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हिंदी की चिंदी : उत्तराखंड के हरिद्वार में ऐतिहासिक श्री सत्यज्ञान निकेतन लाइब्रेरी की हज़ारों किताबों का ज्ञान चाट गए दीमक

"आग से ख़ाक हरिद्वार की श्री सत्यज्ञान निकेतन लाइब्रेरी के टूटे-फूटे और ज़र्ज़र दरवाज़े, छतों पर कालिख की मोटी परत और कूड़े-कबाड़ का ढेर इस बात की तस्दीक करते हैं कि राष्ट्रभाषा के अलंबरदारों ने हिंदी की चिंदी बना डाली है।
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श्री सत्यज्ञान निकेतन का मुख्य द्वार 

हिंदी को शब्दों का अनुशासन देने वाली बनारस की संस्था नागरी प्रचारिणी सभा का एक समृद्ध इतिहास हरिद्वार के श्री सत्यज्ञान निकेतन के खंडहर में दफन होता जा रहा है। करीब 83 बरस पहले यह निकेतन हिंदी का गौरव था, लेकिन उसका वर्तमान खोखला हो गया है। ऐतिहासिक लाइब्रेरी में रखी हिंदी की दुर्लभ पांडुलिपियां कबाड़ में तब्दील हो गईं और हजारों किताबों का ज्ञान दीमक चाट गए।

हरिद्वार के ज्वालापुर के पाश इलाके के बीचो-बीच श्री सत्यज्ञान निकेतन की पहचान अब झाड़-झंखाड़ और पेड़-पौधों व फूलों की नर्सरी में सिमटकर रह गई है। करीब दस बीघे में फैले इसके परिसर में रंग-बिरंगे फूल बिकते हैं और किसिम-किसिम के गमले भी। निकेतन के गेस्ट हाउस और कई कमरों पर कुछ लोगों ने बलात कब्जा कर रखा है। परिसर में उगे तमाम झाड़-झंखाड़, गोबर और मिट्टी के ढूहे श्री सत्यज्ञान निकेतन की बदहाली की कहानी सुनाते हैं। बनारस की नागरी प्रचारिणी सभा ने हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए आठ दशक पहले यहां लाइब्रेरी बनाई थी, जो अब खंडहर में तब्दील हो गई है। इस ऐतिहासिक लाइब्रेरी के पुस्तकों के साथ दरवाजों और खिड़कियों को दीमक निवाला बना चुके हैं। लाइब्रेरी का बरामदा कबाड़ और गमलों भरा है। फूलों की नर्सरी चलाने वाले इस इमारत का इस्तेमाल भूसा और कबाड़ रखने के लिए कर रहे हैं।

श्री सत्यज्ञान निकेतन के इन कमरों पर है अवैध कब्जा

हिंदी के विद्वान स्वामी सत्यदेव परिब्राजक ने साल 1940 में हरिद्वार के ज्वालापुर स्थित आर्यनगर चौक पर करीब दस बीघा जमीन खरीदी थी। हिंदी के प्रचार-प्रसार में जुटी अग्रणी संस्था नागरी प्रचारिणी सभा से प्रभावित होकर स्वामी सत्यदेव परिब्राजक ने 30 नवंबर 1943 को समूची जमीन दान कर दी। नागरी प्रचारिणी सभा का मुख्यालय बनारस में है। श्री सत्यज्ञान निकेतन के मुख्य द्वार पर चस्पा संगमरमर के शिलापट्ट पर समूची संपत्ति नागरी प्रचारिणी सभा को दान देने की बात आज भी अंकित है।

उत्तराखंड के साहित्यकारों के मुताबिक, श्री सत्यज्ञान निकेतन के लिए जमीने खरीदने के लिए स्वामी जी को हिंदी की अपनी तमाम पुस्तकें बेचनी पड़ी थी। हिंदी के प्रति उनके दिल में अगाध श्रद्धा और आस्था थी। स्वामी सत्यदेव परिब्राजक की पहल पर बनारस की नागरी प्रचारिणी सभा ने श्री सत्यज्ञान निकेतन परिसर में लाइब्रेरी की स्थापना कराई। बनारस से वहां तमाम दुर्लभ पुस्तकें भेजी गईं। कुछ ही दिनों में लाइब्रेरी तैयार हो गई, जो अब खंडहर में तब्दील हो गई है।

