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ग्राउंड रिपोर्टः स्मार्ट सिटी बनारस के हिदायतनगर में सीवर से उफनते नाले में मासूम अलीना की मौत का जिम्मेदार कौन?

“...नक्खीघाट इलाके में बहुसंख्यक मुसलमान हैं। भाजपा के नेताओं को लगता है कि मुसलमान कमल का बटन नहीं दबाते हैं, तो उन्हें सुविधाएं क्यों दी जाएं?...”
BANARAS

बनारस के नक्खीघाट पुल के पास वरुणा नदी के किनारे बसे हिदायतनगर में एक बिना प्लास्टर वाले मकान में रहने वाले युवा दंपति मोहम्मद अफजल और आतिका बानो की चार साल की मासूम बेटी अलीना परवीन की सीवर के नाले में डूबने से मौत हो गई। पीले रंग के सलवार सूट और दुपट्टे में सिमटी बैठी आतिक की आंखें पथरा गई हैं। चेहरे पर गहरी उदासी चिपकी हुई है। अलीना के बारे में पूछने पर कुछ देर के लिए वह शून्य में देखती रहीं। फिर मद्धिम आवाज़ में बोली, "मेरी बेटी की मौत किसी हादसे में नहीं हुई, जानबूझकर उसका कत्ल किया गया है। स्मार्ट सिटी बनारस में अगर इसे हादसा मान लें तो सीधे तौर पर आरोप प्रशासन के माथे पर ही चस्पा होगा। नाले को ढंकने की जिम्मेदारी जल निगम और सिंचाई विभाग की थी, लेकिन उन्होंने गहरे नाले को खुला छोड़ दिया था। जानलेवा नाले में अब तक दर्जनों लोग गिर चुके हैं, लेकिन अभागन मैं थी, जिसकी बेटी की मौत हो गई। अब हर वक्त बेटी अलीना का चेहरा मेरी आंखों में नाचता रहता है।" 

मासूम अलीना और वह नाला जिसमे उसकी मौत हुई 

यह कहते हुए 25 वर्षीया आतिका बानो के चेहरे पर दुख और दर्द की गहरी लकीरें खिंच आईं। उसकी आंखों से आंसुओं की धारा फूट पड़ी। तभी पास खड़ी उनकी 22 वर्षीया ननद नुजहत ने बेटी की तस्वीर निकाली और सामने रख दी। सजी-संवरी अलीना परवीन की वह तस्वीर जो शायद उसके बर्थडे के समय खींची गई थी। गुलाबी हाथों में चूड़ियां और बालों में टीका। नाजुक हाथों में अलीना की तस्वीर पकड़े नुजहत ने कहा, "हम किसे दोष दें। हमारा नसीब ही खराब था। 21 फरवरी 2023 को परिवार के लोग हमारे भाई आरिफ की शादी के लिए रिश्ता देखने गए, तभी अलीना गुम हो गई। पूरे मुहल्ले का चक्कर लगाने के बावजूद उसका अता-पता नहीं चला। थाना पुलिस में शिकायत दर्ज कराई गई, पर कहीं सुराग नहीं लगा। अगले दिन 22 फरवरी की सुबह अलीना की लाश सीवर के नाले में मिली। फकत चार साल की बच्ची बेहद संकरी गली पार करते हुए उस जगह कैसे पहुंच गई, जहां कोई भी बड़ी आदमी मुश्किल से जा सकता है। हमें तो लगता है कि सुनियोजित ढंग से अलीना की हत्या की गई है, लेकिन जैतपुरा थाना पुलिस जांच-पड़ताल से बचने के लिए नाला न ढकने वाले महकमे को कसूरवार बता रही है। उच्चस्तरीय जांच से ही अलीना की मौत का राज खुल पाएगा।"

