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ग्राउंड रिपोर्ट : बनारस के भयानक  ट्रैफ़िक जाम का इलाज 8 सालों में क्यों नहीं ढूंढ पाए पीएम मोदी?

बेतरतीब ट्रैफिक इंतजाम के चलते बनारस की सड़कें खूनी बनती जा रही हैं। सड़क हादसों में मौत के आंकड़े डराने और चौंकाने वाले हैं। बनारस में औसतन हर हफ्ते 12 से 15 लोगों की जान सड़कों पर जा रही है।
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अगली मर्तबा अगर आप ट्रैफिक जाम की शिकायत करें, तो एक बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र बनारस में गाड़ी चलाने वालों को ज़रूर याद कर लें। यह बात हम सिर्फ इसलिए कह रहे हैं क्योंकि यह एक ऐसा शहर है जहां देश में सबसे खराब ट्रैफिक जाम लगता है। इस शहर में अगर कोई मेला-ठेला लगता है, स्टूडेंट्स का इम्तिहान होता है, नेता आते हैं या फिर रैली निकलती है तो वाहन चलाने वालों के लिए वो बुरा दिन साबित होता है।

बनारस शहर में जाम लगने पर ट्रैफिक से जुड़े अफसर सिर्फ एक ही राग अलापते हैं, ''बाहर से यहां हर रोज  डेढ़-दो लाख लोग आते हैं। गली और सड़कें पतली हैं। सेना भर्ती और तमिल महोत्सव जैसे महीने भर चलने वाले कार्यक्रमों के चलते शहर के अंदर और बाहर आटो व ई-रिक्शा की इतनी लंबी कतारें लग जाती हैं कि उसे नियंत्रित कर पाना आसान नहीं है।''

अपने बेटे के साथ अपनी अल्टो कार चला रही निखत परवीन गाड़ियों से भरे चौकाघाट चौराहे से अपनी गाड़ी निकालते हुए कहती हैं, ''यह कारवां है, गाड़ियों का। स्मार्ट हो रहा बनारस सिर्फ एक पुरातन शहर ही नहीं, अवैध तरीके से संचालित वाहनों का सागर है। अराजक ई-रिक्शा और आटो वाले कब, कहां जाम लगा दें, कहना मुश्किल है। ट्रैफिक पुलिस जाम की इतनी अभ्यस्त हो गई है कि वह चौराहों पर खामोश बैठी रहती है। ट्रैफिक संचालन कर रहे जवानों को देखकर लगता है कि इस शहर को इंसान नहीं, कोई तीसरी शक्ति चला रही है...!''

चौकाघाट पुल पर जाम स्याथी बीमारी

निखत कहती हैं, ''मैं अपने परिवार के साथ पांडेयपुर में रहती हूं। यदा-कदा दूसरे छोर पर बीएचयू जाना पड़ता है तो हिम्मत गंवारा नहीं देता। हर रास्ते पर भीषण जाम ही जाम नजर आता है। कई मर्तबा ऐसी भी स्थिति आती है जब एक जगह से दूसरी जगह जाना आपकी जिंदगी जहन्नुम बना सकता है। बच्चों की परवरिश, उनकी पढ़ाई से लेकर घर का सारा काम मुझे ही करना पड़ता है। घरेलू कार्यों के चलते अक्सर बनारस शहर के सघन क्षेत्र वाले मैदागिन, चौक, गोदौलिया, रथयात्रा से लगायत लंका तक शहर के बीचों-बीच से गुजरना पड़ता है। एक तरफ का रास्ता तय करने में कई बार घंटे-दो घंटे लग जाते हैं, जबकि पांडेयपुर से बीएचयू का फासला मुश्किल से 10 किमी से ज्यादा नहीं है।'' 

ज़िद्दी नासूर है ये जाम

डबल इंजन की सरकार ने बनारस शहर को स्मार्ट सिटी का दर्जा दे रखा है, जबकि दुनिया में सिर्फ उसी शहर को स्मार्ट माना जाता है जहां ट्रैफिक व्यवस्था स्मूथ हो। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पिछले आठ साल से संसद में बनारस का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। यहां ट्रैफिक जाम एक जिद्दी नासूर की तरह है। ऐसा नासूर दुनिया के शायद ही किस शहर में हो?  यहां हर वाहन चलाने वाले का एक ही दर्द है...जाम और भीषण जाम।

