हरित पटाखे पूरी तरह से प्रदूषण-मुक्त नहीं हैं!
देश के अलग-अलग हिस्सों में 8 अक्तूबर यानी मंगलवार को दशहरा के मौके पर रावण दहन किया गया। खास बात ये रही कि इस बार पर्यावरण संरक्षण को ध्यान में रखते हुए कई जगहों हरित पटाखे भी जलाए गए। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने 5 अक्तूबर को प्रदुषण को ध्यान में रखते हुए हरित पटाखों को देश के सामने रखा और लोगों को दिवाली पर हरित पटाखे जलाने का विकल्प दिया।
लेकिन पर्यावरणविद् और विशेषज्ञों की राय में ये खतरे की घंटी है क्योंकि हरित पटाखें पूर्ण रूप से हरित नहीं हैं। ये पारंपरिक पटाखों की तुलना में केवल 30 प्रतिशत ही कम प्रदुषण फैलाने वाले विषैले प्रदुषक तत्वों का उत्सर्जन करते हैं। जो कि पूरी तरह से पर्यावरण के अनुकूल नहीं है।
बता दें कि 'हरित पटाखे' राष्ट्रीय पर्यावरण अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान (नीरी) की खोज हैं। नीरी एक सरकारी संस्थान है जो वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंघान परिषद (सीएसआईआर) के अंदर आता है।
हरित पटाखे दिखने, जलाने और आवाज़ में पारंपरिक पटाखों जैसे ही होते हैं पर इनके जलने से प्रदूषण कम होता है। इनमें विभिन्न रासायनिक तत्वों की मौजूदगी और हानिकारक गैसों वाले धुएं का कम उत्सर्जन करने वाले तत्वों का इस्तेमाल किया गया हैं। इनके इस्तेमाल से हवा दूषित करने वाले महीन कणों (पीएम) की मात्रा में 25 से 30 प्रतिशत और पोटेशियम तत्वों के उत्सर्जन में 50 प्रतिशत तक गिरावट बताई जा रही है लेकिन पर्यावर्णविद् और जानकार लोगों का इन पटाकों के प्रति बढ़ते आकर्षण को प्रदूषण के लिहाज से खतरनाक मानते हैं।
नीरी में कार्यरत विकास सिंह बताते हैं, 'ऐसा नहीं है कि इससे प्रदूषण बिल्कुल नहीं होगा। लेकिन हां, इनसे जो हानिकारक गैसें निकलेंगी, वो 40 से 50 फ़ीसदी तक कम निकलेंगी। पारंपरिक पटाखों को जलाने से भारी मात्रा में नाइट्रोजन और सल्फ़र गैस निकलती है, लेकिन इन पटाखों में ये मात्रा कम है।
पर्यावरणविद् विक्रांत ने न्यूज़क्लिक से बातचीत में कहा, ‘सरकार की पहल का स्वागत होना चाहिए, लेकिन सरकार को लोगों के बीच हरित पटाखों के उत्सर्जन की जानकारी भी देनी चाहिए। लोगों में हरित पटाखों को लेकर कई भ्रम हैं। लोग समझ रहे हैं कि ये पूरी तरह प्रदूषण मुक्त हैं। लेकिन वास्तव में ये पारंपरिक पटाखों की तुलना में केवल 30 प्रतिशत प्रदूषण कम करता है, लेकिन ये पूरी तरह प्रदूषण मुक्त नहीं है।'
उन्होंने आगे कहा कि इस समय लोगों को जागरूक करने की आवश्यकता है क्योंकि अगर लोग इसे हरित समझ कर अधिक पटाखें जलाते हैं तो इस बार निश्चित तौर पर दिवाली के बाद आने वाली सर्दियों में प्रदूषण का स्तर बढ़ सकता है।
