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नवलखा और तेलतुंबड़े की गिरफ़्तारी पर SC से दख़ल की मांग, बड़ी हस्तियों ने सीजेआई को लिखा पत्र

इस पत्र पर रोमिला थापर सहित अन्य हस्तियों ने हस्ताक्षर किये हैं। इसमें इस तथ्य को भी उजागर किया गया है कि COVID-19 के प्रकोप और देश की भीड़भाड़ वाली जेलों में इसके असर को देखते हुए ऐसा आदेश विशेष रूप से अमानवीय है।
नवलखा और तेलतुंबड़े

इतिहासकार रोमिला थापर, प्रोफेसर प्रभात पटनायक और अन्य बड़ी हस्तियों सहित देश की महान हस्तियों ने भारत के मुख्य न्यायाधीश को 10 अप्रैल को एक खुला पत्र लिखा है। इस पत्र में सामाजिक कार्यकर्ता गौतम नवलखा और प्रोफ़ेसर आनंद तेलतुंबड़े को भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में जमानत देने से इनकार करने के संबंध में अदालत से हस्तक्षेप करने की मांग की गई है। इस पत्र के हस्ताक्षरकर्ताओं ने इससे पहले साल 2018 में सर्वोच्च न्यायालय में एक याचिका दाखिल करके शीर्ष अदालत से हस्तक्षेप करने और विशेष जांच दल (एसआईटी) गठित करने की मांग की थी। साल 2018 में वारवरा राव, अरुण फेरिरा, वर्नोन गोंसाल्वेस, सुधा भारद्वाज और गौतम नवलखा जैसे प्रख्यात बुद्धिजीवियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किए गए थे।

इस पत्र में मुख्य न्यायाधीश से अपील किया गया है कि "उनके नेतृत्व में सुप्रीम कोर्ट को यह साबित करने के लिए दृढ़तापूर्वक कार्य करना चाहिए कि वह वास्तव में लोगों के अधिकारों का और संविधान का रक्षक है।"

पत्र में कहा गया है कि भले ही शीर्ष अदालत ने 2-1 की बहुमत के फैसले के आधार पर उनकी याचिका को खारिज कर दिया हो, फिर भी अल्पमत (एक सदस्य) ने "स्वतंत्र जांच की आवश्यकता" को लेकर याचिकाकर्ताओं के साथ सहमति व्यक्त की थी और एसआईटी के गठन का सुझाव भी दिया था। उन्होंने कहा कि, हालांकि, 18 महीने के बाद भी अभियोजन पक्ष द्वारा "चल रहे मुकदमे में किसी भी नए तथ्यों या सबूतों को पेश करने में विफल होने के बावजूद, न केवल अभियुक्तों को जमानत देने से इनकार करने के साथ अनुचित रुप से लंबी अवधि तक के लिए उनकी स्वतंत्रता से वंचित किया गया है बल्कि दो नए नाम को भी उनके साथ जोड़ दिया गया है।"

यह पत्र उन लोगों के प्रति उनकी "पीड़ा को भी व्यक्त करता है जिन्होंने बेजुबान और हाशिए पर मौजूद लोगों के अधिकारों की रक्षा करने की हिम्मत की है और अब इस प्रतिशोधी अभियान को" नवलखा और तेलतुम्बडे तक बढ़ाने की अनुमति दे रहा है जिन्हें एक सप्ताह में आत्मसमर्पण करने को कहा जा रहा है। यह इस सच्चाई पर भी प्रकाश डालता है कि देश की भीड़भाड़ वाली जेलों में COVID-19 महामारी और इसके प्रभाव को देखते हुए, ऐसा आदेश खास तौर से अमानवीय है।

मुख्य न्यायाधीश को लिखा पत्र नीचे दिया गया है।

आदरणीय भारत के मुख्य न्यायाधीश,

हम याचिकाकर्ता हैं। हमने सितंबर 2018 में (Romila Thapar & Ors. Vs. Union of India & Ors., Writ Petition 32319 of 2018) तथाकथित 'भीमा-कोरेगांव मामले’ के संबंध में सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। हालांकि इस मामले में पहले ही कई गिरफ्तारियां हो चुकी थीं, लेकिन 28 अगस्त 2018 को वारवारा राव, अरुण फेरिरा, वर्नोन गोंसाल्वेस, सुधा भारद्वाज और गौतम नवलखा की गिरफ्तारी के लिए वारंट जारी होने पर हस्तक्षेप करने को लेकर काफी चिंताशील हो गए थे। ये लोग विख्यात बुद्धिजीवी, लेखक, वकील, मानवाधिकार कार्यकर्ता, विद्वान और पत्रकार हैं।