अलीना की मां अंतिका बानो 

आखिर इस नाले को पार कर कैसे पहुंची मासूम बच्ची

70 वर्षीय अनवर हुसैन चिंता में डूबे नजर आए। उनकी पलकों के कोर पर आंसू टिके हुए थे। चेहरे पर दुख की जैसे एक काली छाया थी। दरअसल, अलीना परवीन उनकी सबसे लाडली पोती थी। उसकी मौत से मिले गहरे दुख अनवर के चेहरे पर अतीत की कठोर परछाई की तरह चिपके दिखाई देते हैं। कुछ बरस पहले तक वो हैंडलूम विभाग में कालीन बुनकरों को नई-नई डिजाइन बनाने का प्रशिक्षण दिया करते थे। इनके आठ बच्चे शबनम, बबली, रौशन, इरफान, नुजहत परवीन, अफजल, के अलावा जुड़वां भाई आसिफ व आरिफ हैं।

काफ़ी देर ख़ामोश रहने के बाद कांपती आवाज़ में अनवर हुसैन बोले, " पिछले महीने ही अलीना परवीन का चौथा जन्मदिन मनाया गया था। कहने को बनारस स्मार्ट सिटी है और पीएम नरेंद्र मोदी हमारे सांसद हैं और हम खुले नाले, बजबजाती नालियों व बेशुमार मच्छरों के जखेड़े में नर्क से भी बदतर जीवन गुजारने को मजबूर हैं। हादसे के बाद पुलिस आई और बनारस  के कलेक्टर एम.राजलिंगम के साथ जिले के तमाम अफसर भी, लेकिन स्थिति जस की तस है। सरकार का कोई मुलाजिम यह जिम्मेदारी लेने के लिए तैयार नहीं है कि जानलेवा नाले को क्यों नहीं ढंका गयाअफसरों ने ढाढस दिलाया था कि मुआवजा दिलाएंगे और नाले को तत्काल ढंकवा देंगे, लेकिन उनकी दोनों बातें फरेब साबित हुईं।"

गंदे नाले में तब्दील वरुणा नदी के किनारे बसी तमाम मुस्लिम बस्तियों की घोर उपेक्षा

मुसलमान होना ही अब गुनाह है

अनवर के घर में एक पावरलूम है और एक खटारा बाइक। दोनों कबाड़ में तब्दील हो गए हैं। पिछले साल आई बाढ़ में इनका घर पानी में डूब गया था और पावरलूम भी। अलीना परवीन की मौत से गमजदा अनवर के पड़ोसी 45 वर्षीय हफीजुरहमान बुनकारी करते हैं। वह कहते हैं"कौन कहता है कि बनारस स्मार्ट सिटी है। हमारे मुहल्ले में तो मुद्दतों से झाड़ू नहीं लगी। अलीना की मौत के बाद भी इलाके के पार्षद रियाजुद्दीन झांकने नहीं आए। हमारे इलाके के साथ नाइंसाफी सिर्फ इसलिए हो रही है कि समूचे नक्खीघाट इलाके में बहुसंख्यक मुसलमान हैं। भाजपा के नेताओं को लगता है कि मुसलमान कमल का बटन नहीं दबाते हैं, तो उन्हें सुविधाएं क्यों दी जाएं? हमारी मुश्किलों का तो कोई ओर-छोर नहीं है। हम किसे और कितनी समस्या बताएं?"

बनारसी साड़ियों के बेहतरीन कारीगर हफीजुरहमान बड़ा सवाल यह खड़ा करते हैं कि हिदायतनगर अगर वरुणा नदी की तलहटी में बसा है तो प्रशासन ने बैनामा करने और इमारत बनाने पर पाबंदी क्यों नहीं लगाई वह कहते हैं, "वाराणसी विकास प्राधिकरण और नगर निगम के अफसर पैसा चूसकर चुप बैठ जाते हैं और हमें कीड़े-मकोड़ों की तरह मरने के लिए छोड़ देते हैं। बनारस के मुस्लिम बहुल इलाकों की गलियां ऊबड़-खाबड़ हैं। कहीं सीवर है, कहीं नहीं है। खड़ंजों की मरम्मत की जरूरत है, लेकिन हिदायतनगर के लिए पैसा नहीं है।

