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ज्ञानवापी मामला : अदालत द्वारा नियुक्त कोर्ट कमिश्नर को बदलने की मांग खारिज

ज्ञानवापी मस्जिद प्रबंधन समिति की तरफ से एक अधिवक्ता ने अदालत के अधिकारी अजय कुमार मिश्रा को बदलने की मांग करते हुए एक आवेदन दिया था, जिसमें उन्होंने आरोप लगाया था कि वह निष्पक्ष रूप से काम नहीं कर रहे हैं।
Gyanvapi Masjid

वाराणसी: वाराणसी की एक जिला अदालत ने ज्ञानवापी-शृंगार गौरी परिसर का वीडियोग्राफी-सर्वेक्षण करने के लिए अदालत द्वारा नियुक्त कोर्ट कमिश्नर को बदलने की मांग बृहस्पतिवार को खारिज कर दी। इसके साथ ही अदालत ने 17 मई तक सर्वे का काम पूरा कर रिपोर्ट सौंपने का भी निर्देश दिया।

सिविल जज (सीनियर डिवीजन) रवि कुमार दिवाकर की अदालत ने हिंदू और मुस्लिम दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद यह फैसला सुनाया।
     
ज्ञानवापी मस्जिद प्रबंधन समिति की तरफ से एक अधिवक्ता ने अदालत के अधिकारी अजय कुमार मिश्रा को बदलने की मांग करते हुए एक आवेदन दिया था, जिसमें उन्होंने आरोप लगाया था कि वह निष्पक्ष रूप से काम नहीं कर रहे हैं।

दिल्ली की राखी सिंह, लक्ष्मी देवी, सीता साहू और अन्य की दैनिक पूजा और श्रृंगार गौरी में अनुष्ठान करने की अनुमति की मांग करने वाली याचिका पर धार्मिक स्थल की वीडियोग्राफी और सर्वेक्षण करने के लिए उसी अदालत के पहले के आदेश पर यह प्रक्रिया शुरू की है। दावा है कि ज्ञानवापी मस्जिद की बाहरी दीवार पर भगवान गणेश, भगवान हनुमान और नंदी स्थित हैं। उन्होंने 18 अप्रैल, 2021 को अपनी याचिका के साथ अदालत का रुख किया था और विरोधियों को मूर्तियों को नुकसान पहुंचाने से रोकने की मांग की थी।
क्‍या है ज्ञानवापी विवाद?

काशी विश्‍वनाथ मंदिर और उससे लगी ज्ञानवापी मस्जिद के बनने और दोबारा बनने को लेकर अलग-अलग तरह की धारणाएं और कहानियां चली आ रही हैं। हालांकि इन धारणाओं की कोई प्रमाणिक पुष्टि अभी तक नहीं हो सकी है। बड़ी संख्‍या में लोग इस धारणा पर भरोसा करते हैं कि काशी विश्‍वनाथ मंदिर को औरंगजेब ने तुड़वा दिया था। इसकी जगह पर उसने यहां एक मस्जिद बनवाई थी।

कुछ इतिहाकारों का कहना है कि ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण 14वीं सदी में हुआ था और इसे जौनपुर के शर्की सुल्‍तानों ने बनवाया था, लेकिन इस पर भी विवाद है। कई इतिहासकार इसका खंडन करते हैं। उनके मुताबिक शर्की सुल्‍तानों द्वारा कराए गए निर्माण के कोई साक्ष्‍य नहीं मिलते हैं। न ही उनके समय में मंदिर के तोड़े जाने के साक्ष्‍य मिलते हैं। दूसरी तरफ काशी विश्‍वनाथ मंदिर के निर्माण का श्रेय राजा टोडरमल को दिया जाता है।

कुछ इतिहासकारों का यह भी मानना है कि मंदिर का निर्माण राजा टोडरमल ने साल 1585 में दक्षिण भारत के विद्वान नारायण भट्ट की मदद से कराया था। ज्ञानवापी मस्जिद के निर्माण के बारे में कुछ लोग यह भी कहते हैं कि अकबर के जमाने में नए मजहब 'दीन-ए-इलाही' के तहत मंदिर और मस्जिद दोनों का निर्माण कराया गया था। हालांकि ज्‍यादातर लोग यही मानते हैं कि औरंगजेब ने मंदिर के तुड़वा दिया था, लेकिन मस्जिद अकबर के जमाने में 'दीन ए इलाही' के तहत बनाई गई या औरंगजेब के जमाने में इसको लेकर जानकारों में मतभेद हैं। अंजुमन इंतज़ामिया मसाजिद के पदाधिकारी किसी प्राचीन कुएं और उसमें शिवलिंग होने की धारणा को भी नकारते हैं। उनका कहना है कि वहां ऐसा कुछ भी नहीं है।

क्यों भड़काया जा रहा उन्माद?

