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कोविड-19 की आड़ में चीन के ख़िलाफ़ बढ़ती नस्लीय घृणा 

ट्रंप प्रशासन द्वारा संचालित दुष्प्रचार अभियान की बदौलत संयुक्त राज्य अमेरिका में एशियाई मूल के लोगों के ख़िलाफ़ हिंसात्मक गतिविधियों में तेज़ी देखने को मिली है। 
कोविड-19
अल्ताई पहाड़ों पर चीनी डॉक्टरों की टोली।

25 मार्च को G7 समूह की बैठक में शामिल विदेश मंत्रियों की ओर से एक संयुक्त बयान जारी न किया जा सका। संयुक्त राज्य अमेरिका जो कि वर्तमान में G7 की अध्यक्षता कर रहा है- यह उसकी ज़िम्मेदारी बनती है कि वह बयान की ड्राफ्टिंग करे। लेकिन ऐसा लगता है कि कई सदस्य देशों को उसका ऐसा करना नामंज़ूर था। इसके पीछे की एक वजह ये भी रही कि अपने मसौदे में संयुक्त राज्य अमेरिका ने "वुहान वायरस" जैसे मुहावरे का इस्तेमाल किया था, और उसका दृढ़ मत था कि इस वैश्विक महामारी के लिए चीनी सरकार पूर्णतः ज़िम्मेदार है।

इससे पहले भी अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने "चीनी वायरस" जैसे मुहावरे उछाल रखे थे (जिसके बारे में उन्होंने बाद में कहा था कि इसे अब आगे नहीं इस्तेमाल करेंगे।) राष्ट्रपति के स्टाफ़ में से एक सदस्य को कथित तौर पर "कुंग फ्लू" स्लर का इस्तेमाल करते  सुना जा चुका है। फॉक्स न्यूज पर एंकर जेसी वाटर्स ने अपने साफ़-साफ़ नस्लवादी लहजे में समझाया था कि "यह [वायरस] चीन में ही क्यों पनपा। क्योंकि उनके यहाँ इस प्रकार के बाज़ार हैं जहाँ से उन्हें बिना पके हुए चमगादड़ और साँप खाने के लिए उपलब्ध हैं”। अमेरिका में एशियाई मूल के लोगों के खिलाफ हिंसक हमलों में उछाल की घटनाओं के पीछे ट्रम्प प्रशासन द्वारा प्रचारित अभियान ही मुख्य तौर पर जिम्मेदार है।

शायद इसीलिए बेहद सटीक तौर पर विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक टेड्रोस अधनोम घेबरियस ने 14 फरवरी को दिए गए अपने एक भाषण में "एकजुटता बनाए रखें, एक दूसरे पर लांछन नहीं" का नारा दिया था। यह तब की बात है जब इस वायरस का प्रकोप यूरोप या उत्तरी अमेरिका में नहीं फैला था। घेबरियस को शायद मालूम था कि आगे चलकर इस वायरस के लिए चीन को दोषी ठहराने, वास्तव में बेहद नफ़रती भाव से चीन के खिलाफ हमला करने के लिए एक हथियार के तौर पर इस वायरस का इस्तेमाल किया जाएगा। उनके इस नारे- एकजुट रहें, लांछन न लगायें का मकसद ही इस वैश्विक महामारी के प्रति किसी संकीर्ण धर्मांध और अवैज्ञानिक प्रतिक्रिया तक सीमित न रख इसे अंतर्राष्ट्रीयतावादी और मानवतावादी रुख के बीच के विभाजन को सीमांकित करना साबित करता है।

