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2022 में ईसाइयों के खिलाफ बढ़े हेट क्राइम

धरने पर बैठे कार्यकर्ताओं के मुताबिक, लक्षित हमलों, कब्रिस्तानों की जगह को नकारने, और धमकियों के कारण लोगों को गांव छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा है, जिससे आदिवासी ईसाई समुदाय कई तरह से प्रभावित हुए हैं।
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फ़ोटो साभार: ट्विटर

नई दिल्ली: 19 फरवरी, 2023, रविवार की सुबह, कई ईसाई समूह जंतर-मंतर पर उस हिंसा का विरोध कर रहे थे जो उनके खिलाफ तेजी से बढ़ी है। उन्होंने कहा कि 2022 वह साल रहा जिसमें ईसाइयों के खिलाफ हिंसा और घृणाभरे की अपराध की घटनाएं चरम पर थीं।

छत्तीसगढ़ में इस साल नवंबर में होने वाले विधानसभा चुनाव के कारण, आदिवासी समूहों और मिशनरियों के बीच आदिवासी इलाकों के आसपास बहुत कुछ हो रहा है, जिन्होंने हाल ही में या कुछ साल पहले ईसाई धर्म को चुना था। लक्षित हमलों, कब्रिस्तानों को नकारने और धमकियों के कारण लोग गाँव छोड़कर चले गए हैं, जिससे समुदाय कई तरह से प्रभावित हुआ है। भय की भावना व्याप्त है क्योंकि समुदाय ने कहा कि उसे प्रशासन की ओर से कोई मदद नहीं मिली है।

नवंबर 2022 में एक दुर्घटना के बाद डेनियल के भाई का निधन हो गया। वह उत्तर बस्तर कांकेर जिले में रहते थे जहां वे एक छोटे सा कारोबार चलाते थे। उन्होंने न्यूज़सिल्क को बताया कि उनके भाई की मृत्यु के बाद, परिवार ने कब्रिस्तान न होने के कारण उन्हें अपने घर के सामने अपनी संपत्ति की दीवारों के भीतर दफनाने का फैसला किया।

लेकिन, गांव के कुछ गैर ईसाई लोगों को इससे दिक्कत हुई। “उन्होंने कहा कि अगर ऐसा होता है तो उनके देवी देवता (स्थानीय देवता) नाराज हो जाएंगे। इसलिए उन्होंने शुरू में हमें अंतिम संस्कार करने की अनुमति नहीं दी, डैनियल ने बताया और जब अनुमति दी तो परिणाम भयंकर हुआ।” उन्होंने आरोप लगाया कि उसी रात, एक भीड़ आई और उनके भाई के शव को उनके घर के सामने से खोदकर निकाल दिया और यह कहते हुए बाहर छोड़ दिया कि वे ईसाइयों को इस तरह से कार्य करने की अनुमति नहीं देंगे क्योंकि इससे उनकी आस्था प्रभावित हुई है।

पुलिस को बुलाया गया और शव को मुर्दाघर ले जाया गया। इसके बाद गतोका के जाने-माने सामाजिक कार्यकर्ता व चिकित्सक प्रदीप क्लैडियस ने कई अन्य लोगों के साथ कलेक्ट्रेट जाकर जिलाधिकारी से मुलाकात की. क्लैडियस के मुताबिक,“कलेक्टर वास्तव में अच्छे और मददगार निकले। उसने हमें आठ कब्रगाहों का वादा किया, जैसा कि हमने इलाके में मांग की थी, और कहा कि दिसंबर तक काम पूरा हो जाएगा।" जब वादा पूरा नहीं हुआ तो दिसंबर के मध्य में  क्लैडियस ने फिर से डीसी दफ्तर का दौरा किया और अपडेट मांगा। इस बार, इलाके को तहसीलदारों ने चिह्नित किया था। और अब, मिशनरी अपने मृतकों को दफनाने के लिएमिलने वाली ज़मीन मात्र कदम की दूरी पर थे।” 

“ग्राम पंचायतों की एनओसी न की जरूरत न होती तो अब तक हमारे पास कब्रिस्तान की  भूमि होती। कब्रिस्तान की ज़मीन के लिए हमें ग्राम पंचायतों से एनओसी की जरूरत पड़ती है। हालांकि, सभी पंचायतों ने इनकार कर दिया और कहा कि उन्हें हिंदू धर्म चुनना होगा। समुदाय द्वारा एकत्र किए गए आंकड़ों के अनुसार, कम से कम 23 अलग-अलग घटनाओं में, अकेले 2022 में ईसाइयों को कब्रिस्तान देने से इनकार कर दिया गया था। 