नब्बे के दशक में रामजन्‍म भूमि आंदोलन के दौरान काशी-मथुरा को लेकर नारे लगते रहे हैं। हिंदूवादी संगठनों का दावा है कि स्वयंभू शिवलिंग के ऊपर मस्जिद का निर्माण हुआ है। उनकी मांग मस्जिद हटाकर वो हिस्‍सा मंदिर को सौंपे जाने की है। द्वादश ज्‍योतिर्लिंगों में प्रमुख श्री काशी विश्‍वनाथ मंदिर और उसी के पास स्थित ज्ञानवापी मस्जिद का केस साल 1991 से वाराणसी की स्‍थानीय अदालत में चल रहा है। साल 1991 में स्वयंभू विश्वेश्वर की ओर से डॉ. रामरंग शर्मा, हरिहर पांडेय और सोमनाथ व्यास ने एफटीसी कोर्ट में याचिका दायर कर नया निर्माण व पूजा करने के अधिकार की मांग की और अंजुमन इंतजामिया मसाजिद को प्रतिवादी बनाया गया। अदालत ने लंबी सुनवाई के बाद साल 1997 में वादी और प्रतिवादी दोनों के पक्ष में आंशिक फैसले दिए थे, जिससे असंतुष्ट प्रतिवादी ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर दी। 13 अगस्त 1998 को हाइकोर्ट ने फैसले पर रोक लगा दी।

इसी दौरान सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक आदेश में कहा था कि स्थगन आदेश छह माह बाद स्वत: खारिज हो जाएंगे। इस पर साल 2018 में मुकदमे में अधिवक्ता रहे विनय शंकर रस्तोगी ने अदालत में अर्जी देकर वादमित्र नियुक्त करने की मांग की थी। तब तक दो वादकारियों का निधन हो चुका था। तीसरे वादी अदालत जाने में सक्षम नहीं थे। लिहाजा, विनय शंकर रस्तोगी ने 2019 में मूल वाद में अलग से अर्जी देकर पुरातत्व विभाग की ओर से सर्वेक्षण करने की अनुमति मांगी। इसके बाद सर्वेक्षण प्रकरण पर सुनवाई शुरू हो गई। एएसआई को विभिन्न प्रक्रियाओं के तहत सर्वेक्षण कराने का आदेश दिया और फिर हाईकोर्ट ने एएसआई सर्वे पर रोक लगा दी।

प्राचीन मूर्ति स्वयंभू लार्ड विश्वेश्वर के वाद मित्र विजय शंकर रस्तोगी ने सिविल जज सीनियर डिविजन (फास्ट ट्रैक कोर्ट) की अदालत में अपील की थी कि काशी विश्वनाथ मंदिर व विवादित ढांचास्थल का पुरातात्विक सर्वेक्षण कराने का निर्देश दिया जाए। दावा किया कि ढांचा के नीचे काशी विश्वनाथ मंदिर के जुड़े पुरातात्विक अवशेष हैं।

कहा गया कि मौजा शहर खास स्थित ज्ञानवापी परिसर के 9130, 9131, 9132 रकबा नंबर एक बीघा नौ बिस्वा लगभग जमीन है। उक्त जमीन पर मंदिर का अवशेष है। 14वीं शताब्दी के मंदिर में प्रथमतल में ढांचा और भूतल में तहखाना है। इसमें 100 फुट गहरा शिवलिंग है। मंदिर का 1780 में अहिल्यावाई होलकर ने जीर्णोद्धार कराया था। यह भी कहा कि 100 वर्ष तक 1669 से 1780 तक मंदिर का अस्तित्व ही नहीं रहा।

(भाषा इनपुट के साथ)

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