पास खड़े 40 वर्षीय रमजान (बुनकर) कहते हैं"हम मुसलमान है, यही हमारा गुनाह है। शायद इसी लिए हमें भगवान भरोसे छोड़ दिया गया है। सिर्फ बारिश ही नहीं, गर्मी की मार भी झेलनी पड़ती है। पीने का साफ पानी नसीब नहीं होता। अपना कितना दुखड़ा सुनाएं। जब बनारस का विकास वोटबैंक के हिसाब से तय होगा तो मुसीबत आएगी ही। दुनिया भर में डंका पीटा जा रहा है कि बनारस स्मार्ट हो गया है। किसी शहर के स्मार्ट होने का मतलब यह नहीं है कि सिर्फ विश्वनाथ कारिडोर और उसकी आसपास की गलियों को चमकाकर वाहवाही लूटी जाए। दशाश्वमेध रोड, गोदौलिया, चौक, मैदागिन की तरह हिदायतनगर में भी विकास हुआ होता तो मासूम अलीना परवीन की जान नहीं गई होती।"

 क्या प्रोजेक्ट पूरा हो पाया?

 केंद्रीय आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय ने बनारस, और आगरा सहित राज्य के 22 शहरों को मार्च 2023 में पूरी तरह स्मार्ट बनाने के लिए डेड लाइन तय की है। दावा किया जा रहा है कि एक महीने बाद  बनारस आगरारांचीभोपालपुणेअहमदाबादचेन्नई आदि महानगरों को स्मार्ट सिटी का दर्जा मिल जाएगा। बाकी 78 शहर भी शीघ्र ही इस मानक को पूरा कर लेंगे। बनारस स्मार्ट सिटी में लोगों को गुणवत्तापूर्ण बेहतर जीवन और एक स्वच्छ एवं टिकाऊ माहौल मिलेगा।  मोदी सरकार ने 25 जून, 2015 को स्मार्ट सिटी मिशन परियोजना लांच की थी। जनवरी 2016 से जून 2018 तक चार दौर की परियोजना के तहत 100 शहरों को स्मार्ट सिटी बनाने का लक्ष्य रखा गया था।

वरुणा कारिडोर का बदहाल रास्ता जिसकी सुध लेने वाला कोई नहीं

बनारस को स्मार्ट सिटी घोषित करते समय दावा किया गया था कि इस शहर के पास  वर्ल्ड क्लास ट्रांसपोर्ट सिस्टम होगा। एक जगह से दूसरी जगह तक 45 मिनट में जाने की व्‍यवस्‍था होगी। बनारस के चौकाघाट से हिदायतनगर जाने के लिए 23 फरवरी को दोपहर बाद नक्खीघाट क्रासिंग पार करने में हमें करीब सवा घंटा लगा । इस दौरान करीब एक किमी तक गाड़ियों की कतारें लगी रहीं। बनारस शहर से वरुणापार इलाके में जाने के लिए कोई भी रास्ता ऐसा नहीं है जिसे पीक आवर में आसानी से पार किया जा सके। यही वजह है कि वरुणापार इलाके से लंका पहुंचने में कितना समय लगेगा, यह किसी को पता नहीं होता। कई गंभीर मरीज बीएचयू के सरसुंदरलाल अस्पताल पहुंचने से पहले ही जाम के झाम में फंसकर रास्ते में ही दम तोड़ देते हैं। इस बात को बनारस का हर प्रबुद्ध आदमी तस्दीक करता है।

