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हरियाणा : होंडा में मज़दूरों की छंटनी लगातार जारी, विरोध करने पर पुलिस तैनात

इस बार मानेसर स्थित होंडा कंपनी के प्लांट से 3 महीने के अंदर करीब ढाई हजार से ज्यादा अस्थायी मज़दूरों को निकाल दिया गया है। सोमवार को  ठेका मजदूरों की 'रिलीविंग' के लिए चिपकाए गए नोटिस के बाद जब मंगलवार सुबह मज़दूर काम के लिए कारखाने पहुंचे तो वहां पहले से ही बड़ी संख्या में पुलिस बल की मौजूदगी थी।
honda worker protest

हरियाणा में जहाँ हाल में विधानसभा चुनाव खत्म हुए हैं, वहां चुनाव के दौरान भी कई बड़ी कंपनियों में बड़े स्तर पर छंटनी हुई थी, इसका असर चुनावों में कुछ हद तक दिखा भी। 75 पार का नारा देने वाली बीजेपी अपने बूते सामान्य बहुमत के आकड़े से भी काफी दूर रह गई। हालांकि बाद में वो किसी तरह से गठबंधन सरकार बनाने में सफल हो गई। एक सच्चाई यह भी थी कि बेरोज़गारी और छंटनी का मुद्दा जिस प्रमुखता से इस चुनाव में होना चाहिए था, वो नहीं बन सका।  अब चुनाव खत्म हो गए हैं, लेकिन कंपनियों में छंटनी का सिलसिला रुकने का नाम नहीं ले रहा है।  मज़दूर इसको लेकर सड़कों पर हैं।

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इस बार मानेसर स्थित होंडा कंपनी के प्लांट से 3 महीने के अंदर करीब ढाई हजार से ज्यादा अस्थायी मज़दूरों को निकाल दिया गया है। सोमवार को  ठेका मजदूरों की 'रिलीविंग' के लिए चिपकाए गए नोटिस के बाद जब मंगलवार सुबह मज़दूर काम के लिए कारखाने पहुंचे तो वहां पहले से ही बड़ी संख्या में पुलिस बल की मौजूदगी थी। जिसके बाद मज़दूर गेट के बाहर ही धरने पर बैठ गए, अभी कारखाना परिसर के अंदर उत्पादन बंद है।

मज़दूरों ने मंगलवार को दिन भर भूख हड़ताल की। शाम को यूनियन नेताओं ने उन्हें खाना खिलाया। आज, बुधवार को केंद्रीय ट्रेड यूनियन और कंपनी की कर्मचारी यूनियन ने डीसी से मिलकर इस पूरे मामले को लेकर ज्ञापन दिया और इस मुद्दे को जल्द हल करने की अपील की। साथ ही ये चेतावनी भी दी गई कि अगर जल्द ही मज़दूरों को काम पर वापस नहीं लिया गया तो ये अंदोलन और उग्र हो सकता है।

ठेका मज़दूरों को पुलिस बल द्वारा कारखाने के अंदर जाने से रोक लिया गया जिसके विरोध में अन्य श्रमिक उत्पादन ठप कर कारखाना परिसर के अंदर बैठे हुए हैं।

मज़दूरों के अनुसार कंपनी पिछले कुछ समय से तरह-तरह के बहाने बनाकर, कभी मंदी का नाम लेकर तो कभी मानेसर प्लांट में होंडा मोटरसाइकिल एंड स्कूटर इंडिया के अन्य प्लांटों की तुलना में उत्पादन लागत ज्यादा होने का बहाना बनाकर, ठेका श्रमिकों की लगातार छंटनी कर रही है। मज़दूरों ने बताया कि पहले भी कंपनी लगभग 500 मज़दूर व अन्य कर्मचारियों को हटा चुकी है।

निकाले गए मज़दूरों का कहना है कि बिना किसी नोटिस के ही उन्हें बाहर कर दिया गया है। इसके विरोध में मज़दूर परिसर के अंदर ही धरने पर बैठ गए तो कुछ बाहर नारेबाजी कर रहे हैं। उनके मुताबिक, आर्थिक मंदी का कारण बताकर इन्हें बाहर निकाला गया है। जबकि इसी  कंपनी के तीन अन्य  प्लांट  में काम जारी है।  ये कर्मचारी-मज़दूर 10 साल से ज्यादा समय से होंडा के इस प्लांट में काम कर रहे थे।  
 

क्या है पूरा मामला ?

