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हरियाणा : क्या है चिराग योजना? शिक्षक और छात्र क्यों कर रहे हैं विरोध?

"हरियाणा के शिक्षक संघ और छात्र संगठनों का मानना है कि ये योजना सार्वजनिक शिक्षा को तबाह कर देगी।"
haryana
फाइल फ़ोटो।

हरियाणा सरकार एक चिराग योजना लाई है जिसके तहत उन्होंने गरीब परिवार के बच्चों को प्राइवेट स्कूलों मे दाखिला लेने पर उनका खर्च वहन करने का वादा किया है। हालांकि इस योजना के आते ही शिक्षा के क्षेत्र से जुड़े लोगों ने इसका विरोध शुरू कर दिया है। हरियाणा के शिक्षक संघ और छात्र संगठन स्टूडेंट फेडरेशन ऑफ इंडिया(एसएफआई) का मानना है कि ये योजना सार्वजनिक शिक्षा को तबाह कर देगी। वहीं दूसरी तरफ कई रिपोर्ट्स आईं हैं जहां पहले ही राज्य मे बड़ी संख्या मे सरकारी स्कूल बंद हुए है। सबसे बड़ा सवाल ये उठ रहा है कि सरकार क्या अपने दायित्व से भाग रही है क्योंकि सबको गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा मिले ये किसी भी सरकार पहला कर्तव्य है लेकिन यहाँ सरकार अपने स्कूली ढांचे को मजबूत करने के बजाए निजी संस्थानों को बढ़ावा दे रही है।

नयी शिक्षा नीति (एनईपी) पर तेज़ी से अमल करते हुए हरियाणा सरकार ने "चिराग" नाम से एक ऐसी योजना पेश की है जिसमें अभिभावकों से कहा जा रहा है कि वे अपने बच्चों को निजी स्कूलों में ले जाएं। इसके लिए सरकार 700 से 1100 रूपये की मासिक मदद देगी। एसएफआई व हरियाणा के अध्यापक संगठनों ने आरोप लगाया है कि सरकार अपने कर्तव्य से भाग रही है। ये जनता के बड़े हिस्से को स्कूली शिक्षा से भी वंचित करना चाहती है। सार्वजनिक शिक्षा व्यवस्था की नाकामी का इससे बड़ा सबूत क्या होगा? जिस विद्यार्थी को स्कूल के अंदर होना चाहिए वो आज स्कूलों के सामने आंदोलन कर रहे हैं। और उनकी मांग है कि उन्हें पढ़ाई करने के लिए अध्यापक उपलब्ध कराए जाएं व उनकी फीस को कम किया जाए। चिराग योजना क्या है और शिक्षक व छात्र इसका विरोध क्यों कर रहे हैं इसे समझते हैं :

क्या है चिराग योजना?

"सीएम हरियाणा इक्यूएल एजूकेशन रिलीफ असिसटेंस एंड ग्रांट" (CHEERAG) ऐसी योजना है जिसके अंतर्गत अगर कक्षा दो से बारहवीं तक के विद्यार्थी सरकारी स्कूल को छोड़कर निजी स्कूल में प्रवेश लेते हैं तो उनकी फीस के लिए सरकार 700 से 1100 रूपये का मासिक भुगतान करेगी। दूसरी कक्षा से पाँचवीं तक 700 रूपये, छठी से आठवीं तक 900 रूपये और नौवीं से बारहवीं तक 1100 रूपये का मासिक भुगतान किया जाएगा। चालू वर्ष में 25000 छात्रों को इस योजना का लाभ मिलेगा। प्रवेश में पात्रता के लिए अभिभावकों की वार्षिक आय 1 लाख 80 हज़ार रुपये से कम होनी चाहिए।

इस योजना से सहमत विद्यालय कक्षावार उपलब्ध खाली सीटों का ब्यौरा देंगे। विद्यार्थी इसके अनुसार आवेदन पत्र देंगे। खाली सीटों के बारे में कोई मानक या अनुपात तय नहीं किया गया है। इसका मतलब है कि सरकारी धन लेने के इच्छुक अपनी इच्छा या ज़रूरत के मुताबिक कम/ज़्यादा सीटें दिखा सकेंगे।