हमने याचिका में उच्चतम न्यायालय से विशेष जांच दल(एसआईटी) गठन करने का अनुरोध किया है और पुणे पुलिस द्वारा लगाए गए आरोपों की इस जांच में निगरानी करने का आग्रह किया है ताकि शीघ्र, निष्पक्ष और प्रमाणिक जांच सुनिश्चित हो सके। सर्वोच्च न्यायालय ने2-1 बहुमत के फैसले से हमारी याचिका को अस्वीकार कर दिया क्योंकि यह "माना गया विचार है कि विचाराधीन अपराध की जांच प्रारंभिक स्तर पर है" और इसलिए अदालत केस के मेरिट को लेकर चर्चा करना नहीं चाहता था कि ऐसा न हो कि किसी प्रकार के पूर्वाग्रह से कोई भी अभियुक्त या अभियोजन पक्ष बन जाए।

हालांकि, अल्पमत (एक सदस्य) के निर्णय ने "एक स्वतंत्र जांच की आवश्यकता" को लेकर हमारे साथ सहमति व्यक्त की और एसआईटी गठित करने का सुझाव दिया। यहां तक कि बहुमत (दो सदस्य) के फैसले ने अभियुक्तों को कानूनी उपायों की तलाश के लिए दिए गए समय को और चार सप्ताह तक बढ़ाने पर सहमति व्यक्त की।

लेकिन अठारह महीनों का लंबा अरसा गुजर जाने के बाद आज भी मीडिया रिपोर्टों से पता चलता है कि अभियोजन पक्ष चल रहे मुकदमे में किसी भी नए तथ्य या सबूत को पेश करने में विफल रहा है। इसके बावजूद,अभियुक्तों को न केवल जमानत और अनुचित तरीके से लंबी अवधि तक उनकी स्वतंत्रता से वंचित रखा गया है बल्कि उनके साथ दो नए नाम को भी जोड़ दिया गया है। उच्चतम न्यायालय ने आनंद तेलतुम्बडे (प्रबंधन के प्रोफेसर, लेखक और विद्वान) और गौतम नवलखा(लेखक और पत्रकार) को जमानत देने से इनकार कर दिया और उन्हें एक सप्ताह में महाराष्ट्र पुलिस* के सामने आत्मसमर्पण करने का आदेश दिया।

निष्पक्ष विचार रखने वाले सभी नागरिकों की तरह, हम हैरान हैं कि अभियोजन को कानून की भावना के प्रति जवाबदेह नहीं बनाया गया है। हमें इस बात की तकलीफ है कि हमारी अदालतों ने उन लोगों को निरंतर कारावास की सज़ा दी है जिन्होंने बेजुबान और हाशिए पर मौजूद लोगों के अधिकारों की रक्षा करने की हिम्मत जुटाई है और अब दंड देने वाले इस कार्रवाई को बढ़ाने की अनुमति दे रहे हैं। यह खास तौर से अमानवीय और समझ से बाहर है कि ऐसे समय जब Covid-19 का प्रकोप हमारी भीड़भाड़ वाली जेलों को खतरे में डाल रहा है।

हम आपसे अपने संविधान और नागरिकों की स्वतंत्रता के प्रति जनता के विश्वास को बहाल करने की अपील करते हैं जो ये सभी नागरिकों को गारंटी देता है। अभियोजन पक्ष के पास अपने मामले पर विचार करने के लिए पर्याप्त समय रहा है। देश की सर्वोच्च अदालत सजा देने के लिए इस प्रक्रिया को अनुमति नहीं दे सकती है। आपके नेतृत्व में सर्वोच्च न्यायालय को यह दर्शाने करने के लिए दृढ़ता के साथ कार्य करना चाहिए कि यह वास्तव में लोगों के अधिकारों और संविधान का रक्षक है।

हम इस मामले में आपके सकारात्मक हस्तक्षेप की उम्मीद करते हैं।

सम्मान के साथ,

भवदीय,

याचिकाकर्ता:

रोमिला थापर

प्रभात पटनायक

देवकी जैन

माजा दरुवाला

सतीश देशपांडे

प्रभात पटनायक द्वारा याचिकाकर्ताओं की ओर से भेजा गया।

* न्यूज़क्लिक सुधार: राष्ट्रीय जांच एजेंसी(एनआईए) के सामने उन्हें समर्पण करने के लिए कहा गया है।

अंग्रेजी में लिखे गए मूल आलेख को आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं

Prominent Citizens Write to CJI, Demand SC Intervention in Navlakha, Teltumbde's Arrest

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