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सरकार का चीता एक्शन प्लान ख़राब विज्ञान पर आधारित है : रवि चेलम

क़ैद में तीन चीतों की मौत के बाद, प्रसिद्ध वन्यजीव जीवविज्ञानी का कहना है कि यह अभी भी स्पष्ट नहीं है कि अधिक चीतों को लाने के पीछे की सोच और कार्रवाई का मक़सद क्या है।
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फ़ोटो साभार: PTI

डॉ रवि चेलम 1980 के दशक से वन्यजीव संरक्षणवादी रहे हैं। मेटास्ट्रिंग फाउंडेशन के सीईओ और जैव विविधता कोलोबोरेटिव के संयोजक के रूप में, वे दशकों से एशियाई शेरों (Asiatic Lion) की रक्षा करने के काम में शामिल रहे हैं। न्यूज़क्लिक को दिए एक साक्षात्कार में, उन्होंने चेतावनी दी थी कि नामीबिया से चीतों को भारत में लाना एक "बहुत बड़ी गलती" होगी। मध्य प्रदेश के कुनो नेशनल पार्क में नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका से आयात किए गए चीतों में से तीन की हाल ही में मौत के बाद, उन्होने स्वतंत्र पत्रकार रश्मि सहगल से बात की और बताया कि चीतों की कार्य योजना का न केवल कमजोर वैज्ञानिक आधार है, बल्कि लगता है की सरकार को अब खुद इस कमजोर योजना से किनारा कर रही है—अर्थात् यह स्पष्ट नहीं है कि चीतों की योजना वास्तव में है क्या।

रश्मि सहगल: हम तीन चीतों की मौत देख चुके हैं। 27 मार्च को नामीबियाई चीता, क्रोनिक किडनी रोग से, दूसरा23 अप्रैल को, दक्षिण अफ़्रीकी चीता, एक अज्ञात बीमारी से मर गया, और अब एक दक्षिण अफ़्रीकी मादा चीता की तब मौत हो गई जब वह एक नर चीते के साथ संभोग प्रक्रिया में थी और उस पर नर चीते ने गुस्से में आकार हमला कर दिया। सवाल खड़ा होता है कि क्या इस किस्म से चीतों को आयात/लाने का संपूर्ण प्रयास बड़ी समस्याओं से घिरा हुआ नहीं लगता है? 

रवि चेलम: कुछ मौतें हो जाने से परियोजना की विफलता का संकेत नहीं मिलता है, ऐसे हे जैसे कि कुछ जन्म इसकी सफलता का संकेत नहीं देते हैं। इन मौतों के संदर्भ और कारणों को पूरी तरह से समझना महत्वपूर्ण है। क्या इनसे बचा जा सकता था? इस अनुभव से हम क्या सबक सीख सकते हैं? खासकर, अभी जो मौत हुई है उसके संदर्भ में, चीता मेटापोपुलेशन प्रोजेक्ट के एक विशेषज्ञ विन्सेंट वैन डेर मर्व, जिसने दक्षिण अफ्रीका से आयात की सुविधा प्रदान की थी, जो परियोजना के साथ निकटता से जुड़ा हुआ है, का कहना है कि लंबे समय तक कैद के कारण चीतों में तनाव का स्तर बढ़ जाता है। इसे देखते हुए, मुझे आश्चर्य है कि उन्होंने मादा को कैद में रखने की कोशिश क्यों की। यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि तीनों चीते कैद में रिहा होने से पहले ही मर चुके हैं। हालांकि तीन अलग-अलग कारणों से। अधिकारियों ने अभी तक दक्षिण अफ्रीका के दूसरे चीता नर उदय की मौत के कारणों की पुष्टि नहीं की है। अब तक केवल पोस्टमॉर्टम के लक्षण और प्रारंभिक निष्कर्ष साझा किए गए हैं।

जंगली चीतों पर एक अन्य विशेषज्ञ दक्षिण अफ्रीका के डॉ गस मिल्स हैं, जिन्होंने एक भारतीय पत्रकार के एक सवाल के जवाब में कहा है कि जंगल में, नर और मादा चीतों के बीच संपर्क बहुत कम होता है, लेकिन वास्तव में वह आक्रामक हो सकता है। जब दो लिंग मिलते हैं तो नर अक्सर मादा को परेशान करते हैं, शायद वह उसकी प्रजनन स्थिति का आकलन करने की कोशिश करता है। संभोग के लिए यह संपर्क कभी-कभी एक घंटे या उससे अधिक समय तक चल सकता है, जब नर चीता मादा में गर्माहट न पाकर उसे छोड़ता है, तो कभी-कभी यह उसे गंभीर रूप से घायल कर देता है। सीमित या बंद घेरे में, जानवरों से यह उम्मीद करना और उन्हे मजबूर करना कि वे संभोग करेंगे, कोई बेहतर विचार नहीं है। इसके लिए कुदरती हालात का होना कहीं बेहतर है, ताकि जानवरों को बार-बार संपर्क से बचने का अवसर मिले। मुझे इसमें कोई संदेह नहीं है कि क़ैद वाली स्थिति से मादा के घातक रूप से घायल होने की संभावना बढ़ जाती है।

