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गुजरात: ज़हरीली शराब पीने से 50 से ज़्यादा लोगों की मौत... आठ अफसर सस्पेंड

सिर्फ कागज़ों तक सीमित शराबबंदी का चेहरा खुलकर सामने आ गया, जब ज़हरीली शराब के कारण 50 से ज्यादा गरीब परिवारों ने घर का सदस्य खो दिया।
Gujrat
Image courtesy : ET

एक ओर दिल्ली में केजरीवाल सरकार को निशाने पर लिए बैठी भाजपा कह रही है, ये सरकार लोगों को शराबी बना रही है, ये सरकार ठेका मालिकों को अवैध रुपये कमवा रही है, तो दूसरी तरफ ख़ुद की सत्ता वाले राज्य गुजरात में भाजपा की बोलती बंद है। यहां तो शराब बंदी होने के बावजूद धड़ल्ले से शराब बिक रही है, वो भी ज़हरीली... और इसे पीने से एक के बाद एक ग़रीबों की मौतें भी हो रही हैं। जिसका जवाब शायद भाजपा के पास नहीं है।

गुजरात के बोटाद जिले में जहरीली शराब पीने से अब तक 50 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी। जबकि गंभीर रुप से बीमार लोगों की संख्या बढ़ती ही जा रही है, जिसमें सिर्फ पुरुष ही नहीं महिलाएं की संख्या भी अच्छी खासी है। हालांकि इस मामले में अहमदाबाद क्राइम ब्रांच मे शराब बनाने वाले मुख्य आरोपी को ग़िरफ्तार ज़रूर कर लिया है।

आरोपी की गिरफ्तारी के बाद जहां दावा किया गया कि शराब में मेथनॉल का इस्तेमाल किया जा रहा था, वहीं प्रभारी मंत्री वीनू मोरदिया ने कहा कि दोषी अधिकारियों पर सख्त कार्रवाई की जाएगी।

जब इस ज़हरीली शराब पीने के बाद अस्पताल के बिस्तर तेज़ी के भरने लगे और लाशों के ढेर लगने लगे तब सरकार को मजबूरन हरकत में आना पड़ा। जिसके तहत बोटाद के एसपी करनराज बाघेल का तबादला कर दिया गया, जबकि बोटाद और ढोलका के डिप्टी एसपी, धंधुका के पीआई केपी जडेजा समेत आठ अफसरों को सस्पेंड कर दिया गया।

वहीं दूसरी ओर सरकार ने जांच के लिए डीएसपी  रैंक के अधिकारी की अध्यक्षता में पूरे मामले की जांच सौंपी है। इसके लिए एसआईटी  का गठन किया गया है। शुरुआती जांच में पता चला है कि रोजिंद, अणीयाणी, आकरु, चंदरवा और उंचडी गांव के लोग इसकी चपेट में आए हैं।

ग़ौरतलब है कि बरवाला तहसील के रोजिद गांव में सोमवार यानी 25 जुलाई की सुबह पहली मौत हुई, इसके बाद मौत के आंकड़ों ने जैसे रफ्तार पकड़ ली और शाम तक रोजिद समेत तीन गावों में 12 लोग मृत पाए गए। जबकि अगले ही दिन मंगलवार को उपचार के दौरान 43 और बुधवार को दो लोगों की मौत हो गई। इसमें हैरान करने वाली बात ये है कि अकेले रोजिद गांव में ही 12 लोगों की मौत हो गई, जबकि रानपुर के 8 लोग इस ज़हरीली शराब का शिकार हो गए।

ख़तरा अभी टला नहीं है, क्योंकि अब भी अस्पताल में बहुत से मरीज़ गंभीर स्थिति में भर्ती हैं, कुछ तो पहले ठीक थे बाद में उनकी हाल बिगड़ती जा रही है, जबकि और न जाने कितने लोगों ने इस शराब का सेवन किया होगा। आपको बता दें कि इन सभी मरीज़ों का इलाज अहमदाबाद, भावनगर और बोटाद के अस्पतालों में किया जा रहा है।

ग़रीबों को ही निशाना बनाने के लिए ये ज़हरीली शराब बेहद कम दामों में बेंची जाती है। ख़बरों के मुताबिक किसी राजू नाम के बुटलेगर ने अहमदाबाद की फैक्ट्री से 600 लीटर मेथिकल केमिकल चुराया था। इसके बाद यही केमिकल रोजिद, देवगणा, और नभोई गांव के बुटलेगर्स को सप्लाई किया था। फिर शराब बनाने वालों ने इसी कैमिकल का इस्तेमाल कर शराब बनाई और पाउच में भर-भरके सिर्फ 20-20 रुपये में बेंची।

लेकिन इन बातों के बीच सवाल तो सबसे बड़ा यही है कि जब प्रदेश में 1960 से ही शराबबंदी है, फिर साल 2017 में इस शराब बंदी कानून को और ज्यादा कठोर बना दिया गया, यानी अगर इस कानून का उल्लंघन करते कोई पकड़ा गया तो उसे पांच लाख रुपये ज़ुर्माना और 10 साल की कैद दोनों दण्ड मिलेंगे। इसके बावजूद धड़ल्ले से पुलिस और प्रशासन की नाक के नीचे ज़हरीली शराब का निर्माण हो रहा है।

इसका जवाब एक मीडिया रिपोर्ट देती है, जिसमें लिखा है कि जब सोमवार से बुधवार के बीच पुलिस अवैध शराब भट्टियों पर छापेमारी कर रही थी, तब वलसाड ज़िले के डीएसपी को पुलिस विभाग के सब इंस्पेक्टर और खाकी वर्दी वाले भी शराब पीते नज़र आए। अब आप ख़ुद सोच सकते हैं, जब पुलिस और प्रशासन मिलकर ही खेल कर रहे हैं, तो बोलने वाला कौन ही बचा?

रिपोर्ट्स बताती हैं कि अहमदाबाद के पॉश इलाकों में खुलेआम शराब बिकती है, लोग अपने घरों के बाहर, चारपाई पर बिछाकर शराब का बोतले रखते हैं, क्योंकि इनकी साठगांठ पुलिस वालों से सीधे होती है, इसलिए बोलने वाला कोई नहीं है। यानी ये कहना ग़लत नहीं होगा कि अगर बार-बार ऐसी घटनाएं सामने आ रही हैं, और खुलेआम शराब बेची जा रही है तो सरकार के कानों में इस बात की भनक ज़रूर होगी। ऐसे में किसी तरह की कार्रवाई नहीं करना बड़ा सवाल खड़ा करता है।

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