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हिंसा के इस दौर में बहुत याद आते हैं बुद्ध

“बुद्ध की शिक्षाएं ही दुनिया को हिंसा मुक्त कर जीने लायक बना सकती हैं। इस दुनिया को हथियारों की नहीं प्रेम की, युद्ध की नहीं बुद्ध की आवश्यकता है”।
Buddhism
तस्वीर गूगल से साभार

“रूस-यूक्रेन के बीच सैन्य युद्ध हो, श्रीलंका में गृह युद्ध हो या भारत में सांप्रदायिक और जातीय टकराव, ये सब हिंसात्मक कार्रवाईयां हैं। हिंसा प्रेम और सद्भाव विरोधी अमानवीय कार्रवाई है। इसके पीछे वर्चस्व और नियंत्रण की भावना काम करती है। हिंसा मनुष्यता का क्षरण करती है। ऐसी समस्त मानव विरोधी कार्रवाईयां निंदनीय हैं। हिंसा के इस दौर में बुद्ध बहुत याद आते हैं। बुद्ध की शिक्षाएं ही दुनिया को हिंसा मुक्त कर जीने लायक बना सकती हैं। इस दुनिया को हथियारों की नहीं प्रेम की, युद्ध की नहीं बुद्ध की आवश्यकता है”। ये कहना है वरिष्ठ दलित साहित्यकार जय प्रकाश कर्दम का।  

गौतम बुद्ध को एशिया का प्रकाश (Light of Asia) कहा गया है। उनका जन्म नेपाल के कपिलवस्तु के लुम्बिनी वन में वैशाख पूर्णिमा के दिन 563 ई.पूर्व हुआ था। उनके जन्मदिन को आज बुद्ध पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है। उनके पिता शाक्यवंश के राजा शुद्धोधन थे और माता का नाम महामाया था। उनके बचपन का नाम सिद्धार्थ था। उनका पालन-पोषण एक राजकुमार के रूप में हुआ।

आज के सन्दर्भ में कहें तो गौतम बुद्ध का जन्म भले ही नेपाल में हुआ हो पर उनकी कर्मभूमि भारत रही। यहीं उन्हें बोधित्व की प्राप्ति हुई और यहीं से उन्होंने पूरे विश्व को सन्देश दिया। आज भी जापान, उत्तर कोरिया. दक्षिण कोरिया, चीन, वियतनाम, ताइवान, तिब्बत, भूटान, कम्बोडिया, हांगकांग, मंगोलिया, थाईलैंड, मकाऊ, वर्मा, लागोस और श्रीलंका की गिनती बुद्धिस्ट देशों में होती है।

मानव कल्याण, शांति, सदाचार और सद्भाव हैं बुद्ध वचन

भगवान् बुद्ध की शिक्षाओं का मुख्य उद्देश्य मानव जीवन को सुखमय बनाना है, बुद्ध ने प्रकृति के नियमों का गहन अध्ययन किया और इस नतीजे पर पहुंचे कि जो नियम बाहर वातावरण में काम कर रहे हैं वही हमारे शरीर के अन्दर काम कर रहे हैं। मानव जीवन की मूल समस्या है राग, द्वेष, मोह, घृणा, लालच और भय के विकारों से कैसे छुटकारा पाया जाए। यही विकार आपसी लड़ाई, एक दूसरे के साथ युद्ध, आर्थिक विषमता, शोषण, अत्याचार, अन्याय, भेदभाव, हिंसा व आतंकवाद को जन्म देते हैं। ये ऐसी समस्याएं हैं जो हर युग में रहेंगी केवल उनका रूप और स्थान बदलेंगे। इसलिए बुद्ध ने अपने उपदेशों में मानव कल्याण, शांति, सदाचार और सद्भाव का सन्देश दिया। उन्होंने पंचशील दिए – हिंसा न करना, चोरी न करना, व्यभिचार न करना, असत्य न बोलना, तथा नशीली पदार्थों का सेवन न करना। उन्होंने आष्टांगिक मार्ग यानी माध्यम मार्ग दिए ये हर दृष्टि से जीवन को शांतिपूर्ण और आनंदमय बनाते हैं। ये हैं सम्यक दृष्टि, सम्यक संकल्प, सम्यक वाक्, सम्यक कर्म, सम्यक आजीविका, सम्यक व्यायाम, सम्यक स्मृति और सम्यक समाधि।