उत्पत्ति

SARS-CoV-2 जोकि इस वायरस का आधिकारिक नाम है, यह भी ठीक उसी तरह विकसित हुआ जिस तरह से कई अन्य वायरस पूर्व में विकसित हुए: जानवरों और मनुष्यों के बीच संचरण के माध्यम से। लेकिन अभी तक इस वायरस के विकास को लेकर कोई आम सर्वसम्मति नहीं बन सकी है। इसके बारे में एक मत यह है कि यह चीन के हुबेई प्रांत के वुहान में हुनान की होलसेल सीफूड मार्केट के पश्चिमी छोर पर जन्मा, जहाँ पर जंगली जीव जंतुओं की बिक्री होती है। जबकि एक मुख्य मुद्दा ये बना हुआ है कि इस बीच खेती का विस्तार जंगलों और भीतरी इलाक़ों में हुआ है, जिसके चलते मनुष्य के SARS-CoV-2 जैसे नए रोगाणुओं के संपर्क में आने के खतरे अधिकाधिक बढ़े हैं। हालाँकि यही एकमात्र ऐसा वायरस नहीं है जिसके संपर्क में मनुष्य पहुँचा हो।

यह अलग बात है कि इंसानों के लिए यह सबसे ज्यादा खतरनाक साबित हुआ है। हाल के ही दिनों में हमने कई प्रकार के पैनज़ूटिक एवियन फ्लू का सामना किया है जैसे कि H1N1, H5Nx, H5N2 और H5N6। हालांकि इनमें से H5N2 को संयुक्त राज्य अमेरिका से पैदा होने के लिए जाना जाता रहा है, लेकिन किसी ने भी इसे "अमेरिकी वायरस" के रूप में नहीं कहा और ना ही किसी ने इसके लिए संयुक्त राज्य अमेरिका को ही बदनाम करने की कोशिश की। इन वायरसों को इनके वैज्ञानिक नामकरणों से पुकारा जाना जाता है और वही नाम बातचीत में इस्तेमाल होते हैं, क्योंकि ये किसी इस या उस राष्ट्र के कारण नहीं पैदा हुए। इन वायरसों के आगमन के चलते कुछ और महत्वपूर्ण मूलभूत प्रश्न खड़े होते हैं, और वह यह कि मनुष्यों ने जिस प्रकार से जंगलों में अधिकाधिक अतिक्रमण कर रखा है उसकी वजह से मानव सभ्यता (वो चाहे खेती पर निर्भर हो या महानगरीय जीवन हो) और जंगली जीवों के बीच के संतुलन को बुरी तरह से प्रभावित कर दिया है।

वायरस का नामकरण हमेशा से ही एक विवादास्पद मामला रहा है। 1832 में हैजे का प्रकोप ब्रिटिश भारत से यूरोप में फैला था। इसे "एशियाई हैजा" के नाम से जाना गया। फ्रांसीसियों को लगा कि चूंकि वे लोकतांत्रिक और सभ्य हैं, इसलिए वे इस अधिनायकवाद वाली बीमारी के शिकार नहीं होने जा रहे। नतीजे में फ्रांस हैजे से तबाह हो गया, जो बैक्टीरिया के बारे में उतना ही जानता था जितना कि उस दौरान यूरोप और उत्तरी अमेरिका के अंदर स्वच्छता की स्थिति हुआ करती थी। (1848 में जब अमेरिका में हैजा फैला, तब जाकर वहाँ सार्वजनिक नहाने-धोने के आंदोलन शुरू हुए।)

मात्र "स्पैनिश फ़्लू" को स्पेन के नाम पर रखा गया था, क्योंकि यह प्रकोप प्रथम विश्व युद्ध के दौरान फैला था। इससे प्रभावित अधिकांश देशों में उस दौरान पत्रकारिता पर सेंसरशिप जारी थी। चूँकि स्पेन उस युद्ध में शामिल नहीं था, जिसके चलते वहाँ की मीडिया ने इस फ़्लू के बारे में व्यापक कवरेज की, और इसी वजह से इस महामारी को इस देश का नाम दे दिया गया। जबकि इस बात के सुबूत हैं कि इस स्पेनिश फ़्लू की शुरुआत सयुंक्त राज्य अमेरिका के सैन्य ठिकाने कंसास से हुई थी, जहां मुर्गियों से यह वायरस सैनिकों के बीच संक्रमित हुआ था। इसके बाद जाकर इसने ब्रितानी भारत में अपने पैर पसारने शुरू किये, जहाँ इस महामारी के चलते 60% लोग मारे गए थे। लेकिन इसे कभी भी "अमेरिकन फ़्लू" के नाम से नहीं नवाजा गया और ना ही किसी भी भारतीय सरकार ने कभी भी अमेरिका से इसका हर्जाना भरने की माँग ही की, क्योंकि इस वायरस के किसी जानवर से इंसान में संक्रमित होने की शुरुआत उसके देश से ही हुई थी।

