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गोवाः घरेलू हिंसा में बढ़ोतरी लेकिन आंकड़े शून्य!

गोवा सरकार घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 को लेकर काफी लापरवाह दिख रही है। घरेलू हिंसा अधिनियम का काम ग्रामीण विकास विभाग संभाल रहा है। मतलब एक्ट किसी और विभाग का और अफसर किसी और विभाग का। पुलिस, बीडीओ और महिला एवं बाल विकास विभाग में लगता नहीं कोई तालमेल है।
Goa

हमने गोवा के पिछले साल के घरेलू हिंसा संबंधी आंकड़ों पर नज़र डाली। एनसीआरबी रिपोर्ट 2020 के अनुसार घरेलू हिंसा संरक्षण अधिनियम के तहत एक भी मामला दर्ज़ नहीं किया गया है। पति या उसके किसी संबंधी द्वारा क्रूरता (498A) के 8 मामले दर्ज़ किए गये हैं। वर्ष 2019 में भी इस अधिनियम के तहत मामलों की संख्या शून्य है। पति या उसके किसी संबंधी द्वारा क्रूरता (498A) के 9 मामले दर्ज़ किए गये हैं।

वर्ष 2018 में भी संख्या शून्य है। पति या उसके किसी संबंधी द्वारा क्रूरता के 9 मामले दर्ज़ किए गये हैं। वर्ष 2017 में भी आंकड़ा शून्य है। पति या उसके किसी संबंधी द्वारा क्रूरता के 21 मामले दर्ज़ किए गये हैं। वर्ष 2016 में घरेलू हिंसा संरक्षण अधिनियम के तहत आंकड़ा शून्य है। पति या उसके किसी संबंधी द्वारा क्रूरता के 23 मामले दर्ज़ किए गये हैं।

498A और घरेलू हिंसा संरक्षण अधिनियम 2005 में काफी अंतर है। स्पष्ट है कि गोवा की तरफ से मात्र क्रिमिनल केस का रिकॉर्ड ही भेजा गया है। यानी घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 को लेकर काफी लापरवाही चल रही है।

गोवा वन स्टॉप सेंटर संयोजकों की राय व सुझाव

साउथ गोवा वन स्टॉप सेंटर संयोजिका ने बताया कि एनसीआरबी के आंकड़े सही नहीं है। उन्होंने कहा ये कैसे हो सकता है। आउदा वीगस ने हमें बताया कि उनके पास घरेलू हिंसा के हर महीने 25 केस आ रहे हैं। उन्होंने कहा कि घरेलू हिंसा के मामलों में वृद्धि हुई है। उन्होंने ये भी कहा कि वास्तविक संख्या इससे भी अधिक है। क्योंकि हमारे यहां घरेलू हिंसा को पारिवारिक मामला और मामूली मामला मानने की धारणा है। जबकि हिंसा को हिंसा और अपराध के तौर पर देखने और रिपोर्ट करने की ज़रूरत है। आउदा वीगस वन स्टॉप सेंटर के जरिये पीड़ित महिलाओं को काउंसलिंग, पुलिस, मेडिकल और शेल्टर आदि की सुविधाएं प्रदान कराती हैं।

नॉर्थ गोवा वन स्टॉप सेंटर के संयोजक एडवोकेट एमिदियो पिन्हो ने बताया कि अप्रैल 2020 से अगस्त 2021 तक नार्थ गोवा वन स्टॉप सेंटर पर कुल 469 केस आए हैं। जिनमें से 16% यानी लगभग 75 केस घरेलू हिंसा के हैं। उन्होंने बताया कि इसके अलावा 5% अन्य केस हैं जिनमें घरेलू हिंसा के संबंध में काउंसलिंग के लिए हमारे केंद्र से संपर्क किया गया है। उन्होंने बताया कि लॉकडाउन के दौरान हमने घरेलू हिंसा के मामलों में वृद्धि देखी है। हमने देखा है कि घर में बच्चों और महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार में बढ़ोतरी हुई है।

