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गांधी-जेपी की विरासत: सुप्रीम कोर्ट ने ख़ारिज की सर्व सेवा संघ की याचिका

सर्व सेवा संघ ने बनारस के राजघाट में 12.898 एकड़ भूखंड पर बने ढांचों को गिराने के लिए उत्तर रेलवे द्वारा जारी नोटिस को चुनौती देते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट का रुख किया था, जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई।
sarva sewa sangh

वाराणसी के सर्व सेवा संघ भवन मामले की आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई, जिसमें सीजेआई की ओर से गठित विशेष खंडपीठ के जस्टिस ऋषिकेश राय और जस्टिस पंकज मित्तल ने वादी का पक्ष जानने के बाद याचिका खारिज कर दी। कोर्ट ने सर्व सेवा संघ का भवन महापुरुषों के जुड़े होने और ऐतिहासिक साक्ष्य का अवलोकन किया। सुप्रीम कोर्ट ने दस्तावेजों को अपर्याप्त मानते हुए सर्व सेवा संघ की याचिका खारिज कर दी। सर्व सेवा संघ को अब सरकार से उम्मीद है। इसके अलावा हाईकोर्ट के निर्देशों के मुताबिक, सर्व सेवा संघ बनारस के सिविल कोर्ट में नए सिरे से याचिका दायर कर सकता है।

सुप्रीम कोर्ट में जाने-माने अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने सर्व सेवा संघ की ओर से पैरवी की। पिछली तारीख पर उन्होंने भवन के गांधी, जेपी और विनोबा से जुड़े इतिहास से बारे में जानकारी देते हुए ध्वस्तीकरण रोकने की मांग की थी। कोर्ट को दलील दी कि महात्मा गांधी के विचारों और दर्शन का प्रचार करने के लिए आचार्य विनोबा भावे ने 1948 में सर्व सेवा संघ की स्थापना की थी और अब स्थानीय प्रशासन द्वारा इमारत को ढहाने की कोशिश की जा रही है।

सर्व सेवा संघ ने बनारस के राजघाट में 12.898 एकड़ भूखंड पर बने ढांचों को गिराने के लिए उत्तर रेलवे द्वारा जारी नोटिस को चुनौती देते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट का रुख किया था।

संस्था का कहना है कि वाराणसी के ‘परगना देहात’ में उसके परिसर के लिए जमीन उसने केंद्र सरकार से साल 1960, 1961 और 1970 में तीन पंजीकृत सेल डीड के माध्यम से खरीदी थी। सर्व सेवा संघ की स्थापना मार्च 1948 में भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद की अध्यक्षता में हुई थी। विनोबा भावे के मार्गदर्शन में करीब 62 साल पहले सर्व सेवा संघ भवन की नींव रखी गई। इसका मकसद महात्मा गांधी के विचारों का प्रचार-प्रसार करना था।

सर्व सेवा संघ के राष्ट्रीय मंत्री डा. आनंद किशोर के मुताबिक, साल 1960 में इस जमीन पर गांधी विद्या संस्थान की स्थापना के प्रयास शुरू हुए। भवन का पहला हिस्सा 1961 में बना था। साल 1962 में जय प्रकाश नारायण खुद यहां मौजूद थे। सर्व सेवा संघ परिसर में गांधी विद्या संस्थान के रूप में लाइब्रेरी बनी है। साल 2020 में काशी रेलवे स्टेशन का डेवलपमेंट होना था। यह जमीन काशी रेलवे स्टेशन के पास है। अब इस जमीन का विवाद एक बार फिर चर्चा में आ गया है। इसके मालिकाना हक पर चल रहा विवाद जिलाधिकारी एस. राजलिंगम की कोर्ट में आया था। जिलाधिकारी ने रेलवे के हक में फैसला दिया था। साथ ही सर्व सेवा संघ का निर्माण अवैध करार देते हुए जमीन को उत्तर रेलवे की संपत्ति माना है। सर्व सेवा संघ परिसर के भवनों को ध्वस्त करने के लिए उत्तर रेलवे प्रशासन ने 30 जून 2023 की तिथि तय की थी।

अध्यक्ष चंदन पाल के अनुसार, 11 अप्रैल 2023 को उत्तर रेलवे लखनऊ ने सर्व सेवा संघ के ऊपर एक मुकदमा किया। मुकदमे के अनुसार सर्व सेवा संघ द्वारा रेलवे से 1960, 1961 एवं 1970 में खरीदी गयी सभी जमीनों का दस्तावेज कूट रचित तरीके से तैयार किया गया है। उन्होंने कहा कि इन दस्तावेजों को कूट रचित कहना आचार्य विनोबा भावे, राधाकृष्ण बजाज, जयप्रकाश नारायण, लाल बहादुर शास्त्री, जगजीवन राम एवं डॉ. राजेन्द्र प्रसाद जैसे व्यक्तित्वों पर सवाल उठाने जैसा है।

सर्व सेवा संघ की याचिका सुप्रीम कोर्ट में खारिज होने के बाद आगे की रणनीति तैयार करने के लिए सोमवार की शाम सभी दलों की साझा बैठक बुलाई गई है। संस्था के पदाधिकारी सभी पक्षों की राय लेने के बाद आगे की रणनीति तैयार करेंगे।

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