पत्रकार आकाश यादव एक खबरिया चैनल में काम करते हैं। खबरों के बाबत उन्हें दिन भर शहर में भागदौड़ करनी पड़ती है। एक छोर से दूसरे छोर तक। सड़कों पर जाम मिलता है तो इन्हें गलियों का रास्ता पकड़ना पड़ता है। वह कहते हैं, ''बनारस में जब से कमिश्नरेट व्यवस्था लागू हुई है तब से ट्रैफिक व्यवस्था ध्वस्त हो गई है। पूर्व पुलिस कमिश्नर ने शहर का ट्रैफिक सुधारने पर रत्ती भर ध्यान नहीं दिया। नतीजा, गाड़ियां बढ़ती रहीं और जाम से बनारस शहर ज्यादा बेजार होता चला गया।''

''काशी विश्वनाथ कारिडोर के निर्माण के बाद दर्शनार्थियों से ज्यादा देसी सैलानियों की आम-दरफ्त तेजी से बढ़ी है। दिन में बड़ी-बड़ी स्कूली बसें बनारस के घनी आबादी वाले इलाकों से गुजरती हैं तो सारा ट्रैफिक इंतजाम धरा रह जाता है। मुख्य मार्गों पर ई-रिक्शा और अवैध आटो का संचालन, सड़कों के किनारे बेतरतीब वाहन जाम की मुख्य वजह हैं। बंद पड़ी ट्रैफिक लाइटें, फड़, ठेला-ठेली का दायरा तय न होना, बस-ऑटो के कहीं भी रोके जाने पर एक्शन न होने से भी बनारस की सड़कें जाम हो जाया करती हैं।''

आकाश कहते हैं, ''बनारस में मैरिज लान भी मुसीबत के सबब बन गए हैं। वैवाहिक तिथियों पर बारातें शहर की रफ्तार रोक देती हैं। यहां ज्यादातर लान संचालकों के पास पार्किंग की सुविधा नहीं है। गाड़ियां सड़कों के किनारे खड़ी होती है। इलाकाई पुलिस सिर्फ इसलिए एक्शन नहीं लेती, क्योंकि चौथ की रकम उनके पास एडवांस में पहुंच जाया करती है। बनारस के रास्तों पर गाड़ियों की लंबी कतारों में कोई एक बार भी फंस जाता है तो उसे पीएम मोदी का संसदीय क्षेत्र जीवन भर याद रहता है।''

स्मार्ट सिटी के ट्रैफिक कमांड दफ्तर में पुलिस और प्रशासनिक अफसर

पुलिस आयुक्त पर एक्शन

जाम से रोजाना रुबरु हो रहे बनारस के लोगों की आवाज प्रधानमंत्री दफ्तर तक पहुंच रही है, लेकिन योगी सरकार कोई कारगर उपाय नहीं ढूंढ पा रही है। ट्रैफिक प्राबुलम की जांच-पड़ताल करने 12 नवंबर को प्रधानमंत्री कार्यालय के कई अफसर बनारस आए। कमिश्नर सभागार में पीएम के सलाहकार तरुण कपूर ने अफसरों को आड़े हाथ लिया और ट्रैफिक की समस्या पर सवालों की लंबी फेहरिश्त खड़ी कर दी। कपूर ने तत्कालीन पुलिस कमिश्नर ए.सतीश गणेश से पूछा,  ''कमिश्नरेट लागू होने के बावजूद बनारस ट्रैफिक सिस्टम क्यों फेल है...?  आखिर इस शहर को जाम से कब और कैसे निजात मिलेगी....?''  जाम से बनारसियों को तात्कालिक राहत देने की बात आई तो ए.सतीश गणेश ने सिर्फ हवा-हवाई बातें की। पीएमओ के अफसरों के समक्ष वो कोई पुख्ता कार्ययोजना पेश नहीं कर पाए। तमतमाए तरुण कपूर ने उन्हें आड़े हाथ लिया और खरी-खोटी सुनाते हुए बनारस पुलिस के सिस्टम को फेलियर बताया।

बनारस के पुलिस कमिश्नर ए.सतीश गणेश पर गाज तब गिरी जब जम्मू कश्मीर के राज्यपाल मनोज सिन्हा 27 नवंबर 2022 की रात बनारस आए और उनकी गाड़ियां घंटों जाम में फंसी रहीं। जाम में फंसे सिन्हा ने अगले दिन ट्रैफिक नियंत्रण में फेल कमिश्नरेट पुलिस की सीएम योगी आदित्यनाथ से न सिर्फ शिकायत की, बल्कि उन्हें भीषण जाम की तस्वीरें भी भेजी। 28 नवंबर को पुलिस कमिश्नर ए.सतीश गणेश को बनारस से हटा दिया गया। शासन ने केंद्रीय प्रतिनियुक्ति से लौटे एडीजी अशोक मुथा जैन बनारस कमिश्नरेट की जिम्मेदारी सौंपी है। इनकी सबसे बड़ी चिंता ट्रैफिक ही है।

