Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

जनसंख्या वृद्धि पर दूरदर्शी नीतियों की जगह उन्मादी बहस

ज़्यादा जनसंख्या ताक़त हो सकती है, अगर वह कार्यकुशल हो, शिक्षित हो और हर कुशल हाथ को काम मिले, अगर सरकार यह कर पाने में अक्षम है तो जनसंख्या वाकई समस्या है।
population
फ़ोटो साभार: FII

जो लोग भारतीय समाज, इसकी परिस्थितियां, जरूरतें और मानसिकता को समझते हैं या जो ग्रामीण पृष्ठभूमि से आते हैं, वे जानते हैं कि एक-दो दशक पहले तक देश के अधिकांश जिलों में कायदे के अस्पताल तक नहीं थे। कुछ ही दशक पहले की बात है जब इस देश में हैजा, फ्लू, डायरिया, चेचक और बुखार से लाखों की संख्या में लोग मारे जाते थे। जब सामान्य बीमारियों पर मनुष्य का नियंत्रण न के बराबर था तो आम लोग इसे दैवी प्रकोप मानते थे और अपने स्तर पर उससे निपटने की तैयारियां करते थे। इन्हीं तैयारियों में से एक तरीका यह भी था कि हर जोड़ा अधिकतम बच्चे पैदा करता था ताकि अगर कुछ दैवी प्रकोप का शिकार हो जाएं तो भी कुछ बचे रहें और वंश चलता रहे। निरबंसिया होना हमारे समाज में आज भी अभिशाप माना जाता है।

कोई बुजुर्ग जिसने आज के 30-40 साल पहले 5-7 बच्चे पैदा किए हों, कभी आपने उससे बात की है? वे उस युग में थे जब उत्तरजीविता का सिद्धांत प्रत्यक्ष रूप से लागू होता था। घर में जितने पुरुष होंगे, उतनी लाठियां होंगी, उतने हाथ होंगे, उतना जनबल होगा, परिवार उतना ही मजबूत होगा। तब जागरूकता नहीं थी। परिवार नियोजन जैसी प्रचारित की गईं तो आम जनता ने उसे सरकार का षडयंत्र माना। इंदिरा गांधी के कार्यकाल में नसबंदी अभियान का हश्र सबको पता है। कुल-मिलाकर आप यह निष्कर्ष निकालेंगे कि ज्यादा बच्चे पैदा करने की असली वजह आर्थिक और शैक्षिक पिछड़ापन था।

आज हालात बदल चुके हैं। जिनके पिताओं ने 8 या 10 बच्चे पैदा किए थे, उन्हीं परिवारों के युवा अब एक या दो बच्चे पैदा कर रहे हैं और यह किसी सरकार ने नहीं किया। यह शिक्षा और आर्थिक परिस्थितियों के बदलने से संभव हुआ है।

हाल ही में यूनाइटेड नेशंस पॉपुलेशन फंड (UNFPA) की रिपोर्ट आई, जिसके मुताबिक 142.86 करोड़ जनसंख्या के साथ भारत अब दुनिया में सबसे ज्यादा आबादी वाला देश बन गया है। फिलहाल भारत में 25% आबादी 0-14 साल, 68% आबादी 15-64 साल और 7% आबादी 65 साल से ज्यादा आयु वर्ग की है। भारत इस वक्त दुनिया में सबसे ज्यादा युवा आबादी वाला देश भी है।

दूसरी तरफ, भारत में पिछले कुछ समय से जनसंख्या नियंत्रण कानून चर्चा में है। हाल ही में केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद सिंह पटेल ने बयान दिया था कि देश में जल्द ही जनसंख्या नियंत्रण कानून लागू किया जाएगा। उससे पहले 4 बच्चों के पिता और गोरखपुर से सांसद रविकिशन ने टू चाइल्ड पॉलिसी का बिल पेश किया। इसके अलावा, भाजपा के लिए माहौल बनाने वाले बाबा रामदेव जैसे लोग भी जनसंख्या नियंत्रण कानून मांग कर चुके हैं। भाजपा सांसद गिरिराज सिंह चीन की वन चाइल्ड पॉलिसी का हवाला देते हुए दो से ज्यादा बच्चे पैदा करने वाले से वोटिंग का अधिकार छीनने की भी सिफारिश कर चुके हैं। वे दो दिन पहले भी इसके लिए मुसलमानों को जिम्मेदार ठहरा चुके हैं। समय-समय पर आरएसएस के शीर्ष नेताओं से लेकर भाजपा के कई मंत्रियों और नेताओं के बयान यह बताते हैं कि जनसंख्या नियंत्रण कानून भाजपा-आरएसएस का एजेंडा है और उनके निशाने पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से मुस्लिम समुदाय होता है।