वन स्टॉप सेंटर पीड़ित महिलाओं को एक ही छत के नीचे तमाम मदद मुहैया कराने के लिए बनाए गए हैं। जहां मेडिकल, पुलिस, काउंसलिंग और शेल्टर आदि से पीड़ित महिला की मदद की जाती है। सितंबर माह से ही नॉर्थ गोवा सेंटर ने टेली काउंसलिंग भी शुरु की है।

घरेलू हिंसा के मामलों को कम करने के लिए एमिदियो पिन्हो ने सुझाया कि इस मुद्दे पर काम कर रहे सभी विभागों में बेहतर तालमेल होना चाहिए। अभी ये विभाग अलग-थलग आइसोलेशन में काम कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि आपातकालीन स्थिति में महिलाओं को तुरंत सहायता प्रदान करने में आने वाली बाधाओं को दूर करने के लिए और बेहतर फंक्शनिंग के लिए इन विभागों की त्रैमासिक बैठकों का आयोजन किया जाना चाहिये।

इसे पढ़ें: गोवा में घरेलू हिंसा संरक्षण अधिनियम बीडीओ भरोसे

बाक़ी सरकारी आंकड़े इस बारे क्या कहते हैं?

अब एक बार एनसीआरबी के अलावा घरेलू हिंसा से संबंधित अन्य संस्थाओं और रिपोर्ट पर नज़र डालते हैं।

महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने 22 सितंबर 2020 को एक प्रेस विज्ञप्ति जारी की। जिसका शीर्षक था महिलाओं के खिलाफ घरेलू हिंसा में बढ़ोतरी। इसमें मार्च से लेकर सितंबर 2020 तक राज्यवार घरेलू हिंसा संरक्षण अधिनियम 2005 के तहत मामलों का आंकड़ा दिया गया है। जिसके अनुसार गोवा में मार्च से सितंबर के मध्य 5 केस दर्ज़ किए गये हैं। नेशनल फैमिली हैल्थ सर्वे 2019-20 के अनुसार गोवा के 6% विवाहित महिलाएं वैवाहिक हिंसा का शिकार होती हैं।

सखी डैशबोर्ड के अनुसार गोवा में वन स्टॉप क्राइसिस सेंटर पर दर्ज़ मामलों की संख्या 2383 है जिनमें घरेलू हिंसा के मामले भी हैं। सखी डैशबोर्ड के ही अनुसार गोवा में महिला हेल्प लाइन पर फोन कॉल का आंकड़ा 2371 है। ज़ाहिर तौर पर इसमें भी घरेलू हिंसा संबंधित मामले होंगे।

टाइम्स ऑफ इंडिया की इस रिपोर्ट के अनुसार वन स्टॉप सेंटर की संयोजिका खुद कह रही हैं कि लॉकडाउन के दौरान गोवा में घरेलू हिंसा के मामलों में बढ़ोतरी हुई है। वो ये भी कहती हैं कि बहुत से मामले सामने ही नहीं आ पाते हैं।

स्पष्ट है कि गोवा में घरेलू हिंसा के मामले शून्य नहीं है। तो फिर एनसीआरबी की पिछली पांच साल की रिपोर्टों में ये आंकड़ा शून्य क्यों है? इस बारे आपको विस्तार से आगे बताएंगे पहले पढ़िये कि इस बारे गोवा में महिला अधिकारों और घरेलू हिंसा के मुद्दे पर काम रही संस्थाओं का क्या कहना है?

गोवा में घरेलू हिंसा पर काम कर रही सामाजिक संस्थाओं की राय

गोवा में घरेलू हिंसा के मामले और एनसीआरबी के आंकड़ों के बारे में हमने अर्ज़ संस्था के अध्यक्ष अरूण पांडे से बात की। उनकी संस्था घरेलू हिंसा से पीड़ित महिलाओं को लीगल और साइकॉलोजिकल काउंसलिंग देती हैं। उन्होंने बताया कि उनके पास हर सप्ताह लगभग दो केस आते हैं। उन्होंने दावे के साथ कहा कि एनसीआरबी आंकड़े सही नहीं है। ये हो ही नहीं सकता कि गोवा में घरेलू हिंसा के केस शून्य हो। उन्होंने बताया कि लीगल काउंसलिंग के दौरान वो पीड़ित को बताते हैं कि वो प्रोटेक्शन ऑफिसर के पास जाकर शिकायत दर्ज़ करा सकती हैं। जो महिलाएं इस हालत में नहीं होती कि खुद प्रोटेक्शन ऑफिसर के पास चली जाएं। मान लीजिये घबरा रही हैं, आफिस का पता नहीं है आदि। तो हम उन्हें खुद प्रोटेक्शन ऑफिसर के पास लेकर जाते हैं और मामला दर्ज़ कराते हैं। तो बहुत बार पीड़ित खुद भी जाते हैं और बहुत बार हम भी प्रोटेक्शन ऑफिसर तक मामला लेकर जाते हैं।