मुकम्मल ट्रैफिक इंतजाम न होने से पीएमओ बनारस के उन अफसरों से खासा नाराज है जो कई सालों से यहां अहम पदों पर बैठे रहे और ट्रैफिक इंतजाम धराशायी होता रहा। पुलिस कमिश्नर ए.सतीश गणेश पर एक्शन के बाद कई साल तक बनारस के डीएम रहे कमिश्नर कौशलराज शर्मा की चिंताएं भी बढ़ गई हैं। बनारस की ट्रैफिक व्यवस्था सुधारने के लिए कौशलराज शर्मा अब लगातार बैठकें कर रहे हैं और अपने मातहतों के पेंच भी कस रहे हैं। बनारस में कई सालों तक विभिन्न पदों पर नौकरी कर चुके अपर पुलिस आयुक्त संतोष सिंह भी कोई करिश्मा नहीं दिखा पा रहे हैं। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, जाम के झाम को लेकर प्रधानमंत्री मोदी इस कदर नाराज हैं कि वो किसी भी अफसर को बख्शने के लिए तैयार नहीं हैं। 

पीएमओ ने पेंच कसे तो ट्रैफिक कंट्रोल पर होने लगीं बैठकें

असल ज़िम्मेदार कौन?

ट्रैफिक की समस्या के लिए सबसे बड़े जिम्मेदार वीडीए और नगर निगम के अफसर हैं जो भूमाफिया के साथ कदमताल करते हुए शहर को कंकरीट का जंगल बनाते चले जा रहे हैं। जिन इलाकों में पहले सिर्फ रिहायशी कालोनियां हुआ करती थीं वो अब व्यावसायिक केंद्र में तब्दील हो गई हैं। बनारस की सबसे पुरानी कालोनी रविंद्रपुरी में आज कोई भी घर ऐसा नहीं, जिसमें दुकान और होटल न हो। सिगरा स्थित गांधीनगर में भी व्यावसायिक गतिविधियां जोरों से चल रही हैं। वाराणसी विकास प्राधिकरण, अवास विकास विभाग और नगर निगम ने शहर में जितनी कालोनियां बनाई, वो अपने मूल स्वरूप बदलकर व्यावसाय का बड़ा केंद्र बन गई हैं।

सरकारी महकमों के अफसर लोगों को धड़ल्ले से शापिंग माल और होटल चलाने का लाइसेंस बांटते जा रहे हैं। एक्टिविस्ट जगन्नाथ कुशवाहा कहते हैं, ''बनारस में जाम के असल जिम्मेदार वीडीए के अफसर हैं, जिनके खिलाफ आज तक कोई एक्शन नहीं हुआ। माल और शापिंग कांप्लेक्स की पार्किंग्स तक में दुकानें खुलती जा रही हैं। सिगरा और रथयात्रा इलाके के कई शापिंग माल इसके उदाहरण हैं। पब्लिक की लाचारी यह है कि उनके वाहन सड़कों पर खड़े हो रहे हैं और जाम के सबब बन रहे हैं।''

कैंट रेलवे स्टेशन पर सड़कों पर आड़े तिरछी खड़ी हो जाती हैं बसें

जिला प्रशासन, स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट, पुलिस प्रशासन और ट्रैफिक महकमा लगातार स्थिति को सुधारने का दावा करते हैं, लेकिन जमीनी हकीकत इसके ठीक विपरीत हैं। जनता को हर दिन सड़कों पर घंटों जाम के झाम से जूझना पड़ रहा है। सिविल पुलिस, ट्रैफिक और परिवहन महकमे का वरदहस्त होने के कारण कैंट रेलवे स्टेशन माफिया गिरोहों द्वारा चलाई जाने वाली डग्गामार बसों का सबसे बड़ा अड्डा है। पूर्वांचल भर की डग्गामार बसें यहीं से सवारियां भरती हैं। आजमगढ़, चंदौली, गाजीपुर, मऊ, बलिया, गोरखपुर, इलाहबाद, मिर्जापुर, सोनभद्र, भदोही, डाला, चोपन, सुलतानपुर समेत कई जिलों के अलावा बिहार, मध्य प्रदेश, दिल्ली, राजस्थान तक जाने वाली अवैध बसों के खिलाफ एक्शन लेने की हिम्मत कोई नहीं जुटा पा रहा है। ये बसें ऐलानिया तौर पर आधी सड़कें घेरकर सवारियां भरती हैं और सरकार को आर्थिक चोट देती हैं, जिससे हर वक्त जाम लगा रहता है।

