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इस तरह से अडानी की कंपनी बन जाएगी देश की सबसे बड़ी 'प्राइवेट एयरपोर्ट ऑपरेटर'

अनुकूल प्रशासनिक व्यवस्था और राजनीतिक माहौल ने भारत के दूसरे सबसे अमीर शख़्स गौतम अडानी को जल्द ही देश के सबसे बड़े निजी एयरपोर्ट ऑपरेटर बनाने की स्थितियां बना दी हैं। जबकि उनके समूह का इस क्षेत्र में कोई पुराना अनुभव नहीं है।
इस तरह से अडानी की कंपनी बन जाएगी देश की सबसे बड़ी 'प्राइवेट एयरपोर्ट ऑपरेटर'
Image Courtesy: Money Control

कानूनी विवादों की एक लंबी श्रंखला (जिसमें दक्षिण अफ्रीका, मॉरीशस, अबू धाबी, कनाडा की कंपनियां तक शामिल थीं) और सरकारी एजेंसियों की छापेमारी के बाद, GVK समूह ने अगस्त के आखिरी दिन अडानी समूह के साथ "सहयोग" करना तय किया है। इस "सहयोग" के तहत अडानी समूह को GVK ने मुंबई के दो एयरपोर्ट का नियंत्रण ट्रांसफर कर दिया है। इन एयरपोर्ट में नवी मुंबई में बन रहा एक नया एयरपोर्ट भी शामिल है। हैदराबाद स्थित GVK समूह के मुखिया GVK रेड्डी हैं। यह समूह फिलहाल मुंबई में भारत के दूसरे सबसे बड़े एयरपोर्ट का संचालन भी करता है।

भारत के दूसरे सबसे अमीर आदमी, गौतम अडानी के प्रतिनिधित्व वाला अडानी समूह, भारत के पश्चिमी और पूर्वी तट पर स्थित बंदरगाहों पर नियंत्रण कर चुका है। गौतम अडानी की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से नज़दीकियां किसी से छुपी नहीं हैं। अब अडानी समूह हैदराबाद के GMR समूह पर नियंत्रण कर भारत का सबसे बड़ा एयरपोर्ट ऑपरेटर बनने के लिए तैयार है। GMR समूह फिलहाल दिल्ली में भारत के सबसे बड़े एयरपोर्ट और हैदराबाद एयरपोर्ट का संचालन करता है।

अडानी के लिए आगे का रास्ता कितना सीधा होगा, यह तो केवल वक़्त ही बता सकता है।

अडानी समूह का एयरपोर्ट के संचालन और प्रबंधन में कोई अनुभव नहीं था। अब महज़ दो साल में ही अहमदाबाद का यह समूह एक अहम इंफ्रास्ट्रक्चर सेक्टर में देश का सबसे बड़ा खिलाड़ी बनने वाला है। यह सब कैसे हुआ, उसकी कहानी बेहद दिलचस्प है। कानूनी छीनाझपटी वाली यह कहानी बताती है कि कैसे 'क्रॉनी कैपिटलिस्ट', माफ़ करिए, 'कुलीन पूंजीवादियों' के उभार के लिए प्रशासन को तोड़ा-मरोड़ा जाता है। इस काम में कानून का शासन लागू करने वाली एजेंसियां खूब सहयोग करती हैं। यह एजेंसियां इन कुलीन पूंजीवादियों/क्रॉनी कैपिटलिस्ट के खिलााफ़ प्रतिस्पर्धा को भयावह तरीके से कुचल देती हैं।

अनसुलझे कानूनी विवादों, केरल सरकार और सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी "एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया (AAI)" के कर्मचारियों की यूनियनों के विरोध के बावजूद, अडानी समूह जल्द ही देश के आठ एयरपोर्ट के संचालन पर नियंत्रण कर लेगा। मुंबई और नवी मुंबई के एयरपोर्ट के अलावा समूह ने लखनऊ (उत्तरप्रदेश), जयपुर (राजस्थान), गुवाहाटी (असम), अहमदाबाद (गुजरात), तिरुवनंतपुरम (केरल) और मैंगलोर (कर्नाटक) के एयरपोर्ट की बोली जीती है। इन एयरपोर्ट को AAI ने बनाया था।

अर्थव्यवस्था में सार्वजनिक स्वामित्व वाले क्षेत्रों का निजीकरण करने के लिए नरेंद्र मोदी सरकार काफ़ी जल्दबाजी में दिखाई देती है। इस दौरान एक खास व्यापारिक समूह को एक अहम इंफ्रास्ट्रक्चर सेक्टर में उस दौर में प्रभुत्व बनाने का मौका मिल गया, जब देश की अर्थव्यवस्था लगातार सिकुड़ रही है। फिलहाल जिन क्षेत्रों पर सबसे बुरी मार पड़ी है, उड्डयन क्षेत्र उनमें से एक है।

अडानी समूह ने खुद के लिए आवंटित 6 एयरपोर्ट्स में से 3 पर नियंत्रण के वक़्त हासिल कर लिया। महामारी के दौरान अडानी समूह ने सफलता के साथ GVK समूह से "मुंबई इंटरनेशनल एयरपोर्ट लिमिटेड (MIAL)" में बहुमत हिस्सेदारी भी हासिल कर ली। अडानी समूह के इस स्थिति में पहुंचने की कहानी ढाई साल पहले शुरू होती है। 

आगे बढ़ने की बेहद तेज गति

अप्रैल 2018 में प्रधानमंत्री ऑफिस (PMO) ने वित्तमंत्रालय में आर्थिक मामलों के विभाग और नीति आयोग को AAI के नियंत्रण से 6 एयरपोर्ट को हटाने और उन्हें निजी क्षेत्र को देने के लिए "तंत्र" बनाने का निर्देश दिया। इसके लिए कई सुविधाएं जोड़ी गईं।

जिन निजी खिलाड़ियों को संचालन के अधिकार हासिल होते, वे एयरपोर्ट के पास स्थित ज़मीन पर रियल एस्टेट का विकास कर कमाई कर सकते थे। दिल्ली और मुंबई के दो सबसे बड़े एयरपोर्ट में निजीकरण के लिए "राजस्व-बंटवारे" का मॉडल लागू है। यहां AAI के साथ निजी खिलाड़ियों को दिल्ली और मुंबई में क्रमश: 45.99 फ़ीसदी और 38.7 फ़ीसदी राजस्व बांटना पड़ता है। लेकिन हाल में जिन 6 एयरपोर्ट का निजीकरण हुआ, वहां सरकार ने "प्रति यात्री शुल्क" वाला नया राजस्व मॉडल पेश किया। इसके अलावा इनकी लीज़ अवधि को भी 30 साल से बढ़ाकर 50 साल कर दिया। बता दें दिल्ली और मुंबई एयरपोर्ट को 30 साल की लीज़ पर दिया गया था। 

एक दशक पहले, 2008 में, जब दिल्ली और मुंबई एयरपोर्ट का निजीकरण किया जा रहा था, तब AAI और निजी ऑपरेटर्स के बीच हितों के टकराव से बचने को सरकार ने "एयरपोर्ट इकनॉमिक रेगुलेटरी अथॉरिटी (AERA)" नाम का एक स्वतंत्र वैधानिक निकाय बनाया था। AERA का काम "बड़े एयरपोर्ट्स" के लिए टैरिफ, खर्च, शुल्क और दूसरे मद तय करना था। एक बड़ा एयरपोर्ट वह होता है, जहां 15 लाख या उससे ज़्यादा यात्रियों का सालाना आवागमन हो।  

