गज़ा की महिलाएं युद्ध से सबसे ज़्यादा प्रभावित
जैसा कि दुनिया भर में 8 मार्च को कामकाज़ी महिलाओं के संघर्षों की याद में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया, उसी वक़्त फ़िलिस्तीनी केंद्रीय सांख्यिकी ब्यूरो (पीसीबीएस) ने सूचना दी कि 7 अक्टूबर से शुरू हुए क्रूरतम युद्ध के चलते इज़राइल ने गज़ा में कम से कम 9,000 महिलाओं को मार डाला है। यह हर दिन 63 महिलाओं की हत्या के बराबर है। जिनमें से 37 माताएं होती हैं। इन हमलों में हजारों लोग घायल हुए हैं: पीसीबीएस ने यह भी बताया कि 7 अक्टूबर से गज़ा में कुल घायलों में 75 फीसदी महिलाएं थीं।
भयानक मौतों और गंभीर चोटों के अलावा, महिलाएं और लड़कियां ही इज़राइली हमलों का सबसे बड़ा शिकार हैं। इस्लामिक रिलीफ नामक एक संगठन ने 8 मार्च से पहले प्रकाशित एक बयान में कहा, पूरे गज़ा में पानी और स्वच्छता के बुनियादी ढांचे के विनाश के बाद, इलाके के दक्षिणी हिस्से के शिविरों में बढ़ती भीड़भाड़ ने महिलाओं को एक सदी पहले देखी गई जीवन की कठिन स्थितियों में धकेल दिया है।
शिविरों में लोगों की संख्या और उपलब्ध स्नानघरों की संख्या को देखते हुए, कई महिलाएं और लड़कियां हर 10-14 दिनों में केवल एक बार ही कपड़े धो पाती हैं। मासिक धर्म पैड सहित आवश्यक सेनेटरी आपूर्ति या तो कहीं नहीं मिलती है या बहुत महंगी है। इसके कारण महिलाएं टेंट के स्क्रैप सहित वैकल्पिक सामग्रियों का इस्तेमाल कर रही हैं, या लंबे समय तक एक ही पैड का इस्तेमाल कर रही हैं, जिससे संक्रमण का खतरा बढ़ रहा है।
गर्भवती महिलाओं और नवजात शिशुओं की माताओं को विशेष तौर पर खतरों का सामना करना पड़ रहा है। गज़ा में 50,000 से अधिक महिलाएं गर्भवती हैं, और हर दिन लगभग 180 जन्म होते हैं। लेकिन प्रसव को सुविधाजनक बनाने और महिलाओं को प्रसवोत्तर देखभाल प्रदान करने वाली स्वास्थ्य सुविधाएं धराशायी हो गई हैं। केवल कुछ ही अस्पताल अभी भी कम से कम आंशिक मातृत्व सेवाएं देने में सक्षम हैं, लेकिन उत्तरी गज़ा में अल-अवदा अस्पताल जैसे अस्पताल भी बमबारी और गोलाबारी के जोखिमों का सामना कर रहे हैं।
गज़ा की एक महिला ने ऑक्सफैम को बताया कि, “मैं प्रसव की पीड़ा से गुजर रही थी और मैं केवल युद्धक विमानों की गर्जना और गोलाबारी ही सुन सकती थी। हर जगह डर का माहौल है।”
इज़राइली सेनाओं द्वारा अस्पतालों और स्वास्थ्य केंद्रों को निशाना बनाने से महिलाओं को बच्चे को तंबू में जन्म देने या बच्चे को जन्म देने के तुरंत बाद भीड़ भरे तंबू में लौटने पर मजबूर होना पड़ता है - अक्सर सी-सेक्शन के बाद भी ऐसा करना पड़ता है – जिससे संक्रमण और स्वस्थ्य संबंधी जटिलताओं का खतरा बढ़ जाता है। गज़ा में गर्भवती महिलाएं इस समय इतने तनाव में हैं कि समय से पहले जन्म और गर्भपात में 300 फीसदी की वृद्धि हुई है।
जिनके बच्चे प्रसव के दौरान बच जाते हैं उन्हें भोजन की भारी कमी से जूझना पड़ता है। यदि पर्याप्त सहायता नहीं दी गई तो अकाल निश्चित रूप से गज़ा को तबाह कर देगा, और गज़ा में लोगों के बीच कुपोषण के प्रभाव पहले से ही व्यापक हैं। भूख ने नई माताओं की स्तनपान शुरू करने की क्षमता को कम कर दिया है। जैसा कि चिकित्सक होसाम अबू सफिया ने एक्शनएड को बताया कि, जो महिलाएं स्तनपान कराने में सफल हो जाती हैं, उनमें भी दूध की कमी पाई जा रही है। “यह मां के पोषण से संबंधित है। उनके मुताबिक, अधिकांश बच्चों का आकार और वजन छोटा है।”
फार्मूला मिल्क के साथ स्तन के दूध की पूर्ति का कोई तरीका नहीं है, क्योंकि शिशु फार्मूला सामग्री की कीमतें सैनिटरी उत्पादों के समान ही चलन में हैं और बेहद महंगी हो गई हैं। पीसीबीएस ने पाया कि स्तनपान कराने या शिशुओं के लिए फार्मूला प्रदान करने में असमर्थ होने के कारण माताओं को "अपने बच्चों को स्तनपान कराने के लिए अपर्याप्त या यहां तक कि असुरक्षित विकल्पों का सहारा लेना पड़ रहा है"।
परिवारों में वयस्क अक्सर बच्चों के लिए भोजन सुरक्षित करने का प्रयास करते समय खुद भोजन करना छोड़ देते हैं। यह प्रथा महिलाओं और पुरुषों दोनों में मौजूद है, लेकिन 95 फीसदी मामलों में महिलाएं बच्चों को खाना खिलाने के लिए अपना खाना छोड़ देती हैं। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, माताएं "वे होती हैं जो सबसे अंत में खाती हैं और सबसे कम खाती हैं।"
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