134-ए और शिक्षा अधिकार अधिनियम

राज्य में पिछले कई सालों से हरियाणा स्कूल शिक्षा अधिनियम 2003 की धारा 134-ए और शिक्षा अधिकार अधिनियम 2009 को लेकर असमंजस की स्थिति रही है। निजी स्कूलों को मान्यता देने से संबंधित 2003 के अधिनियम में बाध्यकारी प्रावधान बनाया गया था कि स्कूल पहली व छठी कक्षा में कुल सीटों के 25% पर अपने क्षेत्र के गरीब बच्चों को नि:शुल्क प्रवेश देंगे। किसी भी स्कूल ने इस सामाजिक उत्तरदायित्व का पालन नहीं किया। बाद में सरकार ने कहा कि हम इसके बदले में फीस का भुगतान कर देंगे। कुछ और समय बाद सीटों की संख्या 25% से घटाकर 10% कर दी गई, लेकिन स्कूल प्रबंधन व सरकार के बीच टकराव की स्थिति बनी रही। कुछ दाखिले हुए भी, लेकिन हर बार प्रदर्शन और विवाद के बाद ही ये संभव हो पाया। तीन माह पहले सरकार ने नियम 134-ए को हटा दिया और उसके विकल्प के रूप में "चिराग" ले आए।

छात्र संगठन एसएफआई के राज्य अध्यक्ष विनोद गिल का कहना है कि बच्चों के लिए अनिवार्य एवं नि:शुल्क शिक्षा अधिकार अधिनियम के अध्याय चार, नियम 12(1- C) में भी कुल सीटों के 25% पर अपने क्षेत्र के बीपीएल परिवारों के बच्चों को नि:शुल्क शिक्षा देने का उत्तरदायित्व निजी स्कूलों को सौंपा गया है वे इसके बदले में किसी भुगतान या प्रतिपूर्ति की मांग नहीं कर सकते। आज तक न तो किसी स्कूल ने इसका पालन किया है और न ही सरकार ने इस पर अमल सुनिश्चित करवाने के लिए कोई कदम उठाया।

क्या चिराग योजना सार्वजनिक शिक्षा से पल्ला झाड़ना हैं?

एसएफआई ने अपने एक बयान मे दावा किया कि चिराग योजना को एक अलग कदम के रूप में देखना सही नहीं होगा। उच्च गुणवत्ता की सार्वजनिक शिक्षा देने के उत्तरदायित्व से पल्ला छुड़ाने की योजना के तहत सरकार ने गत वर्ष 136 सीनियर सैकेंडरी विद्यालय और 1418 प्राथमिक विद्यालय यानी कुल 1554 विद्यालयों को मॉडल संस्कृति स्कूल का नाम दिया गया है। पहले से चल रहे स्कूलों को नया नाम देकर फीस लगा दी है। ये स्कूल सीबीएसई से संबद्ध करवाए गए हैं। जो बच्चे इनमें दाखिला ले रहे हैं उन्हें निम्नलिखित दर से फीस का भुगतान करना होगा।

दाख़िला फीस :

कक्षा 1-5 : 500 रुपये

कक्षा 6-12 : 1000 रुपये

मासिक फीस :

कक्षा 1-3 : 200 रुपये

कक्षा 4-5 : 250 रुपये

कक्षा 6-8 : 300 रुपये

कक्षा 9-10 : 400 रुपये

कक्षा 11-12 : 500 रुपये

विनोद आगे कहते हैं कि बात चाहे सामान्य लगे लेकिन संदेश साफ है - "सरकारी स्कूल में पढ़ोगे तो फीस देनी होगी और सरकारी से निजी स्कूल में जाओगे तो फीस सरकार देगी। "उच्च गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा पाना हर बच्चे का अधिकार है और यह सरकार का कर्तव्य भी है। हरियाणा सरकार इसी दायित्व से भाग रही है।

हरियाणा विद्यालय अध्यापक संघ ने नई शिक्षा नीति और चिराग योजना जैसी योजना को शिक्षा के लिए घातक बताते हुए 29 दिसंबर 2022 को हरियाणा के जींद मे बड़ी रैली की और इससे पहले इन्होंने बाकी जन संगठन जैसे छात्र, मज़दूर और किसानों को एकजुट करने के लिए राज्य भर मे अभियान चलाया था। अध्यापक संघ के नेता सीएन भारती ने न्यूज़क्लिक से बात करते हुए कहा, "सरकार का काम है कि राज्य मे सार्वजनिक शिक्षा को बेहतर बुनयादी ढांचा दे लेकिन ये सरकार नए ढांचे को स्थापित करने की जगह पुराने ढांचे को भी बर्बाद कर रही है।