2018 में संसद के मानसून सत्र में मोदी सरकार ने AERA कानून, 2008 में बदलाव लाने की कोशिश की। इसके लिए एक विधेयक पेश किया गया। विेधेयक में AERA की टैरिफ और एयरपोर्ट विकास शुल्क तय करने की शक्ति वापस लेने का प्रस्ताव दिया गया। सबसे अहम कि सरकार ने बड़े एयरपोर्ट की परिभाषा बदलने की कोशिश की। इसके लिए वार्षिक यात्री आवागमन को 15 लाख से बढ़ाकर 35 लाख करने का प्रस्ताव विधेयक में दिया गया था। लेकिन सरकार विधेयक को पास नहीं करवा पाई।

इसके बावजूद सरकार ने 14 दिसंबर, 2018 को निजी खिलाड़ियों से 6 एयरपोर्ट्स के अपग्रेडेशन और संचालन के लिए बोलियां मंगवा लीं। इन 6 एयरपोर्ट में अहमदाबाद, लखनऊ, जयपुर, गुवाहाटी, तिरुवनंतपुरम और मैंगलोर शामिल थे। AAI की शुल्क निर्धारण करने की क्षमता पर रोक लगाने के लिए, निजी खिलाड़ियों से बोलियों में "प्रति यात्री शुल्क" दर्शाने के लिए कहा गया। बोली इनके आधार पर ही तय की जानी थी।

इन 6 एयरपोर्ट के निजीकरण की निविदाएं बेहद तेजी से पास की गईं। फरवरी, 2019 में सरकार ने कहा कि सभी 6 बोलियां अडानी समूह को हासिल हुई हैं। जबकि समूह का एयरपोर्ट संचालन के क्षेत्र में कभी कोई अनुभव नहीं रहा। अडानी समूह को फायदा पहुंचाने के लिए कैसे सरकार द्वारा इन बोलियों के नियमों को तोड़ा-मरोड़ा गया और कैसे DEA समेत नीति आयोग के अधिकारियों के अहम सुझावों को नजरंदाज किया गया था, इस पूरी प्रक्रिया पर न्यूज़क्लिक ने 27 मार्च, 2019 को एक लेख प्रकाशित किया था।

उस साल 4 जुलाई को केंद्रीय कैबिनेट की एक बैठक में मोदी सरकार ने नीलामियों पर मुहर लगा दी और 6 में से 3 एयरपोर्ट (अहमदाबाद, लखनऊ और मैंगलोर) का संचालन 50 साल के लिए अडानी समूह को दे दिया।

एक महीने बाद 2 अगस्त को संसद ने एक विधेयक पास किया, जिसके ज़रिए AERA की शक्तियों में संशोधन कर दिया गया। केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री हरदीप पुरी ने कहा कि AAI के पास जो 33 एयरपोर्ट हैं, उनमें से 16 का संचालन AERA के ज़रिए होगा, वहीं बाकि 17 एयरपोर्ट का संचालन सरकार करेगी। मुनाफ़ा कमाने वाले सभी एयरपोर्ट को AERA के अधिकार क्षेत्र से बाहर कर नागरिक उड्डयन मंत्रालय के अंतर्गत ला दिया गया। 

UPA सरकार द्वारा हवाईअड्डों का निजीकरण

जब कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने दिल्ली और मुंबई हवाईअड्डों को निजी कंपनियों को देने का फ़ैसला किया था, उसके पहले एक बड़ा विवाद हुआ था।

यह आरोप लगाया गया कि उस वक़्त के नागरिक उड्डयन मंत्री प्रफुल्ल पटेल ने नीलामी की शर्तों को इस तरह बदलने की कोशिश की, जिससे अविभाजित रिलायंस समूह को फायदा मिल सके। 

जनवरी, 2006 में इस लेख के एक लेखक ने बताया था कि कैसे योजना आयोग के एक सिविल सर्वेंट गजेंद्र हाल्दिया के हस्तक्षेप की वज़ह से अनिल अंबानी के नेतृत्व वाली कंपनी को फायदा पहुंचाने की कोशिशें नाकाम हो गईं। अंतत: GMR समूह को दिल्ली एयरपोर्ट और GVK समूह को मुंबई एयरपोर्ट की बोली हासिल हुई। उस वक़्त यह तय किया गया कि एक ही समूह दोनों एयरपोर्ट का संचालन नहीं कर सकता है, जबकि एक बोली कम लगाई गई थी। लेकिन अडानी को फायदा पहुंचाने के लिए इस नीति को किनारे कर दिया गया।

2 अप्रैल, 2006 को GVK समूह ने AAI, एयरपोर्ट कंपनी ऑफ साउथ अफ्रीका (ACSA) और टैक्स हैवन मॉरीशस में इसकी सहयोगी, बिड सर्विस डिवीज़न लिमिटेड (बिडवेस्ट) के साथ कंसोर्टिअम पर हस्ताक्षर कर "मुंबई इंटरनेशनल एयरपोर्ट लिमिटेड (MIAL)" बनाई। MIAL में GVK 37 फ़ीसदी हिस्सेदारी के साथ सबसे बड़ा शेयरधारक था, वहीं बिडवेस्ट की 27 फ़ीसदी, ACSA की 10 फ़ीसदी और AAI की 26 फ़ीसदी हिस्सेदारी थी। 

MIAL के "शेयरहोल्डर्स एग्रीमेंट (SHA)" और "आर्टिकल्स ऑफ एसोसिएशन (AoA)" पर चारों संस्थानों के प्रतिनिधियों ने दो दिन बाद हस्ताक्षर किए थे। इसमें एक उपबंध जोड़ा गया, जिसके मुताबिक़, अगर कोई निजी भागीदार कंपनी में अपने मताधिकारों या इक्विटी शेयर्स का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष हस्तांतरण करना चाहता है, तो कंसोर्टियम के दूसरे सदस्य शेयर्स खरीदने के लिए "पहली मनाही के अधिकार (राइट्स ऑफ फर्स्ट रिफ्यूज़ल- ROFR)" का इस्तेमाल कर सकते हैं।

2011 में बिडवेस्ट ने अपने 50 फ़ीसदी शेयर्स GVK को बेच दिए, जिसके बाद MIAL में उसकी हिस्सेदारी 13.5 फ़ीसदी रह गई। इस तरह GVK के पास 50.5 फ़ीसदी के बहुमत शेयरधारक हो गए। उसी साल 26 जनवरी को बिडवेस्ट ने कंसोर्टिअम के दूसरे सदस्यों को 30 दिन का नोटिस देकर MIAL से निकलने की बात कही। इसके एवज़ में 1,248 करोड़ रुपये (प्रति शेयर 77.083 रुपये) की मांग की गई। 

तस्वीर में अडानी का प्रवेश

पांच दिन बाद 31 जनवरी को इकनॉमिक टाइम्स ने बताया कि बिडवेस्ट के पास MIAL में 13.5 फ़ीसदी हिस्सेदारी खरीदने के लिए खरीददार मौजूदा है। कंसोर्टिअम के दूसरे सदस्यों को जो नोटिस दिया गया है, वह ROFR (पहली मनाही के अधिकार) के प्रावधान से निपटने के लिए दिया गया है। बिज़नेस स्टेंडर्ड की रिपोर्ट के मुताबिक़, बिडवेस्ट ने अपनी हिस्सेदारी तब खरीदने का मन बनाया, जब अडानी समूह उसी महीने उसके पास अपनी पेशकश लेकर गया। 