...और जल गई लाइब्रेरी

शुरुआती दौर में नागरी प्रचारिणी सभा ने श्री सत्यज्ञान निकेतन के जरिये उत्तर भारत में हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए मुहिम चलाई। बाद में सभा के तत्कालीन प्रधानमंत्री डा.रत्नाकर पांडेय ने करीब चार दशक पहले संस्था की बेशकीमती संपत्ति की देखरेख की जिम्मेदारी आजमगढ़ निवासी सर्वजीत मिश्रा को सौंपी। सन् 2019 को इनका निधन हो गया। उसी साल मार्च महीने में अराजकतत्वों ने इस लाइब्रेरी में आग लगा दी। आग कैसे लगी और किसने लगाई, यह सवाल यक्ष प्रश्न बना हुआ है। ज्वालापुर थाना पुलिस भी इस घटना की मिस्ट्री नहीं सुलझा सकी। जिस समय लाइब्रेरी में आग लगने की वारदात हुई, उस समय वहां ज्यादा किताबें नहीं थी। दरअसल, देखरेख के अभाव में ज्यादातर पुस्तकों को पहले ही कीड़े और दीमक अपना निवाला बना चुके थे।

आगजनी के समय लाइब्रेरी में सिर्फ कांवड़ का सामान और ढेर सारा कबाड़ भरा था। अलमारियों में रखी तमाम किताबें और खिड़की-दरवाजे जल गए और हिंदी प्रेमियों के अरमान भी। आगजनी की घटना के बाद लाइब्रेरी भवन और भी ज्यादा बदहाल हो गया। उसकी दीवारों पर अंकित गुरुनानक, मीराबाई, सूरदास और महात्मा दादू के उपदेश आज भी इसके सुनहरे अतीत की गवाही देते हैं।

श्री सत्यज्ञान निकेतन में स्वामी सत्यदेव परिब्राजक ने अपने लिए एक छोटा-सा मकान बनवा रखा था। इस मकान के आगे टीन का छाजन है। मकान के तीन तरफ बरामदा और बीच में एक तहखाना है। बताया जाता है कि इसी तहखाने में बैठकर वह साधना और हिंदी की पुस्तकें लिखा करते थे। व्यवस्थापक सर्वजीत मिश्रा के निधन के बाद इसकी देखरेख का जिम्मेदारी लोक निर्माण विभाग में कार्यरत उनके पुत्र प्रभाकर मिश्र और उनके दो बेटे संभाल रहे हैं। मौजूदा समय में इस इमारत की चाबी इन्हीं के पास है।

श्री सत्यज्ञान निकेतन के मौजूदा केयरटेकर प्रभाकर मिश्र एवं उनके दोनों बेटे

मकान की गैलरी में पहले इनका परिवार रहता था। ऊपर के कमरे में इनके पिता सर्वजीत मिश्र का ठिकाना हुआ करता था। मकान के पीछे भांग के बड़े-बड़े पेड़ और झाड़-झंखाड़ उग आए हैं। परिसर में आम और लीची के कई पेड़ हैं। समूचा परिसर बाग-बगीचे से भरा हैं। पेड़ों के नीचे नर्सरी की पौधशालाएं हैं। परिसर में कई झोपड़ियां भी हैं। कुछ स्थानों पर गोबर, मिट्टी और कबाड़ के ढेर लगे हैं।

श्री सत्यज्ञान निकेतन परिसर में इस वक्त कुल नौ परिवार रहते हैं। इनमें मनोज और खेमकरण यहां नर्सरी चलाते हैं और दोनों रिश्तेदार हैं। बाकी परिवारों में कोई ई-रिक्शा चलाता है, तो कोई मजूरी करता है। श्री सत्यज्ञान निकेतन की लाइब्रेरी के आगे टूटे गमले रखे हैं और अंदर कबाड़ भरा है। बरामदे में नर्सरी में बेचे जाने वाले गमले रखे हैं। श्री सत्यज्ञान निकेतन गेस्ट हाउस पर भी अवैध कब्जा है।

