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गृहमंत्री के जल्द स्वस्थ होने की कामना के साथ कुछ ज़रूरी सवाल
गृहमंत्री अमित शाह के स्वास्थ्य की चिंता और जल्द स्वस्थ होने की कामना करते हुए हम कहना चाहते हैं कि मुश्किल समय है लेकिन हमें सच और सवालों का साथ नहीं छोड़ना चाहिए। एक पत्रकार के लिए यही सही समय है कि सरकार से कुछ ज़रूरी सवालों के जवाब मांगें जाएं।

 
मुकुल सरल
03 Aug 2020
amit
फोटो साभार: Hindustan times

हम शुरू से इस बात के हामी रहे हैं कि बीमार का मज़ाक न बनाया जाए। पीड़ित को ही दोषी ठहराने की कोशिश न की जाए, लेकिन हमारी सरकार/सत्तारूढ़ पार्टी और उसके समर्थकों और गोदी मीडिया सभी ने शुरू से ही ये काम बहुत ज़ोर-शोर से किया।

आपको याद होगा कि किस तरह कोरोना की शुरुआत में ही तबलीग़ी जमात को इसके लिए मुजरिम ठहराते हुए दुश्मन करार दे दिया गया। आपने देखा कि किस तरह सरकार और गोदी मीडिया का रोल रहा। कोरोना के नाम पर दिन भर यही ख़बर सुनने को मिलती थी, इतने जमाती यहां से पकड़े गए, इतने वहां। एक जमाती यहां छिपा मिला, एक जमाती वहां छिपा मिला। गोया जमाती न हो गए, फ़रार मुजरिम हो गए। निज़ामुद्दीन मरकज़ को कोरोना मरकज़ कहा जाने लगा। इस पागलपन को फैलाने में राज्य मशीनरी की भी कम भूमिका नहीं रही।

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सरकार की ओर से रोज़ की जाने वाली प्रेस ब्रीफिंग में बाकायदा बताया जाना लगा था कि आज कोरोना के कुल इतने मामले आए और इसमें इतने जमाती हैं। यानी अलग से उनकी निशानदेही की जाने लगी। कोई पूछ सकता है कि अगर आज ऐसे ब्रीफिंग की जाए कि “कोरोना संक्रमण के आज 100 नये मामले आए, इनमें 10 भाजपाई हैं”, अगर ऐसा किया जाने लगे तो कैसा लगेगा। यह बिल्कुल भी ठीक नहीं होगा। लेकिन उस समय ऐसा ही किया गया और समाज में ऐसा पागलपन छाया कि लोगों ने जमाती के नाम पर मुसलमानों का बहिष्कार शुरू कर दिया। किसी से छुपा नहीं है कि किस तरह मुसलमान फल-सब्ज़ी वालों से भी फल-सब्ज़ी लेने से मना कर दिया गया। नाम पूछकर या दाढ़ी देखकर उन्हें सरेआम पीटा गया, बेइज़्ज़त किया गया, उनके फल-सब्ज़ी के ठेले सड़क पर पलट दिए गए।

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हमने उस समय भी ऐसी हरकतों का पुरज़ोर विरोध किया था। और आज भी ऐसे किसी भी विचार या कार्य का विरोध करते हैं।

जमाती के बाद तोप का मुंह प्रवासी मज़दूरों की तरफ़ घूमा दिया गया और उन्हें कोरोना कैरियर्स यानी कोराना का वाहक यानी फैलाने वाला कहा जाने लगा। इसी तथाकथित मेनस्ट्रीम मीडिया और खाए-पीए अघाए मध्यवर्ग ने मज़दूरों पर सौ तोहमतें लगाईं।

इसके बाद जब राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इन सब कारगुज़ारियों की आलोचना हुई और कोरोना जमाती और मज़दूरों की सीमा तोड़ते हुए बड़ी तेज़ी से प्रभु वर्ग में फैलने लगा तो फिर कुछ शांति हुई, हालांकि वायरस संक्रमण की शुरुआत भी इसी प्रभु वर्ग से हुई थी, जो हवाई जहाज़ों से विदेशों से भारत आया था। आपको याद होगा कि मशहूर गायिका कनिका कपूर को कोरोना पाए जाने पर कैसी-कैसी बातें हुईं थी। उनकी पार्टी को लेकर तमाम सवाल उठे थे। हालांकि हमने उन्हें भी कोरोना का मुजरिम ठहराए जाने पर आपत्ति की थी। क्योंकि हवाई अड्डों पर ही उचित स्क्रीनिंग कर संक्रमित या संदिग्धों को क्वारंटीन या आइसोलेट करने की ज़िम्मेदारी एयरपोर्ट अथारिटी और सरकार की ही थी। लेकिन तब ऐसा नहीं किया गया। न कोई फ्लाइट रोकी गई, न सबकी उचित जांच ही की गई। पहला केस 30 जनवरी को सामने आने पर भी इसे मार्च तक हेल्थ इमरजेंसी नहीं माना गया। अंतरराष्ट्रीय उड़ानों पर भी मार्च के अंत में लॉकडाउन से कुछ पहले रोक लगाई गई।