19 फरवरी को GVK ने बिडवेस्ट के सामने दलील रखी कि जो ऑफर नोटिस दिया गया था, वह गड़बड़ और अमान्य था। यह SHA (शेयरहोल्डर्स एग्रीमेंट) के प्रावधानों के हिसाब से सही नहीं था। तीन दिन बाद फॉयनेंशियल प्रेस ने बताया कि अडानी समूह ने अडानी प्रॉपर्टीज़ के ज़रिए बिडवेस्ट और ACSA की 23.5 फ़ीसदी हिस्सेदारी खरीदने की पेशकश की थी।

अडानी के प्रस्ताव के मुताबिक़, MIAL की कीमत करीब़ 9500 करोड़ रुपये आंकी गई। उस दिन अडानी समूह की कंपनियों ने ACSA के साथ एक शेयर पर्चेज़ एग्रीमेंट (SPA) किया। उसी दिन GVK ने बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (BSE) को बताया कि GVK पॉवर एंड इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड (GVKPIL) की एक सहयोगी कंपनी GVK एयरपोर्ट होल्डिंग लिमिटेड (GVKAHL), MIAL में 77 रुपये प्रति शेयर के हिसाब से बिडवेस्ट की 13.5 फ़ीसदी हिस्सेदारी खरीदेगी।

4 मार्च 2019 को बि़डवेस्ट ने प्रस्तावित SPA, GVK को भेजा और कहा कि खरीददार को पूरा लेनदेन करने के लिए 30 दिन का वक़्त दिया गया है। अगले दिन बिडवेस्ट ने अडानी समूह के साथ एक सशर्त SPA पर हस्ताक्षर कर लिए। बिडवेस्ट ने कहा कि यह लेनदेन तभी पूरा हो पाएगा, जब निम्न तीन पूर्व-शर्तें पूरी हो पाएंगी:

1) अगर कंसोर्टिअम के तीनों सदस्यों ने ROFR का इस्तेमाल करते हुए बिडवेस्ट को खरीदने के अपने अधिकारों का उपयोग नहीं किया।

2) ROFR (पहली मनाही के अधिकार) से छूट दे दी जाए।

3) ROFR का इस्तेमाल करने के बावजूद, अगर संबंधित शेयरधारक ने MIAL के SHA और AoA में बताई गई समयसीमा में अपनी खरीददारी पूरी नहीं की।

7 मार्च को AAI ने बिडवेस्ट और GVK को पत्र लिखकर SHA की शर्तों का पालन करने और 30 दिन के भीतर लेनदेन करने के लिए कहा। GVK ने जवाब में कहा कि उसने अपने ROFR का इस्तेमाल किया है। एक हफ़्ते बाद बिडवेस्ट ने GVK  को सूचित करते हुए लिखा कि अगर 4 मार्च से लेकर 30 दिन में SPA लागू नहीं किया गया, तो SHA के समझौते के मुताबिक़, बिडवेस्ट को अपने शेयर AAI को प्रस्तावित करने का अधिकार होगा। अगर AAI उन्हें खरीदने में रुचि नहीं रखता है, तो बिडवेस्ट उन शेयरों की बिक्री अपने मनमुताबिक़ खरीददार को कर सकता है। 

GVK ने SPA में बदलाव के सुझाव दिए और 16 मार्च को बिडवेस्ट से बदले गए समझौते को लागू करने के लिए कहा। बिडवेस्ट ने बदलाव मानने से इंकार कर दिया और कहा कि 4 अप्रैल लेनदेन पूरा करने की अंतिम तारीख़ (या लॉन्ग स्टॉप डेट) होगी। MIAL ने 22 मार्च को BSE को सूचित करते हुए कहा कि कंपनी ने ROFR के अपने अधिकारों का इस्तेमाल करते हुए ACSA की 10 फ़ीसदी हिस्सेदारी 77 रुपये प्रति शेयर पर खरीद ली है।

26 मार्च को GVK ने हस्ताक्षरित SPA बिडवेस्ट को भेजा और उससे दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर कर वापस भेजने को कहा। एक दूसरे ईमेल में GVK ने बिडवेस्ट को ध्यान दिलाया कि SHA और AoA में "लॉन्ग स्टॉप डेट" जिक्र नहीं है। साथ में SPA के कुछ उपबंधों से MIAL के SHA और AoA के साथ विरोधाभास है।

अगले दिन बिडवेस्ट ने MIAL के निवेशकों को लिखा कि देश का सबसे बड़ा बैंक- स्टेट बैंक ऑफ इंडिया और उसकी सहयोगी SBICAP ट्रस्टी कंपनी लिमिटेड प्रस्तावित लेनदेन के लिए सहमति मांग रहे हैं। SBI ने तुरंत जवाब में कहा कि यह मांग MIAL की तरफ से आनी चाहिए और उधारदाताओं को दो महीने का नोटिस दिया जाना चाहिए।

29 मार्च को बिडवेस्ट ने MIAL से GVK के साथ अपने लेनदेन के लिए उधारदाताओं की सहमति लेने की अपील की। MIAL ने तब बिडवेस्ट को संबंधित दस्तावेज़ों के साथ एक औपचारिक अपील दायर करने को कहा। इन दस्तावेज़ों में टर्मशीट की एक कॉपी भी देने को कहा गया, ताकि अपील पर MIAL के AAI के साथ 2006 में हस्ताक्षरित OMDA (ऑपरेशन, मैनेजमेंट एंड डिवेल्पमेंट एग्रीमेंट) के तहत विचार किया जा सके।

(एक टर्मशीट छोटे बुलेट प्वाइंट वाला दस्तावेज़ होता है, जो किसी व्यापारिक समझौते के होने के बाद मुख्य शर्तो को दर्शाता है, इसकी मदद से वकील अंतिम समझौता तैयार करते हैं।)

GVK ने बाद में आरोप लगाया कि बिडवेस्ट ने ना तो MIAL के पत्रों का जवाब दिया और ना ही जरूरी सहमतियां लेने के लिए सहयोग करने वाले दस्तावेज़ उपलब्ध करवाए।

कानूनी तनातनी हुई जटिल

2 अप्रैल को GVK ने बिडवेस्ट, ACSA और AAI के खिलाफ़, आर्बिट्रेशन एंड कांसिलेशन एक्ट, 1996 के सेक्शन 9 के तहत दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की। इसमें MIAL में बिडवेस्ट की साझेदारी को किसी तीसरे पक्ष को बेचे जाने पर रोक लगाने की मांग की गई थी। मीडिया ने अंदाजा लगाया कि यह अडानी को MIAL पर नियंत्रण करने से रोकने की GVK की कोशिश है।

3 अप्रैल, 2019 को बिडवेस्ट ने फिर उधारदाताओं को पत्र लिखकर अपने शेयर्स GVK को बेचने पर सहमति की मांग की। 8 अप्रैल को इकनॉमिक टाइम्स ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि GVK  अबू धाबी इंवेस्टमेंट अथॉरिटी (ADIA) और नेशनल इंवेस्टमेंट एंड इंफ्रास्ट्रक्चर फंड (NIIF) से अपने मुंबई एयरपोर्ट में 6,500 करोड़ रुपये के निवेश के लिए बात कर रही है, ताकि गौतम अडानी को बिडवेस्ट की हिस्सेदारी खरीदने से रोका जा सके।

GVK समूह का प्रतिनिधित्व करने वाले वकीलों ने दिल्ली हाईकोर्ट को 11 अप्रैल को बताया कि एक शांतिपूर्ण समझौता किए जाने की कोशिशें चल रही हैं। कोर्ट ने बिडवेस्ट से GVK की याचिका का एक हफ़्ते में जवाब देने के लिए कहा और सुनवाई 29 अप्रैल तक के लिए टाल दी। 18 अप्रैल को GVK ने BSE को सूचित किया कि कंपनी ने ADIA व NIIF से GVK एयरपोर्ट होल्डिंग्स लिमिटेड के नए शेयर्स में निवेश के लिए "एक्सक्लूसिविटी एग्रीमेंट" और टर्मशीट पर हस्ताक्षर कर लिए हैं। यह हिस्सेदारी 49 फ़ीसदी तक होगी।