गोवा में लंबे समय से महिला अधिकारों पर काम कर रही संस्था बाइलांसो साद की संयोजिका सबिना मार्टिन ने बताया कि शनिवार को वो संस्था के आफिस में केस सुनती हैं। पीड़ित महिलाएं मदद के लिए संस्था के पास आती हैं। सबिना ने भी बताया कि उनके पास भी सप्ताह में लगभग दो केस आते हैं। ज्यादातर मामले घरेलू हिंसा के ही होते हैं। सबिना ने बताया कि पिछले साल उनकी संस्था के पास पचास केस आए थे। जिनमें लगभग आधे घरेलू हिंसा के थे। सबिना ने कहा कि हम दावे के साथ कह सकते हैं कि संरक्षण अधिकारी के पास घरेलू हिंसा के केस जा रहे हैं।

महिला अधिकारों पर सक्रिय एडवोकेट कैरेलाइन कोलासो ने बताया कि ज़ाहिर तौर पर एनसीआरबी का आंकड़ा सही नहीं है। उन्होंने बताया कि घरेलू हिंसा के लगभग 10-12 केस मेरे दफ़्तर से फाइल किए गये हैं। उन्होंने ज़ोर देते हुए कहा कि घरेलू हिंसा संरक्षण अधिनियम के तहत स्पष्ट है कि संरक्षण अधिकारी कोई महिला होनी चाहिये। लेकिन, गोवा में तकरीबन आधे बीडीओ (संरक्षण अधिकारी) पुरुष हैं। फ्री लीगल एड के पैनल में भी लगभग आधे वकील पुरुष हैं। 

एनसीआरबी की रिपोर्ट में गोवा में घरेलू हिंसा के मामलों का आंकड़ा शून्य क्यों है?

पहली बात तो ये कि पति या उसके किसी संबंधी द्वारा क्रूरता (498A) के आठ मामले दर्ज़ किए गये हैं। ये भी घरेलू हिंसा के ही मामले हैं। लेकिन घरेलू हिंसा संरक्षण अधिनियम 2005 के तहत मामलों की संख्या शून्य है। इसे समझने के लिए आपको पहले गोवा में घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 की हो रही दुर्गति को समझना होगा। सबसे पहली बात तो ये कि गोवा में संरक्षण अधिकारी की नियुक्ति ही नहीं की गई। संरक्षण अधिकारी का अतिरिक्त कार्यभार ज़िला स्तर पर मुख्य कार्यकारी अधिकारी ज़िला पंचायत को सौंपा गया है। ब्लॉक स्तर पर बीडीओ को अतिरिक्त कार्यभार सौंपा गया है। ये सभी अधिकारी ग्रामीण विकास और रेवेन्यू विभाग के अंतर्गत आते हैं। ये अधिकारी पहले से ही काम के भार और ज़िम्मदारियों से दबे होते हैं।

बाइलांसो साद की संयोजिका सबिना ने बताया कि बीडीओ के दफ़्तर में घरेलू हिंसा की शिकायत दर्ज़ कराने के लिए फार्म ही नहीं मिल रहे हैं। अगर फार्म मिलता है तो उसे भरने में विभाग पीड़िता की कोई मदद नहीं कर रहा है। बहुत बार बीडीओ अन्य कामों की वजह से आफिस में नहीं होते हैं। अधिकारी इस अतिरिक्त कार्यभार को सिरदर्द की तरह लेते हैं और बहुत बार महिला विरोधी भाषा का इस्तेमाल और व्यवहार करते हैं। फ्री लीगल एड का प्रावधान है लेकिन वकील महिला से पैसों की मांग करता है। ये सब कार्यप्रणली कुल मिलाकर महिलाओं को घरेलू हिंसा के विरुद्ध शिकायत करने के लिए निरुत्साहित करती हैं।