न्यूजक्लिक से बातचीत में प्रभाकर मिश्र कहते हैं, "करीब तीन दशक पहले मेरे पिता ने श्री सत्यज्ञान निकेतन में तीन परिवारों को रहने की जगह दी, ताकि परिसर की कायदे से साफ-सफाई और लाइब्रेरी का रख-रखाव होता रहे। कुछ साल बाद उनके कुनबे के लोगों ने मनमानी शुरू कर दी। फूल और पेड़-पौधों की नर्सरी चलाने वाले जो किराया देते हैं, उसी से परिसर की देख-रेख हो पा रही है। पिता जी ने जिन लोगों को सिर्फ दस रुपये महीने पर कमरा दिया था उन्होंने अब मामूली किराया देना भी बंद कर दिया है। कब्जाए गए कमरों को वो अपना समझ बैठे हैं। कई परिवार सालों से यहां जबरन रह रहे हैं। पांच अन्य परिवार कुछ सालों से मामूली किराये पर रह रहे हैं।"

"निकेतन के रख-रखाव में दिक्कतें आने लगी तो मेरे पिता ने नर्सरी चलाने वालों को जगह दी और बाद में वो अपना धंधा फैलाते चले गए। दोनों नर्सरियां पिछले दो दशक से चलाई जा रही हैं। अपने पिता की तरह हम आज भी श्री सत्यज्ञान निकेतन की हिफाजत करते हैं। इस संस्था से हमारे कुनबे की आस्था जुड़ी है। हमारे बेटे भी यहां आते-जाते रहते हैं।"

प्रभाकर मिश्रा यह भी बताते हैं, "साल 2019 के बाद बनारस के नागरी प्रचारिणी सभा का कोई भी सदस्य यहां नहीं आया। अरबों की संपत्ति पर कब्जा करने की नीयत से कई बार हमले किए गए। कुछ लोगों ने संस्था की बेशकीमती जमीन हड़पने के लिए अदालत में अपनी दावेदारी भी जताई। हम मुश्किलों से लड़ते रहे, लेकिन हमने भू-माफिया गिरोहों के मंसूबों को सफल नहीं होने दिया। हमने और हमारे परिवार ने स्वामी जी की थाती शिद्दत से संभालकर रखी है। हम चाहते हैं कि बनारस से नागरी प्रचारिणी सभा के पदाधिकारी आएं और इसका प्रबंधन सुचारू रूप से संचालित कराएं।"

हरिद्वार की श्री सत्यज्ञान लाइब्रेरी, जिसे बनारस की नागरी प्रचारणी सभा ने बनवाई थी

अभी बची है हिंदी की जमीन

हिंदी के प्रचार-प्रसार और उसके उत्थान के लिए स्वामी सत्यदेव ने श्री सत्यज्ञान निकेतन के लिए अपनी संपत्ति इस शर्त पर दान में दी थी कि उसे न तो बेचा जा सकता है और न ही गिरवी रखा जा सकती है। दैनिक ‘अमर उजाला’ में प्रकाशित एक रिपोर्ट में श्री सत्यज्ञान निकेतन की बदहाली को विस्तार से रेखांकित किया गया है। रिपोर्ट में कहा गया है, "राष्ट्रभाषा के उत्थान के नाम पर देश भर में तमाम तामझाम हो रहा है। इसके बावजूद हिंदी आगे नहीं बढ़ी। वह हरिद्वार में ही अटक कर रह गई। जिस नागरी प्रचारिणी सभा पर इसकी जिम्मेदारी डाली गई, उस पर अब उंगलियां उठाई जा रही हैं। उपेक्षा के सवालिया निशान भी चस्पा किए जा रहे हैं। कुछ साल पहले सुप्रीमकोर्ट ने नागरी प्रचारिणी सभा के खिलाफ एक दीवानी अदालत में अर्जी दाखिल करने की इजाजत दी थी। यह इजाजत इस बात के लिए दी गई थी कि हिंदी के प्रचार-प्रसार के जिस शर्त के आधार पर नागरी प्रचारिणी सभा को संपत्ति दी गई, उसका मकसद पूरा हो रहा है अथवा नहीं? "

