हाथरस कांड का एक साल: बेटी की अस्थियां लिए अब भी न्याय के इंतज़ार में है दलित परिवार
"यूपी में जितने भी रेप के मामले हैं उन्हें फास्ट ट्रैक कोर्ट में पन्द्रह से एक महीने के भीतर निपटाया जाएगा" ये वादा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने दो साल पहले किया था। लेकिन बहुचर्चित हाथरस कांड की बलात्कार पीड़ित युवती की मौत को 29 सितंबर को एक साल पूरा हो रहा है, मगर अभी तक उसका परिवार न्याय के लिए लड़ाई लड़ रहा है। यहां तक कि परिवार ने अपनी बेटी की अस्थियां अभी तक सम्भाल कर रखी हुई हैं, वे कहते हैं जब तक न्याय नहीं मिलेगा, वे अस्थियों का विसर्जन नहीं करेंगे। न्याय मिलने में देरी भले हो रही हो लेकिन याद कीजिए यूपी सरकार की पुलिस ने लड़की का अंतिम संस्कार करने में कोई देर नहीं लगाई थी, परिवार को शव सौंपने के बजाए आधी रात में ही आनन-फानन में जला डाला था।
जब दूसरी निर्भया की कहानी सामने आई ......
इस सामूहिक बलात्कार और हत्याकांड को भला कौन भूल सकता है जब इस कांड की गूंज न केवल उत्तर प्रदेश बल्कि पूरे देश में सुनाई दी थी। हाथरस जिले के चंदपा थाना क्षेत्र के एक गांव में बीते 14 सितंबर 2020 को अनुसूचित जाति की एक लड़की के साथ इस जघन्य वारदात को अंजाम दिया गया था। कथित तौर पर ऊंची जाति के चार युवकों ने गैंगरेप किया और उसे एक खेत में ही खून से लथपथ छोड़कर भाग गए। पीड़िता खेत में घास लेने गई हुई थी। उसकी गर्दन और प्राइवेट पार्ट्स पर गंभीर चोटें पाई गईं थीं। गला दबाने के क्रम में उसकी जीभ भी कट चुकी थी। अलीगढ़ के एक अस्पताल के बाद पीड़िता को दिल्ली ले जाया गया था।
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11 दिन बाद, दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में आखिरकार उसकी मौत हो गई। इसके बाद पुलिस और प्रशासन ने आनन-फानन में आधी रात को ही मृतका के शव का अंतिम संस्कार कर दिया। गैंगरेप और हत्या का आरोप उसी गांव के चार युवकों लवकुश, संदीप, रामू और रवि पर है। 22 सितम्बर को पीड़ित परिवार ने पुलिस को फोन करके बताया कि वो चाहते हैं कि पीड़िता का बयान दर्ज हो. पुलिस की टीम जब बयान लेने पहुंची तो पीड़िता ने बताया कि उसके साथ 4 लड़कों जिनमे संदीप, लवकुश, रवि और रामू ने गैंगरेप किया है और संदीप गला दबाकर भाग गया. जब पुलिस ने पीड़िता से पूछा कि ये बात आपने पहले क्यों नही बताई तो पीड़िता ने कहा कि उस वक़्त पूरे होश में नहीं थी. इसके बाद पुलिस ने तुरंत गैंगरेप की धारा जोड़कर 26 सितंबर से पहले ही सभी आरोपियो को गिरफ्तार कर लिया.