बनारस में अनियोजित विकास, नालों पर बसती जा रही आबादी

बनारस को स्मार्ट सिटी बनाते समय पीएम नरेंद्र मोदी ने ढेर सारी मनलुभावन घोषणाएं की थी। दावा तो यहां तक किया गया था कि मार्च 2023 तक इस शहर में 24 घंटे बिजली-पानी की आपूर्ति होगी। सरकारी कामों के लिए सिंगल विंडो सिस्‍टम होगा। पर्यावरण के अनुकूल माहौल और शिक्षा की स्मार्ट सुविधा मुहैया कराई जाएगी। मोदी सरकार की 'स्मार्ट सिटी योजनाका प्रचार तो खूब किया गया, लेकिन इसके नतीज़े कहीं भी ज़मीन पर नहीं दिखाई दे रहे हैं।

बनारस के मुस्लिम बहुल इलाकों में हर जगह दिखते हैं ऐसे नाले

यह स्थिति तब है जब केंद्रीय आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय ने बनारसियों की जिंदगी बेहतर बनाने के लिए आधुनिक तकनीक और तौर-तरीकों के इस्तेमाल करने को भरपूर फंड दिया। सरकार का दावा था कि स्मार्ट सिटी बनारस में बिजली संकट नहीं होगा। सीवेज के पानी, कूड़े के ढेर और ट्रैफ़िक जैसी तमाम बुनियादी समस्याओं से निबटने के लिए नई टेक्नॉलजी का इस्तेमाल किया जाएगा। लेकिन बनारस में स्मार्ट सिटी का विकास तो कहीं दिखता ही नहीं है। इस प्रोजेक्ट के लिए जो भी धनराशि अब तक आवंटित हुई है उसका 80 फीसदी हिस्सा पूरे शहर को विकसित करने के बजाय गोदौलिया से मैदागिन तक के कुछ ख़ास हिस्सों को दुरुस्त करने में लगा दिया गया। कुछ विश्लेषकों का कहना है कि स्मार्ट सिटी मिशन के अफसरों ने बनारस शहर की मौजूदा क्षमता बढ़ाने के बजाय नई योजनाओं पर ज़्यादा ध्यान दिया।

बनारस की बलुआबीर रोड  जो स्मार्ट सिटी की पोल खोलती नजर आती है

 रफ़्तार में तेज़ी का दावा

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक बनारस में स्मार्ट सिटी के 48 प्रोजेक्ट चलाए गए। दावा किया जा रहा है कि सड़क ही नहीं, बनारस की संकरी गलियों और गंगा घाटों का स्वरूप बदल गया है। इसके अलावा स्मार्ट स्कूल, मल्टीलेवल पार्किंग, वार्डों का री-डेवलेपमेंट, भव्य कन्वेंशन सेंटर, जगह-जगह सीसीटीवी के अलावा बाजार का नवीनीकरण, सड़क, फ्लाई ओवर, सुंदर पार्क, कुंड व तालाब भी नए हो गए हैं।

बनारस में साल 2015 में वाराणसी स्मार्ट सिटी बनाने की घोषणा हुई, लेकिन काम अप्रैल 2018 शुरू हुआ। कमिश्नर कौशलराज शर्मा मीडिया से कहते हैं, "स्मार्ट सिटी योजना के तहत जून 2023 में सभी प्रोजेक्ट पूरे हो जाएंगे। कुल 48 कार्यों को पूरा करने पर करीब 787 करोड़ रुपये खर्च किए गए। करीब 203 करोड़ की लागत से दो परियोजनाओं पर काम चल रहा है। वाराणसी में स्मार्ट सिटी योजना के जितने प्रोजेक्ट हैं, उनमें दो-तीन को छोड़कर बाकी सभी पूरे हो चुके हैं। स्मार्ट सिटी योजना के कई ऐसे प्रोजेक्ट हैं, जो बनारस की नई पहचान बन चुके हैं। वार्डों के साथ कुंडों और तालाबों को संवारा गया है। बदलते बनारस में बढ़ रही सुविधाओं के चलते पर्यटकों की संख्या भी बढ़ रही है।"