25 अप्रैल को GVK ने बिडवेस्ट के खिलाफ़ SHA का आर्बिट्रेशन क्लाज़ खोल दिया। दावा करने वाले पक्षों ने हाईकोर्ट को 29 अप्रैल को सूचित किया कि दोनों एक समझौते पर पहुंच गए हैं। दोनों पक्षों ने कोर्ट से याचिका को खत्म करने के लिए आग्रह किया। करीब़ दो हफ़्ते बाद बिडवेस्ट ने कोर्ट के सामने मांग रखी कि कोर्ट GVK को बिडवेस्ट की MIAL में हिस्सेदारी खरीदने के लिए जरूरी 1248.75 करोड़ रुपये अपने पास होने का सबूत देने का निर्देश दे।

8 मई को कोर्ट ने सभी पक्षों से दोबारा पूछा कि क्या वो वाकई में समझौते के लिए तैयार हैं। वहां वकीलों ने जो तर्क दिए, वह GVK और बिडवेस्ट के बीच जारी तनातनी को बेहतर ढंग से दिखाते हैं। बिडवेस्ट के मुताबिक़, GVK को MIAL के ज़रिए AAI को एक ख़त जमा करना होगा। साथ में SBI और सिक्योरिटी ट्रस्टी के ज़रिए उधारदाताओं को एक और अपीलीय पत्र लिखना होगा। साथ में टर्म शीट भी देनी होगी।

कोर्ट में सुनवाई के दौरान पता चला कि MIAL ने इस लेनदेन के लिए उधारदाताओं से अनुमति नहीं ली थी। बिडवेस्ट ने तर्क दिया कि GVK ने AAI से अनुमति मिलने के बाद पांच दिन के भीतर कभी पैसे चुकाने की अपनी वित्तीय क्षमता का कभी प्रदर्शन नहीं किया। बिडवेस्ट ने यह भी कहा कि कंपनी को यह विश्वास नहीं है कि इतनी बड़ी मात्रा का पैसा GVK चुका पाएगी। कोर्ट में तर्क दिया गय़ा कि अगर खरीददार कोई तीसरा पक्ष है, तो लेनदेन की समयसीमा 30 दिन के बजाए 90 दिन होनी चाहिए, क्योंकि इस स्थिति में ज़्यादा अनुमतियां लिए जाने की जरूरत होती है।

दिलचस्प बात यह रही है कि AAI ने कोर्ट में बिडवेस्ट को समर्थन दिया।

एक जुलाई को दिल्ली हाईकोर्ट ने GVK की याचिका खारिज कर दी। 68 पेज के अपने आदेश में कोर्ट ने कहा, "GVK ने इस बात का प्रदर्शन नहीं किया कि उसके पास शेयर्स के अधिग्रहण को पूरा करने की वित्तीय क्षमताएं मौजूद हैं।" कोर्ट ने आगे कहा, " कोर्ट ने जो मत दिया है वह सिर्फ प्राथमिक विचार है। कहने की जरूरत नहीं है कि यह आर्बिट्रल ट्रिब्यूनल पर बाध्यकारी नहीं होगा। ट्रिब्यूनल द्वारा दावों की योग्यता के परीक्षण पर कोर्ट के इस फ़ैसले की राय का प्रभाव नहीं पड़ना चाहिए। 

इसके तुरंत बाद बिडवेस्ट ने AAI को ROFR के तहत, MIAL में अपनी 13.5 फ़ीसदी हिस्सेदारी बेचने के लिए नोटिस जारी कर दिया। जुलाई के मध्य में पब्लिक सेक्टर पेंशन इंवेस्टमेंट बोर्ड (PSP इंवेस्टमेंट) ने ADIA और NIIF के साथ मिलकर GVK समूह की एयरपोर्ट कंपनी में 49 फ़ीसदी हिस्सेदारी खरीदने के लिए 6000 करोड़ रुपये लगाने में हाथ बंटाने का फैसला लिया। इस दौरान कंपनी का मूल्य, अडानी द्वारा लगाए गए मूल्य (9,500 करोड़) से 2,500 करोड़ रुपये या 27 फ़ीसदी ज़्यादा आंका गया।

इस बीच ACSA ने GVK को अपनी हिस्सेदारी खरीदने के लिए 30 सितंबर तक का वक़्त दिया। इस वक्त में GVA को ACSA की 10 फ़ीसदी हिस्सेदारी के लिए 950 करोड़ रुपये चुकाने थे। बता दें पहले हुई मुकदमेबाजी में ACSA पक्ष नहीं थी। 15 जुलाई को GVE ने BSE को स्पष्टीकरण जारी करते हुए कहा कि समूह में निवेश संबंधी मीडिया में जारी बातें महज़ "बाज़ारू अफवाहें" हैं।

26 जुलाई को भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग ने GVK को ACSA की 10 फ़ीसदी हिस्सेदारी खरीदने की अनुमति दे दी।

4 सितंबर को अडानी समूह ने बिडवेस्ट और MIAL के दूसरे शेयरधारकों को मुंबई हाईकोर्ट में खींच लिया। यहां एक दिलचस्प बात यह हुई कि नागरिक उड्डयन मंत्रालय को भी एक पक्ष बना लिया गया। अडानी ने तर्क दिया कि चूंकि बिडवेस्ट द्वारा GVK पर लगाई गई "लांग स्टॉप डेट" 4 अप्रैल को खत्म हो चुकी है, इसलिए GVK द्वारा शेयर खरीदने के अधिकार खत्म हो चुके हैं। यहां GVK द्वारा GVK PIL, GVK DL और GVK AHL में ADIA और NIIF के निवेशों के ज़रिए जो पैसा इकट्ठा किया जा रहा है, दरअसल वह शेयरों का हस्तांतरण है, जो SPA के तहत प्रतिबंधित है।

अडानी के वकील ने कोर्ट में अपनी दलील में कहा, "हमारा बिडवेस्ट के साथ एक समझौता हुआ है, जो पवित्र है। हम MIAL में एक निवेशक द्वारा अपने शेयर्स को किसी तीसरे पक्ष को हस्तांतरण करने पर कोर्ट द्वारा प्रतिबंध लगाने की अपील करते हैं। समझौते के तहत, बिडवेस्ट ने हमें अपनी हिस्सेदारी 1,235 करोड़ रुपये में बेचने पर सहमति दी है।"

सितंबर के दूसरे हफ़्ते में, कुछ जगह प्रकाशित रिपोर्ट्स में दावा किया गया कि AAI बिडवेस्ट और ACSA दोनों के शेयर्स खरीद सकती है। इसके बाद AAI ने एक सफाई देते हुए कहा कि कंपनी MIAL में अपने ROFR विकल्प को इस्तेमाल करने की मंशा नहीं रखती, ना ही दोनों बिक्रियों में किसी तरह की खरीद में उसका रुझान है।