रोडवेज बसें भी लगाती हैं जाम

जाम में फंसे रविंद्र पांडेय नामक एक आटो रिक्शा चालक ने ‘न्यूजक्लिक’ से कहा, ''हुजूर, हमारे पास लाइसेंस है, फिर भी चालान हमारी गाड़ी का होता है। शहर में ज्यादातर अवैध आटो और ई-रिक्शा तो पुलिस वालों अथवा उनके रिश्तेदारों के हैं। क्या मजाल जो कोई उन्हें पकड़े और एक्शन ले।'' दरअसल, कैंट रेलवे स्टेशन और रोडवेज बस अड्डे के पास सिर्फ डग्गामार बसें ही नहीं, सड़क के किनारे आड़ी-तिरछी खड़ी रोडवेज की बसें भी जाम लगाती हैं। ऑटो और ई-रिक्शा चालकों की मनमानी दाद में खाज का काम करती है। ऑफिस टाइम के वक्त दो मिनट का सफर तय करने में 30 मिनट लग जाते हैं। 

ई-रिक्शा में भूसे की तरह भरी जाती हैं सवारियां

ख़ूनी बनती बनारस की सड़कें

ट्रैफिक महकमे के आंकड़ों पर नजर डाले तो मौजूदा समय में बनारस की सड़कों पर 18,475 ई-रिक्शा दौड़ रहे हैं। गैर-सरकारी आंकड़ों के मुताबिक इनकी तादाद 25 हजार से ज्यादा है। इनके अलावा 15 हजार से अधिक ऑटो वाले भी फर्राटा भर रहे हैं। इन्हें जब लाइसेंस और परमिट बांटा जा रहा था तब तय किया गया था कि शहर में इनकी तादाद 6,500 से 7,000 से ज्यादा नहीं होगी। पुलिस और परिवहन अफसरों की चुप्पी के चलते बनारस की सड़कों पर वैध-अवैध ई-रिक्शा की बाढ़ आ गई है। चौक, मैदागिन, गोदौलिया, दशाश्वमेध घाट, विश्वेश्वरगंज, रेवड़ी तालाब, बीएचयू, लंका, सारनाथ, घाट, कमच्छा, अस्सी घाट, लंका समेत तीन दर्जन से अधिक इलाकों में आवागमन के प्रमुख साधन सिर्फ आटो और ई-रिक्शा हैं। खासतौर पर वो ई-रिक्शा जिसे कुछ साल पहले बरेका के मैदान में पीएम नरेंद्र मोदी ने मुफ्त में बांटा था और वाहवाही भी लूटी थी। वही ई-रिक्शा अब राहगीरों के लिए मुसीबत बनते जा रहे हैं। इन पर मनमाना सवारी वसूली करने, भूसे की तरह सवारियां भरने और सड़क के बीचो-बीच यात्रियों को चढ़ाने-उतारने के इल्जाम आम हैं। सार्वजनिक स्थानों पर अवैध पार्किंग और ट्रैफिक रूल्स की खुलेआम धज्जियां उड़ाए जाने से देश-विदेश से आने वाले सैलानियों को भारी दिक्कतों का समाना करना पड़ रहा है।

बेतरतीब ट्रैफिक इंतजाम के चलते बनारस की सड़कें खूनी बनती जा रही हैं। सड़क हादसों में मौत के आंकड़े डराने और चौंकाने वाले हैं। बनारस में औसतन हर हफ्ते 12 से 15 लोगों की जान सड़कों पर जा रही है। आंकड़ों पर गौर करें तो साल 2021-22 में सिर्फ 39 लोगों की मौतें सिर्फ हेलमेट नहीं लगाने पर सिर में चोट लगने की वजह से हुई। 23 अन्य सड़क हादसों में 16 लोगों की मौतें हुई हैं। हालांकि हेलमेट न लगाए जाने की वजह से मौत का सबसे डरावना आंकड़ा सोनभद्र जिले का है, जहां 210 लोगों की जानें चली गईं। ट्रैफिक महकमे के अधिकारी अपनी खामियों को छिपाने के लिए पास-पड़ोस के जिलों के आंकड़ों को परोसते हैं। वो कहते हैं कि साल 2021 में सोनभद्र में सोनभद्र 210, बलिया में 150, आजमगढ़ 315, मीरजापुर में 148, जौनपुर में 399, गाजीपुर में 70 और बनारस में सिर्फ 23 लोगों की मौतें हुईं।