क्या है स्मार्ट सिटी का मानक

पंचकोसी रोड पर सड़क पर लगती है सब्जी मंडी  

दुनिया भर में नए शहर बसाए जा रहे हैं और जिन शहरों में हम सदियों से रह रहे हैं उन्हें सुधार कर भविष्य के लिए तैयार किया जा रहा है। स्मार्ट शहर का मतलब यह है कि डेटा की मदद से ट्रैफिक में जाम से जनता को निजात दिलाया जाए। नागरिकों को बेहतर सूचना देने के लिए विभिन्न सेवाओं को एक साथ जोड़ना और पर्यावरण को बचाना है यह भी इस योजना का मकसद है।

नक्खीघाट रेलवे क्रासिंग पर रोज लगता है घंटों जाम

अमेरिका और सिंगापुर जैसे देशों में स्मार्ट सिटी का मानक दूसरा है। वहां सभी चीज़ों में इलेक्ट्रॉनिक सेंसर लगा हुआ है। जैसे स्वचालित सीढ़ियांयानी एस्केलेटरतभी चलेंगे जब उन पर कोई खड़ा होगा। सभी घरों में टेलिप्रेजेंस सिस्टम लगाया गया है। साथ ही घर के तालेघर को गर्म रखने के लिए हीटिंग प्रणाली आदि सभी पर ई-नेटवर्क के ज़रिए कंट्रोल रखा जा सकता है। यहां तक की स्कूलअस्पताल और दूसरे सरकारी दफ्तर भी नेटवर्क पर हैं। आवाजाही के लिए अब वहां बिजली से चलने वाली बिना ड्राइवर की गाड़ियां बनाई जा रही हैं।

बनारस के बारे में कहा जाता है, “मजा पाना है तो घाटों के शहर में आइए। जो मजा बनारस में हैवो न पेरिस में हैन लंदन में है...।” मगर अफसोसबनारस का मजा और मस्ती लुप्त होती जा रही है। स्मार्ट बनाने के फेर में इस शहर का दम घुट रहा है...मर रहा हैक्योंकि यहां अनियोजित विकास जबरिया थोपा जा रहा है। स्मार्ट सिटी के नाम पर अरबों रुपये गंवा चुकी नौकरशाही ने कितना बदला है बनारस कोइस सवाल पर महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ की स्टूडेंट प्रज्ञा सिंह की तल्खी साफ-साफ झलकती है। वह कहती हैं, “अरबों रुपये खर्चने के बावजूद इस शहर में पैर रखने और सांस लेने की जगह नहीं। कहीं रुकने और सुस्ताने की जगह नहीं। नहानेशौच करनेवाहन खड़ा करने का पुख्ता इंतजाम नहीं। पीने का पानी नहीं। समय से गंतव्य तक पहुंचने की गारंटी नहीं। शहर में अगर कुछ है तो हर तरफ सिर्फ जाम का झाम। नौकरशाही नशे में है। उसे इस शहर को स्मार्ट बनाने का इस कदर नशा है कि किसी से पूछे बगैर वह लोगों के सीने पर विकास का बोझ (टैक्स) लाद रही है। ऐसा विकास जिसकी इस शहर को जरूरत ही नहीं थी।

 जुमले से नहीं होगा विकास

 बनारस के जाने-माने पत्रकार और चिंतक प्रदीप कुमार कहते हैं"बनारस को झूठा सपना दिखाया जा रहा है। किसी भी शहर को स्मार्ट बनाने के लिए जुमले नहीं, विकास योजनाओं को हकीकत में उतारने की जरूरत पड़ती है। विकास का मतलब सिर्फ विश्वनाथ कारिडोर और बाबतपुर एयरपोर्ट का रास्ता नहीं, पूरे शहर का स्वरूप बदला हुआ दिखना चाहिए। वरुणापार इलाके का बलुआ मार्ग ही नहीं, शहर की कोई भी सड़क सही-सलामत नहीं है। शहर की ज्यादातर सड़कों पर बड़े-बड़े गड्ढे हैं। बनारस के लोग शेखचिल्ली के निर्गुण मुहावरे पर सम्मोहित हैं, लेकिन कोरा सच यह है कि कहीं भी बनारस शहर में स्मार्टनेस दिखती ही नहीं है। अलबत्ता दुनिया का यह ऐतिहासक और पुरातन शहर अपने वजूद खोता जा रहा है।"