होंडा मानेसर में दसियों साल से काम करने वाले हजारों कर्मचारी-मज़दूरों को कम्पनी ने एक झटके में निकल दिया है। कंपनी के द्वारा नोटिस चिपका दिया गया है कि नवंबर, दिसंबर, जनवरी, फरवरी माह तक जिन श्रमिकों का 'रिलीविंग' होना था उनका नवंबर माह में कर दिया जा रहा है, वे अगले तीन माह तक घर बैठेंगे और इसके लिए मजदूरों का "सहयोग आपेक्षित है"।

ऑटोमोबाइल सेक्टर में तमाम मदर कंपनियां ठेका श्रमिकों से सालों साल काम कराती है और 7 या 11 महीने पर मज़दूरों की 'रिलीविंग' करती है। 'रिलीविंग' यानी ठेका पर काम करने वाले मज़दूरों का ठेका बदल दिया जाता है, ताकि सालों से काम कर रहे मज़दूरों को कागजों पर मात्र चंद महीनों से काम करता हुआ दिखलाया जा सके।

होंडा कंपनी सुकमा संस एंड एसोसिएट्स, कैसी इंटरप्राइजेज और कमल इंटरप्राइजेज नामक ठेका एजेंसियों के तले मजदूरों की भर्ती करती है। रिलिविंग के वक्त मज़दूरों की ठेका एजेंसी को बदल दिया जाता है यानी पिछले सत्र में जो मज़दूर कमल इंटरप्राइजेज का श्रमिक था अगले सत्र में कैसी या सुकमा संस एंड एसोसिएट्स का श्रमिक हो जाता है। इस तरह सालों साल तक मुख्य उत्पादन पट्टी पर स्थायी प्रकृति का काम कर रहे मज़दूर महज कुछ माह से काम करने वाले ठेका श्रमिक के तौर पर दिखाये जाते हैं।

कर्मचारी यूनियन ने बताया कि इस प्लांट से पिछले कई महीने से सालों से काम कर रहे मज़दूरों को इसी तरीके से रिलीविंग कर घर बैठा दिया जा रहा है, मज़दूरों को झूठा आश्वासन दिया जाता है कि जब काम दुबारा गति पकड़ेगा तो उन्हें दुबारा वापस काम पर बुलाया जाएगा। इस तरह छंटनी करने से पहले कारखाने के अंदर उनके काम की जगह को कई बार बदला जाता है ताकि निकाले गए मज़दूर संगठित होकर संघर्ष न छेड़ दें।  नोटिस चिपकाया जाने के अलावा ठेका श्रमिकों को उनके सुपरवाइजरों का धमकी भरा फोन किया जा रहा हैं कि 3 महीने की पगार पकड़ो और रास्ता नापो। इस नोटिस को देखने के बाद मज़दूर कारखाना परिसर में इकट्ठे होकर यूनियन व प्रबंधन के पास इस मसले को लेकर गए, किंतु अभी तक आगे की कोई स्थिति स्पष्ट नहीं है।  

आर्थिक मंदी के चलते पहले  देश की कई बड़ी ऑटोमोबाइल कंपनी ने कर्मचारियों की छंटनी की है। कुछ समय पहले  मारुति कंपनी से कर्मचारियों को निकाला था और अब होंडा ने भी वही रुख अपनाया जिन कर्मचारी-मज़दूरों को कंपनी से निकाला है अब उनके सामने अपने परिवार का पालन पोषण करने के लिए भी कुछ नहीं है।  

सीटू ने एक बयान जारी कर कहा कि मंदी के नाम पर होंडा प्लांट से  10-12 साल से कार्यरत कर्मचारियों को , गैर कानूनी ढंग से निकाला गया है और सीटू उसकी घोर निंदा करती है। इस बात को लेकर 1800 से ज्यादा वर्कर कंपनी के प्रशासनिक भवन के सामने जाकर अपने रोजगार को बचाने की गुहार लगा रहे थे, लेकिन कंपनी ने बड़ी तादाद में पुलिस बल को बुला लिया।

सीटू नेताओं ने आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विदेश दौरों पर हैं, वहीं हरियाणा सरकार अपने शपथ समारोह में तल्लीन है। उन्होंने आरोप लगाया कि भाजपा की आर्थिक नीतियों ने देश को बरबादी के कगार पर लाकर खड़ा किया है और रोजगार देना तो दूर, लोगों को बेरोजगार बनाया जा रहा है। होंडा की एक कंपनी से आज चार कंपनियां हो गई हैं, मगर मजदूरों का भविष्य अधर में लटक गया है।

ऑटोमोबाइल सेक्टर के कुल मजदूरों का करीब 85 से 90 फ़ीसदी हिस्सा ठेकेदारी प्रथा  के तहत काम कर रहे है। ठेका श्रमिक मुख्य उत्पादन पट्टी पर स्थायी प्रकृति का काम कारखाना प्रबंधन की देखरेख में करते हैं, लेकिन उनकी नियुक्ति करने व मज़दूरी देने की जिम्मेदारी ठेका एजेंसियों के पास होती है। कंपनी मजदूरों के प्रति तमाम जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लेती है और जब चाहे तब बड़ी आसानी से यह कहकर कि संबंधित ठेका एजेंसी से ठेका खत्म हो गया है मज़दूरों को निकाल बाहर फेंकती है।  इस मामले में भी यही हुआ हैं। आज सबसे ज्यादा हमला ठेका मजदूरों के ऊपर हो रहा है, जिसे बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।  

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