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ग्राउंड रिपोर्टः सोनभद्र में आदिवासियों की ज़मीन पर डाका!

आज़ादी के बाद से ही सोनभद्र में ज़मीन लूटने और आदिवासियों के उत्पीड़न का काम शुरू हो गया था। भूमाफ़िया के आगे जंगलात महकमा भी बेबस दिखाई देता है।
tribal village
सोनभद्र के मगरदहां गांव में आदिवासियों की बस्ती

उत्तर प्रदेश के सोनभद्र स्थित उभ्भा गांव में जनसंहार की वारदात के बाद आदिवासियों के जख्मों पर मरहम लगाते हुए सीएम योगी आदित्यनाथ ने कहा था, "घबराओ मत, अब मैं आ गया हूं।" पहली बार 21 जुलाई और दूसरी मर्तबा 13 सितंबर 2019 को उभ्भा गांव में उन्होंने आदिवासियों को न्याय दिलाने के लिए थोक में घोषणाएं कीं। यह वही गांव था जहां 17 जुलाई 2019 को 112 बीघे जमीन के लिए तत्कालीन ग्राम प्रधान यज्ञदत्त भूर्तिया और उसके समर्थकों ने गोलबंद होकर अंधाधुंध फायरिंग की और 11 आदिवासियों को मार डाला। जनसंहार कांड के तूल पकड़ने के बाद उस समय के डीएम व एसपी हटाए गए और कई अफसरों-कर्मचारियों पर फौरी एक्शन भी हुआ। आदिवासियों को न्याय दिलाने के लिए योगी ने शुरुआत में दिलचस्पी तो बहुत दिखाई, लेकिन बाद में नौकरशाही ने धार की भोथरी कर दी। आदिवासियों की जमीनों पर डाका डालने का सिलसिला अभी थमा नहीं है। भू-माफियाओं का हाल यह है कि इनके आगे जंगल महकमा भी बेबस है।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने तीन साल पहले जंगल और आदिवासियों की जमीनों पर कब्जा करने वालों पर चाबुक चलाने के लिए आईपीएस अफसर जे.रविंद्र गौड़ के नेतृत्व में एसआईटी गठित कर सोनभद्र भेजा था। कड़ी मेहनत के बाद एसआईटी ने 29 फरवरी 2020 को करीब साढ़े तीन सौ पन्नों की जांच रिपोर्ट शासन को सौंपी। भूमाफियाओं को संरक्षण देने वाले अफसरों को चिह्नित भी किया गया, लेकिन नतीजा वही ‘ढाक के तीन पात’ साबित हुआ। एसआईटी की रिपोर्ट में घोरावल तहसील के उभ्भा के साथ ही मगरदहां गांव में जंगल और आदिवासियों की जमीनों पर किए गए मामले की जांच हुई, लेकिन मामला जस का तस है। मगरदहां गांव के आदिवासियों में अपने हक-हकूक को लेकर जबर्दस्त गुस्सा है।

आदिवासियों की ओर से मुकदमा लड़ रहे रमेश गोड़ कहते हैं, "उभ्भा की तरह मगरदहां में एक और नरसंहार की पटकथा तैयार हो रही है, क्योंकि इस गांव में करीब 302 बीघा कीमती जमीन मड़ियाहूं (जौनपुर) से अपना दल (एस) के विधायक डा. आरके पटेल के कब्जे में है। अनुप्रिया पटेल की पार्टी अपना दल (एस) यूपी में भाजपा के साथ है। आजादी के सालों बाद तक जंगल की जिस जमीन पर आदिवासियों का कब्जा था उस पर अब भूमाफिया काबिज हैं। प्रशासनिक अफसर हमारी गुहार सुनने के लिए तैयार नहीं हैं। वो ताकतवर और पैसे वालों के पक्ष में फैसला सुनाते जा रहे हैं।"

भूमि कब्ज़े के मामले में नए खुलासे

सोनभद्र के घोरावल प्रखंड के मगरदहां गांव से गुजरने वाली नहर के तीरे आदिवासियों की बस्ती है। हालांकि इस गांव की कुल आबादी करीब 2900 है। मगरदहां के पूरब में बिसहर गांव है तो उत्तर में मिर्जापुर बार्डर को बांटने वाली बकहर नदी निकलती है। पश्चिम में नकहर नदी और दक्षिण में बाग-बगीचे, तालाब और जोगिनी ग्राम सभा है। मगरदहां के मूल निवासी कोल, गोंड और कुछ यादव हैं। बाकी जातियों के लोग बाहर से आकर यहां बसे हैं। इस इलाके में मुख्य रूप से टमाटर, मिर्च, धान, गेहूं और चना-सरसों आदि की खेती होती है। अफसोस यह है कि आदिवासी अब अपनी जमीनों पर ही गुलामों की तरह काम करने के लिए विवश हैं। मगरदहां गांव के ऊबड़-खाबड़ रास्तों पर बिवायी फटे पैरों से मवेशियों को हांकते और खेतों में फावड़ा चलाते युवा नजर आते हैं। शाम ढलते ही घुप्प अंधेरे के सीन तो और भी ज्यादा दुखदायी और परेशान करने वाला होते हैं। इस गांव में पहुंचने के बाद पता चलता है कि सोनभद्र के आदिवासी इलाकों में क़ानून व्यवस्था और रोजगार आज भी सपना है। हालांकि सोनभद्र के मगरदहां गांव से ज्यादातर कोल आदिवासी पलायन कर गए हैं। बचे हैं तो सिर्फ दलित और कुछ गोंड आदिवासी।

