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हिमाचल प्रदेश : कोरोना की मार झेल रहे मजदूरों पर मालिकों का शोषण जारी !

सरकार ने सभी मज़दूरों को उनका वेतन समयनुसार देने का आदेश दिया है लेकिन प्रदेश के उद्योगपतियों और पूंजीपतियों द्वारा केंद्र व प्रदेश सरकार के आदेशों का पालन नहीं किया जा रहा है।
हिमाचल प्रदेश
Image courtesy: Business Standard

देशभर में वैश्विक महामारी के कारण हुए संपूर्ण लॉकडाउन का सबसे अधिक असर मज़दूर पर ही पड़ा है। इनकी तकलीफों के देखते हुए सरकारों ने राहत देने  के आदेश भी दिए हैं। लेकिन ज़मीन पर यह आदेश और सरकार के सभी दावे खोखले दिख रहे हैं। केंद्र सरकार के श्रम विभाग ने 20 मार्च, गृह मंत्रालय ने 29 मार्च व प्रदेश सरकार के श्रम विभाग ने 30 मार्च 2020 की अधिसूचनाओं में स्पष्ट गया किया है कि ऐसी स्थिति में मजदूरों के वेतन सहित सभी सुविधाएं समयानुसार प्रदान की जाएं व श्रम कानूनों की सख्ती से अनुपालना की जाए व इसकी अवहेलना करने वालों पर सख्त कानूनी कार्रवाई की जाए।

लेकिन मज़दूरों का कहना है मालिक मज़दूरों को किसी भी प्रकार से मदद नहीं कर रहे है। इसको लेकर मज़दूर संगठन सीटू राज्य कमेटी हिमाचल प्रदेश ने प्रदेश के उद्योगपतियों,कारखानेदारों व पूंजीपतियों द्वारा केंद्र व प्रदेश सरकार के आदेशों को ठेंगा दिखाने की कड़ी निंदा की है। सीटू ने प्रदेश सरकार और स्थानीय प्रशासन से मांग की है कि सरकार की अधिसूचनाओं की अनदेखी करके मजदूरों को आर्थिक व मानसिक तौर पर प्रताड़ित करने वाले उद्योगपतियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाए व मजदूरों को वेतन इत्यादि अन्य सुविधाएं समय से नियमानुसार सुनिश्चित करने के लिए कहा है ।

सीटू के राज्य अध्यक्ष विजेंद्र मेहरा ने कहा है कि "इन अधिसूचनाओं की सरेआम धज्जियां उड़ रही हैं। प्रदेश सरकार के मुख्यालय शिमला शहर में ही इन अधिसूचनाओं को लागू नहीं किया जा रहा है व इस पर श्रम विभाग की ख़ामोशी चिंताजनक है। शिमला शहर के ख़लीनी में स्थित ईस्टबोर्न होटल में कार्यरत एक सौ बीस मजदूरों व कर्मचारियों की स्थिति दयनीय है क्योंकि होटल के मालिक व प्रबंधन ने उन्हें पिछले तीन महीने का वेतन नहीं दिया है। इस से मजदूरों व कर्मचारियों को खाने के लाले पड़ गए हैं।"

आगे उन्होंने बताया कि " इन मजदूरों को जनवरी से मार्च 2020 का वेतन नहीं दिया गया है। इसी तरह इन मजदूरों का पिछले नौ महीने का ईपीएफ व ईएसआई जमा नहीं किया गया है। ये मजदूर इन मसलों को कई बार श्रम विभाग, ईपीएफओ व ईएसआई के समक्ष उठा चुके हैं परन्तु इन मजदूरों का शोषण बदस्तूर जारी है व ये मजदूर भूखे-प्यासे रहने को मजबूर हैं। ईस्टबोर्न प्रबंधन होटल में कार्यरत मजदूरों व कर्मचारियों के पिछले तीन महीनों के वेतन के रूप में लगभग चौरासी लाख रुपये डकारकर बैठा हुआ है। इसी तरह ईपीएफ का लगभग साठ लाख व ईएसआई का लगभग पच्चीस लाख रुपये का भी इस प्रबंधन ने गोलमाल किया है। इस तरह कुल लगभग एक करोड़ उनहत्तर लाख रुपये की राशि मजदूरों को न देकर अथवा उनके खातों में जमा न करके प्रबंधन लगातार मजदूरों का भारी शोषण कर रहा है।"

सीटू महासचिव  प्रेम गौतम ने कहा है कि "प्रदेश सरकार ईस्टबोर्न प्रबंधन को तुरन्त दिशानिर्देश जारी करे कि वह केंद्र व प्रदेश सरकार की कोरोना महामारी के मध्यनजर जारी की गई अधिसूचनाओं को बिना किसी देरी के लागू करे। उन्होंने सरकार से मांग की है कि मजदूरों का पिछले तीन महीने का वेतन दो दिन के भीतर सुनिश्चित किया जाए।"