चीन और कोरोनावायरस

मेडिकल जर्नल द लैंसेट में प्रकाशित एक महत्वपूर्ण लेख में प्रोफेसर चाओलिन हुआंग लिखते हैं "[SARS-CoV-2]  से पीड़ित पहले मरीज के पहचान की शुरुआत 1 दिसंबर, 2019 के दिन हुई थी।" शुरू-शुरू में वायरस की प्रकृति के बारे में व्यापक भ्रम बना हुआ था, और इस बात को लेकर संशय बना हुआ था कि क्या यह एक इंसान से दूसरे इंसान में फैल सकता है। यह माना जा रहा था कि पहले से ज्ञात वायरसों की तरह ही यह भी मुख्य रूप से जानवरों से मनुष्यों में प्रसारित हो सकने वाला ही कोई वायरस होगा।

एकीकृत चीनी और पश्चिमी चिकित्सा पद्धति के हुबेई प्रांत स्थित अस्पताल के श्वसन और क्रिटिकल केयर मेडिसिन विभाग की निदेशक डॉ. झांग जिक्सियन, उन पहले डॉक्टरों में से एक थीं जिन्होंने नोवेल कोरोनवायरस निमोनिया के प्रकोप के बारे में आगाह किया था। 26 दिसंबर के दिन डॉ. झांग ने एक बुजुर्ग दंपति की बीमारी की जाँच की थी, जिनको तेज बुखार और खांसी के लक्षण पाए गए थे, जो आमतौर पर फ्लू के लक्षण बता रहे थे। आगे की जाँच में इन्फ्लूएंजा ए और बी, मायकोप्लाज्मा, क्लैमाइडिया, एडेनोवायरस और SARS के होने की बात खारिज हो गई। जब उनके बेटे का सीटी स्कैन किया गया तो उससे पता चला कि उसके फेफड़ों के अंदरूनी हिस्से में आंशिक रूप से कुछ भरा हुआ था। उसी दिन एक अन्य रोगी, जो सीफूड मार्केट में विक्रेता था, उसके अंदर भी वैसे ही लक्षण पाए गए।

डॉ. झांग ने चार मरीजों के बारे में चीन के सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रीवेंशन ऑफ वुहान के जियांगान जिले में सूचना भिजवा दी। अगले दो दिनों में डॉ. झांग और उनके सहयोगियों ने तीन और रोगियों में भी ठीक वही लक्षण पाए, और ये सभी लोग सीफ़ूड मार्किट से होकर आये थे। 29 दिसंबर को हुबेई प्रोविंशियल सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन ने अस्पताल में सात रोगियों की जांच के लिए विशेषज्ञों की एक टीम रवाना की। 6 फरवरी को हुबेई प्रांत ने डॉ. झांग और उनकी टीम द्वारा इस वायरस की पहचान कराने और इसका खुलासा करने की लड़ाई में किए गए बहुमूल्य कार्यों को मान्यता दी। उनके इस योगदान को दबाने की कोई कोशिश नहीं की गई थी।