कई विशेषज्ञ इस बात पर भी चिंता जाहिर कर रहे हैं कि हरे पटाखों की ओर लोगों के आकर्षण के बढ़ने से इस साल प्रदूषण में भी इज़ाफा हो सकता है क्योंकि गत वर्ष दिवाली पर सुप्रीम कोर्ट ने प्रदूषण के चलते केवल दो घंटे रात 8 बजे से 10 बजे तक ही पटाखे जलाने की अनुमति दी थी। लोगों के पास हरित पटाखे नहीं थे, इसलिए प्रदूषण भी अपेक्षाकृत कम था लेकिन इस साल लोग इन पटाखों को विकल्प के तौर पर इस्तेमाल कर अधिक वायु प्रदुषण कर सकते हैं।
सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट में वायु प्रदूषण इकाई में कार्यरत आकाश सिंह कहते हैं, ‘सरकार को सभी परिवारों के पटाखे खरीदने पर एक सीमा निर्धारित करनी होगी। जिससे लोग एक तय सीमा से अधिक इन पटाखों का इस्तेमाल ना कर सकें। लोगों को सामुदायिक तौर पर पटाखे जलाने चाहिए। लोगों को भी ये बात समझनी होगी कि हरित पटाखे बेहतर जरुर हैं लेकिन पूरी तरह सुरक्षित नहीं हैं। साथ ही इनसे निकलने वाले प्रदूषित तत्व आपके पर्यावरण को कम प्रभावित करेंगे लेकिन प्रभावित तो करेंगे। जैसे कि इसमें शामिल पार्टिकुलेट मैटर 2.5 स्वास्थ्य और पर्यावरण को प्रभावित करेगा।'
आकाश आगे बताते हैं कि हालांकि कि इन पटाखों की किमत पारंपरिक पटाखों की तुलना में आपके जेब का ज्यादा बोझ नहीं बढ़ाएगी। ये पटाखे आपको महंगे नहीं मिलेंगे। इसलिए जिन लोगों को बच्चों या खुद के लिए पटाखों को खरीदना ही है तो वह इस हरित विकल्प की ओर जाएं, लेकिन समझदारी से सीमित उपयोग में लाएं, जिससे इसका लक्ष्य पूरा हो सके।
हालांकि, कई जानकारों ने भी इन पटाखों के पर्यावरण अनुकूल होने पर संदेह जताया। शिवकाशी स्थित तमिलनाडु पटाखों और एमोरर्स मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन (TANFAMA) ने कहा, हम हरित पटाखों में विषैले प्रदूषकों के उत्सर्जन में 50 प्रतिशत की कटौती पर काम कर रहे हैं, लेकिन इसके बाजार में आने में अभी कुछ और समय लगेगा।
दिवाली करीब है ऐसे में लोग और दुकानदार अभी से इस त्यौहार को लेकर उत्साहित हैं। न्यूज़क्लकि ने कुछ पटाखा विक्रेताओं से बातचीच की।पुरानी दिल्ली में पटाखा विक्रेता कुलदीप सिंह बताते हैं, 'लोग पटाखें अभी से ले जा रहे हैं। हमने हरे पटाखे भी रखे हैं जिसकी मांग लोग ज्यादा कर रहे हैं। हालांकि पटाखों पर रोक से हमारे व्यापार पर असर जरूर पड़ा है, लेकिन इस साल हरे पटाके आने से हमें राहत है।'
करोल बाग के आतिश कहते हैं कि लोगों की मांग में कमी तो है लेकिन पिछले साल के मुकाबले इस साल लोग फिर भी खरीदारी कर रहे हैं। दशहरे पर अच्छी बिक्री हुई है, ज्यादातर लोग हरे पटाखे मांग रहे हैं, लेकिन कई लोग अभी भी पुराने पटाखे ले जा रहे हैं।
गौरतलब है कि लोगों को दिवाली बिना पटाखों के रास नहीं आती, लेकिन बढ़ते प्रदूषण स्तर के चलते इसके उपयोग को सीमित रखना बेहद आवश्यक है। हरित पटाखों के इस्तेमाल को लेकर विशेषज्ञों का यही सुझाव है कि लोगों को इसे जलाते समय उन विषैले प्रदूषकों को ध्यान में चाहिए जो वे उत्सर्जित करते हैं। साथ ही पटाखों के इस्तेमाल से जितना बचा जा सके, इतना बचें।
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