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हिमाचल: बागवान किसानों का ज़ोरदार प्रदर्शन, सरकार को दिया दस दिन का अल्टीमेटम 

आंदोलन का नेतृत्व कर रहे संयुक्त किसान मंच ने कहा अगर सरकार अपना वादा दस दिनों में पूरा नहीं करती है तो एकबर फिर हम जोरदार और अनिश्चितकालीन आंदोलन करेंगे।
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हिमाचल प्रदेश में हज़ारों सेब बागवान किसानों ने शुक्रवार को शिमला मे जोरदार विरोध प्रदर्शन किया। इस ऐतिहासिक विरोध मार्च को देखते हुए सरकार ने किसानों से उनकी मांगों को पूरा करने के लिए दस दिन का समय मांगा है। इस आंदोलन का नेतृत्व कर रहे संयुक्त किसान मंच ने कहा अगर सरकार अपना वादा दस दिनों मे पूरा नहीं करती है तो एकबर फिर हम जोरदार और अनिश्चितकालीन आंदोलन करेंगे। सरकार को याद रहे है हमने इससे पहले 1987 और 1990 में ऐसे बड़े आंदोलन लड़े हैं। यह लड़ाई भी निर्णायक है । 

ये पूरा आंदोलन संयुक्त किसान मंच के बैनर तले किया जा रहा है। जो 27 संगठनों का साझा मंच है। शुक्रवार को हजारों महिला और पुरुष बागबान किसान नवबहार पहुंचे जहां से छोटा शिमला तक पैदल मार्च करते हुए आक्रोश रैली निकली गई। इस दौरान प्रशासन ने आंदोलनकारियों को रोकने के लिए भारी पुलिस बल का बंदोबस्त किया था। प्रदर्शन के दौरान प्रदर्शनकारियों की पुलिस से धक्का-मुक्की भी हुई। हालांकि पुलिस बल के शक्ति प्रदर्शन से किसानों का हौसलों मे कोई कमी नहीं आई।

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रैली को सचिवालय तक  पहुंचने से रोकने के लिए पुलिस ने छोटा शिमला में संजौली बस स्टॉप के पास तीन स्तर पर बैरिकेडिंग कर रखी थी। प्रदर्शनकारी बैरिकेड पर चढ़ गए, जिसके बाद पुलिस के साथ झड़प  भी हुई। हालांकि मंच के नेताओं ने युवा आंदोलनकारियों को समझाया और किसी भी टकराव से बचने को कहा जिसके बाद  प्रदर्शनकारी शांत हुए। शिमला शहर के पूर्व मेयर और मंच के नेता संजय चौहान ने कहा कि सरकार किसानों-बागवानों को हल्के मे ले रही है। अभी आंदोलन का शुरुआती दौर है, अभी हमारी  मांगें नहीं मानी तो विधानसभा चुनाव तक ये लड़ाई जारी रहेगी। 

आंदोलन कर रहे  किसानों का कहना है सेब की पैकेजिंग सामग्री की कीमतों में अप्रत्याशित बढ़ोतरी ने बागवानों की कमर तोड़कर रख दी है। कार्टन की कीमतों में 10 से 20 फीसदी और ट्रे के दाम 20 से 35 फीसदी तक बढ़े है। बीते साल मोहन फाइबर कंपनी की ट्रे का एक बंडल 500 रुपये में मिल रहा था। इस बार प्रति बंडल 800 रुपये देने पड़ रहे हैं। इसी तरह सेपरेटर, स्टैपिंग मशीन, स्टैपिंग रोल की कीमतों में भी 10 फीसदी तक का इजाफा हुआ है।

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कार्टन के अलावा सेब का तुड़ान, भरान, ढुलाई, पेटी को मंडी तक पहुंचाने पर आने वाली लागत भी दोगुना हुई है। ठीक ऐसे ही फफूंदनाशक, कीटनाशक, खाद इत्यादि कृषि इनपुट की कीमतें भी दो साल में लगभग दोगुणा हुई है। इसके विपरीत सरकार ने इन पर मिलने वाली सब्सिडी खत्म कर कृषि व बागवानी पर गंभीर संकट खड़ा किया है।