इसके अलावा दो अन्य डॉक्टर डॉ. ली वेनलियांग (वुहान केन्द्रीय अस्पताल के नेत्र रोग विशेषज्ञ) और एआई फेन (वुहान केन्द्रीय अस्पताल में आपातकालीन उपचार विभाग के प्रमुख) ने इस नए वायरस के बारे में बने भ्रम को तोड़ने और इस बारे में स्पष्टता बनाने के प्रयासों में उल्लेखनीय भूमिका निभाई। शुरुआती दिनों में जब सब कुछ धुंधला सा लग रहा था तो उस दौरान प्रशासन की ओर से उन्हें झूठी अफवाह फ़ैलाने के नाम पर फटकार लगाई गई। 7 फरवरी को डॉ. ली की मौत कोरोनावायरस के चलते हो गई। सभी प्रमुख चिकित्सा और सरकारी संस्थानों ने जिसमें – द नेशनल हेल्थ कमीशन, द हेल्थ कमीशन ऑफ़ हुबेई प्रोविंस, द चायनीज मेडिकल डॉक्टर एसोसिएशन और वुहान सरकार ने उनके परिवार के प्रति अपनी सार्वजनिक शोक संवेदना व्यक्त की। 19 मार्च को वुहान पब्लिक सिक्योरिटी ब्यूरो ने इस बात को स्वीकार किया कि उसकी ओर से डॉ. ली को जो फटकार लगाई गई, वह गलत था और उसने अपने अधिकारियों बेवजह दण्डित किया था। डॉ. एई फेन को भी फेक न्यूज़ फैलाने को लेकर चेतावनी दी गई थी, लेकिन फरवरी में उनसे इस बात के लिए माफ़ी माँगी गई और बाद में वुहान ब्रॉडकास्टिंग और टेलीविजन स्टेशन की ओर से उन्हें सम्मानित तक किया गया।

प्रांतीय अधिकारियों को इस नए वायरस के बारे में 29 दिसंबर तक जाकर पता चल सका था। अगले ही दिन उन्होंने इस बाबत चाइना सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल को सूचित कर दिया था। इसके अगले ही दिन अर्थात 31 दिसंबर को चीन ने इस बारे में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) को सूचित कर दिया था। पहले-पहले वुहान में इस रहस्यमयी संक्रमण की सूचना मिलने के एक महीने के बाद। 3 जनवरी तक जाकर इस वायरस की पहचान हो सकी और इसके एक सप्ताह पश्चात चीन ने WHO के साथ नए कोरोनोवायरस के आनुवंशिक अनुक्रम को साझा किया। चीन द्वारा फौरन डीएनए जारी कर देने की वजह से ही इस वायरस का टीका तैयार करने के लिए बड़ी तेजी से वैज्ञानिक कार्य शुरू हो सके। आज के दिन तक 43 वैक्सीन के दावे किये जा चुके हैं, जिनमें से चार प्रारंभिक परीक्षण के दौर में हैं।

इस दौरान चीन के नेशनल हेल्थ कमीशन ने चायनीज सेंटर फॉर डिजीज कण्ट्रोल एंड प्रिवेंशन, द चायनीज अकादमी ऑफ़ मेडिकल साइंसेज और द चायनीज अकादमी ऑफ़ साइंसेज के विशेषज्ञों की एक टीम को एकत्रित किया और उन्होंने वायरस के नमूनों पर कई परिक्षण किए। 8 जनवरी को उन्होंने इस बात की पुष्टि की कि नोवेल कोरोनावायरस ही वास्तव में इस प्रकोप का स्रोत था। 11 जनवरी के दिन इस वायरस से पहली मौत की खबर दर्ज हुई। 14 जनवरी को वुहान नगर स्वास्थ्य आयोग की ओर से बताया गया कि उनके पास अभी भी इस बात के पुख्ता प्रमाण नहीं हैं कि यह वायरस एक इन्सान से दूसरे इन्सान में संचरण करता है या नहीं, लेकिन वे यकीन के साथ नहीं कह सकते कि एक इन्सान से दूसरे इन्सान के बीच इसका ट्रांसमिशन नहीं हो सकता।

इसके एक हफ्ते बाद 20 जनवरी को डॉ. झोंग नानशान ने बताया कि नोवेल कोरोनावायरस एक इन्सान से दूसरे इंसान में फैल सकता है (डॉ. झोंग, कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना के सदस्य होने के साथ ही एक प्रसिद्ध श्वसन रोग विशेषज्ञ हैं और SARS के खिलाफ चीन में लड़ाई में अग्रणी व्यक्ति रहे हैं)। इस बीच कुछ चिकित्सा कर्मी वायरस से संक्रमित हो चुके थे। और उसी दिन चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग और प्रीमियर ली केकियांग ने सरकार के सभी स्तरों पर वायरस के प्रसार पर ध्यान केन्द्रित करने के निर्देश दे दिए थे। इसके साथ ही राष्ट्रीय स्वास्थ्य आयोग और अन्य प्रशासनिक निकायों को आपातकालीन पहल लेने जैसे उपायों को अपनाने के लिए कह दिया गया था। इस वायरस के एक इन्सान से दूसरे इन्सान में संचरण के तथ्य की पुष्टि हो जाने के तीन दिन बाद ही वुहान 23 जनवरी से सम्पूर्ण लॉकडाउन की स्थिति में चला गया। अगले दिन ही हुबेई प्रांत ने अपने यहाँ लेवल-1 की चेतावनी जारी कर दी थी। 25 जनवरी को प्रीमियर ली ने एक समन्वय समूह का गठन किया। इसके दो दिन बाद उन्होंने वुहान का दौरा किया।

