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असंगठित मजदूरों के गरिमापूर्ण जीवन की गारंटी करे सरकार, 100 जन संगठन बोले ये सरकार की ड्यूटी

इसके लिए 11 से 17 सितंबर तक मांग पखवाड़ा चलाया जाएगा और 12 अक्टूबर को राज्यस्तरीय सम्मेलन होगा। राज्यपाल के नाम संबोधित मांग पत्र पर हस्ताक्षर अभियान चलाने की बात कहते हुए जनसंगठनों ने कहा कि असंगठित मजदूरों को लाभार्थी घोषित कर सभी योजनाएं लागू की जाए और आयुष्मान कार्ड, पेंशन, बीमा, आवास, पुत्री विवाह अनुदान, मुफ्त शिक्षा, कौशल विकास आदि की गारंटी की जाए। यह सरकार का कर्तव्य है।"
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देश में बढ़ती महंगाई और बेरोजगारी के इस दौर में असंगठित मजदूरों का जीवन बेहद संघर्षपूर्ण हो गया है। ऐसे में मजदूरों को राहत देने की जगह सरकार कल्याणकारी राज्य की जिम्मेदारियों से पीछे हट रही है और नए नियम और कानून लाकर मजदूरों पर हमले किए जा रहे हैं। ऐसे वक्त में देश के 95 प्रतिशत असंगठित मजदूरों को संगठित करके उनके सामाजिक सुरक्षा का इंतजाम करने के लिए प्रदेश के 100 से ज्यादा संगठनों ने एक साझा मंच का निर्माण किया है। इस साझा मंच ने सरकार से ई श्रम पोर्टल पर पंजीकृत 8 करोड़ 30 लाख असंगठित मजदूरों को आयुष्मान कार्ड, आवास, पेंशन, बीमा, मुफ्त शिक्षा व रोजगार की मांग की है।

मजदूरों के साझा मंच ने मंगलवार को लखनऊ के डीएलसी ऑफिस में आयोजित असंगठित मजदूरों के साझा मंच के सम्मेलन में मजदूरों के हित में केंद्र और राज्य सरकार से तत्काल कदम उठाने की मांग की। सम्मेलन में एटक जिलाध्यक्ष रामेश्वर यादव, एचएमएस प्रदेश मंत्री एड अविनाश पांडे, इंटक प्रदेश मंत्री संजय राय, सेवा की प्रदेश संगठन मंत्री सीता, कुली यूनियन के अध्यक्ष राम सुरेश यादव, घरेलू कामगार अधिकार मंच की सीमा रावत और निर्माण कामगार यूनियन की ललिता, प्रदेश महामंत्री प्रमोद पटेल, बेकरी यूनियन के महामंत्री मोहम्मद नेवाजी आदि ने असंगठित मजदूरों के सवालों पर प्रमुख सचिव श्रम व रोजगार को 11 सूत्री मांग पत्र दिया। 

इससे पूर्व पत्रकार वार्ता में मजदूर नेताओं ने कहा कि भाजपा 2024 के चुनाव को जीतने के लिए लाभार्थियों के बीच में जाने और उनके लिए चालू की गई योजनाओं का प्रचार प्रसार करने का अभियान चला रही है। ऐसे में बीजेपी सरकार यदि ईमानदार है तो उसे ई-श्रम पोर्टल पर पंजीकृत 8 करोड़ 30 लाख प्रदेश के असंगठित मजदूरों को लाभार्थी घोषित करना चाहिए और उनके लिए आयुष्मान कार्ड, प्रधानमंत्री आवास, 5 लाख का दुघर्टना बीमा, पुत्री विवाह अनुदान, शिक्षा अधिकार के तहत मुफ्त शिक्षा, कौशल विकास की योजनाएं लागू करनी चाहिए। इन मांगों पर साझा मंच की तरफ से 11 से 17 सितंबर तक पूरे प्रदेश में मांग पखवाड़ा मनाया जाएगा, जिसमें जिला प्रशासन के माध्यम से मुख्यमंत्री को पत्र भेजा जाएगा, 15 सितंबर को लखनऊ के उप श्रम आयुक्त कार्यालय पर एक दिवसीय धरना होगा और 12 अक्टूबर को प्रदेश स्तरीय सम्मेलन लखनऊ में आयोजित किया जाएगा। 