सोनभद्र के मगरदहां गांव के लोग ऐसे पार करते है नहर

जंगल और आदिवासियों की काबिज जमीनों को लूटने का खेल यहां भी उभ्भा के साथ शुरू हो गया था। उभ्भा में 11 लोगों के जान देने के बाद आदिवासियों को खेती के लिए जमीन तो मयस्सर हो पाई, लेकिन मगरदहां के आदिवासियों को न्याय अब तक नहीं मिला।

सोनभद्र में वन विभाग के अधिवक्ता नरेंद्र देव पांडेय कहते हैं, "मगरदहां में जंगल की जमीन और आदिवासियों का हक छीनने का खेल साल 1955 में शुरू हो गया था। उस समय यहां जमीन की प्रकृति जंगल जैसी थी, लिहाजा सरकार ने 29 सितंबर 1955 को एक विज्ञप्ति संख्या-7539/14 जारी की। 18 मार्च 1956 को दोबारा संशोधित विज्ञप्ति संख्या-23(2) 96/19 (ख) 67 निकाली गई, जो अराजी संख्या-595 (क), अराजी नंबर-598 और अराजी नंबर-599 से लगायत 606 का कुल रकबा 2217 एकड़ (करीब 3000 बीघा) से संबंधित थी।

अधिवक्ता नरेंद्र देव पांडेय के मुताबिक, "जब किसी जमीन की प्रकृति जंगल जैसी हो तो सरकार उसे उसी के अनुरूप बदलने का प्रस्ताव करती है और यही कानून है वन अधिनियम की धारा-चार। इस जमीन को लूटने के लिए भदोही की एक महिला के नाम से फर्जी अभिलेख तैयार कराए गए। उस समय मगरदहां गांव अविभाजित मिर्जापुर का हिस्सा हुआ करता था। जिस महिला को इस गांव में कभी देखा भी नहीं गया, उसने राबर्ट्सगंज के पगनाधिकारी की अदालत से आदेश पारित कराया कि सारी संपत्ति की मालिकिन वही हैं। इससे पहले 1951 में जमींदारी अधिनियम पारित हो चुका था और यूपी में नियम बनाया जा चुका था कि कोई भी व्यक्ति 12 एकड़ से ज्यादा जमीन का मालिक नहीं हो सकता है। उस समय सैकड़ों बीघा जमीन के मालिकाना हक के बारे में महिला से किसी अफसर ने पूछा तक नहीं। इसी का फायदा उठाते हुए महिला ने साल 1968 में मिर्जापुर के वन बंदोबस्त अधिकारी के कोर्ट में कथित तौर पर आपत्ति दाखिल की। इसी मामले में 03 फरवरी 1981 को फैसला आया कि सारी जमीनों पर कमला देवी का नाम दर्ज किया जाए। इसी के साथ खतौनी पर उनका नाम दर्ज हो गया और कमला देवी ने जमीनों को बेचना शुरू कर दिया। मगरदहां की जमीन पर जिस समय कमला देवी का नाम चढ़ाया गया उस समय चकबंदी प्रक्रिया शुरू हो गई थी। उन्होंने जिन्हें जमीनें बेची थी, उन्होंने अपने अलग-अलग चक बनवा लिए।"

क्या है विवाद की जड़?

राजस्व अभिलेखों के मुताबिक, 14 जून 2017 को मगरदहां गांव की करीब चार सौ बीघे जमीन 25 लोगों के नाम दर्ज की गई, जिनमें 302 बीघे जमीन पर सिर्फ डा. आरके पटेल (डा. रविंद्र कुमार पटेल) व इनके भाई विजय कुमार पटेल और उनके कुनबे का कब्जा है।

अपना दल (एस) के विधायक डा. आरके पटेल ने "न्यूज़क्लिक" से बातचीत में खुद के पास 302 बीघा जमीन होने की पुष्टि भी की। हालांकि राजस्व अभिलेखों के मुताबिक, विवादित भूमि पर शिवपूजन, केशव, राधा देवी, चंद्रावती, विजय, रविंद्र, प्रभावती, कलावती, गंगा बिहारी, सूर्यभान, सुरभि निवासी विसापुर (औराई) जिला संत कबीरनगर और विनोद कुमार व सुहरानी (कानपुर) आदि के नाम खतौनी में शामिल हैं। इन सभी का दावा है कि उन्होंने जमीन का बैनामा लिया है। यद्यपि किसी भी कोर्ट में इन्होंने अपनी जमीन के बैनामे के वैध दस्तावेजों की प्रतिलिपि दाखिल नहीं की है।"