" बनारस के मुस्लिम बहुल इलाकों में साल 2014 के बाद कोई ठोस काम नहीं हुआ। पीलीकोठीबटलोइयासरैयाछित्तनपुराअलईपुरा, लल्लापुरा, बजरडीहा आदि मुहल्ले में घूम आइए, कथित विकास का नंगा सच दिख जाएगा। हिदायतनगर की घटना तो डबल इंजन की सरकार के मुंह पर करारा तमाचा है। मुस्लिम बहुल इलाकों में कोई झांकने नहीं जा रहा है। बसपा के शासन में शहर की मलिन बस्तियों में थोड़ा विकास पहुंचा था, लेकिन सपा और भाजपा के कार्यकाल में विकास सपना हो गया। समाजवादी पार्टी ने तो विकास शब्द का उच्चारण ही नहीं किया। भाजपा सत्ता में आई तो सिर्फ जुमलों का ढोल पीटा। कुछ खंभों पर रंग-बिरंगी लाइटें और पुलों पर चित्रकारी कराकर अपनी पीठ थपथपाते रही। कैंट स्टेशन के सामने  नाइट बाजार का हाल देख लीजिए। वहां बाजार तो दिखता नहीं। वहां अगर कुछ दिखता है तो गजेड़ियों का जखेड़ा और जिस्म का सौदा करने वाली औरतों की लाइन।"

प्रदीप यह भी कहते हैं"शहर में कोई ठोस काम हुआ ही नहीं। सभी दलों के पार्षद परेशान हैं। जिन गलियों और मुहल्लों में विकास का कोई काम होता है तो वहां पीएम के नाम का शिलापट लगा दिया जाता है। गलियों में जानलेवा गड्ढे, सड़कों पर घूमते छुट्टा पशुओं का झुंड, आवारा कुत्तों और बंदरों के आतंक से हर कोई परेशान है। कारोबार का हाल बुरा है। हजारों करोड़ रुपये खर्च करने के बाद इस शहर में क्या बना, क्या बदला किसी को कुछ नहीं पता। गोदी मीडिया का झुनझुना और जुमलेबाजी में फंसकर बनारस शहर अपने पुरातन वजूद और परंपराओं को खोता जा रहा है। दिक्कत इस बात की है कि भ्रष्टाचार और बेईमानी के दलदल में फंसे खांटी बनारसियों की जुबान बंद है। बनारस को स्मार्ट बनाने की कवायद में जो विकास थोपा जा रहा है उसकी चोट हर किसी को लग रही है। जख्मों से लहर भी उठ रही हैलेकिन तिलमिलाहट का इजहार करने की हिम्मत किसी के पास नहीं है। स्मार्ट बनने के ख्वाब में मगन नई पीढ़ी को यह पता ही नहीं अब सुबह-ए-बनारस होता है भी हैया नहीं सुबह-ए-बनारस की जगह  अब टेंट सिटी दिखती है। दुनिया को जीने का तरीका सिखाने वाला यह शहर अब तिल-तिलकर मर रहा है। यह वो शहर है जो मरना नहींजीना सिखाता रहा है।"