उदय नामक चीते की मौत जो दूसरी थी, के संबंध में डॉ मिल्स ने कहा है कि ऐसी संभावना थी कि नर चीता की मौत बाड़ से टकराने के कारण लगी चोटों से हुई हो। इस तरह के उदाहरण हैं और यह संभव है कि यह भविष्य में फिर से हो सकता है, अगर उन्हें सीमित, बाड़ वाले इलाकों में शिकार करने की इजाजत दी जा रही थी या दी जाती है। 

आरएस: इस बात की भी आशंका है कि उदय नामक चीते की मृत्यु बोमा में लंबे समय तक रहने और कुनो पार्क में कैद में रहने पर मजबूर होने के जिस तनाव से वह गुजर रहा था, के कारण हो सकती है। एक आशंका यह भी है कि यह बोटुलिज़्म का मामला हो सकता है क्योंकि जानवर को पानी वाले भैंसों और बकरियों का मांस खिलाया जा रहा था जो उनका प्राकृतिक भोजन नहीं है। भारतीय वन विभाग ने कहा है कि मौत हृदय गति रुकने से भी हो सकती है, लेकिन ऐसा न तो यहां है और न ही वहां। आपके विचार?

आरसी: उपलब्ध तथ्यों की अधिक व्यापक समझ हासिल करने और एक स्पष्ट निष्कर्ष पर पहुंचने की कोशिश करने के लिए हमें पूर्ण और विस्तृत पोस्टमार्टम रिपोर्ट, प्रयोगशाला की सारी जांच के परिणाम और मध्य प्रदेश वन विभाग के निदान के परिणाम का इंतज़ार करना होगा। विन्सेन्ट वैन डेर मर्व ने सार्वजनिक रूप से कहा है कि जब तक रक्त जांच के परिणाम सार्वजनिक डोमेन में नहीं आते हैं तब तक मृत्यु का कारण जानना संभव नहीं होगा। उन्होंने यह भी कहा कि यद्यपि ये चीते जंगली हैं, उन्होंने अपने जीवन का आठ प्रतिशत से अधिक समय क्वारंटाइन/संगरोध में बिताया है जो स्वस्थ प्रक्रिया नहीं है और दक्षिण अफ्रीकी सरकार द्वारा कराए गए लंबे इंतजार के कारण वे अपने क्वारंटाइन/संगरोध के दौरान अपनी फिटनेस खो रहे थे। फिटनेस खोना, तनावग्रस्त होना, कूनो में गलत भोजन देना भी मौत का कारण बन सकता है।

आरएस: जाहिर है, प्रोजेक्ट चीता को कई अप्रत्याशित चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। 22 अप्रैल को, हमने एक चीते को कूनो से उत्तर प्रदेश की सीमा तक पहुँचने के लिए अपना रास्ता बनाते हुए देखा है। लेकिन फिर इसे वापस लाया गया, क्या यह हमेशा व्यवहार्य रहेगा?

आरसी: इन कुछ मुद्दों के साथ-साथ हम में से कई लोग लंबे समय से बार-बार यह सब कह रहे थे। इसलिए, मैं इन्हें बिल्कुल भी अप्रत्याशित नहीं कहूंगा। चुनौतियां काफी हद तक वहीं हैं जिनकी हमने भविष्यवाणी की थी। कार्य योजना कमजोर वैज्ञानिक नींव पर आधारित है और यह परियोजना के कार्यान्वयन को प्रभावित कर रही है। चिंता की बात यह है कि हाल के बयानों और कार्रवाइयों से लगता है कि कार्य योजना का अब पालन नहीं किया जा रहा है और यह स्पष्ट नहीं है कि वर्तमान सोच और कार्रवाई का मार्गदर्शन क्या है। पारदर्शिता और जवाबदेही के लिए यह महत्वपूर्ण है कि सरकार इस पर स्पष्टता प्रदान करे। सरकार की ओर से सबसे हालिया बयान यह है कि चीतों को तब तक नहीं पकड़ा जाएगा जब तक कि वे संरक्षित क्षेत्र से बाहर नहीं चले जाते हैं और जब तक कि उनकी जान जोखिम में न हो।

आरएस: बड़े मांसभक्षी को किसी दूसरी जगह लाना अत्यंत जटिल और जोखिम भरा काम है, विशेष रूप से यह देखते हुए कि कुनो एक बिना बाड़ वाला, असुरक्षित क्षेत्र है जो तेंदुओं, भेड़ियों और सुस्त भालू सहित प्रतिस्पर्धी शिकारियों के उच्च घनत्व का वाला जंगल है। अगले 11 चीतों को दो महीने में छोड़े जाने की उम्मीद है। क्या कूनो इतनी बड़ी आबादी को सहारा दे सकता है?