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, जाम और दुर्घटना के लिए चौकाघाट, डाफी, लंका, सुंदरपुर, सामनेघाट, पांडेयपुर, कमच्छा, गोदौलिया, कैंट, विद्यापीठ, शिवपुर, नरिया, गिलट बाजार, ऑर्डली बाजार, लहरतारा, मैदागिन, सिटी स्टेशन, पीलीकोठी, मंडुआडीह सर्वाधिक संवेदनशील इलाके हैं। नियमानुसार इन सभी स्थानों पर ‘मैक्स डेथ स्पाट’ पर गार्ड की तैनाती होनी चाहिए। गार्ड की कौन कहे, होमगार्ड तक के दर्शन नहीं होते। होमगार्ड कहीं दिख भी जाते हैं तो वो फोन पर गलचउर करते, आराम फरमाते अथवा सुर्ती मलते नजर आते हैं। इनकी चौकसी तभी दखिती है जब पुलिस की हूटर बजाती गाड़ियां रास्ते से गुजरती हैं।

स्कूल और धार्मिक स्थलों के आसपास वाहन चलाने के लिए स्पीड की लिमिट तय है, लेकिन चेतावनी बोर्ड शायद ही कहीं देखने को मिलेगा। सड़कों पर फर्राटा भरने वालों को पकड़ने और हादसों को रोकने के लिए ट्रैफिक विभाग के पास स्पीड राडार और ब्रेथ एनालाइजर जैसे कई उपकरण मौजूद हैं, लेकिन वो धूल फांक रहे हैं। ट्रैफिक पुलिस इन उपकरणों को 26 जनवरी की झांकी की तरह तभी बाहर निकालती है, जब ट्रैफिक वीक मनाने की मुनादी कराई जाती है। 

चैलेंज बने चौराहे

बनारस में यदाकदा सड़कों के किनारे से अतिक्रमण हटाया जाता है, लेकिन सत्तारूढ़ दल का झंडा लगाकर और धौस-दपट के बल पर अतिक्रमणकारी दोबारा काबिज हो जाते हैं। वरुणापार इलाके में पांडेयपुर, लालपुर, पहड़िया, आशापुर, पंचकोसी रोड, हुकुलगंज, अर्दलीबाजार में सड़कें सिकुड़ती जा रही हैं। इन सड़कों को चौड़ाकर ट्रैफिक स्मूथ करने के लिए बनी योजनाएं इसलिए फाइलों से बाहर नहीं निकल पा रही हैं क्योंकि पुलिस के सख्ती बरतते ही अतिक्रमणकारी सत्तारूढ़ दल के झंडे के साथ धरना-प्रदर्शन शुरू कर देते हैं। लालपुर से पांडेयपुर तक सड़क चौड़ी करने के लिए ध्वस्तीकरण अभियान चलाया जाना था, लेकिन सत्ता के दबाव में कमिश्नरेट पुलिस का जोश ठंडा पड़ गया। हाल यह है कि पांडेयपुर चौराहे से गुजरने का मतलब है, स्थायी रूप से जाम के झाम में फंस जाना। थाना पुलिस चौकी चौराहे पर ही है, लेकिन वसूली से होने वाली अकूत कमाई खाकी वर्दी वालों की आंखों पर पर्दा डाल देती है। बनारस शहर में भैंस पालने पर इलाहाबाद हाईकोर्ट की रोक है। इसके बावजूद पांडेयपुर पुलिस चौकी से चंद कदम के फासले पर दर्जनों भैसों का बड़ा खटाल चलता है। ये भैंसें आफिस टाइम पर निकलती और शाम को उसी समय लौटती हैं, जब आफिस से लोग घर लौटते हैं।

पांडेयपुर में हर वक्त लगा रहता है जाम

सिगरा, लंका, गोदौलिया, लहुराबीर, मैदागिन, कैंट आदि इलाकों में साड़ ही नहीं, छुट्टा पशुओं का जखेड़ा जाम की वजह बने हुए हैं। सिगरा निवासी अशोक मौर्य कहते हैं, ''चंदुआ सट्टी, सुंदरपुर और शिवपुर सब्जी मंडी के पास हर वक्त आवारा पशु सड़कों पर मंडराते रहते हैं और गाहे-बगाहे वो राहगीरों को हुरपेटते भी रहते हैं। पांडेयपुर-पंचकोसी रोड पर आवारा कुत्तों का बड़ा जखेड़ा है। दोपहिया वाहन चालक रात के समय निकलते हैं तो ये कुत्तों के घेरकर दौड़ने लगते हैं और लोग गिरकर जख्मी हो जाते हैं। शिकवा-शिकायत के बावजूद नगर निगम का डाग स्क्वाड सिर्फ खानापूरी करने में जुटा रहते है। शहर के कई इलाकों में मानक को ताक पर रखकर अवैध तरीके से बनाए गए स्पीड ब्रेकर भी वाहन चालकों की जान ले रहे हैं। शहर में स्पीड ब्रेकरों की संख्या सैकड़ों में है, लेकिन चेतावनी वाले बोर्ड कहीं नहीं हैं। नगर निगम के पास शिकायतें जाती हैं, लेकिन कार्रवाई नहीं होती।''