"न्यायमूर्ति पीसी घोष व न्यायमूर्ति अशोक भूषण की पीठ ने उत्तराखंड हाईकोर्ट का फैसला रद्द करते हुए याचिकाकर्ता स्वामी शिवशंकर गिरि को दीवानी अदालत में कानून के मुताबिक अर्जी और मुकदमा दाखिल करने की छूट दी है। कोर्ट ने कहा है कि मामले के रिकार्ड देखने से पता चलता है कि प्रचारिणी सभा जिसे संपत्ति दान में मिली है एक ट्रस्टी की हैसियत से जमीन पर मालिकाना हक से काबिज है।"

‘अमर उजाला’ आगे लिखता है, "स्वामी शिवशंकर गिरि ने अपने अधिवक्ता प्रतीक द्विवेदी के जरिये हाईकोर्ट के एक फैसले को चुनौती दी थी। बाद में हाईकोर्ट ने काशी नागरी प्रचारिणी सभा के खिलाफ अदालत में मुकदमा दाखिल करने की इजाजत देने वाला दीवानी न्यायालय का आदेश रद्द कर दिया था। याचिकाकर्ता के मुताबिक स्वामी सत्यदेव ने 1936 में हरिद्वार ज्वालापुर में कुछ जमीन खरीदी और उस पर निर्माण कराया। साल 1940 में उन्होंने नागरी प्रचारिणी प्रसारिणी सभा को वह संपत्ति इस शर्त के साथ दान दी कि सभा न तो उसे बेचेगी और न ही गिरवी रखेगी। यह भी शर्त लगाई कि संपत्ति का इस्तेमाल हिंदी भाषा के प्रचार प्रसार, खासतौर पर पश्चिमी भारत में हिंदी के प्रचार के लिए किया जाएगा। श्री सत्यज्ञान निकेतन में हिंदी का पुस्तकालय स्थापित होगा और व्याखानमालाएं आयोजित की जाएंगी। इस बाबत नागरी प्रचारिणी सभा ने एक उपसमिति गठित की थी। यही समिति संपत्ति का प्रबंधन भी देख रही थी।"

याचिकाकर्ता शिवशंकर गिरि से न्यूजक्लिक ने बात की तो उन्होंने कहा कि हमारी नीयत गलत नहीं है। हम हिंदी का उत्थान चाहते हैं। निकेतन की संपत्ति हिंदी के प्रचार-प्रसार के उद्देश्य से खड़ी की गई थी। नागरी प्रचारिणी सभा ने शुरू में काफी दिलचस्पी ली और लाइब्रेरी शुरू कराई। बाद में संस्था के कर्ता-धर्ता निकेतन को भूल गए। पश्चिमी उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में हिंदी के बढ़ावा देने में तनिक भी दिलचस्‍पी नहीं ली गई। हमने नागरी प्रचारिणी सभा के खिलाफ मुकदमा दाखिल कर प्रबंधन की जिम्मेदारी मांगी थी।"

नागरी प्रचारिणी सभा की दलील थी कि वह एक पंजीकृत सोसाइटी है, पब्लिक ट्रस्ट नहीं है। समूची संपत्ति की मालिक नागरी प्रचारिणी सभा है। पब्लिक ट्रस्ट की तरह संस्था के खिलाफ मुकदमा करने का किसी को अधिकार नहीं है। ट्रस्ट के नियम उस पर लागू नहीं होते।

मुकदमे के बाबत न्यूजक्लिक ने स्वामी शिवशंकर गिरि के बात की तो उन्होंने कहा, " श्री सत्यज्ञान निकेतन को हड़पना नहीं चाहते। अलबत्ता हम संस्था और हिंदी का विकास चाहते हैं। इसकी बेशकीमती संपत्ति पर भूमाफियाओं की नजरें टिकी हैं। प्रचारिणी सभा के एक पदाधिकारी ने कुछ साल पहले एक बिल्डर से आधी जमीन का सौदा कर लिया था, लेकिन हम सभी ने प्रयास किया और कोर्ट की सहायता से संपत्ति बिकने से रोकवा दिया। निकेतन की जमीन की बिक्री पर रोक है और कोर्ट ने स्टे भी लगा रखा है।"