 अभी तक यह स्पष्ट नहीं हो सका है कि चीन इससे कुछ और भिन्न क्या कर सकता था, क्योंकि उस दौरान उसे एक अज्ञात वायरस से जूझना पड़ रहा था। विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक टीम ने 16 से 24 फरवरी के बीच चीन का दौरा किया था और इसने अपनी रिपोर्ट में वायरस के प्रसार की रोकथाम में जुटी चीन की सरकार और चीनी जनता की प्रशंसा की है। हजारों की संख्या में डॉक्टर और चिकित्सा कर्मी वुहान पहुंच चुके थे, वायरस से संक्रमित लोगों के लिए दो नए अस्पताल निर्मित किये जा चुके थे। इसके साथ ही लॉकडाउन में फँसे लोगों की सहायता के लिए विभिन्न नागरिक निकाय अपने स्तर पर जुटे थे। जैसा कि एक नवीनतम अध्ययन में प्रमुखता से पता चला है कि चीनी प्रशासन ने संक्रमण के बढ़ने को रोकने के लिए क्या उपाय अपनाए वह यह था कि - उसने संक्रमित लोगों को अस्पताल में भर्ती करना शुरू कर दिया और जो लोग उनके संपर्क में थे उन्हें क्वारंटाइन (अलगाव) में डाल दिया गया। इस लक्ष्य का उद्देश्य था कि जो लोग इस संक्रमण की कड़ी में शामिल थे उनकी पहचान हो सके, जिससे कि इस कड़ी को तोड़ा जा सके। 

दुनिया और चीन 

भारत के केरल राज्य की स्वास्थ्य मंत्री के. के. शैलजा ने वुहान में बढ़ रहे मामलों पर अपनी निगाह बना रखी थी, और भारत के इस 3.5 करोड़ आबादी वाले राज्य में इस स्थिति से निपटने के लिए आपातकालीन उपाय शुरू कर दिए थे। वे हाथ पर हाथ धरे बैठी नहीं रहीं। चीन इस सम्बन्ध में क्या कर रहा था, यह बात शैलजा और उनकी टीम को मालूम थी कि ऐसी स्थिति में क्या किया जाना चाहिए। भारत के इस हिस्से में ये लोग वायरस को रोक पाने में सक्षम रहे।

संयुक्त राज्य अमेरिका को समस्या की गंभीरता के बारे में शुरू से ही सूचित कर दिया गया था। नए साल वाले दिन चायनीज सेंटर फॉर डिसीज़ कंट्रोल के अधिकारियों ने यू.एस. सेंटर्स फॉर डिसीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन के प्रमुख डॉ. रॉबर्ट रेडफील्ड से, जो कि उस दौरान अपनी छुट्टियाँ बिता रहे थे, से इस सम्बन्ध में बात की थी। इस बारे में न्यूयॉर्क टाइम्स ने लिखा है  "उसने जो सुना उसने उसे हैरान-परेशान कर डाला था।" डॉ. जॉर्ज एफ. गाओ जो कि चीनी सीडीसी के प्रमुख हैं ने रेडफील्ड से बाद के दिनों में बात की थी, और बातचीत के दौरान डॉ. गाओ “फूटफूट कर रो पड़े” थे। लेकिन इस चेतावनी को गंभीरता से नहीं लिया गया। इसके एक महीने बाद 30 जनवरी को, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अड़ियल घोड़े की तरह रुख लिया। कोरोनावायरस के बारे में टिप्पणी करते हुए उन्होंने कहा था "हमें लगता है कि इसका हमारे लिए एक अच्छा अंत होने जा रहा है।“ "इतना मैं आप सबको आश्वस्त कर सकता हूं।" 13 मार्च तक ट्रंप ने राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा नहीं की, जबकि उस समय तक यह वायरस संयुक्त राज्य में अपने पाँव पसारना शुरू कर चुका था।