 नहीं चाहिए थोपा हुआ विकास

समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता एवं पूर्व मंत्री वीरेंद्र सिंह कहते हैं"प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल पर अरबों की लागत से बड़ा लालपुर में स्थापित ट्रेड फेसिलिटेशन सेंटर को देखिए या फिर जाल्हूपुर में बंदरगाहसिगरा में रुद्राक्ष कन्वेंशन सेंटर अथवा गंगा की रेत पर बनी नहरक्या इनसे बनारस के विकास को नई रफ्तार मिल सकीअव्वल तो बनारस के लोग न तो समझ पाए और न ही सरकार हमें समझा पाई कि आखिर किसे कहते हैं स्मार्ट सिटीजिस शहर का सीवर सिस्टम और ट्रैफिक ठीक नहींवह कैसे स्मार्ट हो सकता हैबनारस का पीएम होने का जनता को नुकसान यह है कि यहां के  अफसर आम आदमी की नहीं सुन रहे हैं। जनता का धन डिमांड डेवलपमेंट के बजाए इंपोज डेवलपमेंट के नाम पर खर्च किया जा रहा है।"

वरिष्ठ नेता वीरेंद्र यह भी कहते हैं, "थोपा हुआ विकास बनारसियों के मन के अनुकूल नहीं है। स्मार्ट सिटी में जनता की कोई भागीदारी नहीं है। बनारस के मेयरपार्षदों-विधायकों तक से राय-मशवरा नहीं लिया जा करहा है। पत्रकारोंवकीलोंप्रबुद्ध लोगों को पता ही नहीं कि विकास नाम पर शहर में क्या हो रहा हैजब हम अपनी पूंजी संभाल नहीं पा रहे तो कोई भी तहस-नहस कर देगा। हम विश्वनाथ मंदिर ही नहीं बचा सकेबेनिया के गांधीचौरा को नहीं बचा सकेबाबा भोले की जटा समझी जाने वाली गलियों को नहीं बचा सके तो फिर हमें क्योटो का सपना क्यों दिखाया जा रहा हैहम चंडीगढ़पूनाइंदौर भी बन गए होते तब भी गुंजाइश थीहमारा तो कोई पुरसाहाल ही नहीं है। अगर बीएचयू का ले-आउट भी चुरा लेते तब भी बनारस स्मार्ट हो गया होता। दीवार में छेद होगा तो पानी आएगा ही। पहले लोग बनारस के नाम पर एक हो जाते थे। हम अपना फर्ज भूलकर खामोश बैठ गए हैं तो चोर-डाकू आएंगे ही।"

  धोखा है स्मार्ट सिटी योजना

काशी विश्वनाथ मंदिर के पूर्व महंत राजेंद्र तिवारी कहते हैं"शहर को स्मार्ट सिटी बनाने वालों ने इसे बर्बाद कर दिया है। गृहकर कई गुना बढ़ गया हैलेकिन सुविधाएं नदारद हैं। लोगों को न साफ पानी मयस्सर हो पा रहा हैन गलियां दुरुस्त हुई हैं। पेयजल लाइनों और बिजली के जंक्शन खुले छोड़ दिए गए हैं। मेनहोल को ढंग से ढंका तक नहीं गया है। दशाश्वमेध इलाके में कई स्थानों पर उल्टी सीवर लाइनें बिछा दी गई हैं। गलियों के मजबूत चौकों को उखाड़कर ठेकेदार ले गए। जो नए चौके बिछाए गए उनकी गुणवत्ता बेहद घटिया है। नए चौके लगने के साथ ही चिटकने लगे हैं। योजनाओं का सिर्फ कोरम पूरा हो रहा है। जिन मुहल्लों का कायाकल्प करने की बात कही जा रही हैउसकी सूरत ही बिगाड़ दी गई है।"

"बनारस के पार्षदों की नहीं सुनी जा रही है। ठेकेदारों की मनमानी का विरोध करने पर नगर निगम के पार्षद कुंवरकांत समेत दो के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराकर यह संदेश देने की कोशिश की गई थी कि जो बोलेगा वह जेल जाएगा। आने वाले दिनों में बनारसियों को समझ में आ जाएगा कि उन्हें अच्छे दिन की कितनी बड़ी कीमत चुकानी पड़ रही है।"