मगरदहां में जंगल और आदिवासियों की जमीन लिए जाने के मामले में नया मोड़ तब आया जब उभ्भा नरसंहार कांड के बाद इस मामले की गहन जांच-पड़ताल हुई। सोनभद्र के तत्कालीन डीएम एस.राजलिंगम के निर्देश पर मौके पर गई जांच टीम ने छानबीन की तो पाया कि कमला देवी द्वारा पेश किए गए सभी अभिलेख फेक (कूटरचित) हैं। सिर्फ अभिलेख ही नहीं, जिन मुकदमों को आधार बनाकर उन्होंने (मुकदमा नंबर- 279/1963 और मुकदमा नंबर 567/1967) से जमीन जीतने का दावा किया वो मुकदमे न तो सोनभद्र के किसी अदालत में चला और न ही मिर्जापुर में। फिर भी सैकड़ों एकड़ जमीनें अवैध तरीके से कमला देवी के हवाले कर दी गईं।

आदिवासियों की ओर से कोर्ट में पैरवी कर रहे रमेश गोंड कहते हैं, "मगरदहां की ज्यादातर जमीनों के मालिक अपना दल (एस) के विधायक डा.आरके पटेल हैं। इन जमीनों का क्षेत्रफल करीब एक किमी की परिधि में हैं। घालमेल का आलम यह है कि मौके पर तीन बंधियां और महुआ के 80 पेड़ आज भी खड़े हैं, लेकिन राजस्व अभिलेखों में इनका कोई ब्योरा दर्ज नहीं किया गया है। चकबंदी के समय इस इलाके के सभी बांध-बंधियां, नाली, चकरोड, चरागाह आदि की जमीनें लापता हो गईं। मगरदहां गांव में आज भी जंगली जानवर आते हैं और रसूखदार लोग उनका धड़ल्ले से शिकार करते हैं और उनकी खालों और हड्डियों की तस्करी भी। हम सभी की शिकायत पर मौका-मुआयना करने अफसर तो आते हैं, पर सारा दोष आदिवासियों के माथे पर मढ़कर चले जाते हैं। चकबंदी विभाग के भ्रष्ट अफसर और कर्मचारी अब भी भूमाफियाओं को खुलेआम सहयोग दे रहे हैं।"

जमीन का अभिलेख दिखाते आदिवासी रमेश गोंड

मगरदहां में सत्तारूढ़ दल के विधायक की कारस्तानी को लेकर आदिवासियों में खासी नाराजगी है। खुफिया एजेंसियां यहां एक और नरसंहार कांड की आशंका जाहिर कर चुकी हैं। सोनभद्र पुलिस के एलआईयू महकमे ने 25 सितंबर 2020 को डीएम को मगरदहां विवाद के बारे में एक विस्तृत रिपोर्ट भेजी तो प्रशासन की नींद उड़ गई। रिपोर्ट में साफ तौर पर कहा गया है कि इस गांव में जंगल की जमीन को लेकर कभी भी कोई बड़ी वारदात हो सकती है। इसी के बाद तत्कालीन डीएम एस.राजलिंगम ने एसडीएम, तहसीलदार, चकबंदी अधिकारी, राजस्व निरीक्षक को घोरावल के पुलिस अफसरों के साथ मौके पर भेजा। देवराज गोंड, रमेश, लवलेश, शोभनाथ समेत बड़ी संख्या में लोगों ने जांच टीम को साफ-साफ बताया कि विवादित जमीन वन विभाग और उनकी है। गैर जनपद से आए हुए डा.आरके पटेल और उनके भाई विजय पटेल आदि लोग विवादित जमीन पर कब्जा करके जबरिया खेती कर रहे हैं। जांच टीम के बाद राज्य सरकार की एसआईटी ने भी जांच-पड़ताल की तो पाया कि कमला देवी ने साल 1963 और 1969 में राबर्ट्सगंज के एसडीएम और मिर्जापुर के वन बंदोबस्त अधिकारी की अदालत से जिस मुकदमे को जीतने का दावा किया है वो मुकदमा ही पूरी तरह फर्जी था। कूटरचना करके दस्तावेजी साक्ष्य बनाए गए और करीब 417 बीघा वन भूमि अपने नाम करा ली गई। यही नहीं, ऊपर की अदालतों में भी फर्जी मुकदमे का ब्योरा देकर सैकड़ों बीघा जमीन हथिया लिया गया, जबकि उन जमीनों के असली अहकार स्थानीय आदिवासी थे।

पेश किए गए जाली दस्तावेज़!