आज हमें युद्ध नहीं बुद्ध चाहिए

वर्तमान परिप्रेक्ष्य में जिस तरह से हिंसा और युद्ध के दौर से विश्व गुजर रहा है उस से मानवता का विनाश हो रहा है। ऐसे में डॉक्टर एम.एल. परिहार कहते हैं –“आज पूरी दुनिया में हिंसा, डर, आतंक व भ्रष्टाचार का माहौल है, जीवन में तनाव है, समाज में व देशों के बीच तनाव बढ़ रहा है, मानव जाति विनाश के कगार पर खड़ी है। समाज में आर्थिक विषमता दिनोंदिन बढ़ती जा रही है, धर्म के नाम पर अन्धविश्वास, कट्टरता, कर्मकांड व आडम्बर का बोलबाला बढ़ रहा है, संयुक्त परिवार टूट रहे हैं, बूढ़े, गरीब, शोषित व वंचितों के प्रति उपेक्षा बढ़ रही है – ऐसे में भगवान् बुद्ध की शिक्षाएं पहले से ज्यादा प्रासंगिक हो गई हैं। आज हमें युद्ध नहीं बुद्ध चाहिए।“    

बहुजन हिताय बहुजन सुखाय का दर्शन

वरिष्ठ दलित साहित्यकार मोहनदास नैमिशराय कहते हैं –“निश्चित रूप से तथागत के द्वारा बताया गया मार्ग मनुष्य के जीवन को व्यावहारिक बनाता है। जहां बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय के दर्शन का विस्तार होता है। वहीं परस्पर संवाद भी बनता है। लोग सुख-दुःख में एक दूसरे के काम आते हैं। भगवान् बुद्ध ने यही तो चाहा था। इसीलिए बाबा साहब डॉ. आंबेडकर ने भारत जैसे देश के लोगों को इस मानवीय धर्म को अपनाने की पुनः प्रेरणा दी।

इस मानवीय धर्म की इसलिए भी जरूरत हो जाती है कि आज जहां विश्वभर में युद्ध का उन्माद है लगभग प्रत्येक देश के लोग आतंकवाद से त्रस्त हैं वहां युद्ध के स्थान पर बुद्ध की आवश्यकता है एक समय तथागत ने ही युद्ध के विकल्प के रूप में शांति को महत्व दिया था। वैसे ही जीवन दर्शन को हम सभी को अपनाना चाहिए।

जाति का कोई स्थान नहीं

एक दिन बुद्ध भिक्खुसंघ के साथ गंगा तट पर स्थिति एक गाँव में भिक्षाटन के लिए जा रहे थे। रास्ते में बुद्ध ने एक व्यक्ति को मल-मूत्र ले जाते देखा जिसका नाम सुनीत था। बुद्ध और भिक्खु को देखकर वह गंगा के किनारे की और बढ़ गया। सुनीत के रास्ता बदलने पर बुद्ध भी उसकी और  बढ़ गए। सुनीत से उन्होंने बचने का कारण पूछा तो उसने बताया कि मैं अछूत हूँ । भंगी जाति से हूँ। मेरी वजह से आप लोग अपवित्र न हो जाएं इसलिए मैं आपके सामने नहीं आना चाहता लेकिन आप लोग खुद मेरे सामने आ गए। मुझे पाप लगेगा। बुद्ध ने उसे आश्वस्त करते हुए कहा – कुछ नहीं होगा वह निश्चिन्त रहे। हमारे सद्धर्म मार्ग में जाति-पांति का कोई स्थान नहीं है।

बुद्ध ने बार-बार इस बात पर जोर दिया कि व्यक्ति जन्म की बजाय कर्म व आचरण से ऊंचा व नीचा होता है।

महिला सशकतिकरण मे योगदान

बुद्ध ने महिलाओं को पुरुषों के बराबर अधिकार देकर महिला सशक्तिकरण के आंदोलन की नींव रखी थी। गौतम बुद्ध ने स्त्रियों को शिक्षा पाने, भिक्षुणी बनने आदि का अधिकार दिया और उन्हें पूर्ण बौद्धिक स्वतंत्रता प्रदान की। डॉ. अंबेडकर इस बौद्धिक क्रान्ति का उल्लेख करते हुए लिखते हैं –“बुद्ध ने स्त्रियों को प्रव्रज्या का अधिकार देकर एक साथ दो दोषों को दूर किया। एक तो उनको ज्ञानवान होने का अधिकार दिया, दूसरे उन्हें पुरुषों के समान अपनी मानसिक  संभावनाओं को अनुभव करने का हक़ दिया। यह एक क्रांति और भारत में नारी-स्वतंत्रता दोनों थी”।