एटक राज्य कार्यालय पर आयोजित इस पत्रकार वार्ता में असंगठित क्षेत्र के साझा मंच के नेताओं में एटक प्रदेश महामंत्री और साझा मंच कोआर्डिनेटर चंद्रशेखर, यूपी वर्कर्स फ्रंट के प्रदेश अध्यक्ष दिनकर कपूर, एचएमएस के प्रदेश मंत्री एडवोकेट अविनाश पांडे, इंटक के प्रदेश मंत्री दिलीप श्रीवास्तव व उत्तर प्रदेश संयुक्त निर्माण मजदूर मोर्चा के कोऑर्डिनेटर प्रमोद पटेल आदि रहे। इन नेताओं ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद बने ई पोर्टल में 8 करोड़ से ज्यादा मजदूरों का पंजीकरण प्रदेश में कराया गया। इन मजदूरों की सामाजिक सुरक्षा के लिए 2008 में संसद से कानून बनाया गया। जिसमें साफ-साफ वृद्धावस्था, जीवन, प्रसूति, पेंशन, आवास, स्वास्थ्य सुरक्षा आदि की बातें लिखी हुई है। संविधान का अनुच्छेद 21, 39, 41, 43 भारत के हर नागरिक को गरिमा पूर्ण जीवन जीने का अधिकार देता है। बावजूद इसके प्रदेश के असंगठित मजदूरों की सामाजिक सुरक्षा के लिए योजनाओं की घोषणा नहीं की गई है। 

पत्रकार वार्ता में मजदूर नेताओं ने पीएम विश्वकर्मा योजना को छलावा बताते हुए कहा कि इसके पूर्व भी सरकार ने कौशल विकास योजना चालू की थी उसके समेत स्टार्टअप जैसी योजनाएं बुरी तरह विफल रही है। करोड़ों रुपए खर्च करने के बावजूद उत्पादकता में इसका कोई योगदान नहीं रहा है। पीएम विश्वकर्मा योजना में 5 प्रतिशत ब्याज पर एक लाख का कर्ज ऊंट के मुंह में जीरा है और इससे कोई भी नया उद्योग कामगार खड़ा नहीं कर पाएगा।

मजदूर नेताओं ने प्रदेश में न्यूनतम वेतन पुनरीक्षण में देरी किए जाने पर गहरा आक्रोश व्यक्त किया और कहा कि श्रम मंत्री द्वारा 6 महीने में वेज बोर्ड गठन करना औचित्यहीन है। वैसे ही वेज रिवीजन में 4 साल की देरी हो चुकी है। ऐसे में तत्काल वेज बोर्ड का गठन करके न्यूनतम वेतन का वेज रिवीजन किया जाना चाहिए। पत्रकार वार्ता में आईएलओ कन्वेंशन और सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद घरेलू कामगारों के लिए कानून और सामाजिक सुरक्षा बोर्ड का गठन न करने, निर्माण मजदूरों के लिए चल रही योजनाओं में जटिलताएं पैदा करने की बात उठाते हुए नेताओं ने कहा कि सरकार का यह कर्तव्य है कि वह मजदूरों की सामाजिक सुरक्षा और उनकी गरिमा पूर्ण जीवन जीने के अधिकार की गारंटी करें। यदि सरकार अपने कर्तव्य का पालन नहीं करती है तो मजदूर को गोलबंद कर एक बड़े आंदोलन की शुरुआत की जाएगी।