उन्होंने कहा है कि "अगर प्रदेश सरकार तुरन्त इस पर कोई कार्रवाई नहीं करती है तो फिर सीटू प्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायधीश को पत्र लिखकर प्रदेश सरकार,श्रम विभाग,ईपीएफओ,ईएसआई,होटल मालिक व प्रबंधन के खिलाफ कार्रवाई की मांग करेगा व मजदूरों के लिए न्याय मांगेगा।"

आपको बता दें कोरोना महामारी के कारण उत्पन्न  परिस्थिति से सबसे ज़्यादा नुकसान मजदूर वर्ग को ही हुआ है। इस स्थिति में मजदूर भारी आर्थिक व मानसिक परेशानी में हैं। रातोंरात उनका रोजगार खत्म हो गया है। हमीरपुर के नादौन में लगभग भुखमरी के कगार पर पहुंच चुके उत्तर प्रदेश निवासी एक मजदूर ने आत्महत्या करने की कोशिश भी की थी । इस से साफ हो रहा है कि मजदूरों की स्थिति आने वाले दिनों में और बुरी होने वाली है। जेब में पैसा न होने के कारण प्रदेश में सैंकड़ों मजदूर पैदल मार्च करके घरों की ओर प्रस्थानकर गए तजे। ऐसे अनेकों  उदाहरण कांगड़ा-पठानकोट,मैहतपुर-नंगल,कालाअंब-हरियाणा,बद्दी-चंडीगढ़,पौंटा साहिब-उत्तराखंड   व परवाणू-कालका सीमा में देखने को मिले।

पुरे देश की तरह यहाँ भी सबसे बुरी स्थिति असंगठित क्षेत्र के मजदूरों की है। प्रदेश में मनरेगा में लगभग बारह लाख जॉब कार्ड होल्डर हैं। इसके साथ असंगठित क्षेत्र में मिस्त्री,मजदूर,इलेक्ट्रीशियन,वेल्डर,कारपेंटर,प्लम्बर आदि के रूप में लगभग तीन लाख निर्माण मजदूर कार्यरत हैं। इन पन्द्रह लाख लोगों में से ज़्यादातर लोग हर रोज़ दिहाड़ी लगाकर गुज़र  -बसर करने वाले लोग हैं। कोरोना के कारण इनका रोजगार पूरी तरह खत्म हो गया है। सरकार ने हिमाचल प्रदेश श्रमिक कल्याण बोर्ड से जो दो हज़ार रुपये मासिक आर्थिक सहायता की घोषणा की है वह भी कानून अनुसार बोर्ड में पंजीकृत लगभग एक लाख मजदूरों पर ही लागू होती है। हालांकि यह भी नाकाफी है।

सीटू,किसान सभा व खेतिहर मजदूर यूनियन की अखिल भारतीय कमेटियों ने 30 मार्च को एक सर्कुलर जारी करके अपनी सभी राज्य,जिला व स्थानीय इकाइयों से आह्वान किया है कि वे कोरोना महामारी के कारण उत्पन्न हुई कर्फ्यू व लॉक डाउन की स्थिति में मजदूरों,गरीब किसानों व खेतिहर मजदूरों को पेश आ रही खाने,रहने व अन्य समस्याओं के समाधान व उनकी हर सम्भव सहायता के लिए लोकल स्तर पर वलन्टियर टीमें बनाकर युद्ध स्तर पर कार्य करें। खासतौर पर इस समय में प्रवासी मजदूर भारी संकट में हैं।   यद यह काफी नहीं हो ,इनका कहना है कि ये अपने स्तर पर लोगो की मदद क्र सकते है लेकिन सरकार की जगह नहीं ले सकते हैं।

इसलिए मज़दूर संगठन सीटू ने  सरकार से अपील की है कि इन सभी पन्द्रह लाख मजदूरों के परिवार को आगामी तीन महीनों के लिए प्रति माह पांच हज़ार रुपये की मदद राज्य सरकार दे व साथ ही तीन महीने का प्रति माह 35 किलो मुफ्त राशन एकमुश्त दिया जाए। इन मजदूरों में लगभग एक लाख से ज़्यादा मजदूर प्रवासी हैं।  वे अपने प्रदेश में लौटने में असमर्थ हैं अतः राशन कार्ड न होने के बावजूद भी पांच हज़ार रुपये के साथ उन्हें भी राशन की यही व्यवस्था लागू की जाए।

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