संभव है कि यूनाइटेड नेशंस के आंकड़े आने के बाद जनसंख्या नियंत्रण बिल पर बहस और तेज हो, लेकिन बीते सालों में भारत में जनसंख्या पर जो बहस होती रही है, वह तर्क पर नहीं बल्कि उन्माद पर आधारित रही है। हमारी पिछली पीढ़ी के हिंदुओं के विशालकाय संयुक्त परिवारों को नजर अंदाज करके देश की बढ़ती आबादी के लिए सीधे तौर पर मुसलमानों को जिम्मेदार ठहराया जाता है। सोशल मीडिया पर जिस तरह के मैसेजेज तैरते रहते हैं, वे आप सभी ने देखे होंगे। सारी बहसें या तो छिछले तौर पर जनसंख्या वृद्धि के हानि-लाभ पर केंद्रित होती हैं या फिर सीधे तौर पर यह कि "जल्द ही मुस्लिम आबादी हिंदुओं को पछाड़ देगी और भारत में मुस्लिमों का राज आ जाएगा।"

हालांकि, अगर जनसंख्या से जुड़े तथ्य, आंकलन और आंकड़े भाजपा के इस एजेंडे का साथ नहीं देते। 2020 में मेडिकल जर्नल 'द लैंसेट' ने वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी का एक अध्ययन प्रकाशित (https://www.healthdata.org/) किया था जिसमें संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या डिवीजन के हवाले से कहा गया था कि इस सदी के अंत तक भारत की जनसंख्या 30 करोड़ घटकर 100 करोड़ के आसपास रह जाएगी। इस दौरान विश्व की जनसंख्या में भी करीब 2 अरब की गिरावट आएगी। इस दौरान चीन की जनसंख्या जो आज 142 करोड़ है, घटकर 73 करोड़ के आसपास रह जाएगी।

रिपोर्ट कहती है कि पूरी दुनिया में प्रजनन दर (total fertility rate-TFR) में गिरावट आ रही है। भारत में भी पिछले सात दशक में प्रजनन दर में उल्लेखनीय गिरावट आई है। 1950 में भारत की प्रजनन दर 5.6 थी। इसका मतलब यह हुआ कि एक महिला से औसतन 5.6 बच्चे पैदा हो रहे थे। 2017 में भारत की प्रजनन दर घटकर 2.14 पर आ गई थी। ताजा रिपोर्ट कहती है कि भारत की प्रजनन दर 2023 में 2.0 है। साल 2100 तक भारत की प्रजनन दर घटकर 1.29 रह जाएगी और तब भारत की जनसंख्या घटकर 1 अरब के आसपास होगी। वैश्विक स्तर पर प्रजनन दर 2017 में 2.4 थी, 2100 तक यह 1.7 तक पहुंच जाएगी।

विश्व की जनसंख्या फिलहाल 8 अरब से कुछ ज्यादा है। वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी की रिपोर्ट के मुताबिक, वैश्विक जनसंख्या 2064 तक बढ़ेगी और 9.7 अरब तक पहुंचेगी। इसके बाद इसमें गिरावट आनी शुरू होगी और सदी के अंत तक 8.8 अरब रह जाएगी। भारत में यह गिरावट 2060 से ही शुरु हो सकती है। हालांकि, 2100 में भारत सबसे ज्यादा जनसंख्या वाला देश रहेगा, उसके बाद नाइजीरिया होगा। चीन तीसरे स्थान पर पहुंच चुका होगा।

भारत समेत दुनिया के कई देशों में प्रजनन दर में गिरावट के कारण रिप्लेसमेंट लेवल घट गया है। आगे चलकर इसके गंभीर आर्थिक और सामाजिक नतीजे आएंगे। इसका असर देशों की जीडीपी और यहां तक कि विश्व-व्यवस्था पर भी पड़ेगा। हालांकि संयुक्त राष्ट्र के एक अन्य अनुमान के मुताबिक, विश्व के आधे से ज्यादा देशों में जनसंख्या वृद्धि दर में रिप्लेसमेंट दर में कमी आ रही है और इस सदी के अंत तक दुनिया की जनसंख्या वृद्धि दर शून्य हो सकती है।