सोनभद्र के कलेक्टर के निर्देश पर हाल के दिनों में घोरावल के एसडीएम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई हो रही थी। आदिवासियों की ओर से सभी अभिलेखीय साक्ष्य भी पेश कर बताया गया कि जमीनों के ज्यादातर दस्तावेज जाली हैं। आरोप है कि विधायक डा. आरके पटेल से कोर्ट ने बैनामे की प्रतिलिपि मांगी तो वो भी दस्तावेजी साक्ष्य पेश नहीं कर पाए। इसी हफ्ते फैसला आने को था। इससे पहले ही सूर्यभान पटेल आदि ने विंध्याचल के कमिश्नर योगेश्वर राम मिश्र की अदालत से समूची कार्रवाई रोकने के लिए अर्जी दी और स्थनादेश हासिल कर लिया। समूचा मामला सरकार और वन विभाग से जुड़े होने के बावजूद कमिश्नर ने सोनभद्र के डीएम से रिपोर्ट तक नहीं मांगी और एसडीएम को फैसला सुनाने पर रोक लगा दिया। कमिश्नर की कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई के लिए अब 29 नवंबर 2022 की तारीख लगाई है।

"न्यूज़क्लिक" ने विवादित जमीन पर खेती कर रहे अपना दल (एस) के विधायक डा. आरके पटेल से बातचीत की तो उन्होंने दावा किया, "मगरदहां में 302 बीघा जमीन हमारी है। हाईकोर्ट की डबल बेंच से हम मुकदमा जीत चुके हैं। इसी मामले में राज्य सरकार की ओर से छह साल पहले सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर की गई है। चकबंदी विभाग ने भी यह लिखकर दे दिया है कि जब सुप्रीम कोर्ट में मामला चल रहा है तो हम भला कैसे सुन सकते हैं? ऐसे में कलेक्टर अथवा एसडीएम हमारी जमीनों का नया मुकदमा कैसे खोल सकते हैं? मैं मूलतः भदोही का रहने वाला हूं। वहीं जीवनधारा हास्पिटल चलाता हूं। हमारा पक्ष सिर्फ इतना है कि आप सुप्रीम कोर्ट से मुकदमा जीत लीजिए और हमसे सारी जमीनें ले लीजिए। फिर भी प्रशासन और वन विभाग को हमारी बात समझ में नहीं आ रही है। जंगल और जिला प्रशासन के अफसर जानबूझकर झमेला पैदा कर रहे हैं।"

ताजा विवाद के बाबत "न्यूज़क्लिक" ने घोरावल के एसडीएम श्याम प्रताप सिंह का पक्ष जाने की कोशिश की गई तो उन्होंने कहा, "आप मौके पर गए होंगे तो जानकारी मिल ही गई होगी। फिलहाल हम मुख्यमंत्री के कार्यक्रम में व्यस्त हैं। विवादित जमीन के बारे में कोई भी जानकारी लेनी है तो आप आरटीआई के जरिए सूचना मांग सकते हैं।

सोनभद्र में वन विभाग के अधिवक्ता नरेंद्र देव पांडेय से भी "न्यूज़क्लिक" ने विस्तार से बात की तो उन्होंने साफतौर पर कहा कि कमला देवी से जिन लोगों ने जमीनें खरीदी हैं वो इसलिए फर्जी हैं क्योंकि संबंधित मुकदमों का कोई रिकार्ड किसी अदालत में मौजूद नहीं है। इसी आधार पर हम इसे जालसाजी का मामला मान रहे हैं। इस बाबत वन विभाग ने आरोपितों के खिलाफ थाने में रिपोर्ट भी दर्ज कराई है। जब कमला देवी का सारा दस्तावेज ही जाली है तो उनके द्वारा किए गए बैनामे सही कैसे माने जाएंगे? इनके पास तो रजिस्ट्री का कोई वैध दस्तावेज तक नहीं है।"

आदिवासियों के मामलों को प्रमुखता से कोर्ट में पेश करने वाले अधिवक्ता आशीष पाठक कहते हैं, "सोनभद्र में कूट रचित दस्तावेजों के जरिये जमीन कब्जाने का खेल नया नहीं है। नई परिपाटी यह बन गई है कि कोर्ट में जो भी वाद आता है तो एन-केन प्रकारेण विभागीय कार्रवाई ठप करा दी जाती है। अफसरों के फंसने की नौबत आती है तो सारे डाक्युमेंट ही गायब हो जाते हैं। हमेशा यही कोशिश की जाती है कि मामला पेचीदा बना रहे। विधायक डा. आरके पटेल के पक्षकार सूर्यभान पटेल ने मगरदहां मामले में कमिश्नर कोर्ट से भले ही कुछ दिनों के लिए राहत हासिल कर ली है, लेकिन फर्जी अभिलेखों के जरिये हड़पी गई जमीन को खरीदने-बेचने का कोई मतलब नहीं है। हाईकोर्ट ने मगरदहां मामले में 11 दिसंबर 2015 को जो आर्डर किया है उसमें सिर्फ इतना कहा है कि प्रशासन वादी पक्ष को परेशान न करे, लेकिन जिला प्रशासन नियमानुसार कार्रवाई कर सकता है।"

"उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता 2006 की धारा 38 (5) के तहत राजस्व अभिलेखों में कोई फ्राड इंट्री की गई है तो उसे तत्काल दुरुस्त किया जाना चाहिए। ऐसे मामलों के निस्तारण की मियाद सिर्फ 45 दिन तय की गई है। एसडीएम कोर्ट अगर इस मामले की सुनवाई कर रही थी, उसे राजस्व कानून का उलंघन नहीं माना जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट में दाखिल जनहित याचिका का विषय दूसरा है। घोरावल एसडीएम के यहां चल रहा मामला तो कूट रचित दस्तावेज पेश कर जंगल और आदिवासियों की जमीन हड़पने का चल रहा है। सरकार की संपत्ति बचाने के लिए प्रशासनिक अफसरों को खुद आगे आना चाहिए। हमें सोनभद्र प्रशासन की नीयत में कोई खोट नजर नहीं आ रही है। संभवतः मिर्जापुर के कमिश्नर कोर्ट को सही जानकारी नहीं दी गई, जिससे आधार पर उन्हें स्टे मिल गया।"

घोरावल एसडीएम के फैसले से पहले मिल गया स्थगनादेश

"कमिश्नर कोर्ट को जब यह कोरा सच पता चल जाएगा कि फेक डायुक्मेंट से वन विभाग और आदिवासियों की हथियाई गई जमीन की स्थिति बदल जाएगी। विधायक डा. आरके पटेल ने सभी अदालतों में हलफनामा दाखिल किया है कि हमारे पास समूचे यूपी में 12.50 एकड़ से अधिक जमीन नहीं है। उनसे यह पूछा जाना चाहिए कि उनके और उनके कुनबे ने थोक में इतनी जमीने कैसे खरीद ली? वन विभाग अपनी लड़ाई सही दिशा में लड़ रहा है, लेकिन प्रशासन, तहसील व चकबंदी विभाग के अफसर सामंती ताकतों के साथ खड़े नजर आ रहे हैं।"

नरम चारा हैं आदिवासी

अधिवक्ता आशीष यह भी कहते हैं, "सोनभद्र में आदिवासी सबके लिए, सबसे ज्यादा नरम चारा हैं। इन पर वन विभाग ही नही, चकबंदी विभाग और तहसील महकमा भी जुल्म ढाता रहता है। जो ताकतवर हैं और यहां बाहर से आए हैं उनसे कोई यह पूछने वाला नहीं है कि तीन सौ बीघा जमीन किसी के पास आखिर कैसे आ गई और सीलिंग विभाग उनके आगे नतमस्तक क्यों है? मगरदहां में जिन जमीनों पर विवाद चल रहा है उनका कोई तो इतिहास तो रहा ही होगा? जांच से पता चल जाएगा कि जिन जमीनों पर रसूखवाले काबिज हैं उन पर पहले आदिवासियों का हक हुआ था अथवा किसी बाहरी आदमी का। आदिवासी तो जंगल में ही खेती-किसानी और वनोपज से अपनी आजीविका चलाया करते थे। अनपढ़ होने के कारण दबंगों ने उनकी जमीनें हथिया ली। सोनभद्र में तमाम ऐसे मामले हैं जिसमें आदिवासी जीवित हैं और उन्हें मरा बताकर उनकी जमीनों पर बलपूर्वक कब्जा कर लिया गया है।"

आधिवक्ता आशीष पाठक अपने दावों के बाबत नजीर देते हुए कहते हैं, "सोनभद्र के राबर्ट्सगंज तहसील के सिलथम गांव में करीमन खरवार की 0.6320 हेक्टेयर जमीन (अराजी नंबर-1058/2 और अराजी नंबर-1109 मी.) इनके मौत के बाद चार पुत्रों-भोला, भिखारी, कल्लू व रामशरण और इनकी मां बुधनी देवी के वरासत में दर्ज हो गई। उसके बाद विजयगढ़ के नायब तहसीलदार के आदेश पर 18 फरवरी 2013 को भोला को मृतक दर्शाते हुए उनके स्थान पर गांव के ही दूसरी जाति के जयप्रकाश, श्रीप्रकाश और सूर्यप्रकाश को भोला का पुत्र दर्शा दिया गया। तीनों जालसाजों की मां मौली देवी का नाम सरकारी दस्तावेजों में भोला की पत्नी के रूप में फर्जी तरीके से दर्ज कर दिया गया।"

"आदिवासी भोला को जानकारी हुई तो अपर मुख्य सचिव/प्रमुख सचिव से जनसुवाई के जरिये शिकायत की। राबर्ट्सगंज के एसडीएम ने तहसीलदार के जरिए जांच कराई तो 26 मार्च 2018 को लेखपाल ने लिपकीय त्रुटि बताई। साथ ही यह भी कहा कि गलत वरासत को निरस्त कर खतौनी की इंट्री सही कर ली जाएगी। 7 जुलाई 2022 को जब भोला ने खतौनी निकाली तो संशोधन की कौन कहे, अवैध लोगों का नाम आदेश के कालम से हटाकर खतौनी के मूल भाग में शामिल कर लिया गया। तब से लेकर आज तक भोला अफसरों की देहरी पर दौड़ लगा रहे हैं। उन्हें अभी तक योगी सरकार से न्याय नहीं मिल सका है।"