पर्यटक स्थल सारनाथ में रोजाना हजारों लोग पहुंचते हैं। म्युजियम के पास इन वाहनों को अवैध रूस से संचालित पार्किंग में खड़ा कराया जाता है। आशापुर चौराहा पर पंचकोसी जाने वाले मार्ग के दोनों तरफ अवैध ऑटो स्टैंड का संचालन हो रहा है। आशापुर चौकी से चंद कदम की दूरी पर है अवैध वाहन स्टैंड है। पंचकोसी चौराहे से पांडेयपुर जाने वाले मार्ग पर स्थित पुलिस बूथ के पास अवैध ऑटो स्टैंड का संचालन हो रहा है। यही हाल लंका, कैंट रोडवेज, रेलवे स्टेशन, लहरताता, मंडुआडीह आदि इलाकों का है।

जागरुकता अभियान हवा-हवाई

ट्रैफिक को लेकर जागरूकता अभियान सिर्फ हवा-हवाई साबित हो रहा है। ट्रैफिक महकमे की चौकसी सिर्फ यातायात माह में ही दिखती है। यह महकमा हेलमेट नहीं लगाने और ईयरफोन का इस्तेमाल करने वालों को कायदे से समझा नहीं पा रहा है। शहर में हाल के वर्षों में कई मौतें ईयरफोन लगाकर सड़क पर वाहन चलाने से हुई हैं। बनारस में 03 फीसदी मौतें और 10 फीसदी से अधिक सड़क हादसे ईयरफोन के चलते होते हैं। कार अथवा बाइक चलाते समय यहां ज्यादातर लोग धड़ल्ले से मोबाइल, हेडफोन या गूगल मैप का प्रयोग करते हैं।

वरिष्ठ पत्रकार विनय मौर्य कहते हैं, ''भारत में ड्राइविंग के दौरान किसी भी तरह के इलेक्ट्रानिक गैजेट का प्रयोग अपराध की श्रेणी में आता है। नए ट्रैफिक नियमों के मुताबिक बाइक चलाते समय मोबाइल फोन को हेलमेट के भीतर रखना भी अपराध है। हेडफोन लगाकर चलने से एक्सीडेंट के दौरान रिएक्शन टाइम कम हो जाता है। ईयरफोन लगाए व्यक्ति ट्रैफिक रूल्स को ब्रेक कर देते हैं, स्कूल बसें, एंबुलेंस और प्रसव पीड़ा से जूझ रही महिलाओं को हास्पिटल पहुंचाने में परेशानी होती है। ट्रैफिक रूल्स तोड़ने के मामलों में टीनएजर लड़कियां सबसे आगे हैं। ये लड़कियां अपनी जान से ज्यादा जुल्फों को बचाने के चक्कर में हेलमेट नहीं लगाती हैं। वीवीआईपी कल्चर के चलते भी बनारस में जाम की समस्या विकराल रूप लेती जा रही है। शाम के समय मैदागिन से गोदौलिया के बीच काशी विश्वनाथ मंदिर में दर्शन-पूजन के लिए जाने वाले वीवीआईपी के वाहनों के चलते रोजाना जाम लगता है और लाचार पुलिसकर्मी सिर्फ तमाशबीन बने रहते हैं।''

विनय कहते हैं, ''काशी विश्वनाथ मंदिर जाने वाले वीवीआईपी के लिए सिर्फ रात और अल-सुबह का वक्त तय होना चाहिए। बनारस शहर में पुलिस के बहुत से जवान लंबे समय से जमे हुए हैं, जिसमें से कइयों ने अपने परिवार अथवा रिश्तेदारों के नाम से आटो व ई-रिक्शा खरीदकर सड़कों पर उतार दिया है। ऐसे पुलिसकर्मियों की जांच कराई जाए और उनके अवैध वाहन सीज किए जाएं। यातायात विभाग, पुलिस, स्कूल, कॉलेज और स्वयं सेवी संस्थाएं भी रोड सेफ्टी को लेकर व्यापक अभियान चलाएं। पैरेंट्स को भी चाहिए कि वे अपने बच्चों को रोड पर सुरक्षा के साथ वाहन चलाने की जानकारी दें।'' 