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इस मामले ने इतना तूल पकड़ा कि देशभर में विरोध प्रदर्शन होने लगा। आखिरकार विपक्ष की घेराबंदी और लोगों का आक्रोश देख सीएम योगी ने एसआईटी का गठन कर इस मामले की जांच सौंप दी। लेकिन इससे भी बात नहीं बनी तो सीबीआई को जांच सौंपी गई। सीबीआई ने 67 दिन बाद चारों आरोपियाें के खिलाफ एससी-एसटी एक्ट की विशेष अदालत में आरोप पत्र दाखिल किया था। धारा 302, 376, 376 ए, 376 डी, और ,3(2)(5) एससी, एसटी एक्ट के तहत आरोपपत्र दाखिल किया गया। पीड़िता की मौत के बाद दो मामले दर्ज किए गए थे, उनकी सुनवाई इलाहाबाद हाईकोर्ट और हाथरस में एससी/एसटी अदालत कर रही है।
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उच्च न्यायालय में, विशेष जांच दल ने अभी तक जबरन दाह संस्कार पर एक भी रिपोर्ट पेश नहीं की है, एससी/एसटी कोर्ट रेप-हत्या मामले की सुनवाई कर रही है। इस पूरे मामले में उत्तर प्रदेश पुलिस का चाल, चरित्र, चेहरा एक बार फिर उजागर हुआ, जब उसने अपनी जांच के बाद कहा कि बलात्कार हुआ है, इस सम्बन्ध में कोई सबूत नहीं मिला है, जबकि सीबीआई ने अपनी जांच रिपोर्ट में यह साफ किया है कि बलात्कार हुआ है।
जातीय हिंसा का ख़ौफ़ बता जब सरकार ने कराई आनन फानन में अंत्येष्टि
परिवार वालों को शव सौंपने के बजाए पुलिस द्वारा चुपके से आधी रात अंतिम संस्कार करने का मामला कभी सामने नहीं आता, यदि इस कृत्य का वीडियो वायरल न होता। इस मामले में चारों ओर से घिर चुकी उत्तर प्रदेश सरकार ने तब सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर स्वयं को बचाते हुए यह बताया कि आखिर उसे आधी रात में ही अंत्येष्टि करने का निर्णय क्यूं लेना पड़ा। इस हलफनामे में यूपी सरकार ने विपक्ष पर जातीय दंगा फैलाने का आरोप लगाया।
यूपी सरकार के हलफनामे में बड़ा दावा किया गया कि परिवार की मंजूरी के बाद और हिंसा से बचने के लिए आधी रात में पीड़िता का अंतिम संस्कार किया गया था।
अपने हलफनामे में यूपी सरकार ने अयोध्या-बाबरी केस के कारण जिलों को हाई अलर्ट पर रखने और कोरोना की वजह से भीड़ न इकट्ठा होने देने का भी जिक्र किया। यूपी सरकार का कहना था कि अयोध्या-बाबरी केस में आए फैसले की संवेदनशीलता और कोरोना के मद्देनजर परिवार की मंजूरी से पीड़िता का रात में अंतिम संस्कार किया गया।
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इस हलफनामे में सरकार का कहना है कि 14 सितंबर को पुलिस को सूचना मिलने पर पुलिस ने मामला दर्ज करके तत्काल कदम उठाया। सरकार ने कहा कि इस मुद्दे का उपयोग करते हुए जाति और सांप्रदायिक दंगों को भड़काने के लिए राजनीतिक दलों के कुछ वर्ग, सोशल मीडिया, कुछ वर्गों के प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया ने जानबूझकर और सुनियोजित प्रयास किए। सरकार के मुताबिक खुफिया एजेंसियों के पास इनपुट थे कि इस मुद्दे को लेकर सुबह बड़े स्तर पर हिंसा कराने की तैयारी की जा रही है। अगर सुबह तक इंतजार करते तो स्थिति अनियंत्रित हो सकती थी, इसलिए रात में ही अंतिम संस्कार कर दिया गया।
मतलब सरकार ने अपने हलफनामे में यह बात रखी कि परिवार की मंजूरी के बाद ही मृतका का अंतिम संस्कार किया गया, दूसरी ओर परिवार की तरफ से यह बात स्पष्ट तौर सामने आई कि उन्होंने ऐसी कोई मंजूरी नहीं दी थी बल्कि वे तो अपनी डेड बॉडी मिलने का इंतजार कर रहे थे। और सहमति तो अलग ये किसी पार्थिव शरीर का अंतिम संस्कार जैसा संस्कार भी नहीं था, बल्कि आरोप है कि जल्दबाजी में तेल-पेट्रोल इत्यादि डालकर शव जला दिया गया।
कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि सुप्रीम कोर्ट को संतुष्ट करने के लिए सरकार ने ऐसा हलफनामा दाखिल किया, क्योंंकि पुलिस द्वारा आधी रात में किए गए अंतिम संस्कार के बाद तब सुप्रीम कोर्ट को यह कहना पड़ा था कि यह किसी के मौलिक अधिकारों का हनन है।
आज भी डर के साए में है परिवार......
इस घटना की गंभीरता को इसी बात से समझा जा सकता है कि 1 साल बाद भी पीड़िता के परिवार को सीआरपीएफ के साए में रहना पड़ रहा है। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक पीड़िता के भाई ने कहा "यहां घुटन होती है, हमसे कोई बात नहीं करता, हमारे साथ गुनहगारों जैसा बर्ताव हो रहा है...मुझे पता है कि सीआरपीएफ के जाते ही वो (दबंग) हम पर हमला करेंगे, मेरी तीन छोटी-छोटी बेटियां हैं और उनकी सुरक्षा को लेकर परेशान हूं", तो वहीं मृतका के पिता ने कहा "गांव में उनका घर 70-80 साल पुराना है और उसे छोड़कर जाना मुमकिन नहीं है.’’ उन्होंने आगे कहा, “इस जगह को छोड़ना आसान नहीं है. हम चाहते हैं कि लोग हमें स्वीकार करें. हमने क्या गलत किया है? हम न तो मंदिर जा सकते हैं और न ही बाज़ार, हमें घर पर ही कैद रहना होता है, प्रार्थना करते हैं कि अदालत जल्द फैसला दे”।
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लड़की के भाई ने घटना के बाद गांव में अपने परिवार के प्रति ग्रामीणों के बदले व्यवहार के बारे में भी अखबार को बताया, उन्होंने कहा, "मैंने आरोपियों के परिवारों को कारों में जाते देखा है उनके साथ ऑटो रिक्शा और जीप में अन्य ग्रामीणों का काफिला चलता है जब वे अदालत जाते हैं या जेल में आरोपियों से मिलने जाते हैं तो उनके साथ आधा गांव होता है, लेकिन हमारे साथ कोई नहीं।
वादे अभी तक नहीं हुए पूरे.......सरकार ने दिया इसका तर्क......
पूरे देश में जब इस मामले ने तूल पकड़ा तो आखिरकार मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को भी एक्शन में आना पड़ा। मृतका के पिता से वीडियो कॉलिंग के जरिए बात करके दोषियों के ख़िलाफ़ जल्द से जल्द सख्त कार्रवाई करने का आश्वासन दिया। यहां तक कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इस मामले का संज्ञान लेते हुए योगी से बात की थी। देश को कुछ तसल्ली हुई, यह माना गया इस मामले में उत्तर प्रदेश सरकार एक नज़ीर पेश करेगी पर हुआ इसके उलट।
मुख्यमंत्री ने पीड़िता के परिवार को 25 लाख रुपये मुआवजा देने का ऐलान किया, इसी के साथ कनिष्ठ सहायक पद पर परिवार के एक सदस्य को नौकरी और हाथरस शहर में ही एक घर के आवंटन की घोषणा भी की गई। मुख्यमंत्री की यह घोषणा अख़बारों की सुर्खियां बनी, पर हुआ यह कि मुआवजा तो परिवार को मिला लेकिन नौकरी और घर का वादा अभी तक सरकार ने पूरा नहीं किया। ये वादे केवल सुर्खियां ही बनकर रह गए।
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वहीं दूसरी ओर इस मामले में जब इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सरकार से पीड़िता के परिवार को राहत और मुआवजा देने संबंधी जानकारी मांगी तो पिछले दिनों इस पर उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से कोर्ट में यह हलफनामा दाखिल किया गया कि आखिर उसने पीड़िता के परिवार को घर और नौकरी देने का अपना वादा पूरा क्यूं नहीं किया।
अदालत के समक्ष पेश हुए एमिकस क्यूरी जयदीप नारायण माथुर और अधिवक्ता सीमा कुशवाहा (पीड़ित परिवार के लिए वकील) ने प्रस्तुत किया कि राज्य की ओर से दायर हलफनामे में कहा गया है कि पीड़ित के परिवार को घर, कृषि भूमि से इसलिए वंचित कर दिया गया क्योंकि परिवार के पास पहले से ही एक घर और जमीन थी और नौकरी इसलिए नहीं दी गई क्योंकि लड़की खुद अपने पिता पर निर्भर थी।
राज्य ने स्वीकार किया कि उसने पीड़ित के परिवार को 25 लाख दिए हैं, जिसे वकील ने भी रिकॉर्ड पर स्वीकार कर लिया था। हालांकि, यह बताया गया कि मृतक के परिवार के सदस्य को न तो घर और न ही रोजगार प्रदान किया गया। यह भी बताया कि एससी/ एसटी मामलों के तहत दी जाने वाली प्रतिमाह पांच हजार की पेंशन भी परिवार को नहीं दी जा रही।
कुल मिलाकर सरकार का यह तर्क है कि घर इसलिए नहीं दिया गया क्योंंकि उनके पास पहले से ही घर और कृषि योग्य भूमि है और नौकरी या पेंशन इसलिए नहीं दी जा रही, क्योंंकि लड़की खुद अपने पिता पर निर्भर थी, नौकरी उस मामले में दी जाती है जहां घर के कमाने वाले की जीवन क्षति हुई हो। कुल मिलाकर योगी सरकार के इस तर्क से हम यही मतलब निकाल सकते हैं कि तब जनता के भारी आक्रोश के समक्ष अपनी छवि बनाए रखने के लिए भारी भरकम वादे तो किए गए लेकिन दिल में कुछ और जुबां पर कुछ और जगजाहिर हो ही गया। बहरहाल सरकार के इस हलफनामे पर पीड़ित परिवार को 22 अक्टूबर तक जवाब देने को कहा गया है।
मुख्यमंत्री जी काग़ज़ी वादे नहीं, ठोस कार्रवाई कीजिए
हाथरस कांड के बाद पीड़िता को न्याय दिलाने की लड़ाई में आंदोलनरत रहते हुए महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले महिला संगठन ‘’अखिल भारतीय प्रगतिशील महिला एसोसिएशन (AIPWA)’’ की राज्य सचिव कुसुम वर्मा इस बाबत कहती हैं "यही तो इस सरकार का दोहरा चरित्र है कहती कुछ है और करती कुछ है, एक तरफ मुख्यमंत्री वादा करते हैं कि बलात्कार के मामलों का फर्स्ट ट्रैक कोर्ट में एक महीने के भीतर निपटारा करवाया जाएगा, लेकिन जब हाथरस जैसे बहुचर्चित कांड का निपटारा अभी तक नहीं हुआ तो जरा सोचिए बाकी मामलों में न्याय का हाल क्या होगा, मुख्यमंत्री के सारे दावे महज कागजी हैं और देख लीजिए पीड़ित परिवार को राहत देने का उनका वादा भी अधर पर ही लटका हुआ है। आज भी राज्य में अपराधी और बलात्कारी नहीं बल्कि महिलाएं ही डर के साए में जी रही हैं।’’
वे आगे कहती हैं ‘’महिलाओं के बीच मिशन शक्ति जैसे सरकारी कार्यक्रम चलाने या स्कूली छात्राओं के लिए धनराशि वितरित करने से ज्यादा महत्वपूर्ण है कि योगी जी अपने राज्य की बहन बेटियों की सुरक्षा की गारंटी सुनिश्चित करें और तमाम बलात्कार और बलात्कार के बाद हत्या करने जैसे संगीन मामलों का निपटारा त्वरित अदालतों में करवाने की व्यवस्था करें।’’