आरसी: एक्शन प्लान में उल्लेख किया गया है कि कुनो नेशनल पार्क 21 चीतों तक का समर्थन कर सकता है और बड़े परिदृश्य में 36 चीतों तक का समर्थन कर सकता है। सर्वोत्तम उपलब्ध विज्ञान का इस्तेमाल करके हममें से कुछ लोगों ने इन नंबरों पर सवाल उठाया है। हाल ही में, मध्य प्रदेश वन विभाग सहित परियोजना से जुड़े लोगों ने भी कार्य योजना में प्रदान की गई वहन क्षमता के अनुमानों पर सवाल उठाना शुरू कर दिया है। यह इंगित करता है कि वास्तव में कूनो की वहन क्षमता संभवतः कार्य योजना में उल्लिखित क्षमता से बहुत कम है।

आरएस: चीतों को बाड़ वाले इलाकों में रखा जाना चाहिए या खुले, बिना बाड़ वाले में?

आरसी: कार्य योजना के घोषित उद्देश्यों के आधार पर, चीतों को खुले मैदानों में रहना चाहिए और भारत में उनके आगमन के पहले कुछ महीनों के बाद बाड़ वाले इलाकों में नहीं रखा जाना चाहिए था। बाड़े के आकार की परवाह किए बिना यदि बाड़ वाले इलाकों में रखा जाता है, तो यह फिर भी कैद में रहेगा और प्रत्याशित पारिस्थितिक कार्यों और संरक्षण भूमिकाओं से समझौता किया जाएगा। बाड़ वाले संरक्षित इलाके शत्रुता वाले हैं और भारतीय संरक्षण लोकाचार, अभ्यास या ढांचे के अनुरूप नहीं हैं, और स्थानीय समुदायों के साथ पारिस्थितिकी, संरक्षण और सह-अस्तित्व को गंभीर रूप से प्रभावित करेंगे।

आर एस: कूनो के अधिकारियों ने एनटीसीए से यहां लाए गए चीतों में से कुछ के लिए एक वैकल्पिक आवास खोजने के लिए कहा है। पहले ही यहां लाए गए दो चीतों को बफर इलाके  के एक बड़े हिस्से की खोज करते हुए पाया गया है। पूर्व-जांच में, क्या भारत सरकार ने पर्याप्त आकार और गुणवत्ता वाले आवासों की तैयारी किए बिना इस परियोजना चीता में जल्दबाजी की है?

आर सी: इसमें कोई संदेह नहीं है कि इस परियोजना को न केवल जल्दबाजी में पूरा किया गया है और जो खराब विज्ञान पर भी आधारित है, जिसकी पर्याप्त समीक्षा नहीं की गई है। इतनी जल्दबाजी में 20 चीतों को आयात करने की जरूरत कहां थी जबकि यह स्पष्ट है कि हम उन्हें कई महीनों तक रिहा करने के लिए तैयार नहीं हैं, जिसके परिणामस्वरूप उन्हें लंबे समय तक कैद में रखा गया है? कार्य योजना की वैज्ञानिक नींव कमजोर है और तैयारी के आवश्यक स्तरों को सुनिश्चित करने से पहले चीतों को आयात करके हमने अपनी प्राथमिकताओं को मिश्रित कर दिया है, विशेष रूप से चीतों के लिए मुक्त जीवन जीने के लिए आवास की पर्याप्तता के संदर्भ में यह सच है।

हालांकि यह भविष्यवाणी करना बहुत मुश्किल है कि अगले कुछ हफ्तों में कुनो में पांच और चीतों को छोड़े जाने पर क्या होगा, चीता सामाजिक संगठन और स्थानिक पारिस्थितिकी का वर्तमान ज्ञान हमें बताता है कि वे बहुत अधिक व्यापक हैं और बहुत कम घनत्व में मौजूद हैं जब बड़ी बिल्लियों की अन्य प्रजातियों की तुलना में यह सच है। हमें उनसे बड़े परिदृश्य का पता लगाने की उम्मीद करनी चाहिए और जरूरी नहीं कि कुनो नेशनल पार्क की सीमाओं के भीतर ही वे सीमित रहें।

अंग्रेजी में प्रकाशित मूल रिपोर्ट को पढने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें :

Govt’s Cheetah Action Plan is Based on Poor Science: Ravi Chellam

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