नज़रिया ट्रैफ़िक अफसरों का

बनारस के एडीसीपी (ट्रैफिक) दिनेश कुमार पुरी मीडिया से कहते हैं, ''बनारस शहर स्मार्ट हो रहा है, लेकिन ट्रैफिक संचालन को लेकर लोगों के मिजाज में कोई खास बदलाव नहीं आया है। वाहनों के रांग साइड से चलने की वजह से फुटपाथ पर चलने वाले नागरिक सुरक्षित नहीं हैं। जेब्रा क्रासिंग से पैदल राहगीर, महिलाएं, फेरीवाले, बच्चे, बूढ़े सड़क पार करते हैं और रांग साइड से चलने वाले वाइक, ई-रिक्शा, आटो वाले राहगीरों के लिए खतरे बन जाते हैं। यातायात और परिवहन विभाग ने साल 2021-22 में रांग साइड में चलने पर 3198 वाहनों का चालान काटा और जुर्माना वसूला। इसके बावजूद लोग सुधरने का नाम नहीं ले रहे हैं।''

बनारस में रांग साइड चलने का चलन

''ट्रैफिक कानून तोड़ने पर नवंबर 2022 में 12 हजार से अधिक लोगों के चालान किए गए, लेकिन यह मुश्किलों का स्थायी हल नहीं है। ट्रैफिक महकमे के पास सिर्फ छह इंस्पेक्टर, 40 सब इंस्पेक्टर, 280 जवान और करीब 500 होमगार्ड हैं, जो जरूरत से एक तिहाई भी नहीं हैं। बनारस में रोजाना बाहर से आने वाले डेढ़ से दो लाख लोगों को नियंत्रित करने के लिए हमारे पास जो भी संसाधन हैं वो नाकाफी हैं। ''

महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ में पत्रकारिता विभाग के प्रोफेसर रहे अनिल उपाध्याय कहते हैं, ''बनारस की सूरत चमकाने और शहर की यातायात व्यवस्था को सुधारने के लिए स्मार्ट सिटी के तहत शहर में हर समय निर्माण कार्य किए जा रहे हैं। अव्यवस्था और बेतरतीब कामों ने लोगों की परेशानियां कम करने के बजाय और ज्यादा बढ़ा दी हैं। जहां-तहां सड़कों पर गड्ढे-नालियां खोदकर महीनों से निर्माण कार्य लंबित हैं। सरकार के निर्देश के बावजूद शहर की सड़कें गड्ढामुक्त नहीं हो सकी हैं। ट्रैफिक व्यवस्था के बदहाल होने का सबसे बड़ा कारण स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट, उसका अव्यवस्थित निर्माण कार्य, लेटलतीफी और हर दिन जारी होता नया ट्रैफिक प्लान है।''

जर्नलिस्ट गुरु प्रो.उपाधायाय दावा करते हैं कि बनारस की भीड़ अब कम कर पाना असंभव है। बदहाल ट्रैफिक इंतजाम के समाधान के लिए संतुलन बनाना जरूरी है। सरकार को चाहिए कि वह मेट्रो जैसे सार्वजनिक परिवहन का पुख्ता इंतजाम करे। रोप-वे बनाने पर भी जाम थमने वाला नहीं है। बनारस में जितना धन अनियोजित विकास के नाम पर खर्च किया गया है, उससे कम में चमचमाता हुआ एक और बनारस बस गया होता।''

मोदी का साख पर बट्टा 

एक दैनिक अखबार के लिए ट्रैफिक बीट देखने वाले पत्रकार पत्रकार पवन कुमार मौर्य कहते हैं, ''विश्वनाथ कारिडोर के चलते बनारस में देसी सैलानी भले ही बढ़ गए हैं, लेकिन बनारस में डालर खर्च करने वाले विदेशी सैलानियों की तादाद घट गई है।  मुसीबत के सबब बने ई-रिक्शा चालकों में बड़ी तादाद में उन किशोरों की है, जिनके पास न कोई वैध लाइसेंस होता है, न वो वाहन चलाने चलाने में दक्ष होते हैं। कमिश्नरेट पुलिस का हाल भी अजीब है। वो एक तरफ अतिक्रमण हटाती है तो दूसरी ओर पहले से अधिक सुविधा शुल्क लेकर दोबारा पटरी घेरवाना शुरू कर देती है।''