समुदाय के सदस्यों ने आरोप लगाया कि इस तरह के हमलों की प्रकृति हाल के दिनों में बदल गई है। जॉन दयाल, राजधानी स्थित वरिष्ठ पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता, जो पिछले दो दशकों से ईसाइयों के सामने आने वाले मुद्दों पर काम कर रहे हैं, ने न्यूज़क्लिक को बताया कि: "(हमलों की) प्रकृति निश्चित रूप से बदल गई है। और ज्यादातर 2022 तक इसमें बड़ा बदलाव आया है, क्योंकि यह हमारे लिए सबसे विनाशकारी साल था। मैं यह सोचे बिना नहीं रह सकता कि यह सब 2024 के चुनावों के लिए किया जा रहा है। मैं ईसाइयों के साथ भी उसी किस्म का भेदभाव और हमले देख रहा हूं, जैसा कि मुसलमानों के साथ देखता हूं। आधुनिक समय में लक्ष्य हिंसा से अधिक भय है।

युनाइटेड क्रिश्चियन फोरम (यूसीएफ) द्वारा एकत्रित पिछले पांच वर्षों के आंकड़ों के अनुसार, ईसाइयों पर हमलों में "नाटकीय रूप से" वृद्धि हुई है। 2014 की तुलना में घटनाओं में 400 प्रतिशत की तीव्र वृद्धि हुई है यानि 2014 की 147 घटनाओं से 2022 में बढ़कर 598 घटनाएँ हुई हैं। 2018 में हमले की 292 घटनाएं दर्ज की गईं थी और 2019 में 328 घटनाएं दर्ज की गईं। कोविड के कारण देशभर में लगे लॉकडाउन की वजह से 2020 में संख्या घटकर 279 हो गई थी। रिपोर्ट की गई घटनाओं की संख्या 2021 में दोगुनी होकर 505 हो गई थी।

2022 में, ईसाइयों के खिलाफ घृणाभरे अपराधों की सबसे अधिक घटनाएं भारतीय जनता पार्टी शासित उत्तर प्रदेश में हुईं, यहां ऐसी कुल घटनाओं की संख्या 334 थी। अगर कोई जनसंख्या की गतिशीलता और वास्तविक संख्या को प्रकट करने वाले आंकड़ों को देखे तो 'दूसरे पक्ष के शामिल होने' या 'धर्मांतरण के डर' की कहानी यहां किसी भी तरह से फिट नहीं बैठती है। उत्तर प्रदेश की कुल जनसंख्या में ईसाइयों की संख्या मात्र 0.18 प्रतिशत है, जो 1 प्रतिशत से भी कम है। न केवल यहां, बल्कि उत्तर पूर्वी राज्यों और दक्षिण में केरल को छोड़कर, 2023 में इस डेटा को एकत्र और जारी करने वाले एक स्वतंत्र संगठन, FIACONA के अनुसार, संख्या 5 प्रतिशत से कम है।

धरने पर पैठे कई लोगों ने कहा कि घृणाभरे अपराधों का लगभग सभी राज्यों में भय पैदा करने का एक जैसा पैटर्न रहा है, लेकिन यह वहीं तक सीमित नहीं रहा है। हिंसा और हत्याओं की भी प्रमुख भूमिका होती है। कुल मिलाकर, 2022 में तीन ईसाई मारे गए और 321 पर शारीरिक हमला किए गए और कई अकेले घायल हुए।

2022 में एक ईसाई पादरी की पहली हत्या 17 मार्च को छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले में हुई थी। पुलिस सूत्रों के अनुसार, पादरी यल्लम शंकर को 50 नकाबपोश लोगों की भीड़ ने तब चाकू मार दिया था, जब वे घर में खाना खा रहे थे। यह हमला तब हुआ जब होलिका दहन (बुराई पर अच्छाई का उत्सव) का हिंदू त्योहार अंगमपल्ली गांव में मनाया जा रहा था, जहां पादरी शंकर रहते थे। 