सोनभद्र के इसी तरह के एक और मामले का जिक्र करते हुए आशीष बताते हैं, "राबर्ट्सगंज तहसील के नक्सल प्रभावित चिचलिक गांव की कैलसिया उर्फ कबूतरी (70) ने अपने पिता मंगरू और संतानहीन बड़े पिता सुकालू की संपत्ति अपने नाम दर्ज करने के लिए अर्जी दी। कबूतरी का नाम दर्ज करने की बजाय तहसील के नुमाइंदों ने जमीन की खतौनी पर दूसरे लोगों का नाम दर्ज कर दिया। महिला ने जब इसकी शिकायत करते हुए अपना नाम दर्ज कराने की तहसीलदार से गुहार लगाई तो आरोप है कि तत्कालीन लेखपाल नवनीत कुमार ने 20 हजार रुपये घूस मांगी। बाद में वह कानूनगो से मिली तो उसने भी अपने लिए 20 हजार की डिमांड कर दी। इसके पश्चात इस महिला ने समूचे प्रकरण की शिकायत सीएम आदित्यनाथ से की। गुहार लगाई कि दोनों तहसीलकर्मियों पर एक्शन लिया जाए अथवा घूस देने के लिए हमें आर्थिक मदद दी जाए। साल 2018 से यह मामला अभी तक तहसील की फाइलों में दफन है।"

आशीष कहते हैं, "सिर्फ जालसाजी से ही नहीं, सोनभद्र में अंधविश्वास का खौफ दिखाकर भी आदिवासियों की जमीनें हड़पी जा रही हैं। ऐसा ही एक मामला सोनभद्र के तेनूडाही का है।"

आशीष आरोप लगाते हैं कि "यहां मेहक खरवार की पांच साल की बेटी की बीमारी से मौत हो गई तब इसी गांव से सटे कटियारी के लालधारी यादव एवं उनके पुत्र रामकृत, रामदहिन, रामजनम, राम सरीखा एक साथ मेहक के यहां पहुंचे और उन्हें भूत-प्रेत का डर दिखाया। मेहक खरवार को सलाह दी कि अगर वो अपनी दो बिस्वा जमीन मंदिर बनवाने के लिए दान दे दें तो प्रेतबाधा खत्म हो जाएगी।"

आशीष का कहना है कि "खौफजदा मेहक मंदिर के लिए जमीन देने पर राजी हो गए। सरकारी कर्मचारियों की मिलीभगत और धोखाधड़ी से जालसाजों ने मेहक की करीब दो बीघा एक बिस्वा 17 धुर जमीन अपनी पत्नी राजकुमारी, किस्मती देवी, अमनी उर्फ अंपी एवं शंकरा देवी के नाम लिखवा ली। यह स्थिति तब है जब किसी आदिवासी समुदाय की जमीन किसी भी दशा में दूसरा व्यक्ति नहीं ले सकता है। दाखिल खारिज के समय महिलाओं की ओर से लेखपाल की मिलीभगत से एक फर्जी शपथपत्र दिया कि मेहक आदिवासी नहीं हैं। यही नहीं, जमीन हड़पने वाली महिलाओं ने फर्जी तरीके से मेहक की जमीन पर न सिर्फ अपना नाम चढ़वाया, बल्कि उस पर बैंक से लोन भी ले लिया। साल 2019 में समूचे मामले की कलेक्टर के यहां शिकायत दर्ज कराई गई, लेकिन कोई ठोस नतीजा नहीं निकला। दबंग समुदाय के लोग अभी तक इस आदिवासी की जमीन पर कब्जा जमाए हुए हैं।"

दोबारा बेच दी ज़मीन!

सोनभद्र में गरीब आदिवासियों की जमीनें हड़पने के लिए तरह-तरह के हथकंडे अपनाए जा रहे हैं। मगरदहां गांव में साल 1975 में परसोतम और उनके भाई मोती, सोती और राजाराम ने बाल मुकुंद लोहिया नामक व्यक्ति से सोहन व मोहन के खाते से अराजी नंबर-549 की 11 बीघा 12 बिस्वा जमीन खरीदी। बाद में लोहिया ने इसी जमीन को साल 2012 में चमेला, इंद्रावती, बालिस्टर, चंद्रमा, शकुंतला, विजय बहादुर के नाम दोबारा रजिस्ट्री कर दी। परसोतम बताते हैं, "इसी साल 20 जुलाई 2022 को इलाकाई कानूनगो और लेखपाल ने हमारा कब्जा हटाकर सारी जमीन दबंगों को दे दी। यही नहीं आबादी की 201 एयर जमीन के अलावा आम के आठ और यूके लिप्टस के 20 पेड़ भी दबंगों के हवाले कर दिया। जमीन की पैमाइश के लिए हमने अगस्त 2022 में तहसील में अर्जी डाली है, लेकिन हमारी जमीन नापने के लिए कोई भी तैयार नहीं हैं।