जब बॉम्बे हाईकोर्ट में मुकदमा जारी ही था, तभी आर्बिट्रल ट्रिब्यूनल, दिल्ली ने 15 सिंतबर, 2019 को आर्बिट्रेशन एंड कंसीलिएशन एक्ट, 1996 के सेक्शन 17 के तहत एक आदेश जारी कर दिया। आदेश में GVK को 31 अक्टूबर तक या उससे पहले, SBI के ब्याज़ लगने योग्य "एसक्रो अकाउंट" में 1,248.75 करोड़ रुपये ज़मा करने को कहा गया। आदेश में कहा गया कि अगर GVK ऐसा करने में नाकामयाब रहती है, तो बिडवेस्ट MIAL में अपने शेयर्स को अडानी को बेचने के लिए स्वतंत्र होगी। लेकिन अगर तय तारीख से पहले पैसा ज़मा कर दिया गया, तो 24 नवंबर को अगली सुनवाई तक बिडवेस्ट बिक्री से संबंधित लेनदेन पर आगे नहीं बढ़ पाएगी। 

एक अक्टूबर को अडानी समूह ने बॉम्बे हाईकोर्ट को सूचित किया कि बिडवेस्ट के साथ समूह का SPA सात नवंबर तक बढ़ गया है। कुछ दिन बाद अडानी ने कोर्ट में एक अंतरिम आवेदन लगाया। इसमें बिडवेस्ट, ACSA और AAI को बिना ROFR नोटिस दिए GVKAHL द्वारा GVKADL और GVKPIL को शेयर जारी या हस्तांतरित करने पर रोक लगाने की मांग की गई। अडानी ने कोर्ट से कहा कि अगर बिना ROFR नोटिस के शेयर हस्तांतरित होते हैं, तो उसे MIAL के शेयर्स का किसी तीसरे पक्ष को अप्रत्यक्ष हस्तांतरण माना जाए।

अडानी ने अंतरिम आवेदन में यह अपील भी की- "अगर GVK 1,248.75 करोड़ रुपये ज़मा कर देती है, तो बिडवेस्ट द्वारा GVK या उसके सहयोगियों को किसी भी तरह के शेयर हस्तांतरण के पहले 48 घंटे का नोटिस जारी किया जाए।"

जस्टिस ए के मेनन ने साफ कहा कि कोर्ट इस तरह का निर्देश जारी नहीं कर सकता और उन्होंने अगली सुनवाई के लिए 5 नवंबर का दिन तय किया।

उद्योग मामलों के मंत्रालय द्वारा जांच

15 अक्टूबर को एक रिपोर्ट में बताया गया कि सितंबर की शुरुआत में उद्योग मामलों के मंत्रालय (MCA) ने GVK समूह की 11 कंपनियों को एक "व्हिसल ब्लोअर" की शिकायत पर नोटिस जारी किया। इन कंपनियों में MIAL भी शामिल थी। GVK ने आधिकारिक तौर पर BSE से इस बात की पुष्टि की थी कि MIAL को उद्योग मंत्रालय की तरफ से कंपनीज़ एक्ट के सेक्शन 206 (4) में एक नोटिस मिला था। लेकिन GVK समूह की दूसरी कंपनियों को यह नोटिस नहीं दिया गया था। सेक्शन 206 (4) रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीज़ (RoC) की "जांच" से संबंधित है, यह जांच, कंपनी द्वारा जमा किए गए वित्तीय नतीज़ों में भ्रष्टाचार से संबंधित होती है। GVK ने "व्हसिल ब्लोअर" की शिकायत वाली मीडिया रिपोर्ट्स को भी खारिज कर दिया।

RoC द्वारा की गई जांच में कुछ भी सामने नहीं आया। लेकिन MIAL में अलग-अलग पक्षों में कानूनी तनातनी जारी रही।

27 अक्टूबर को BSE में भरे गए दस्तावेज़ों में GVK ने बताया कि GVKAHL और GVKADL, ADIA, PSP इंवेस्टमेंट और NIIF के साथ GVKAHL में 7,614 करोड़ रुपये निवेश करने के एक "निश्चित समझौते" में शामिल हो चुकी हैं। समझौते की शर्तों के मुताबिक़, लेनदेन खत्म होने के बाद, GVKAHL में चार साझेदार- GVKADL, ADIA, PSP इंवेस्टमेंट और NIIF होंगे। इसमें GVKAHL के पास 20.9 फ़ीसदी शेयर्स होंगे, वहीं बाकी तीन 26.33 फ़ीसदी शेयर्स के मालिक होंगे। समझौते के मुताबिक़, "लेनदेन से हासिल को GVK मुख्य तौर पर अपनी कंपनियों के कर्ज़ को चुकाने और MIAL में GVKAHL, ACSA और बिडवेस्ट से अतिरिक्त शेयर खरीदने के लिए इस्तेमाल करेगा।"

31 अक्टूबर को GVK ने आर्बिट्रेशन ट्रिब्यूनल के आदेशानुसार, SBI के संबंधित खाते में 1,248.75 करोड़ रुपये जमा कर दिए। 6 नवंबर को बॉम्बे हाईकोर्ट ने अडानी की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें बिडवेस्ट के अपनी हिस्सेदारी को GVK या किसी और को बेचने पर रोक लगाने की मांग की गई थी। अडानी समूह के वकील ने कहा, "कंपनी तय पैसा ज़मा करने के लिए तैयार है, बशर्ते बिडवेस्ट 7 नवंबर की तारीख़ को बढ़ाकर 7 फरवरी, 2020 कर दे।" बिडवेस्ट ने इस मांग को पहले ही नकार दिया था। 11 नवंबर को अडानी ने कोर्ट में अपील करते हुए कोर्ट से ACSA को अपने 10 फ़ीसदी शेयर GVK  या किसी और को हस्तांतरित करने पर रोक लगाने की मांग की।

14 नवंबर को CCI ने एक आदेश दिया, जिसमें अडानी को MIAL में बिडवेस्ट के 13.5 फ़ीसदी और ACSA के दस फ़ीसदी शेयर अधिग्रहित करने की अनुमति दे दी गई। आदेश में कहा गया कि अडानी अनुमति की अपील 17 अक्टूबर को दाखिल कर चुका था। साथ में कंपनी ने बिडवेस्ट और ACSA के साथ क्रमश: 5 मार्च और 22 मार्च को SPA पर हस्ताक्षर कर दिए थे।

ट्रिब्यूनल ने 24 नवंबर से अगले तीन दिन तक लगातार मामले की सुनवाई की, लेकिन दलीलों को पूरा नहीं किया जा सका। 7 दिसंबर को दिल्ली हाईकोर्ट ने बिडवेस्ट की याचिका खारिज कर दी। कोर्ट ने कहा कि ट्रिब्यूनल अपनी सुनवाई कर रहा है, फिलहाल हस्तक्षेप करने की कोई वजह नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट के पास पहुंचा विवाद

दिल्ली हाईकोर्ट के फ़ैसले के खिलाफ़ बिडवेस्ट सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई। कंपनी ने दलील दी कि शेयर बिक्री में अगर और ज़्यादा वक़्त लगाया जाता है, तो उसके व्यापारिक हित प्रभावित होंगे और अडानी प्रस्तावित खरीद से पलट सकता है। बिडवेस्ट ने अपनी दलील में कहा कि अगर GVK के पास खरीद के लिए पैसा है, तो उसे 16 दिसंबर तक इसका सबूत पेश करना चाहिए।

10 जनवरी को ACSA ने भी आर्बिट्रेशन सुनवाईयों को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। इकनॉमिक टाइम्स में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक़, "ACSA को आर्बिट्रेशन बेंच में मौजूद तीन लोगों के साथ अपनी पसंद या फिर सुप्रीम कोर्ट द्वारा सुझाए गए व्यक्ति की तैनाती की इच्छा है। सुप्रीम कोर्ट ने GVK, MIAL और AAI को अपनी प्रतिक्रिया देने के लिए 8 जुलाई, 2020 को होनी वाली अगली सुनवाई तक का वक़्त दिया।