मार्च-अप्रैल में कोरोना के नाम पर सिर्फ़ डर और नफ़रत फैलाई गई। नफ़रत का आलम यह हो गया था कि जमातियों ही नहीं कोरोना वॉरियर्स डॉक्टर, नर्सों पर भी उनकी कॉलोनियों, सोसायटी में हमला होने लगा था। उनसे भेदभाव, छुआछूत होने लगा। भले ही कुछ दिन पहले उनके सम्मान में ताली-थाली बजाई गई थी।

ख़ैर फिर सरकार को कुछ समझ आया और फोन की कॉलर ट्यून पर खांसी और कोरोना चेतावनी की जगह नया संदेश आया कि – हमें बीमार नहीं बीमारी से लड़ना है। संदेश कुछ इस तरह था-

'कोरोना वायरस से आज पूरा देश लड़ रहा है पर याद रहे कि हमें बीमारी से लड़ना है, बीमार से नहीं, उनसे भेदभाव न करें और उनकी देखभाल करें। इस बीमारी से बचने के लिए जो हमारे ढाल है, जैसे हमारे डॉक्टर्स, स्वास्थ्यकर्मी, पुलिसकर्मी और सफाईकर्मी, उनका सम्मान करें और उनका पूरा सहयोग करें।'

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संदेश तो अच्छा था लेकिन इस बीच सरकार, सत्तारूढ़ पार्टी बीजेपी, उसके सहोदर संगठन, उसके समर्थक और गोदी मीडिया समाज में घृणा का विष बो चुके थे। नफ़रत की दीवार खड़ी कर चुके थे।

यही वजह है कि जब गृहमंत्री अमित शाह के कोरोना संक्रमित होने की ख़बर आई तो लोग तरह-तरह की बातें करने लगे। बात वही है कि जब “बोया पेड़ बबूल का तो आम कहां से खाय”। जब हम अपने बच्चों को बुरी बातें सिखाएंगे तो अपने लिए अच्छी बातों की उम्मीद कैसे करेंगे।

लेकिन हम किसी भी अनर्गल बात का समर्थन नहीं करते। मगर हम कोई सवाल न पूछें ऐसा भी नहीं होना चाहिए।

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गृहमंत्री अमित शाह के स्वास्थ्य की चिंता और जल्द स्वस्थ होने की कामना करते हुए हम कहना चाहते हैं कि मुश्किल समय है लेकिन हमें सच और सवालों का साथ नहीं छोड़ना चाहिए। एक पत्रकार के लिए यही सही समय है कि सरकार से कुछ ज़रूरी सवालों के जवाब मांगें जाएं।

1.     सबसे महत्वपूर्ण सवाल तो यही है कि तमाम सुविधाओं और सावधानियों के बावजूद गृहमंत्री को कोरोना कैसे हो गया।

2.     और अगर हो गया तो गृहमंत्री देश के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल एम्स और दिल्ली के सबसे बड़े कोविड समर्पित अस्पताल राम मनोहर लोहिया अस्पताल (आरएमएल) को छोड़कर एक प्राइवेट अस्पताल मेदांता में क्यों भर्ती हुए। जबकि ये दोनों अस्पताल खुद केंद्र सरकार के अधीन हैं और सरकार के प्रचार के मुताबिक सबसे बेस्ट हैं।

3.   सवाल तो ये भी है कि हल्के लक्षण दिखने पर ही आप क्यों अस्पताल में भर्ती हुए जबकि अन्य लोगों को होम क्वारंटीन होने की ही सलाह दी जाती है। आपके ही ट्वीट के मुताबिक आप खुद को स्वस्थ महसूस कर रहे थे। चलिए मान लिया कि आप देश के गृहमंत्री हैं और इतने वीआईपी ट्रीटमेंट का आपका हक़ भी बनता है। फिर आपकी उम्र भी 55 है और पुरानी बीमारियां भी रही हो सकती हैं। इसलिए डॉक्टरों की निगरानी में रहना ज़रूरी हो सकता है।