यही वजह है कि बागवान 5000 करोड़ रुपये के सेब उद्योग को बचाने के लिए सड़कों पर उतर आए हैं। प्रदेश का बागवान पहले ही महंगे कार्टन की मार झेल रहा था। ऐसे में केंद्र सरकार ने गत्ते पर GST 12 से बढ़ाकर 18 फीसदी करके बागवानों के जख्मों पर नमक लगाने का काम किया है। सेब उत्पादक संघ कार्टन की कीमतों को नियंत्रित करने के लिए GST दर को 5 फीसदी तक घटाने और सब्सिडी जारी बागवानों को राहत देने की मांग कर रहा है।

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स्थानीय अखबारों के मुताबिक माकपा विधायक और किसान नेता राकेश सिंघा ने कहा कि सरकार, मंत्री और अफसर सत्ता के नशे में डूबे हुए हैं और इन्हें किसानों-बागवानों का दर्द नहीं दिख रहा। सरकार की नालायकी से आज महिलाएं खेत-खलिहान और अपने परिवार छोड़कर सड़क पर उतरने को मजबूर हुई हैं। ऐसी असंवेदनशील सरकार को सत्ता में रहने का हक नहीं है। करीब डेढ़ घंटे बाद संयुक्त किसान मंच के नेताओं को बातचीत के लिए सचिवालय के भीतर बुलाया गया।

आंदोलन कर रहे किसानों कि मांग की है कि सेब की पेटी पर लगाया गया जीएसटी वापस लिया जाए व पेटी की कीमतें कम की जाएं। ट्रे की कीमतों में की गई वृद्धि को रद्द किया जाए। एचपीएमसी द्वारा बागवानों से खरीदे गए सेब के पिछले बकाए का तुरन्त भुगतान किया जाए। किसानों व बागवानों से विभिन्न बैरियरों पर वसूली जाने वाली मार्केट फीस पर रोक लगाई जाए।

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इसके आलावा सेब उत्पादकों की रक्षा के लिए विदेश से आने वाले सेब पर आयात शुल्क शत-प्रतिशत किया जाए। आढ़तियों से बागवानों की बकाया राशि का तुरन्त भुगतान करवाया जाए व धोखाधड़ी करने वाले आढ़तियों पर तुरन्त मुकद्दमे दर्ज करके उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई अमल में लायी जाए। हिमाचल प्रदेश में सेब उत्पादकों की सुरक्षा हेतु कश्मीर की तर्ज पर मंडी मध्यस्तता योजना लागू की जाए। किसानों की रक्षा करने के लिए एपीएमसी कानून को सख्ती से लागू किया जाए। इसी तरह किसानों कि 20 सूत्री  मांग है जिसको लेकर वो आंदोलित है।

संयुक्त किसान मंच के संयोजक हरीश चौहान ने मीडिया से बात करते हुए स्पष्ट किया कि ये आंदोलन  गैर राजनीतिक संगठनों के बैनर तले किया गया है। उन्होंने सरकार पर गंभीर आरोप लगते हुए कहा कि मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर जानबूझकर शिमला में मौजूद नहीं रहे क्योंकि सरकार और उनका प्रशासन नहीं चाहता है की बागवानों के मुद्दे पर बातचीत की जाए।

उन्होंने सरकार के समर्थकों द्वारा आंदोलन को विपक्ष की साजिश या सरकार को बदनाम करने के प्रयासों से जुड़े होने के सवाल पर जबाब दिया और कहा कि प्रदर्शन में 27 संगठनों के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। लेकिन सरकार ने बात तक करना उचित नहीं समझा। प्रदर्शन में सभी विचारधाराओं के लोग शामिल हैं। वह खुद 32 वर्षों से भाजपा से जुड़े हैं। जब तक 20 सूत्रीय मांगें पूरी नहीं हो जाती तब तक आंदोलन जारी रहेगा।

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