पवन कहते हैं, ''बनारस में जाम के चलते सिर्फ बनारस की ही नहीं, पीएम नरेंद्र मोदी की इमेज पर बट्टा लग रहा है। जाम से कराह रहे शहर को जाम से निजात दिलाने का फौरी तौर पर उपाय यह है कि हर रूट पर अलग-अलग रंग के सिर्फ वैध आटो चलाए जाएं। यात्री वाहनों में रेट-लिस्ट अनिवार्य रूप से चस्पा हो। जिन मार्गों पर दर्शनार्थियों की तादाद ज्यादा हो, वहां सिर्फ शालीन चालकों को ही वाहन चलाने की अनुमति दी जाए। आटो और ई-रिक्शा का रूट तय करने से पहले चालकों के चरित्र की खुफिया एजेंसियों से जांच भी कराई जाए। वैध आटो चालकों के लिए क्रमवार प्रशिक्षण का इंतजाम किया जाए।''

इन्हें ट्रैफिक नियंत्रित करने की कोई चिंता नहीं

बनारस के वरिष्ठ पत्रकार एवं चिंतक प्रदीप कुमार कहते हैं, ''बनारस छोटे दायरे में बसा शहर है। इसका असल दायरा गंगा और विश्वनाथ के इर्द-गिर्द रहा है। कालांतर में सरकारी दफ्तर भी यहीं बन गए। अनियोजित तरीके से शहर का फैलाव होता चला गया। गैर-राज्यों के लोग यहां तेजी से बसते जा रहे हैं, जिससे आबादी का घनत्व लगातार बढ़ता चला जा रहा है। यहां हर रोज डेढ़ से दो लाख लोग आते-जाते हैं। यह शहर अपनी ही आबादी का बोझ नहीं संभाल पा रहा है तो बाहरी लोगों का कैसे संभालेगा? सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि आप बनारस की सड़कों और गलियों को चौड़ा कर नहीं सकते। ऐसी स्थिति ट्रैफिक को लेकर सभी योजनाएं पैचवर्क साबित होंगी। इस शहर में चौराहों, ट्रैफिक लाइटों, जेब्रा क्रासिगों और ड्यूटी पर तैनात ट्रैफिक के जवानों की कथक शैली में ट्रैफिक का संचालन किसी बड़ी मुसीबत से कम नहीं है।''

''ट्रैफिक के जवान ड्यूटी पर कम, वसूली में ज्यादा दिलचस्पी लेते हैं, जिसके चलते जाम की समस्या गहराती जा रही है। चौथ वसूली का अंदाज इस बात से लगाया जा सकता है कि कुछ रोज पहले कैंट स्टेशन पर भीषण जाम के दौरान ट्रैफिक के जवान द्वारा अवैध पार्किंग में वाहनों को खड़ा कराते देख भाजपा के एमएलसी लक्ष्मण आचार्य ने टोका तो वह उनसे ही उलझ गया। एमएलसी ने महकमे के आला अफसरों से शिकायत की, फिर भी फौरी तौर पर कोई एक्शन नहीं हुआ। हालात देखें तो पता चलता है कि दुनिया का सबसे पुरातन शहर सिर्फ भगवान भरोसे चल रहा है। यही हाल जारी रहा तो आने वाले एक दशक में इस शहर में गाड़ी चलाने की कौन कहे, पैदल चलना भी दुश्वार हो जाएगा।''

प्रदीप कहते हैं, ''विकास के मामले में मोदी-योगी सरकार के पास जो भी माडल है उसमें ट्रैफिक इंतजाम के स्थायी हल का कोई निदान है ही नहीं। पीएम मोदी आए दुनिया भर नेताओं को बनारस का माडल दिखाने के लिए बुलाते तो हैं और वाहवाही लूटते हैं। इस ड्रामे के बीच कोई पिस रहा होता है तो वह होती है शहर की निर्दोष जनता। खाटी बनारसी सालों से नेताओं के दौरों के चलते उपजने वाले यंत्रणा को झेल रहे हैं, मगर उस दर्द का एहसास डबल इंजन की सरकार को नहीं है। बनारस ‘ओल्डेस्ट लिविंग’ सिटी है, जिसे आप बदल नहीं सकते। नए बनारस और पुरानी काशी के बीच सुगम यातायात की व्यवस्था देनी होगी। नागरिक सुविधाओं को लेकर जो दबाव है उससे इस को उबारने का सही तरीका यही है कि एक और बनारस बसाया जाए। पुराने बनारस के सभी सरकारी और गैर-सरकारी दफ्तरों के अलावा कारोबार को नए बनारस में स्थानांतरित किया जाए। पुरानी काशी में सिर्फ मंदिर, गंगा और इनसे सरोकार रखने वालों की आवाजाही और रिहाइश का बंदोबस्त रहे। तभी इस समस्या का स्थायी समाधान निकल सकता है। कमिश्नरेट पुलिस और प्रशासन लाख सिर पटक ले, बनारस में जाम के नासूर से बचाने का दूसरा कोई स्थायी उपाय है ही नहीं।''

(लेखक बनारस के वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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