इन अनुमानों से पता चलता है कि जिस तरह चीन की जनसंख्या अपने उच्च स्तर पर पहुंचकर अब घटनी शुरू हो गई है, चंद दशक में ऐसी ही स्थिति भारत में आने वाली है। आज भारत की काम करने लायक 68% आबादी कुछ ही साल में बूढ़ी होनी शुरू हो जाएगी और प्रजनन दर कम होने के चलते जनसंख्या तेजी से घटेगी। ऐसे में जनसंख्या नियंत्रण कानून के औचित्य पर गंभीर प्रश्न उठते हैं।

यह जो काम करने लायक 68% आबादी की ताकत है, इसे लेकर भारत की क्या योजना है? संयुक्त राष्ट्र के आंकड़े आने के बाद चीन ने जो प्रतिक्रिया दी, उस पर ध्यान दिया जाना चाहिए। चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने टिप्पणी की कि "आबादी का फायदा सिर्फ जनसंख्या बढ़ाने से ही नहीं मिलता है बल्कि इसके लिए उस आबादी में क्वालिटी भी होनी चाहिए।"

चीन जो कह रहा है वह कोई नई बात नहीं है। जनसंख्या और अर्थव्यवस्था के विशेषज्ञ डेमोग्राफिक डिविडेंड की बातें बहुत पहले से कहते रहे हैं। लगभग तीस साल पहले जब चीन की अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़नी शुरू हुई तो उसकी कुल आबादी का 85% वर्कफोर्स में शामिल थी। भारत में आज कुल आाबादी का सिर्फ 52% वर्कफोर्स में शामिल है। इसमें महिलाओं की भागीदारी सिर्फ 20% है जबकि चीन में यह 61% है। वर्कफोर्स में महिलाओं की भागीदारी का ग्लोबल औसत 47% है, यानी भारत वैश्विक औसत से काफी पीछे है।

भारत की काम करने योग्य युवा आबादी बेरोजगारी का सामना कर रही है। रोजगार देने के संदर्भ में मौजूदा सरकार की नौ साल की उपलब्धि यह रही कि भारत ने 45 सालों की रिकॉर्ड बेरोजगारी का सामना किया। नोटबंदी, जीएसटी और तुगलकी लॉकडाउन जैसी नीतियों ने उद्योगों को तबाह किया है और सरकारी स्तर पर 30 लाख पद खाली होने को लेकर विपक्ष लगातार सरकार पर हमलावर है। नौकरियों की हालत यह है कि प्रधानमंत्री कुछ हजार नियुक्ति पत्र बांटने के लिए समारोह आयोजित कर रहे हैं।

ईज ऑफ डूइंग बिजनेस और मेक इन इंडिया के बाद भी बाहर से निवेश आ नहीं रहा है। विश्वबैंक की एक रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2000 से लेकर 2010 के बीच भारत में इंवेस्टमेंट ग्रोथ 10.5% की सालाना दर से बढ़ रहा था लेकिन 2011 से 2021 के बीच इसमें भारी गिरावट आई और यह महज 5.7% रह गया।

ज्यादा जनसंख्या ताकत हो सकती है, अगर वह कार्यकुशल हो, शिक्षित हो और हर कुशल हाथ को काम मिले, अगर सरकार यह कर पाने में अक्षम है तो जनसंख्या वाकई समस्या है। लेकिन घटती प्रजनन दर और कम होते रिप्लेसमेंट लेवल की वजह से जल्द ही यह जनसंख्या भी घटनी शुरू हो जाएगी। हमारे पास दो से तीन दशक का अवसर है कि दुनिया की सबसे ज्यादा और सबसे युवा आबादी को काम में लगाकर इसका लाभ उठाएं। इस अवसर पर बात न करके जनसंख्या के मुद्दे पर हिंदू-मुस्लिम नजरिये से बहस करना यह दिखाता है कि हमारे देश का नेतृत्व निहायत अक्षम, अदूरदर्शी और नकारा है जिसके पास भविष्य की योजनाएं तो नहीं हैं लेकिन वर्तमान में लोगों को आपस में बांटने के लिए उन्मादी राजनीति जरूर है। 

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)  

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest