ऊंची लागत, ख़राब हालात : ग्रामीण सड़कों और हाइवे की कहानी
प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने देश के बुनियादी ढांचे जैसे सड़क, पुल, रेलवे लाइन आदि के निर्माण के प्रति अपनी प्रतिबद्धता के बारे में बार-बार जोर दिया है। समय-समय पर प्रधानमंत्री यहां-वहां एक्सप्रेस-वे तथा पुल आदि का उद्घाटन करते नजर आते हैं। बड़े पैमाने पर निर्माण परियोजनाओं की घोषणाएँ होती रहती हैं, खासकर चुनाव के समय यह अधिक होने लगती हैं। लेकिन हाल की दो रिपोर्टों से पता चलता है कि लक्ष्य काफी पीछे छूट गया है क्योंकि लागत में भारी वृद्धि हुई है, योजनाएँ गलत बनी और उससे अव्यवस्था की जो तस्वीर सामने आई है वह इस धारणा के बिल्कुल विपरीत है कि सरकार कुशलतापूर्वक देश का जरूरी बुनियादी ढाँचा तैयार कर रही है।
एक केंद्र सरकार की भारतमाला परियोजना पर भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (सीएजी) द्वारा हाल ही में जारी की गई काम की रिपोर्ट के मुताबिक, 2017 और 2022 के बीच लगभग 35,000 किलोमीटर के आर्थिक गलियारे, राष्ट्रीय राजमार्ग, सीमा सड़कें, तटीय राजमार्ग और कनेक्टेड फीडर रोड नेटवर्क का निर्माण करना था। दूसरी रिपोर्ट ग्रामीण विकास और पंचायती राज पर संसदीय स्थायी समिति की प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (पीएमजीएसवाई) पर है, जो आवास और जरूरी सेवाओं को जोड़ने वाली ग्रामीण सड़कों के निर्माण का एक कार्यक्रम है। निस्संदेह, दोनों प्रकार की सड़कें आर्थिक विकास के साथ-साथ लोगों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार लाने के लिए जरूरी हैं। लेकिन उनका भाग्य - जैसा कि इन आधिकारिक रिपोर्टों से पता चलता है - परेशान करने वाला नहीं तो प्रेरणाहीन तो है। चलो देखते हैं कैसे।
हाइवे जो कहीं जाते नज़र नहीं आते हैं?
सीएजी रिपोर्ट (2023 की संख्या 19) में कहा गया है कि भारतमाला परियोजना के पहले चरण का लक्ष्य 34,800 किलोमीटर सड़कों का निर्माण करना था। इसे आर्थिक मामलों की कैबिनेट समिति (सीईए) समिति ने मंजूरी दी थी, जिसकी अध्यक्षता प्रधानमंत्री खुद करते हैं, और इसमें शीर्ष रैंक के कैबिनेट मंत्री शामिल थे। इसकी मंजूर की गई अनुमानित लागत 5.35 लाख करोड़ रुपये आंकी गई थी। लेकिन, मार्च 2023 तक, वास्तव में केवल 26,316 किलोमीटर राजमार्ग को मंजूरी दी गई थी और उसमें से केवल 13,499 किलोमीटर ही पूरा हो पाया है। यह मूल सीसीईए लक्ष्य का केवल 38.79 प्रतिशत है। (नीचे चार्ट देखें)
यही सब कुछ नहीं हैं। कैग का यह भी कहना है कि 8.47 लाख करोड़ रुपये से अधिक की मंजूरी पहले ही दी जा चुकी है। (ऊपर देखें) यह 58 प्रतिशत की लागत की आश्चर्यजनक वृद्धि है। दूसरे शब्दों में कहें तो लागत मूल रूप से 15.37 करोड़ रुपये प्रति किलोमीटर आंकी गई थी लेकिन अब यह बढ़कर 32.17 करोड़ रुपये प्रति किलोमीटर हो गई है।
स्पष्ट है कि पूरा प्रोजेक्ट गंभीर रूप से पिछड़ रहा है। इसे सितंबर 2022 तक पूरा हो जाना था, लेकिन छह महीने बाद भी इसके मात्र 40 प्रतिशत पूरा होने की सूचना है, जबकि पहले से ही भारी लागत बढ़ गई है।
ऐसा क्यों हुआ होगा इसका कुछ अंदाज़ा सीएजी द्वारा की गई विभिन्न टिप्पणियों से लगाया जा सकता है। रुचि रखने वाले, विस्तृत रिपोर्ट का अध्ययन सीएजी वेबसाइट पर कर सकते हैं। यहां कुछ मुख्य बिंदु दिए गए हैं, जिन्हे पढ़ने से चिंता पैदा होती है और उस महान कार्यकुशलता पर सवाल उठते हैं जिसका यह सरकार अक्सर दावा करती है:
* जो परियोजनाएं पहले वन मंजूरी या रास्ते के अधिकार विवादों के कारण अटकी हुई थीं, उन मुद्दों का समाधान किए बिना उन्हे फिर से भारतमाला परियोजना में शामिल कर लिया गया।
* अनुकूलन अभ्यास के दौरान, सड़क की लंबाई को जोड़ने और इधर-उधर स्थानांतरित करने से बहुत अधिक कटौती और बदलाव हुआ है। सीएजी ने सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय को फटकार लगाई और कहा कि "मंत्रालय को भविष्य में इस पैमाने की योजना का प्रस्ताव करने से पहले सटीक जमीनी स्तर के आंकड़ों के आधार पर गहन विश्लेषण करना चाहिए।"
* भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) ने बिना किसी "तर्कसंगत, व्यवस्थित और संहिताबद्ध पद्धति" के काम को प्राथमिकता दी है। विभिन्न प्राथमिकताओं के अंतर्गत आने वाली परियोजनाओं को अवार्ड करने और उनका निर्माण करने के लिए कोई समयसीमा तय नहीं की गई थी। कुछ मामलों में, परियोजनाएं "कम लागत-लाभ के अध्ययन" या "विस्तृत परियोजना रिपोर्ट तैयार किए बिना" विकसित की गईं हैं।
* परियोजनाओं के दायरे, लागत अनुमान और "समृद्ध परियोजना विनिर्देशों" में "महत्वपूर्ण बदलाव" के कारण लागत बढ़ गई है। दूसरा कारण यह था कि निजी क्षेत्र की अपेक्षित भागीदारी नहीं हो पाई थी।
* परियोजनाओं को अवार्ड करने के लिए मूल्यांकन और अनुमोदन प्रणाली में कई कमियां थीं, जिसके कारण कुछ प्रमुख परियोजनाओं (जैसे दिल्ली-वडोदरा एक्सप्रेसवे) का मूल्यांकन सीसीईए या मंत्रालय द्वारा नहीं किया गया था। कुछ मामलों में तो निर्धारित तंत्र का पालन भी नहीं किया गया है।
* सक्षम प्राधिकारी ने कई मामलों में विस्तृत परियोजना रिपोर्ट का मूल्यांकन नहीं किया। परियोजनाओं को लागू करने वाली एजेंसियों द्वारा आवंटन में अनियमितताओं के मामले पाए गए हैं, जो निविदा की निर्धारित प्रक्रियाओं का स्पष्ट उल्लंघन दर्शाते हैं।
* कई परियोजनाएं तो बिना पर्यावरण की मंजूरी के ही शुरू कर दी गई थीं।
सीएजी ने जो महत्वपूर्ण तथ्य पाया वह यह कि "दुर्घटना में कमी, वाहन चलाने में आराम और यूजर्स संतुष्टि इत्यादि जैसे पैमाने से संबंधित मापदंडों की उपलब्धि को लक्ष्य नहीं बनया गया था।" नतीजतन, रिपोर्ट कहती है कि, इन नतीजों के मापदंडों के मुकाबले बीपीपी-आई परियोजनाओं और योजनाओं के विकास के लाभों को वेरिफ़ाई नहीं किया गया।
संक्षेप में, यह बहुत ही बड़ी और महंगी गड़बड़ी है लेकिन फिर भी, इसे सरकार के स्पिन-मास्टर्स द्वारा एक बड़ी उपलब्धि के रूप में चित्रित किया जा रहा है।
विफल होती ग्रामीण सड़क योजना
अब हम मामले के दूसरे छोर की ओर मुड़ते हैं - छोटी ग्रामीण सड़कें, ज्यादातर 3 किलोमीटर या उससे अधिक की होती हैं। यह कार्यक्रम वर्ष 2000 में प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली पहली एनडीए सरकार के दौरान शुरू किया गया था। शुरुआत से लेकर 25 अक्टूबर 2022 तक पीएमजीएसवाई के तहत ग्रामीण सड़कों के निर्माण पर 2,87,798 करोड़ रुपये खर्च किए गए हैं। इसमें राज्य सरकार का योगदान भी शामिल है, जिसे 2015-16 में नई मोदी सरकार द्वारा पेश किया गया था। 2001 की जनगणना के आधार पर पहचाने गए 1.57 लाख आवासों को जोड़ते हुए 6.45 लाख किलोमीटर से अधिक का निर्माण किया जाना था। अक्टूबर 2022 तक 6.21 लाख किलोमीटर का निर्माण किया जा चुका है। 