न्याय के लिए गुहार लगाते परसोतम

सोनभद्र के मेहुड़ी खुर्द निवासी संतोष पुत्र लल्लू ने 21 अगस्त 2014 को अपने गांव में 0.1256 हेक्टेयर जमीन (अराजी नंबर 252) बुल्लू पुत्र मटुकधारी से बैनामा लिया। दाखिल खारिज के समय लेखपाल रामधनी यादव ने रिपोर्ट लगाई कि विक्रेता दलित है और क्रेता पिछड़ी जाति का है। 27 सितंबर 2015 की इस रिपोर्ट के आधार पर जमीन का हस्तांतरण रोक दिया गया। इसके बाद संतोष उर्फ लल्लू के अपने नाम जाति प्रमाण-पत्र (क्रमांक-700241401172) निर्गत कराया, जिसमें उसे आदिवासी गोंड जनजाति दर्शाया गया। रिश्वत लेने के बाद लेखपाल ने अपनी रिपोर्ट बदल दी और जमीन का नामांतरण प्रक्रिया संपन्न हो गई। हैरत की बात यह है कि गलत रिपोर्ट देने वाले लेखपाल के खिलाफ आज तक कोई कार्रवाई नहीं की गई।

सोनभद्र कांग्रेस के जिलाध्यक्ष रामराज गोंड अब खुलेआम आरोप लगा रहे हैं तीन साल पहले उभ्भा में योगी ने सिर्फ ड्रामा किया, जनसंहार कांड पर पर्दा डाला और आदिवासियों की भावनाओं के साथ खेलकर चले गए। उन्हें न्याय दिलने के लिए ठोस कदम नहीं उठाया। वह कहते हैं, "एसआईटी की जांच रिपोर्ट के बाद लखनऊ के हजरतगंज थाने में जिन अफसरों समेत 28 लोगों के खिलाफ मुकदमा (अपराध संख्या-399/2019) दर्ज किया गया था, वो भी घपले का भेंट चढ़ गया। डबल इंजन की सरकार का मकसद पूरा हो गया तो सोनभद्र के आदिवासियों को जीवन भर सिसकने के लिए छोड़ दिया गया। उनके न तो मुकदमें खत्म हुए और न ही दोषी अफसर जेल भेजे गए। यह स्थिति तब है जब योगी ने उभ्भा में दहाड़ लगाई थी कि नरसंहार के जिम्मेदार लोग कतई नहीं बचेंगे। सच्चाई यह है कि भाजपा सरकार सिर्फ झूठ और फरेब के दम पर चल रही है। कांग्रेस नेत्री प्रियंका गांधी उभ्भा नहीं गई होतीं तो आदिवासियों को न्याय नहीं मिल पाता।"

आदिवासी हितों के लिए काम करने वाले एक्टिविस्ट डॉ. लेनिन रघुवंशी कहते हैं, "सही ढंग से जांच-पड़ताल कई जाए तो सोनभद्र में सैकड़ों लेखपाल नप जाएंगे। दर्जनों लेखपालों और राजस्व निरीक्षकों को टर्मिनेट करना पड़ेगा। नंगे-भूखे घूम रहे आदिवासियों को तो यहां कोई पूछने वाला ही नहीं है। सोनभद्र में कई ऐसी जगहें हैं जहां आजादी के बाद कोई अफसर आज तक नहीं गया है। उनकी मुश्किलों का कोई थाह नहीं है। इनकी आबादी भी लगातार घटती जा रही है। बड़ा सवाल यह है कि आदिवासियों की जमीन ट्रांसफर हो नहीं सकती तो वह क्यों घटती जा रही है? कोई यह बताने के लिए तैयार नहीं है कि इनकी जमीनें आखिर कहां जा रही हैं?"

"सोनभद्र में सरकार ने जब-जब सर्वे कराया, तब-तब आदिवासियों की जमीनें घटती चली गईं। शायद इनकी जमीनों को लालच और बेईमानी का समुद्र निगलता जा रहा है। आदिवासियों के शोषण का इतिहास खंगाला जाएगा तो बेईमान और लालची लोग यूपी की सरकार ही ठप कर देंगे। आदिवासियों की लड़ाई लड़ते-लड़ते बहुत से लोग सोनभद्र में सामंत और धनाड्य बन गए। जिसे खाने का ठिकाने नहीं रहा, वो आदिवासियों का भाग्य बदलने के नाम पर संसद और विधानसभा में पहुंचते ही अपना स्वार्थ सीधा करने में लग जाते हैं। आदिवासियों की जिंदगी से खेलने का अंतहीन सिलसिला आज भी जारी है। हमें समझ में नहीं आ रहा है कि सामंतों के पास इतनी जमीनें कहां से आईं? आखिर वो कौन की वजहें हैं कि यूपी के अफसर वन विभाग को कहीं भी जीतने नहीं दे रहे हैं।"