याचिकाकर्ता शिवशंकर गिरि यह भी कहते हैं, "हम हरिद्वार के निवासी हैं और हिंदी का प्रचार-प्रसार करना चाहते हैं। निकेतन की लाइब्रेरी में हिंदी के विद्वानों की ढेरों पुरानी किताबें और पांडुलिपियां रखी थीं जो लापरवाही की भेंट चढ़ गईं। कितने शर्म की बात ही कि हिंदी का प्रचार-प्रसार करने वाली संस्था श्री सत्यज्ञान निकेतन अब किताबों के लिए नहीं, नर्सरी के लिए जानी-पहचानी जाती है।"

कौन थे स्वामी सत्यदेव

पंजाब निवासी स्वामी सत्यदेव स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे। साल 1934 में उन्होंने हरिद्वार के ज्वालापुर स्थित आर्यनगर में श्री सत्यज्ञान निकेतन का निर्माण कराया था। आजादी की लड़ाई के वक्त देश को एक सूत्र में पिरोने के लिए हिंदी भाषा के प्रचार-प्रसार की जरूरत महसूस की गई। पहले इसका केंद्र लाहौर में बना। वहां से बनारस की दूरी अधिक होने के कारण हरिद्वार में इसकी स्थापना की गई। नागरी प्रचारिणी सभा ने यहां लाइब्रेरी का निर्माण कराया और अतिथि गृह समेत दस कमरे बनवाए गए।

नागरी प्रचारिणी सभा के रिकार्ड के मुताबिक लाइब्रेरी में हिंदी साहित्य की करीब 1900 ग्रंथ और पुस्तकें थीं। इनमें विश्वकोष, शब्दकोष, प्रथमा, मध्यमा, विद्या विचारक पाठ्यक्रम समेत संस्कृत की पुस्तकें भी शामिल थीं। श्री सत्यज्ञान लाइब्रेरी बनने के बाद उत्तराखंड समेत समूचे उत्तर भारत में हिंदी और संस्कृत के प्रति क्रेज बढ़ा और भीड़ बढ़ती गई। लाइब्रेरी में अखबार और पुस्तकें पढ़ने के लिए चौदह रुपये धरोहर राशि तय की गई थी। इसके अलावा चार रुपये सालाना देने पड़ते थे। यहां प्रौढ़ शिक्षा केंद्र स्थापित किया गया था। सरस्वती व्याख्यान माला का आयोजन किया जाता था। हर हफ्ते यहां एक दिन पश्चिमी उत्तर प्रदेश के साहित्यकार व हिंदी के विद्वान जुटा करते थे, जो अपनी रचनाओं की प्रस्तुति दिया करते थे। लाइब्रेरी को सुचारू रूप से संचालित करने के लिए हरिद्वार नगर पालिका सालाना 180 रुपये अनुदान दिया करती थी।

हरिद्वार नगर पालिका ने साल 1975 में अनुदान अचानक रोक दिया तो संस्था के दुर्दिन शुरू हो गए। इसके बाद नागरी प्रचारिणी सभा काशी वाराणसी ने पुस्तकालय की ओर ध्यान नहीं दिया, जिसके चलते धन का अभाव होता चला गया। साल 1987 में तेज बारिश के चलते लाइब्रेरी में पानी घुस गया, जिसके चलते वहां रखी लकड़ी की अलमारियां सड़ गईं और ज्यादातर पुस्तकें पानी से खराब हो गईं। जो पुस्तकें बचीं, उनके ज्ञान को दीमक चाट गए। लाचारी में हिंदी प्रेमियों ने लाइब्रेरी आना बंद कर दिया। लाइब्रेरी और अन्य भवनों की दीवारों व छतों पर पेड़-पौधे उग आए हैं, जिसके चलते ऐतिहासिक इमारत कमजोर होती जा रही है।

