में  टेनी के बेटे ने SUV चढ़ाकर 4 किसानों और एक पत्रकार की हत्या कर दी थी। इस जनसंहार से एक सप्ताह पूर्व टेनी ने किसानों को धमकाते हुए भरी सभा में कहा था कि वे मंत्री और सांसद बनने से पहले कुछ और थे तथा उन्हें ठीक करने में उनको 2 मिनट से अधिक नहीं लगेगा। इशारों में सिख किसानों के खिलाफ साम्प्रदायिक उन्माद भड़काते हुए उन्होंने चेतावनी  दी थी कि " निघासन-पलिया ही नहीं पूरे लखीमपुर और प्रदेश से खदेड़वा दूंगा। "

उन टेनी महाशय को मोदी जी आज तक अपने मंत्रिमंडल में गृह राज्यमंत्री के पद पर बनाये हुए हैं। किसानों ने अपने आंदोलन के नए चरण में टेनी की बर्खास्तगी के लिए दबाव बढ़ाते हुए लखीमपुर में इस मोर्चे के ऐलान किया है।

इसमें भाग लेने के लिए पूरे देश से किसान आ रहे हैं। कार्यक्रम के लिए मोर्चे की तैयारी समिति की रिपोर्ट के अनुसार लखीमपुर मंडी में महापड़ाव की तैयारियां पूरी हो चुकी है। बाहर से आने वाले किसानों के लिए लंगर और ठहरने की पर्याप्त व्यवस्था 17 अगस्त से ही है। बाहर से आने वाले किसानों के लिए लखीमपुर पहुँचने से पहले ठहराव रेलवे स्टेशन सीतापुर में लंगर की व्यवस्था की गई है। 

दरअसल, लखीमपुर प्रकरण हमारे लोकतन्त्र के लिए एक Test case है। मोदी सरकार ने किसानों और लोकतान्त्रिक जनमत की मांग को ठुकराकर जिस  धृष्टता के साथ किसानों के जनसंहार के मुख्य अभियुक्त के संरक्षक को गृह राज्यमंत्री जैसे संवेदनशील मंत्रालय में बनाये रखा है वह अकल्पनीय  है। पिछले दिनों सर्वोच्च न्यायालय द्वारा गठित SIT ने भी इसे एक pre-planned conspiracy बताते हुए लखीमपुर के CJM से  निवेदन किया कि मुकदमे में पहले से दर्ज " लापरवाही और rash driving से मौत " को हटा दिया जाय और उसकी जगह सचेत ढंग से हत्या तथा सांघातिक चोट पहुंचाने की धारा जोड़ी जाय।

13 महीने चले किसान आंदोलन में वैसे तो मोदी सरकार द्वारा ढाए गए जुल्म, साजिशों, क्रूरता, वायदाखिलाफी के अनगिनत प्रसंग हैं, पर लखीमपुर उसका मूर्तिमान स्वरूप और सर्वोच्च प्रतीक है। 

आखिर एक ऐसा व्यक्ति जिसका गृह राज्यमंत्री के पद पर रहते हुए सिख किसानों को धमकाते हुए वीडियो पूरे देश-दुनिया में वायरल है, जिसकी गाड़ी से उसका बेटा चंद दिनों के अंदर किसानों का योजनाबद्ध ढंग से जनसंहार करता है, जिसे सर्वोच्च न्यायालय की SIT  अपनी रिपोर्ट में स्वीकार करती है, इतना सब होने के बाद भी वह देश के गृह राज्यमंत्री जैसे पद पर कैसे बना रह सकता है?

अव्वल तो उसे साजिश रचने और साम्प्रदायिक वैमनस्य भड़काने के आरोप में जेल में होना चाहिए था, वह तो नहीं ही हुआ, अब यह जो न्याय का न्यूनतम तकाज़ा है कि ऐसे व्यक्ति को केंद्र सरकार के मंत्रीपद पर वह भी गृहराज्य मंत्री जैसे पुलिस प्रशासन व सुरक्षा से जुड़े पद पर नहीं रहना चाहिए, वह भी मोदी-शाह नहीं कर रहे हैं, फिर हत्या के मुख्य आरोपी उनके बेटे के खिलाफ निष्पक्ष जांच और इंसाफ की उम्मीद कोई कैसे कर सकता है?

यह साफ है कि एकछत्र सत्ता के अहंकार में डूबी मोदी-शाह की भाजपा को किसी की परवाह नहीं। वह न्यायिक प्रक्रिया और लोकतान्त्रिक मर्यादा के सभी मानदंडों को मिटा देने पर आमादा है।

जाहिर है, यह महज किसानों का मुद्दा नहीं है। जनभावना के प्रति यह क्रूर हिकारत और सत्ता का गुरूर पूरे समाज का, सभी न्यायप्रिय लोगों का, सम्पूर्ण नागरिक समाज का मुद्दा बनना चाहिए। 

किसानों ने अपने धारावाहिक आंदोलन के नए चरण में जिन मुद्दों पर जोर देने का फैसला किया है वह एक complete पैकेज है। मसलन  MSP पर मोदी सरकार की वायदा-खिलाफी के विरुद्ध वे अलख जगा रहे हैं, फिर नौजवानों और पूर्व सैनिकों के साथ मिलकर युवा और किसान विरोधी अग्निपथ योजना के खिलाफ सम्मेलन और पंचायतें कर रहे हैं, अब वे लखीमपुर के माध्यम से लोकतन्त्र और इंसाफ के सवाल को लेकर उतर रहे हैं।

संयुक्त किसान मोर्चा की ओर से जारी बयान में कहा गया है :