डॉ. लेनिन यह भी कहते हैं, "आजादी के बाद से ही सोनभद्र में जमीन लूटने और आदिवासियों के उत्पीड़न का काम शुरू हो गया था। सोनभद्र में अगर कोई आदिवासी हिम्मत कर अपने अधिकारों के लिए लड़ने के लिए खड़ा होता है तो उस पर तमाम फर्जी मुकदमे लाद दिए जाते हैं। उनके के लिए थाने का सिपाही आज भी सबसे बड़ा अफसर होता है। समाधान की बात यह है कि शासन चाहे तो ईमानदार अफसरों की टीम गठित कर सोनभद्र भेजे और नए सिरे से सर्वे कराए। तब पोल खुलेगी कि यहां क्या हो रहा है? उभ्भा कांड के बाद सोनभद्र में एसआईटी जांच में वन विभाग और आदिवासियों की जमीन लूटे जाने के जो मामले पकड़े गए थे उन पर एक्शन लिया गया होता तो आज स्थिति कुछ और होती।"

उभ्भा कांड के बाद मगरदहां की जांच रिपोर्ट

लुट रही ज़मीन, सिकुड़ रहे जंगल

सोनभद्र और मिर्जापुर ही नहीं, चंदौली नौगढ़ इलाके के जिन जंगलों से बूते समूचा पूर्वांचल सांस लेता है, नौकरशाही ने उसका गला घोंटना शुरू कर दिया है। सोनभद्र में अगर कुछ सुनाई देता है तो सताए जा रहे आदिवासियों की चीख और पहाड़ों को खाती मशीनें, धूल उड़ाते वाहनों के भोपू और नदियों का सीना चीरकर बालू निकालती मशीनें का शोर। केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने 14 जनवरी 2022 को भारतीय वन सर्वेक्षण (एफएसआई) की जो रिपोर्ट पेश की है उससे साफ-साफ पता चलता है कि कितने बड़े पैमाने पर जंगल और आदिवासियों की जमीनें लूटी जा रही हैं? एफएसआई की द्विवार्षिक रिपोर्ट के मुताबिक साल 2019 तक सोनभद्र का वन क्षेत्रफल 2540.29 वर्ग किमी था, जो साल 2021 में घटकर 2436.75 वर्ग किमी रह गया। यहां सिर्फ दो सालों में ही वन क्षेत्र का दायरा 103.54 वर्ग किमी घट गया है।

मौजूदा समय में सोनभद्र में सघन वन क्षेत्र 138.32, कम सघन वन क्षेत्र 940.62 वर्ग किमी और खुला वन क्षेत्र 1357.81 वर्ग किमी है। देश के 112 अति पिछड़े ज़िलों में सोनभद्र शामिल है और चंदौली भी। मंत्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक सोनभद्र का जंगल 103.54 वर्ग किमी और चंदौली का 1.79 वर्ग किमी कम हुआ है। सोनभद्र की पहचान शुरू से ही घने जंगलों से होती रही है। वृहद जंगलों के कारण ही सोनभद्र क्षेत्रफल के लिहाज से प्रदेश का दूसरा सबसे बड़ा जिला है। यह सूबे का पहला ऐसा जिला भी है जहां तीन से अधिक वन प्रभाग राबर्ट्सगंज, ओबरा, रेणुकूट हैं। कैमूर वन्य जीव प्रभाग का आधा क्षेत्र सोनभद्र में भी है। साढ़े तीन वन प्रभाग होने के बावजूद यहां जंगलों का सुरक्षित न रहना चिंताजनक है।

सरकारी आंकड़ों पर गौर किया जाए तो साल 2021 में सोनभद्र में हरियाली और पर्यावरण संरक्षण के नाम पर 85 लाख पौधे रोपे गए। तीन सालों में लगातार चलाए गए महाअभियान में एक करोड़ 93 लाख पौधे रोपने के दावे किए गए, लेकिन भारतीय वन सर्वेक्षण (एफएसआई) की द्वि-वार्षिक रिपोर्ट ने योगी सरकार के पौधरोपण अभियान की हवा निकाल दी है। सोनभद्र के वन विभाग के अफसर सफाई देते फिर रहे हैं कि बड़े पैमाने पर विकास कार्य के चलते रकबा घटा है, जबकि सच यह है कि जंगल विभाग की जमीनें भूमाफिया लगातार हड़पते जा रहे हैं।

शोध रिपोर्ट के मुताबिक, "एक पत्तीदार पेड़ एक सीजन में 10 लोगों के लिए साल भर का ऑक्सीजन देता है। एक स्वस्थ्य पेड़ एक साल में 22 किलोग्राम कार्बन डाई ऑक्साइड सोखता है। औसतन एक पेड़ एक साल में 118 किलोग्राम ऑक्सीजन प्रतिवर्ष मुक्त करता है। पत्रकार पवन कुमार मौर्य कहते हैं, "सोनभद्र के जंगल और भोले-भाले आदिवासियों की जमीनें भूमाफियाओं की साफ्ट टारगेट हैं। इनकी जमीनों को कब्जाना और प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा मूमाफियाओँ को संरक्षण देना चिंता की बात है। "

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