2013 में शुरू किए गए कार्यक्रम के दूसरे चरण के तहत, मौजूदा नेटवर्क को मजबूत करने के लिए 50,000 किलोमीटर का निर्माण किया जाना था। इसमें से करीब 48,383 किलोमीटर का काम पूरा हो चुका है। मोदी युग के तहत, नक्सली इलाकों में सड़क कनेक्टिविटी कार्यक्रम (आरसीपीएलडब्ल्यूईए) नामक सड़कों और पुलों के निर्माण के लिए एक कार्यक्रम 2016 में (बाद में अतिरिक्त योजना के साथ) 12,076 किमी लंबी सड़क बनाने के लिए शुरू किया गया था, जिसमें से अक्टूबर 2022 में 6,495 किमी पूरा हो चुका है। और आखिरकार, 2019 में, पीएमजीएसवाई III लॉन्च किया गया, जिसमें इस्तेमाल के आधार पर घरों को मंडियों, स्कूलों और अस्पतालों से जोड़ने के लिए 1.25 लाख किलोमीटर सड़कें बनाने का प्रस्ताव था। यह चरण मार्च 2025 में पूरा होने वाला है।
ध्यान देने वाली बात यह है कि योजना के पहले चरण के लॉन्च होने के दो दशकों से अधिक समय के बाद भी, 24,000 किलोमीटर से अधिक का निर्माण अभी भी अधूरा है, जबकि एक दशक पहले शुरू किए गए चरण II के तहत अन्य 1,600 किलोमीटर का निर्माण नहीं हुआ है। मोदी सरकार के तहत शुरू किए गए नए चरणों को भी इसी तरह का नुकसान उठाना पड़ा है। आरसीपीएलडब्ल्यूईए के तहत 5,371 किलोमीटर से अधिक का निर्माण किया जाना बाकी है, हालांकि इसके पूरा होने की लक्ष्य तिथि मार्च 2023 थी। जबकि चरण III को पूरा करने का लक्ष्य मार्च 2025 है, जनवरी 2023 तक, लगभग 75,717 किलोमीटर का निर्माण बाकी है। ये कमियाँ स्थायी समिति की रिपोर्ट में दर्ज आंकड़ों से ली गई हैं।
ग्रामीण विकास मंत्रालय ने स्थायी समिति को बताया कि उन राज्यों के लिए तीसरे चरण की परियोजनाओं को मंजूरी नहीं दी जा रही है, जिन्होंने अभी तक चरण I और II का काम पूरा नहीं किया है। नतीजा यह है कि पूरे मामले में देरी हो रही है। एक अन्य कारक पूरी तरह से केंद्रीय वित्त पोषित योजना से साझा वित्त पोषण प्रणाली में बदलाव रहा है जहां केंद्र-राज्य निधि साझाकरण 60:40 के आधार पर है, पहाड़ी राज्यों को छोड़कर जहां यह 90:10 है। राज्य सरकार की वित्तीय स्थिति की गंभीर स्थिति को देखते हुए, विशेष रूप से महामारी के बाद, इसने योजना कार्यान्वयन के काम को और धीमा कर दिया है।
लेकिन, जैसा कि स्थायी समिति ने बताया, सबसे बड़ी कमी यह है कि जनसंख्या और आवास की गणना 2001 की जनगणना पर आधारित है जो 22 साल पहले हुई थी। 2001 और 2011 के बीच, भारत की औसत जनसंख्या 17.7 प्रतिशत की दर से बढ़ी है। यदि कोई 2011-21 दशक के मामले में समान वृद्धि दर जोड़ता है, तो जनसंख्या 2001 की तुलना में कम से कम 30 प्रतिशत अधिक होगी। इसलिए, सड़कों की आवश्यकता वाले आवासों की संख्या लक्ष्य से कहीं अधिक होगी। मंत्रालय ने समिति को बताया कि यह मुद्दा वित्त मंत्रालय के साथ उठाया गया था लेकिन उन्होंने यह तर्क देते हुए प्रस्ताव को खारिज कर दिया कि धन की कमी है।
इस प्रकार, ग्रामीण सड़कों के मामले में स्थिति फिर से काफी गड़बड़ है - लेकिन यह अलग-अलग कारणों से है। इन ग्रामीण सड़कों के निर्माण में अधिक पैसा खर्च करने की इच्छाशक्ति नहीं है।
वर्तमान सरकार द्वारा शुरू किया गया महान बुनियादी ढांचा निर्माण अभियान अलग-अलग तरीकों से और अलग-अलग कारणों से विफल होता दिख रहा है - कम से कम सड़क निर्माण के मामले में तो ऐसा ही कुछ नज़र आता है।
अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें:
Highways or Rural Roads, It’s a Story of High Cost-Low Delivery
अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।