" 18 अगस्त को सुबह 10 बजे से लगातार 75 घंटों तक चलने वाले इस महापड़ाव के जरिए किसान सरकार की वादाखिलाफी और किसानों के प्रति सरकार की बदले की भावना से प्रेरित कार्यवाहियों की ओर देश का ध्यान आकर्षित करेंगें। 21 अगस्त को धरने का समापन होगा। धरने के दौरान सरकार के समक्ष निम्न मांगें दोहरायी जाएंगी-

* लखीमपुर खीरी जिला के तिकोनिया में चार किसानों और एक पत्रकार की हत्या करने की साजिश रचने के मामले में दोषी केन्द्रीय गृह  राज्यमंत्री अजय मिश्र टेनी को मंत्रिमंडल से बर्खास्त किया जाए और गिरफ्तार करके जेल भेजा जाए।

* लखीमपुर खीरी हत्याकांड में जो किसानों को निर्दोष होते हुए भी जेल में बंद किया है उनको तुरन्त रिहा किया जाए और उनके ऊपर मढ़े केस तुरन्त वापस लिए जाएं। शहीद किसान परिवारों एवं घायल किसानों को मुआवजा देने सरकार वादा पूरा करे। 

* सभी फसलों के ऊपर स्वामीनाथन कमीशन की सिफारिशों के आधार पर सी-2 +50% के फार्मूले से एमएसपी की गारंटी का कानून बनाया जाए और केन्द्र सरकार द्वारा एम एसपी पर गठित किसान विरोधी कमेटी को रद्द करते हुए सभी फसलों की बिकवाली एमएसपी पर होने की निगरानी के लिए समिति का गठन दोबारा हो। 

* किसान आन्दोलन के दौरान केन्द्र शासित प्रदेशों व अन्य राज्यों में जो केस किसानों के ऊपर लादे गए, सभी तुरंत  वापस लिए जाएं। 

*  जनविरोधी बिजली बिल 2022 वापस लिया जाए।

*  भारत के सभी किसानों के सभी प्रकार के कर्ज समाप्त करते हुए उन्हें ऋणमुक्त किया जाए। 

*  उत्तर प्रदेश की सभी गन्ना मिलों की तरफ किसानों की बकाया राशि तुरंत जारी की जाए।

* वर्षों से जंगल को आबाद कर  देश के विभिन्न प्रांतों से आए लखीमपुर एवं अन्य जनपदों से आकर बसे किसानों यहाँ तक कि मूलनिवासियों को ज़मीन से बेदख़ल करने के नोटिस देने बंद किए जाएं। "

अपने आंदोलन के नए चरण की तैयारी में किसान नेता ज़ोरशोर से प्रचारयुद्ध में उतरे हुए हैं। राकेश टिकैत ने मेरठ में ललकारा,  "किसानों के दर्द को लेकर किसान यूनियन का युद्ध अभी थमा नहीं है। जिंदा रहने और जमीन बचाने के लिए गरीबों, मजदूर- किसानों को फिर आंदोलन में उतरना होगा। किसानों की समस्याओं का  समाधान नहीं होता और हमारी मांगें मानी नहीं जाती तो दिल्ली आंदोलन की तर्ज पर किसान अपने ट्रैक्टर पर झोंपड़ी और झंडे लगाकर तैयार रहें। किसानों को अब आंदोलन में देर नहीं करनी चाहिए। एक और झटका आंसूगैस और फायर ब्रिगेड का झेलना पड़ेगा। इस बार फायर ब्रिगेड का मुकाबला ट्रैक्टरों से होगा। उन्होंने कहा अग्निवीर हमारे गांव के ही बच्चे बनेंगे। पिता नौकरी करेंगे, बच्चे रिटायर होकर घर आएंगे। " 

भावुक टिकैत ने आगे कहा, " एक टिकैत की कुर्बानी यह देश चाह रहा है और इसके लिए टिकैत परिवार तैयार है। हम पीछे नहीं हटेंगे।" आने वाले दिनों में मेरठ में नई मोर्चेबन्दी का इशारा करते हुए उन्होंने कहा, "आज़ादी की क्रांति मेरठ से शुरू हुई थी और इस आंदोलन की क्रांति भी यहीं से शुरू होगी। " 

एक ऐसे दौर में जब स्वयं सरकार तथा न्यायालय द्वारा तय मानदंडों का खुला violation करते हुए सत्ता शीर्ष के इशारे पर हत्यारे और बलात्कारी छोड़े जा रहे हैं और सारी मानवीय और लोकतान्त्रिक मर्यादाओं को तार तार किया जा रहा है, यह किसान आंदोलन का सतत दबाव है कि मंत्री-पुत्र  जेल में है, उसकी ज़मानत सर्वोच्च न्यायालय और हाई कोर्ट से खारिज हो रही है। 

अपनी अखंड सत्ता के बल पर मोदी-शाह भले टेनी को अब तक मंत्री बनाये हुए हैं, लेकिन किसान आंदोलन को इस बात का श्रेय दिया जाना चाहिए कि लखीमपुर जनसंहार के खिलाफ लड़ाई जारी रखते हुए उसने सरकार के किसान विरोधी चेहरे और नैतिक आवरण को नोंच कर रख दिया है।

लखीमपुर जनसंहार के दोषियों को सजा दिलाने का सवाल देश में लोकतन्त्र की कसौटी बना रहेगा और आने वाले दिनों में लोकतन्त्र की रक्षा और पुनर्बहाली की लड़ाई को प्रेरित करता रहेगा।

(लेखक इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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