सुप्रीम कोर्ट ने आर्बिट्रेशन ट्रिब्यूनल से अपने सामने आए आवेदन को रद्द करने को कहा। 13 जनवरी को बिडवेस्ट ने सुप्रीम कोर्ट में दलील दी कि GVK जानबूझकर मामले को लंबा खींच रहा है, क्योंकि उसके पास लेनदेन चुकता करने के लिए पैसे नहीं है। बिडवेस्ट ने याद दिलाया कि अडानी के साथ उसके SPA की वैधता 31 जनवरी को खत्म हो जाएगी। सुप्रीम कोर्ट ने आर्बिट्रेशन पैनल से 27 जनवरी को अंतिम फ़ैसला लेने के लिए कहा और मामले को अगले दिन सुनवाई के लिए टाल दिया।

19 जनवरी को ट्रिब्यूनल ने आर्बिट्रेशन प्रक्रिया खत्म होने तक अडानी को बिडवेस्ट में हिस्सेदारी खरीदने से रोक दिया। ट्रिब्यूनल ने बिडवेस्ट से अपने अधिकारों को ना बेचने के लिए भी कहा। साथ में GVK को 1,248.75 करोड़ रुपये पर विवाद निपटारा होने तक ब्याज़ देने के लिए भी कहा। आदेश में कहा गया, "15 सितंबर 2019 को दिए गए फ़ैसले से अपनी सहमति दिखाते हुए GVK ने जो 'एसक्रो डॉक्यूमेंट' ज़मा किए हैं, उनमें आर्बिट्रल प्रक्रिया के पूरे होने तक कोई बदलाव नहीं किया जाएगा।"

जिस दिन यह पता चला कि GVK के पास SBI में बनाए गए एसक्रो अकाउंट और MIAL की दूसरी दो कंपनियों में डालने के लिए पैसा नहीं है, 'जर्सी एंड इंडो-इंफ्रा इंक ऑफ कनाडा' की ग्रीन रॉक B 2015 ने GVK की ओर से राशि एसक्रो अकाउंट में डाल दी। ट्रिब्यूनल ने भी इसे मान्यता दी। उसने माना की यह GVK द्वारा उसके आदेश का पालन है।

28 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने बिडवेस्ट की याचिका रद्द कर दी। इसके लिए कोर्ट ने ट्रिब्यूनल के अंतरिम आदेश का हवाला दिया और कहा कि अगर कंपनी चाहे तो दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका लगा सकती है। तब कंपनी दिल्ली हाईकोर्ट पहुंच गई, जहां 19 सुनवाईयों के बाद भी उसकी याचिका लंबित है।

3 फरवरी को हताश ACSA ने विदेश मंत्रालय और नागरिक उड्डयन मंत्रालय के पास MIAL में अपनी 10 फ़ीसदी हिस्सेदारी बेचने में मदद करने के लिए गुहार लगाई। बिज़नेस स्टेंडर्ड ने ASCA ग्रुप एक्ज़ीक्यूटिव चार्ल्स शिलोस की बात छापी, उन्होंने कहा, "कई मुकदमों और नियामक सहमतियों के चलते हमारी बिक्री प्रक्रिया बेहद निराशा के दौर में है। इसलिए हमें इस बिक्री में बहुत देर हो रही है। कानूनी प्रक्रिया के चलते होने वाली अनिश्चित देरी और विपरीत प्रशासनिक अनुमतियों के चलते भारत में हमारे भविष्य के निवेश पर चिंता छा गई है।"

GVK के एक प्रवक्ता ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा, "हम बिडवेस्ट और ACSA के साथ तब लेनदेन पूरा कर देंगे, जब वे मुकदमे खत्म कर देंगे। वह हमारे पहली मनाही के अधिकार का हनन करने की कोशिश कर रहे हैं, इसके बजाए उन्हें शेयरधारक समझौते के हिसाब से लेनदेन करना चाहिए।"

CBI और ED की एंट्री

27 जून को CBI ने GVK समूह के प्रायोजकों और AAI के "अज्ञात" अधिकारियों के खिलाफ एक FIR दर्ज की। FIR में दोनों पर "मिलीभगत और जानबूझकर फर्जीवाड़ा" करने और "मुंबई एयरपोर्ट के विकास" के लिए दिए गए पैसे को अपने झोले में डालकर सरकारी राजकोष को नुकसान पहुंचाने का आरोप लगाया गया। FIR (जिसे लेख के लेखक ने देखा है) "विश्वासपात्र सूत्रों" की सूचना पर आधारित थी। 

FIR कहती है कि GVK ने मुंबई एयरपोर्ट में 200 एकड़ के विकास के लिए 9 कंपनियों में पैसे डाले, लेकिन वह विकास कभी हुआ ही नहीं। इससे राजकोष को 310 करोड़ रुपये का घाटा लगा। CBI ने आरोप लगाया कि इस पैसे का गलत हिसाब दिया गया और 9 कंपनियों ने फर्जी इंवॉयस के आधार पर टैक्स क्रेडिट का दावा किया, जिससे भारत के राजकोष को और भी नुकसान हुआ। FIR में दावा किया गया कि "ऐसे कई फर्जी/खोखले कांट्रेक्ट MIAL ने गैरमौजूद/असंचालित संस्थानों के साथ किए हैं और गबन किया है।"

CBI के सू्त्रों ने यह भी दावा किया कि मुंबई आधारित MIAL ने अपने अधिशेष पैसे को हैदराबाद के राष्ट्रीय बैंक में रखा और स्थायी जमा रसीदों के आधार पर GVK समूह की कंपनियों के लिए कर्ज़ जुटाए गए। यह आरोप भी लगाया गया कि GVK समूह ने MIAL का पैसा अपने समूह की कंपनियों के कर्मचारियों के वेतन देने में इस्तेमाल किया, जबकि इन कंपनियों का MIAL से कोई लेना-देना नहीं था। इससे करीब़ 100 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है।

"विश्वस्त सूत्रों" ने यह भी दावा किया कि GVK समूह के प्रायोजकों ने "अपने परिवार के सदस्यों/रिश्तेदारों/कर्मचारियों के साथ मिलकर, उन्हें गैरवाज़िब फायदे दिए और AAI को गैरकानूनी नुकसान किया।" आरोप लगाया गया कि इन लोगों को प्रायोजकों ने मुंबई एयरपोर्ट के मुख्य इलाके में बहुत कम दाम पर जगह दी। इससे MIAL की आय में कटौती हुई और AAI को नुकसान हुआ।

FIR में अगले आरोपों में कहा गया कि GVK समूह ने अपने रिश्तेदारों की ट्रेवल एजेसिंयो के ज़रिए अपने और अपने कर्मचारियों के लिए टिकट बुक कराईं, जिससे उन्हें "गैरवाजिब मुनाफ़ा" हुआ। इन कारनामों के चलते GVK समूह और उनके सहयोगियों ने गलत तरीके से 705 करोड़ रुपये कमाए और AAI को राजस्व का नुकसान हुआ।

3 जुलाई को सभी बड़े अख़बारों में यह ख़बर छपी कि CBI की टीम ने GVK समूह के मुंबई और हैदराबाद के कार्यालयों में छापा मारा है। यह खुलासा भी हुआ कि ED भी MIAL के दस्तावेज़ों का अध्ययन कर रही है, जो CBI की FIR से जुड़े हैं।

MIAL के एक प्रवक्ता ने कहा, "MIAL को हैरानी है कि CBI ने MIAL के खिलाफ़ मामला दर्ज किया है। अगर एजेंसी ने प्राथमिक जांच की होती और हमसे ब्योरा या कोई दस्तावेज़ मांगा होता, तो हमने उन्हें पूरा सहयोग किया होता।"