ध्यान देने वाली बात यह है कि पादरी बनने से पहले, यल्लम गाँव के मुखिया रह चुके थे।  उस दौरान, वे ईसाइयों के अधिकारों के प्रति काफी मुखर थे। रिटायर होने के बाद उन्हें जान से मारने की कई धमकियां मिलीं। हिंदू राष्ट्रवादी नेताओं ने मांग की कि वह अपना ईसाई धर्म छोड़ दें और ईसाइयों का समर्थन करना बंद कर दें। कार्यकर्ताओं ने कहा कि जब ऐसा नहीं हुआ तो उसकी चाकू मारकर हत्या कर दी गई।

पादरी यल्लम की हत्या के अगले दिन, स्थानीय पुलिस ने दावा किया कि पादरी का कत्ल संदिग्ध माओवादी ने किया है। पुलिस ने कहा कि माओवादियों को उस पर पुलिस का मुखबिर होने का शक था। उन्होंने कथित तौर पर हत्यारों द्वारा पादरी की हत्या करने के कारण बताते हुए एक हस्तलिखित नोट भी जारी किया। कुछ प्रदर्शनकारियों ने कहा कि कुछ विरोधाभासी विवरणों और हिंदू राष्ट्रवादी नेताओं से वास्तविक खतरे को पूरी तरह से नकारने के अलावा यह एक बहुत ही ठोस तर्क था।

रविवार के विरोध प्रदर्शन में वक्ता और कार्यकर्ता देश भर के विभिन्न राज्यों से आए थे। उन्होंने हाल के दिनों में समुदाय के सामने आने वाली समस्याओं को साझा किया और सरकार और देश से एकजुटता और समर्थन का आह्वान किया।

यूनाइटेड क्रिश्चियन फोरम के अध्यक्ष माइकल विलियम ने कहा: "आज, हम जंतर-मंतर पर शांतिपूर्वक एकत्र हुए हैं क्योंकि हम अपने साथी नागरिकों की पीड़ा को साझा करना चाहते हैं जो छत्तीसगढ़, झारखंड, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक राज्यों और कई अन्य जगहों पर जहां उनके मूल मौलिक अधिकारों को छीना जा रहा है।”

उन्होंने कहा कि 2022 के लगभग सभी दिनों में, भारत के कुछ हिस्सों में ईसाई समुदाय के खिलाफ लगाटार घृणाभरे अपराध की घटनाएं देखी गईं। इबादत स्थलों को तोड़ दिया गया, इबादत बंद कर दी गई, पादरियों को पीटा गया और परिवारों को गांवों से निकाल दिया गया।

2022 के साल में कम से कम 75 गाँवों से 281 ईसाइयों को गांवों से निकाल दिया गया।  दुनिया भर में ईसाइयों के लिए सबसे बड़े त्योहार क्रिसमस से पहले, छत्तीसगढ़ में इसाई समुदाय के घरों को निशाना बनाया और हमले हुए। छत्तीसगढ़ क्रिश्चियन फोरम के अनुसार, गांव से निकाली गई महिलाओं सहित सौ से अधिक लोगों ने नारायणपुर के एक स्टेडियम में शरण ली थी, जबकि कई अन्य लोगों को चर्च सहित अन्य स्थानों पर ठहराया गया था।

ईसाई समुदाय के सदस्यों ने कहा कि उन्होंने मदद मांगने के लिए अधिकारियों से संपर्क करने में कभी संकोच नहीं किया। हालांकि, FIACONA की रिपोर्ट के आंकड़ों के अनुसार, 2022 के दौरान ऐसी 11 घटनाओं में, पुलिस द्वारा विभिन्न आधारों पर प्राथमिकी दर्ज करने से इनकार किया गया था।

कुछ स्थानीय पत्रकारों, जिनसे न्यूज़क्लिक ने छत्तीसगढ़ में बात की, ने बताया कि कैसे अधिकांश मुख्यधारा और वैकल्पिक मीडिया ईसाइयों के सामने आने वाले मुद्दों की उपेक्षा करते हैं। उन्होंने यह भी संकेत दिया कि ऐसी घटनाओं में वृद्धि हुई है, और उनमें से लगभग सभी को रिपोर्ट नहीं किया जाता है। 

ताजा घटना में इसी गांव आमाबेड़ा में एक दुर्घटना के बाद एक पादरी को मृत घोषित कर दिया गया था। जब परिवार ने अपने ही परिसर में शव को दफनाने की कोशिश की, तो उन्हें घंटों तक ऐसा करने की अनुमति नहीं दी गई और पुलिस की मौजूदगी के बाद ही शव का अंतिम संस्कार करने दिया गया।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

Hate Crime Against Christians ‘Peaked’ in 2022; Groups, Activists Hold Protest

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