बनारस के वरिष्ठ पत्रकार एवं चिंतक प्रदीप कुमार कहते हैं, "हिंदी खड़ी बोली को आकार देने वाली नागरी प्रचारिणी से संबद्ध हरिद्वार के श्री सत्यज्ञान निकेतन से जुड़े विद्वानों ने आजादी के आंदोलन में अहम भूमिका निभाई थी। नागरी प्रचारिणी सभा ने अभियान चलाकर मठों-मंदिरों व राजाओं के यहां पड़ी पुस्तकों की न केवल खोज की, बल्कि इनकी प्रमाणिकता भी साबित की। 130 साल से भी पुरानी नागरी प्रचारिणी सभा ने अपने आंचल में हिंदी के तमाम वट वृक्ष लगाए, लेकिन वक्त के थपेड़ों ने हिंदी प्रेमियों की उम्मीदों को ढहने पर विवश कर दिया। आग से खाक हरिद्वार की श्री सत्यज्ञान निकेतन लाइब्रेरी के टूटे-फूटे और जर्जर दरवाजे, छतों पर कालिख की मोटी परत और कूड़े-कबाड़ का ढेर इस बात की तस्दीक करते हैं कि राष्ट्रभाषा के अलंबरदारों ने हिंदी की चिंदी बना डाली है।"

अब बनाएंगे हिंदी का शोध

नागरी प्रचारिणी सभा की नव निर्वाचित कमेटी ने हरिद्वार के श्री सत्यज्ञान निकेतन की बेशकीमती संपत्ति को बचाने के लिए मसौदा तैयार किया है। संस्था के नव निर्वाचित प्रधानमंत्री एवं जाने-माने रंगकर्मी व्योमेश शुक्ला कहते हैं, "हिंदी की इस थाती के संरक्षण के लिए नए सिरे से पहल की जाएगी। श्री सत्यज्ञान निकेतन को अब लावारिस हाल में नहीं छोड़ा जाएगा। इसे हिंदी का बड़ा शोध केंद्र बनाया जाएगा। इसे अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस किया जाएगा। हमारी कोशिश होगी कि देश भर से रिसर्चर यहां आएं और काम करें। ज्ञान और अभिव्यक्ति का माध्यम सिर्फ हिंदी होगा। इसका स्वरूप नागरी शोध संस्थान जैसा होगा। साहित्य और आलोचना को भी इसमें शामिल किया जाएगा। नागरी प्रचारणी सभा की निगरानी में पुस्तक मेले और साहित्य उत्सव आयोजित किए जाएंगे। गंगा, हिमालय, जंगल व पहाड़ों की पारिस्थितिकी पर अध्ययन और उनके संरक्षण पर लगातार चर्चाएं और गोष्ठियां होंगी।"

"काशी और हरिद्वार हिंदू सभ्यता के दो बड़े केंद्र हैं। दोनों में स्वस्थ संवाद के लिए दोनों स्थानों से विद्वानों व कलाकारों के आदान-प्रदान के लिए अभिनव प्रयास शुरू किया जाएगा। देश के बड़े चिंतकों, लेखकों और कलाकारों को विजिटिंग प्रोफेसर के तौर पर फेलोशिप पर आमंत्रित किया जाएगा। उत्तराखंड के प्रख्यात लेखक- सुमित्रानंदन पंत, महादेवी वर्मा, वीरेंद्र डांगवाल, मंगलेश डबराल पर शोधपीठ और सृजन पीठ स्थापित कराई जाएगी। अराजकतत्वों ने जिस लाइब्रेरी को फूंक दिया है वहां उससे बड़ी लाइब्रेरी बनाई जाएगी। वाचनालय भी खोला जाएगा, जो इंटरनेट के जरिये बनारस स्थित नागरी प्रचारिणी के विश्व प्रसिद्ध आर्य भाषा पुस्तकालय से जुड़ा होगा। इस पुस्तकालय में स्थित 20 हजार पांडुलिपियों, 50 हजार पुरानी पत्रिकाओं और 1.25 लाख से अधिक ग्रंथों को हर कोई पढ़ सकेगा।"

व्योमेश यह भी कहते हैं, "श्री सत्यज्ञान निकेतन में नागरी प्रचारिणी संस्थान से प्रकाशित होने वाली हिंदी पुस्तकों की बिक्री भी होगी। संभव हुआ तो एक प्रकाशन केंद्र भी बनाया जाएगा। हिंदी के विद्वानों की प्रतिमाएं और चित्र लगाए जाएंगे। सबसे पहले निकेतन के मुख्य द्वार और चौतरफा दीवारों की मरम्मत कराई जाएगी। सुरक्षा व्यवस्था दुरुस्त करने के लिए सबसे पहले सीसीटीवी कैमरे लगवाए जाएंगे।"

(लेखक बनारस के वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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