ये सरकार भी बच्चों को सरकारी स्कूलों से निकालकर प्राइवेट स्कूलों मे भेज रही है और फिर जब बच्चे सरकारी स्कूलों से निकल जाएंगे तब ये पहले तो स्कूलों को बंद करेगी और फिर चिराग योजना के तहत मिलने वाली आर्थिक मदद भी। ये पूरी तरह से साज़िश है जो शिक्षा के निजीकरण के लिए की जा रही है।

हरियाणा सरकार ने नई शिक्षा नीति के तहत अनेक कदम उठाए हैं जो सीधे तौर पर निजी क्षेत्र को प्रोत्साहित करने वाले हैं। दाखिले की प्रक्रिया में परिवार पहचान पत्र की अनिवार्यता समेत अनेक जटिलताएं खड़ी कर दी गईं जिसके चलते एक हज़ार से ज़्यादा स्कूलों में पहली कक्षा में एक भी छात्र प्रवेश नहीं ले पाया। कुल दाखिला संख्या में डेढ़ लाख से अधिक की कमी आई। इस बीच निजी स्कूल औपचारिकता की जटिलताओं के बिना दाखिले कर गए। इसके दूरगामी व बहुविध असर पड़ेंगे। छात्र संख्या घटने से तीस से कम बच्चों वाले स्कूल बंद कर दिए जाएंगे। आने वाले पाँच-सात वर्षों में माध्यमिक स्तर के स्कूलों में छात्र कम रह जाएंगे तो वे भी बंद होंगे और इस तरह कुछ सालों में सरकारी स्कूल ही नहीं बचेंगे। तब गरीब बच्चों को आंशिक मदद देने वाली योजनाएं भी बंद कर दिए जाने की आशंका है।"

इसके साथ ही कुछ और भी कदम उठाए जा रहे हैं जैसे पहली से बाहरवीं तक के एक गांव के सभी स्कूलों का विलय, पहली से आठवीं तक सहशिक्षा के नाम पर कन्या व सहशिक्षा विद्यालयों का विलय, तीस से कम छात्र संख्या वाले प्राथमिक और पचास से कम संख्या वाले माध्यमिक स्कूलों का विलय, 5 किलोमीटर के दायरे में आने वाले स्कूलों का विलय, नियमित भर्ती की बजाय रिटायर्ड टीचर्स को दोबारा रखना, अव्यावहारिक रेशनलाइजेशन के नाम पर पद समाप्त करना, मेवात में एनजीओ द्वारा ठेके पर अध्यापकों की भर्ती करना, तीन साल से किताबें ना देना, कौशल रोज़गार निगम से कच्ची भर्तियां, प्ले-स्कूल्स एनजीओज़ को देना, अध्यापकों से बीसियों तरह के गैर शैक्षणिक काम लेना, सरकारी स्कूलों में मूलभूत सुविधाएं-सफाई, बिजली, पानी, कंप्यूटर-प्रिंटर, ड्यूल-डैस्क उपलब्ध ना करवाना आदि। खेद का विषय है कि सरकारी डाइटस् में अध्यापकों का प्रशिक्षण बंद कर दिया गया है और निजी संस्थानों में जारी है।

भारती आगे कहते है, "स्कूलों के विलय से पहले राज्य मे 35 हज़ार पद खाली थे जो अब घटकर 14 हज़ार रह गए क्योंकि सरकार ने स्कूलों का विलय कर 20 हज़ार से अधिक पदों को समाप्त कर दिया है।

यही वे मुख्य कारण हैं जिस वजह से चिराग योजना को लेकर राज्य के छात्र-छात्राओं व शिक्षकों में भारी रोष है। शिक्षक संघ और छात्र संगठनों ने कहा कि वो आने वाले समय में सार्वजनिक शिक्षा और दूसरे ज्वलंत मुद्दों पर मज़दूर, किसान व अन्य मेहनतकश जनता को लामबंद करते हुए हरियाणा में निर्णायक आंदोलन करेंगे। वहीं शिक्षक संघ ने कहा कि वो परीक्षा के बाद अप्रैल मे शिक्षा मंत्री के घर के बाहर निश्चित ही धरना लागाएंगे। 

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