अर्ज़ संस्था के अध्यक्ष अरूण पांडे ने बताया कि घरेलू हिंसा का संबंध महिला एवं बाल विकास विभाग से है जबकि इसे ग्रामीण विकास विभाग के सुपुर्द कर रखा है। इन विभागों में आपसी तालमेल बहुत ही कमज़ोर है। पता नहीं पुलिस या महिला एवं बाल विकास विभाग बीडीओ से आंकड़े मांगते हैं या नहीं और सेंटर को एनसीआरबी रिपोर्ट के लिए भेजती है या नहीं। अरुण पांडे ने कहा कि ये काफी गंभीर मामला है। क्योंकि आंकड़ों के आधार पर ही भविष्य के कार्यकलाप और नीतियां तय होती हैं।

लापरवाही बीडीओ की है या सरकार व महिला एवं बाल विकास निदेशालय की?

इन परिस्थितियों में बीडीओ एक असंवेदनशील अधिकारी और विलेन की तरह प्रतीत हो रहे हैं। जबकि असली लापरवाही और गड़बड़ सरकार और महिला एवं बाल विकस निदेशालय की है। सूत्रों ने बताया कि कुछ बीडीओ के यहां घरेलू हिंसा के मामलों की फाइल व रिकॉर्ड रखने के लिये अलग से अलमारी तक नहीं है। बीडीओ को एक बार प्रशिक्षण देकर इस तरह के संवेदनशील मामले सुपुर्द कर दिए गए हैं। बीडीओ अक्सर समय के अभाव से जूझ रहे होते हैं और प्वाइंट टू प्वाइंट मसले डिस्कस करने होते हैं। जबकि घरेलू हिंसा जैसे मामलों में पीड़ित मानसिक और भावनात्मक सदमे से गुजर रही होती है। उन्हें घटनाओं का विवरण बताते हुए कई बार भारी मन और आंसूओं को झेलना पड़ता हैं। ज़ाहिर तौर पर ऐसे मामलों में अतिरिक्त संवेदनशीलता और इत्मिनान की ज़रूरत होती है। बीडीओ से इस तरह की उम्मीद करना ग़ैर-व्यवहारिक और गलत है। इसके बावजूद बहुत से अधिकारी अपने समय और क्षमता के पार जाकर इन मामलों को सुनते हैं।

घरेलू हिंसा संरक्षण अधिनियम 2005 की दुर्गति करने का श्रेय गोवा सरकार और महिला एवं बाल विकास निदेशालय को जाता है। लेकिन, ठीकरा बीडीओ के सिर फूट रहा है जो पहले से ही काम के बोझ से दबे हैं और अतिरिक्त कार्यभार सौंप कर और दबा दिया गया है।

कुल मिलाकर गोवा सरकार घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 को लेकर काफी लापरवाह दिख रही है। घरेलू हिंसा अधिनियम का काम ग्रामीण विकास विभाग संभाल रहा है। मतलब एक्ट किसी और विभाग का और अफसर किसी और विभाग का। पुलिस, बीडीओ और महिला एवं बाल विकास विभाग में लगता नहीं कोई तालमेल है। सरकार इस तरफ से आंखें मूंदे हुए है और महिलाएं कानून होने के बावजूद मदद के लिए भटक रही हैं।

गोवा में घरेलू हिंसा के मामलों के बारे में हमने महिला एवं बाल विकास विभाग निदेशिका दीपाली नाइक से इमेल के जरिये संपर्क किया है। जैसे ही जवाब आता है हम लेख को अपडेट कर देंगे।

ऐसा नहीं है कि बाक़ी राज्यों की स्थिति बेहतर है। कुल मिलाकर ज्यादातर राज्यों में घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 को लागू करने की स्थिति काफी दयनीय और चिंताजनक है। इस बारे देश की तस्वीर क्या है जल्द ही आपके सामने प्रस्तुत करेंगे।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार और ट्रेनर हैं। आप सरकारी योजनाओं से संबंधित दावों और वायरल संदेशों की पड़ताल भी करते हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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