बिज़नेस टुडे की रिपोर्ट में GVK से जुड़े एक सूत्र ने कहा, "MIAL के खाते "बिग फोर ऑडिटर्स" में से दो संस्थाओं द्वारा ऑडिट किए जाते हैं, उन्होंने कभी किसी गड़बड़ी की ओर ध्यान नहीं दिलाया।" सूत्र ने ध्यान दिलाया कि CBI द्वारा जो पांच आरोप लगाए गए हैं, वे "अज्ञात सूत्रों" के हवाले से हैं। 

उम्मीदों के मुताबिक़ ही, 7 जुलाई को ED ने GVK के खिलाफ़ मनी लांड्रिंग का मामला दर्ज कर लिया। इस मामले में जांच की जानी है कि क्या प्रायोजकों ने अवैध रास्ते के ज़रिए पैसे को घुमाकर निजी संपत्ति बनाई है या नहीं।

इस बीच ASCA ने सुप्रीम कोर्ट में बताया कि GVK ने उसके खिलाफ़ जनवरी, 2020 से आर्बिट्रेशन प्रक्रियाएं चालू कर दी है और GVK ने भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा को अपना नामित मध्यस्थ बनाया है। आवेदन में कहा गया "MIAL के क्रियाकलापों से ACSA की स्वायत्ता पूरी तरह खत्म हो गई है और साफ दिखाई देता है कि यह GVK के पक्ष में किया गया है।"

ASCA चाहती थी कि सुप्रीम कोर्ट MIAL का आर्बिट्रेटर नियुक्त करे, क्योंकि GVK की MIAL में बहुमत हिस्सेदारी है, जिससे आर्बिट्रेटर की पसंद प्रभावित हो सकती है।

28 जुलाई को ED ने GVK समूह के 9 परिसरों में छापामारी की, इसमें MIAL के प्रायोजकों के घर भी शामिल थी। यह कार्रवाई "प्रिवेंशन ऑप मनी लांड्रिंग एक्ट" के अंतर्गत यह जानने के लिए की गई कि क्या "आरोपी ने पैसे को गलत रास्ते से मोड़कर व्यक्तिगत संपत्ति बनाई है या नहीं।"

मिंट में 30 जुलाई को प्रकाशित एक लेख में GVK  की वित्तीय समस्याएं बताई गई हैं, लेकिन इसमें यह भी कहा गया है कि CBI द्वारा FIR और छापामारी करने के वक़्त को भी नजरंदाज नहीं किया जा सकता। यह कार्रवाई तब हुई हैं, जब अडानी MIAL (जिसके पास मुंबई एयरपोर्ट के आसपास की बहुत महंगी ज़मीन भी है) पर नियंत्रण करने में नाकामयाब रहे हैं।

विदेशी निवेशकों के लिए असहज स्थिति

14 अगस्त को GVK  और MIAL के वैधानिक ऑडिटर प्राइस वाटरहाउस चार्टर्ड अकाउंटेंट LLP ने अपना इस्तीफा दे दिया। फर्म ने कहा कि जब सरकारी एजेंसियों ने कंपनी के खातों की जांच शुरू कर दी है, तो फर्म का आगे कंपनी के साथ काम करना सही नहीं होगा। दस दिन बाद अचानक रिपोर्ट आईं कि GVK समूह MIAL में अपनी 50 फ़ीसदी हिस्सेदारी बेचने के लिए अडानी समूह के साथ बातचीत कर रहा है।

"M&A क्रिटीक" वेबसाइट ने एक गुमनाम वरिष्ठ GVK अधिकारी के हवाले कहा, "प्रायोजक (GVK समूह) इन मीडिया रिपोर्ट्स को पूरी तरह खारिज करते हैं। इस बात की बहुत संभावना है कि अडानी समूह उधारदाताओं से बातचीत कर रहा हो, ताकि गिरवी शेयर्स हासिल कर नियंत्रण किया जा सके।"

यह ध्यान दिलाया गया कि MIAL प्रायोजकों के सभी शेयर्स अलग-अलग बैंकों के पास गिरवी रखे हैं, इनमें SBI मुख्य उधारदाता है। GVKAHL में 26.366 फ़ीसदी शेयर्स लेने के लिए तैयार तीन मे से दो निवेशक- ADIA और PSP इंवेस्टमेंट ने प्रधानमंत्री ऑफिस, वित्तमंत्रालय, नागरिक उड्डयन मंत्रालय समेत कई मंत्रालयों को चिट्ठी लिखी और पूरे विवाद का एक "पारदर्शी और न्यायपूर्ण समाधान" समाधान निकालने की अपील की। साथ ही मंत्रालय के अहम अधिकारियों से मिलने का वक़्त मांगा।

इकनॉमिक टाइम्स में एक बेनाम वित्तमंत्रालय के अधिकारी ने अपनी बात रखी। उन्होंने कहा, "जिस ताजा मामले की बात की जा रही है, उसमें एक निवेशक ने निजी निवेशकों के बीच मुकदमेबाजी के चलते बनी अनिश्चित्ता की तरफ हमारा ध्यान दिलाया है। लेकिन सरकार की इस तरह की निजी प्रवृत्ति वाले मुकदमे में कोई भूमिका नहीं हो सकती।" 

उसी लेख में एक दूसरे अधिकारी की बात भी शामिल की गई, उसने कहा, "उन वैश्विक खिलाड़ियों के लिए पूरी स्थिति काफ़ी तकलीफदेह बन गई है। एक ऐसे वक़्त में जब मामला कोर्ट में है, तब बेवजह कई एजेंसियों ने मामले में टांग अड़ा दी, जो चिंताजनक है।"

मुझे ऐसा लगता है कि सरकार अपनी कानूनी शासन लागू करने वाले तंत्र का अडानी समूह को फायदा पहुंचाने के लिए "गलत इस्तेमाल" कर रही है। निवेशकों का कंसोर्टिअम साफ कर चुका है कि उनके बीच एक मजूबत समझौता हुआ है और वे उससे अलग हटने वाले नहीं हैं।

27 अगस्त को तीन निवेशकों के कंसोर्टिअम ने GVK को एक कानूनी नोटिस भेजा और कहा कि उनमें से कोई भी हिस्सेदारी बेचने के लिए अडानी की तरह के "तीसरे पक्ष" के साथ बातचीत में नहीं उतर सकता। क्योंकि उन्होंने GVK के साथ जो समझौता किया है, उसमें "एक्सक्लूज़िविटी क्लॉज" है, जो 27 जनवरी 2021 तक वैध है।

यहां यह बताना जरूरी है कि इंडस्ट्री एसोसिएशन के एक वरिष्ठ अधिकारी ने मुंबई में इस लेख के एक लेखक से नाम ना छापने की शर्त पर कहा कि जो तथाकथित व्हसिल ब्लोअर और विश्वस्त सूत्रों की बात CBI ने अपनी FIR में की है, वह एक ही शख्स है। उसने बताया, "मुझे बताया गया है कि इस तथाकथित व्हसिल ब्लोअर को GVK समूह में उनके एक प्रतिस्पर्धी ने जानबूझकर तैनात किया था। आप आसानी से उस प्रतिस्पर्धी का नाम भी बता सकते हैं।"

"आत्मसमर्पण" या "सहयोग"