दुनिया भर के अन्य लोग भी कम घमंडी साबित नहीं हुए। वे भी 1832 के फ्रांसीसी राजनेताओं जैसे ही निकले जिन्हें लगता था कि फ्रांस किसी "एशियाई हैजे" की चपेट में नहीं आने जा रहा। 1832 में भी एशियाई हैजा जैसी कोई चीज नहीं थी, ये तो सिर्फ हैजा था जो उन्हीं लोगों को नुकसान पहुँचा रहा था जिनके यहाँ साफ़-सफाई की स्थिति खराब बनी हुई थी। ठीक उसी तरह, चायनीज वायरस जैसी भी कोई चीज नहीं है, बल्कि यह SARS-CoV-2 है। अपने कुछ परीक्षणों और कुछ ग़लतियों से सीख लेते हुए ये चीन के लोग ही हैं जो हमें इस वायरस का मुकाबला करने के तरीके प्रदर्शित कर रहे हैं। यह समय उन सबक को सीखने का है। जैसा कि डब्ल्यूएचओ का कहना है "परीक्षण, परीक्षण, परीक्षण" और फिर सावधानीपूर्वक नापजोखकर लॉकडाउन, अलगाव और क्वारंटाइन को अपनाएं। वायरस से लड़ने में विशेषज्ञता हासिल कर चुकी चीनी डॉक्टरों की टीम आज ईरान, इटली और अन्य जगहों पर मौजूद हैं, जो अंतर्राष्ट्रीयता और सबके साथ सहयोग की भावना को बुलंद कर रहे हैं।

चीन में WHO टीम का नेतृत्व करने वाले डॉ. ब्रूस आयलवर्ड का साक्षात्कार न्यूयॉर्क टाइम्स ने 4 मार्च के दिन लिया था। जब उनसे वायरस के खिलाफ चीनी प्रतिक्रिया के बारे में पूछा गया, तो उनका कहना था "उन्हें इस प्रकार से एकताबद्ध दिखे, जैसे कि वे कोई जंग में शामिल हों, और यह उस वायरस का खौफ़ था जो उन्हें जूझने के लिए प्रेरित किये हुए था। वे लोग वास्तव में खुद को शेष चीनी जनता को बचा सकने वालों की अग्रिम पाँत के रूप में देख रहे थे। और साथ ही दुनिया के भी।”

(यह तीन-भाग की श्रृंखला का पहला भाग है, जिसे यहाँ पूरा पढ़ा जा सकता है।)

यह लेख स्वतंत्र मीडिया संस्थान की एक परियोजना, Globetrotter द्वारा तैयार किया गया है।

विजय प्रसाद: एक भारतीय इतिहासकार, संपादक और पत्रकार हैं। यह Globetrotter जो कि स्वतंत्र मीडिया संस्थान की एक परियोजना है, में एक लेखन सहयोगी और मुख्य संवाददाता के बतौर कार्यरत हैं। इसके अलावा वे LeftWord Books के मुख्य संपादक और ट्राईकॉन्टिनेंटल: इंस्टीट्यूट फॉर सोशल रिसर्च के निदेशक हैं।

दू शाओजून:  एक अनुवादक के रूप में कार्यरत हैं और शंघाई में रहते हैं। यह अंतरराष्ट्रीय संबंधों, अंतर-सांस्कृतिक संचार और अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान क्षेत्र में शोध से संबद्ध हैं।

वियान ज़ू: पेशे से वकील हैं और बीजिंग में रहती हैं। सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों से सरोकार रखती हैं।

अंग्रेजी में लिखे गए मूल आलेख को आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं

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