सामाजिक समानता के समर्थक

गौतम बुद्ध की शिक्षाओ के केंद्र में जातिगत भेदभाव ख़त्म कर के सामाजिक  समानता की स्थापना करना था। बुद्ध ने बार-बार कहा कि जन्म से न कोई ब्राह्मण होता है और न शूद्र। इंसान का मूल्य उसकी जाति से नहीं उस के कार्यों से आँका जाता है। ब्राह्मण जन्म से श्रेष्ठ होता है इस वैदिक मान्यता को बुद्ध ने पूरी तरह नकार दिया। बुद्ध का समानता का यह सिद्धांत लोगों के दिल को छू जाता था। यही कारण है कि उनके भीखु संघ में सुनीत भंगी, सोपाक और सुप्पय डोम, प्रकृति नाम की चंडाल कन्या, आम्रपाली जैसी वैश्या, उपाली (नाई), धनीम (कुम्हार), सती (मल्लाह) भी शामिल थे।

वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा

गौतम बुद्ध वैज्ञानिक सोच के आधार पर अपने उपदेश देते थे। वे कोई उपदेश देने से पहले उसे तर्क की कसौटी पर कसते थे। शिक्षाविद धम्म दर्शन कहते हैं –“बुद्ध ने तर्क और नैतिकता के सिद्धांत को विशेष महत्व दिया। और सचमुच तार्किक नैतिकता होना भी बहुत जरूरी है इसके अभाव में जनमानस का भला नहीं होगा।” लेखक, सामाजिक कार्यकर्ता और बौद्ध दर्शन के विशेष जानकार रत्नेश कातुलकर कहते हैं –“बुद्ध की विचारधारा तर्क संगत और मानव कल्याण के लिए है। इससे  किसी का अहित नहीं है। यह वैश्विक स्तर पर मान्य है। यदि कोई विचार तर्क की कसौटी पर खरा नहीं उतरता है तो वह बुद्ध वचन हो ही नहीं सकता। बुद्ध धम्म किसी धर्म या पंथ विशेष के लिए नहीं है यह एक मानव कल्याण का सिद्धांत है।”

बुद्ध ने कहा है कि –“मेरे शब्दों  को प्रमाण न मानो। तुम्हारी बुद्धि अथवा अनुभव से जो बात जंचती हो उसे ही सत्य मानो। इस विश्व में अंतिम और अपरिवर्तनीय कुछ भी नहीं है। परिवर्तन और सतत परिवर्तन ही सत्य है।”

पुराने समय से चली आ रही होने के कारण ही किसी बात में विश्वास मत करो, किसी बात को इसलिए भी स्वीकार मत करो कि वह किस धर्मग्रन्थ में लिखी है। किसी बात को इसलिए भी स्वीकार मत करों कि वह असाधारण प्रतीत होती है बल्कि उसे अपनी बुद्धि की कसौटी पर कसो और जब ऐसा लगे कि तुम्हारे लिए और सभी के लिए हितकर है तो उसे स्वीकार करो और अपने जीवन में उतारो। अपना दीपक आप बनो।

संतुलन ही जीवन की परम साधना है। जीवन को सच्चे अर्थों में जीने का अर्थ है – जीवन वीणा के तार को संयम द्वारा न तो इतना कस देना कि यह टूट जाए और न ही आलस्य-प्रमाद  द्वारा इसे इतना ढीला छोड़ देना कि इससे कोई स्वर ही न निकले।

विश्व शांति के उपदेश

गौतम बुद्ध ने युद्ध का हर संभव विरोध किया है। उन्होंने बार-बार कहा कि युद्ध किसी भी समस्या का हल नहीं होता। क्योंकि हर युद्ध में जन-धन की अपार हानि होती है। दुनिया में ‘धर्म युद्ध’ या ‘उचित युद्ध’ या ‘न्याय के लिए युद्ध’ जैसे शब्द को गुमराह करने और लोगों को मूर्ख बनाने के लिए गढ़े गए हैं। कोई भी युद्ध उचित या न्याय के लिए नहीं कहा जा सकता क्योंकि हर युद्ध (बिना किसी अपवाद) के अपने पीछे बर्बादी और तबाही ही छोड़कर जाता है।

इसलिए भगवान बुद्ध ने  कहा कि हर राष्ट्र की विदेश नीति पंचशील और परस्पर शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व पर आधारित होनी चाहिए। शील सदाचार से अपने साथ-साथ दूसरे लोगों का भी कल्याण अनिवार्य रूप से होता ही है। इसलिए मनुष्य का कल्याण हो रहा है तो समाज देश और विश्व का कल्याण होगा ही।

इस तरह हम देखते हैं कि आज भी बुद्ध के विचार प्रासंगिक हैं और  बुद्ध की शिक्षाओं से ही मानव कल्याण और विश्व शांति संभव है।

(लेखक सफाई कर्मचारी आंदोलन से जुड़े हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)  

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