GVK समूह की तरफ से औपचारिक घोषणा सार्वजनिक वक्तव्य के रूप में 31 अगस्त को आई। इसमें कहा गया कि अडानी समूह के एयरपोर्ट बिज़नेस की प्रतिनिधि कंपनी 'अडानी एयरपोर्ट होल्डिंग लिमिटेड (AAHL)' ने "एक समझौता किया है, जिसके तहत कंपनी MIAL में GVK एयरपोर्ट डिवेल्पर्स लिमिटेड (ADL) का कर्ज चुकाएगी", जिसके एवज में अडानी की कंपनी के पास MIAL में 50.5 फ़ीसदी की हिस्सेदारी हो जाएगी। अडानी समूह, MIAL के अल्पमत साझेदारों- दक्षिण अफ्रीका के ACSA और बिडवेस्ट समूह की 23.5 फ़ीसदी हिस्सेदारी भी खरीद रहा है।

कंपनी ने एक नियामक खानापूर्ति में बताया "GVK समूह और AAHL ने इस बात पर सहमति जताई है कि AAHL, GVK को तब तक यथास्थिति बनाए रखने देगा, जब तक 'GVK पॉवर एंड इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड' द्वारा लिए गए कर्ज़ को चुकाने की गारंटी उपलब्ध नहीं हो जाती।"

अडानी समूह ने कहा कि समूह "ACSA और बिडवेस्ट से हासिल 23.5 फ़ीसदी हिस्सेदारी के अधिग्रहण के लिए कदम उठाएगा। यह वह हिस्सेदारी है, जिसके लिए भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग से भी मंजूरी मिल चुकी है।" समूह ने आगे कहा, "GVKADL के कर्ज़ अधिग्रहण के दौरान, अडानी समूह MIAL पर नियंत्रण हासिल करने के लिए जरूरी अनुमतियां लेने के लिए कदम उठाएगा।"

एक दूसरी खानापूर्ति में GVK ने बताया कि कंपनी ने AAHL के साथ सहयोग पर सहमति बनाई है, जिसके तहत अडानी समूह, गोल्डमैन सैक्स के नेतृत्व वाले कंसोर्टिअम और HDFC जैसे उधारदाताओं के कर्ज़ का भार उठाएगा। GVK ने आगे बिना विस्तार से जानकारी दिए बताया है कि कर्ज़ को "आपसी सहमति वाली शर्तों" पर हिस्सेदारी में बदल दिया जाएगा।

अडानी ने कहा कि कंपनी MIAL में निवेश करेगी, साथ ही वित्तीय समापन (फायनेंशियल क्लोज़र) को पाने में भी मदद करेगी, ताकि नवी मुंबई अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट पर काम शुरू किया जा सके। इस एयरपोर्ट में MIAL का 74 फ़ीसदी हिस्सा है।

GVK समूह के संस्थापक और चेयरमैन GVK रेड्डी ने कहा, "एविएशन इंडस्ट्री पर कोरोना महामारी का बहुत बुरा असर पड़ा है। इससे यह उद्योग कई साल पीछे चला गया है। इससे मुंबई इंटरनेशनल एयरपोर्ट लिमिटेड के वित्त पर भी असर हुआ है। इसलिए यह अहम हो जाता है कि हम जल्दी एक मजबूत वित्तीय निवेशक को लेकर आएं, ताकि MIAL की वित्तीय स्थिति को सुधारा जा सके और नवीं मुंबई इंटरनेशनल एयरपोर्ट प्रोजेक्ट का वित्तीय समापन किया जा सके। जब आधिकारिक प्रक्रियाओं के बाद यह लेनदेन पूरा हो जाएगा, तब हम पर अपने उधारदाताओं की देनदारियों का बहुत सारा हिस्सा कम हो जाएगा, यह समूह के लिए सबसे अहम बात है।"

इस लेनदेन से जो पैसा मिलेगा, उसका इस्तेमाल GVK समूह अपने स्वामित्व वाली कंपनियों का कर्ज़ चुकाने के लिए करेगा। समूह ने बताया "ADIA, NIIF और PSP को यह सूचना दे दी गई है कि लेनदेन के दस्तावेज़ अब रद्द किए जाते हैं, अब वे प्रभावी नहीं हैं, ना ही उन्हें लागू किया जा सकता है। इसकी मुख्य वज़ह हैं- 1) लेनदेन के दस्तावेज़ों में जो शर्तें बताई गई थीं, उन्हें लागू करना संभव नहीं है 2) जिस वैकल्पिक प्रस्ताव पर विमर्श किया गया था, उससे अगस्त के अंत तक ADL को समाधान हासिल नहीं होगा, जबकि हमारे देनदारों ने यही वक़्त तय किया है। "

बदले के साथ निजीकरण

जब GVK समूह ने अडानी के साथ सहयोग करने की घोषणा की थी, उसके एक दिन पहले प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया ने नागरिक उड्डयन मंत्री हरदीप पुरी का वक्तव्य प्रकाशित किया था। उन्होंने नमो ऐप के यूजर्स से एक आभासी बैठक में कहा था, "मैं आपको अपने दिल से कह रहा हूं कि सरकार को एयरपोर्ट नहीं चलाने चाहिए, ना ही सरकार को एयरलाइन चलानी चाहिए।"

उनकी टिप्पणी ऐसे वक़्त पर आई, जब लेफ्ट और डेमोक्रेटिक फ्रंट केरल में केंद्रीय कैबिनेट के उस फ़ैसले का विरोध कर रहे हैं, जिसके तहत तिरुवनंतपुरम् एयरपोर्ट पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप के तहत 50 साल के लिए अडानी समूह को दे दिया गया है।

अब यह देखना बाकी है कि दिल्ली हाईकोर्ट में चल रहे केस में क्या होता है। GVK और कंसोर्टिअम ऑफ इंवेस्टर्स (ADIA, PSP, NIIF) पहले दोहरा चुके हैं कि उनके समझौते और टर्म शीट के प्रावधानों पर टिके रहना अनिवार्य हैं। अब GVK ने एकतरफा तौर पर समझौतों को रद्द कर दिया है। अब सवाल उठता है कि एक अनिवार्य समझौता, जो अब भी वैध है, उसे एकतरफा तरीके से खत्म किया जा सकता है, वह भी तब जब कंसोर्टिअम के सदस्यों ने GVK पर समझौतों की शर्तों का उल्लंघन का आरोप लगाते हुए कानूनी नोटिस भेजा है

केवल वक़्त ही बता सकता है कि यह मुकदमे शांतिपूर्ण ढंग से निपटते हैं या नहीं।

देश के सबसे बड़े एयरपोर्ट संचालक बनने के लिए अडानी का रास्ता साफ हो चुका हो, लेकिन अंत में जानिए कुछ मजेदार तथ्य।

सिरिल अमरचंद मंगलदास नाम की लॉ फर्म GVK समूह की अपने तीनों निवेशकों के साथ लेनदेन के लिए कानूनी सलाहकार है।

MIAL के देनदारों ने सिरिल अमरचंद मंगलदास को सलाहकार नियुक्त किया था, ताकि उनका बकाया चुकाने के लिए समझौते पर मोलभाव हो सके।

अडानी प्रॉपर्टीज़ प्राइवेट लिमिटेड में SB अडानी फैमिली ट्रस्ट की प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तौर पर 84.41 फ़ीसदी हिस्सेदारी होगी, यह वह कंपनी है, जिसके पास MIAL का नियंत्रण प्रस्तावित है। बची हुई 15.59 फ़ीसदी हिस्सेदारी गौतम अडानी के बेटे, करण गौतम अडानी के पास होगी। करण गौतम अडानी सिरिल श्रॉफ के दामाद भी हैं। सिरिल श्रॉफ अमरचंद मंगलदास के मुखिया हैं।

जैसी पुरानी कहावत है, दुनिया काफी छोटी जगह है।

लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं।

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें।

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