महंत राजेंद्र यह भी बताते हैं, "स्मार्ट सिटी योजना में लगे अफसरों की नीति-रीति से खुद महापौर श्रीमती मृदुला जायसवाल बेहद खफा हैं। नगर निगम कार्यकारिणी की एक बैठक में उन्होंने स्मार्ट सिटी के अफसरों और ठेकेदारों के रवैये पर गहरी नाराजगी जताई थी और सार्वजनिक रूप से कहा था कि इनके अधिकारीजनप्रतिनिधयों की बात ही नहीं सुनते। मृदुला ने यह भी साफ-साफ कहा था कि सारा का सारा काम ऊटपटांग ढंग से किया जा रहा है। जनता हमसे सवाल कर रही है। आखिर कैसे और क्या जवाब दें? "

बनारस के दशाश्वमेध इलाके में विश्वनाथ मंदिर गेट के पास मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) का दफ्तर हैं। यहां हमें मिले पार्टी के कद्दावर नेता हीरालाल। उन्होंने न्यूजक्लिक से बेबाक बात की और कहा "बनारस में स्मार्ट सिटी योजना सिर्फ एक धोखा है। गोदौलिया से रथायात्रामदनपुरासोनारपुरारेवड़ी तालाबभेलूपुरबेनियाबाग से लगायत लहुराबीर चले जाइए, क्या कोई विकास का काम दिखता हैफिर भी नाम दिया गया है स्मार्ट सिटी का। सारी सुंदरता विश्वनाथ मंदिर परिसर के अगल-बगल के इलाके में उतारी जा रही है ताकि धार्मिक यात्रा पर आने वालों को बताया जा सके कि पीएम नरेंद्र मोदी ने बनारस को स्मार्ट कर दिया है। तालाब और बावलियों का शहर रहे बनारस के तालाबों में फैली काई किसी अफसर को नहीं दिखती। सोनिया पोखरासगरा तालाबनदेसर तालाब स्मार्ट सिटी योजना को मुंह चिढ़ा रहे हैं। शहर के मुस्लिम बहुल इलाकों का हाल तो और भी ज्यादा खराब है। नौकरशाही ने बजबजा रहे बजरडीहाकोनियापीलीकठीनक्खीघाट जैसे दर्जनों इलाकों को राम भरोसे छोड़ दिया है। जहां थोड़ा बहुत विकास हो भी रहा है वहां काम कम प्रदर्शन ज्यादा है।"

स्मार्ट सिटी पर बेबाक टिप्पणी करते हुए हीरालाल यह भी कहते हैं, “बनारस सिर्फ हवा में स्मार्ट हो रहा है या फिर कागजों पर। बनारस के स्मार्ट होने का मतलब है आमजन को राहत मिले। सिर्फ हाउस टैक्स और विद्युत बिल बढ़ा देने से कोई शहर स्मार्ट नहीं होता। बनारस की पहचान खत्म हो रही है। कोई प्राकृतिक प्रतिमान बचा ही नहीं है। हेरिटेज को बचाने के बजाए तहस-नहस किया जा रहा है। चाहे वह विश्नाथ मंदिर इलाका हो या फिर बेनियाबाग व टाउनहाल का मैदान। शहर के सांस्कृतिक और आर्थिक चक्र को खंडित किया जा रहा है। स्मार्ट सिटी के बहाने यूं ही काम होता रहा तो हम न अपना आस्तित्व बचा पाएंगेन पहचान। पहले बनारस से लेकर मगध तक कारोबार होता था। इस शहर की अपनी आर्थिक नीति थीजिसके दम पर देश भर के कारोबारी बनारस खिंचते हुए चले आते थे। बीते दिनों की बातें अब सपना हो गई हैं।

(लेखक बनारस के वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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