कोरोना के शुरूआती लक्षण दिखने पर मैंने टेस्ट करवाया और रिपोर्ट पॉजिटिव आई है। मेरी तबीयत ठीक है परन्तु डॉक्टर्स की सलाह पर अस्पताल में भर्ती हो रहा हूँ। मेरा अनुरोध है कि आप में से जो भी लोग गत कुछ दिनों में मेरे संपर्क में आयें हैं, कृपया स्वयं को आइसोलेट कर अपनी जाँच करवाएं।

— Amit Shah (@AmitShah) August 2, 2020

 

4.  लेकिन सवाल यह भी है कि क्या आपने भी लापरवाही बरती या फिर मास्क और दो गज़ की दूरी भी काम न आई। अगर ऐसा है तो फिर किस आधार पर सब लोगों को काम पर भेज दिया है। सारे बाज़ार खोल दिए हैं।

इसे पढ़ें : कोरोना संकट : दो महीने बाद अचानक अभयदान! क्यों? कैसे?

5.   सवाल आपके आरोग्य सेतु ऐप को लेकर भी है, कि क्या वो वाकई काम नहीं करता। क्यों वो आपको और आपके आसपास वालों को एलर्ट नहीं कर पाया। या आपने भी उसे लोड नहीं कर रखा।

6. और आप गृहमंत्री हैं। यानी सरकार में नंबर दो। वैसे भी आप शुरू से ही मोदी जी के करीबी माने जाते हो। गृहमंत्री होकर भी आप प्रधानमंत्री के करीब ही रहे। बताया जाता है कि आप लगातार कैबिनेट मीटिंग में प्रधानमंत्री के साथ शामिल हुए। तो क्या अब हमारे प्रधानमंत्री पर भी कोई ख़तरा है। और अगर ख़तरा है तो एहतियात के लिए क्या किया जा रहा है। क्या जैसे डॉक्टर और आपकी सरकार आम लोगों को सलाह देती है कि कोरोना संक्रमित के संपर्क में आने पर अपना भी टेस्ट करवाना चाहिए और सेल्फ क्वारंटीन हो जाना चाहिए। तो क्या प्रधानमंत्री भी क्वारंटीन होने जा रहे हैं तो फिर 5 अगस्त के अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए भूमि पूजन का क्या होगा।

सुना है कि राम मंदिर के एक प्रमुख पुजारी और कई सुरक्षाकर्मियों को भी कोरोना की पुष्टि हो चुकी है।

और यह तो सबको ही पता है कि उत्तर प्रदेश में कोरोना किस तेज़ी से फैल रहा है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की कैबिनेट सहयोगी कमल रानी वरुण की कोरोना से मौत हो गई है। एक अन्य कैबिनेट मंत्री डॉ. महेंद्र सिंह भी संक्रमित हैं। यूपी भाजपा के अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह की रिपोर्ट भी पॉजिटिव आई है। यानी कुल मिलाकर यूपी सरकार पर कोरोना ने शिकंजा कस लिया है।

कैबिनेट मंत्री की मौत तो बहुत चिंता खड़ी कर दी है। ख़बरों के मुताबिक यूपी सरकार में प्राविधिक शिक्षा मंत्री कमल रानी वरूण का लखनऊ के संजय गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान में इलाज चल रहा था। वह 18 जुलाई को कोरोना संक्रमित पाई गईं थी। लेकिन यूपी के इतने बड़े हॉस्पटिल में भी उन्हें बचाया नहीं जा सका। इसलिए चिंता बड़ी हो जाती है।

चिंता इसलिए भी बड़ी हो जाती है कि यह कैबिनेट मंत्री और बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष लगातार लगातार मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के संपर्क में भी रहे होंगे और मुख्यमंत्री लगातार तैयारियों का जायजा लेने के लिए अयोध्या जा रहे हैं तो क्या ख़तरा बड़ा है। क्या मुख्यमंत्री को भी क्वारंटीन नहीं हो जाना चाहिए। या कम से कम किसी बड़े सार्वजनिक कार्यक्रम से तो खुद को दूर रखना चाहिए।

तो क्या अब इससे भूमि निर्माण पूजन बाधित होगा। क्या राम भी नहीं चाहते कि उस स्थान पर मंदिर बने जहां कुछ साल पहले (1992) तक एक मस्जिद थी और जिसके लिए सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा है कि मस्जिद का तोड़ा जाना एक आपराधिक कृत्य है।

 

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