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राज्य में बढ़ती महिला यौन हिंसा पर बोलते हुए एपवा की राज्य अध्यक्ष कृष्णा अधिकारी कहती हैं "यह हम नहीं कहते बल्कि गृह मंत्रालय के तहत काम करने वाली नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट कहती है कि महिला यौन हिंसा के मामले में राजस्थान के बाद उत्तर प्रदेश दूसरे नंबर पर है। आंकड़े झूठ नहीं बोलते पर योगी जी के मुताबिक तो उनके राज में बलात्कारी, अपराधी डर के साए में हैं, जबकि महिलाएं, छात्राएं, बच्चियां बिल्कुल महफूज हैं, यदि ऐसा है तो हम मुख्यमंत्री जी से पूछना चाहते हैं कि आए दिन यूपी के विभिन्न जिलों से जो महिलाएं , बच्चियों, स्कूली छात्राओं की रेप और हत्या की घटनाएं सामने आ रही हैं तो क्या वे आपके राज्य की बेटियां नहीं?"
इस घटना को लेकर ऐपवा, एडवा, एआईडीएमएएम, अनहद आदि संगठनों ने 29 सितम्बर को, विभिन्न तरीकों से, सोशल मीडिया के जरिए, सड़क पर उतरकर, मुख्यमंत्री के नाम ज्ञापन देकर, आंदोलन की तैयारी की है। जिसकी धमक लखनऊ से दिल्ली तक रहेगी।
आज़ाद समाज पार्टी ने सरकार को दिया अल्टीमेटम…
आजाद समाज पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष चंद्रशेखर आजाद ने उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार को हाथरस बलात्कार पीड़िता के परिवार से किए अपने सभी वादों को दस दिन में पूरा करने की चेतावनी दी है और ऐसा न होने पर वह अलीगढ़ के आयुक्त कार्यालय पर अनिश्चितकालीन धरना देंगे। पिछले दिनों हाथरस में बलात्कार कांड की पीड़िता के परिवार से मिलने आए आजाद ने कहा, “मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का एक साल पहले पीड़ित परिवार को नौकरी और आवास और आर्थिक सहायता प्रदान करने का वादा अब तक पूरा न होना परिवार के साथ एक क्रूर मजाक है।"
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पत्रकारों से बात करते हुए, आजाद ने कहा कि उन्होंने अलीगढ़ के मंडलायुक्त गौरव दयाल के साथ इस मामले में मुलाकात की और उन्होंने आश्वासन दिया कि पीड़ित परिवार को एक सप्ताह के भीतर सहायता प्रदान की जाएगी।"
आजाद ने कहा, "अगर इन आश्वासनों को पूरा नहीं किया गया और हाथरस बलात्कार पीड़िता के परिवार को न्याय नहीं दिया गया तो हम दस दिनों के बाद अलीगढ़ आयुक्त कार्यालय में अनिश्चितकालीन धरना शुरू करेंगे।"
हाथरस बलात्कार मामले ने एक बार फिर तूल पकड़ लिया है। राज्य में विधानसभा चुनाव नजदीक हैं जाहिर सी बात है ऐसे नाजुक मौके पर हाथरस कांड का पुनः तूल पकड़ना योगी सरकार के लिए कड़ी चुनौती पेश कर सकता है। फिलहाल सरकार ने अपना बचाव करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट में इस बाबत भले ही यह हलफनामा दाखिल कर दिया हो कि आखिर उसने, घर और नौकरी देने वाले अपने वादों पर अमल क्यों नहीं किया, लेकिन सरकार से अब सीधा सवाल यही है कि यदि उसके पास वादे पूरे न कर पाने के तर्क थे तो तब उसने जनता के समक्ष इतना झूठा प्रचार क्यों किया?
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