 *हर नागरिक को गरिमापूर्ण जीवन जीने का अधिकार* 

यूपी वर्कर्स फ्रंट के प्रदेश अध्यक्ष दिनकर कपूर ने कहा कि संविधान का अनुच्छेद 21, 39, 41 और 43 भारत के हर नागरिक को गरिमापूर्ण जीवन जीने का अधिकार देता है। इसी के तहत मजदूरों के बेहतर जीवन और सामाजिक सुरक्षा के लिए कानून बनाए जाते हैं। लेकिन दुर्भाग्य यह है कि इस देश में मजदूरों के लिए बने कानूनों को लागू कराने के लिए संघर्ष करना पड़ता है। देश की जीडीपी में 45 प्रतिशत योगदान करने वाले असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले 95 प्रतिशत मजदूरों के लिए कोई योजना नहीं है। इनकी सामाजिक सुरक्षा के लिए 2008 में कानून बना, कोरोना काल में मजदूरों की हुई दुर्दशा को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर ई पोर्टल का निर्माण किया गया। लेकिन आज तक सामाजिक सुरक्षा कानून लागू नहीं किया गया। सरकार लाभार्थियों की बड़ी बातें करती है हमने सरकार से कहा है यदि वह ईमानदार है तो ई पोर्टल पर दर्ज पंजीकृत सभी श्रमिकों को लाभार्थी का दर्जा देकर सरकार द्वारा चलाई गई योजनाओं का लाभ दिया जाए।

एचएमएस प्रदेश महामंत्री उमाशंकर मिश्रा ने कहा कि देश में ज्यादातर मजदूर दस हजार से कम मजदूरी पर काम करने के लिए मजबूर हैं और किसी तरह अपने परिवार की जीविका को चलाते हैं। प्रदेश में तो हालत इतनी बुरी है कि पिछले 5 सालों से न्यूनतम मजदूरी का भी वेज रिवीजन नहीं किया गया। परिणामस्वरूप प्रदेश में मजदूरी की दर केंद्र के सापेक्ष बेहद कम है। इंटक के प्रदेश मंत्री संजय राय ने कहा कि सूचना क्रांति के दौर में श्रमिकों में नए शामिल हुए गिग और प्लेटफार्म वर्कर के लिए कोई नियम कानून नहीं है। राजस्थान सरकार ने इनके लिए कानून बनाया है और उत्तर प्रदेश में भी इस तरह के कानून की जरूरत है।

सेवा की प्रदेश संगठन मंत्री सीता ने कहा कि आईएलओ कन्वेंशन में भारत सरकार द्वारा हस्ताक्षरित प्रस्ताव और सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद घरेलू कामगारों के लिए न तो कानून बनाया और ना ही बोर्ड का गठन किया गया है। उप्र असंगठित क्षेत्र भवन एवं वन कास्तकार कामगार यूनियन के प्रदेश महामंत्री प्रमोद पटेल ने कहा निर्माण मजदूरों के पंजीकरण, नवीनीकरण और योजनाओं के लाभ में परिवार प्रमाण पत्र देने की नई शर्त से मजदूर लाभ से वंचित हो जायेंगे। प्रदेश में वैसे ही निर्माण मजदूरों की सामाजिक सुरक्षा की योजनाओं को विफल कर दिया है। संयुक्त युवा मोर्चा के केंद्रीय टीम के सदस्य गौरव सिंह ने रोजगार अधिकार कानून बनाने की मांग की और कहा कि निवास से 25 किलोमीटर के अंदर साल भर न्यूनतम मजदूरी पर रोजगार देने की गारंटी सरकार करें। 

श्रम कानून सलाहकार एसोसिएशन के उपाध्यक्ष एडवोकेट मोहम्मद तारिक किदवई ने कहा कि नई श्रम संहिता में काम के घंटे 12 कर दिए हैं जिसके कारण मजदूर आधुनिक गुलामी की जिंदगी जीने के लिए मजबूर होगा। मजदूर किसान मंच के प्रदेश महामंत्री डा. बृज बिहारी ने कहा कि प्रदेश से श्रमिकों का ही पलायन नहीं हो रहा है यहां की पूंजी भी पलायित हो रही है। मनरेगा में बजट घटाकर उसे विफल कर दिया गया है।

साभार : सबरंग 

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