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कैसे चक्रवात 'असानी' ने बरपाया कहर और सालाना बाढ़ ने क्यों तबाह किया असम को

'असानी' चक्रवात आने की संभावना आगामी मानसून में बतायी जा रही थी। लेकिन चक्रवात की वजह से खतरनाक किस्म की बाढ़ मानसून से पहले ही आ गयी। तकरीबन पांच लाख इस बाढ़ के शिकार बने। इनमें हरेक पांचवां पीड़ित एक बच्चा था।
assam flood

पिछले तीन वर्षों में, देश में कम से कम 19 चक्रवात आए हैं, और 'असानी' इस वर्ष असम में आया हुआ ऐसा ही एक और चक्रवाती तूफान था। हालांकि पूर्वोत्तर के राज्य मानसून के दौरान हर साल बाढ़ की चपेट में आ जाते हैं। यहां हजारों परिवार हर साल अपनी जमीन से उखड़ जाते हैं और पड़ोसी राज्यों में आश्रय लेने पर मजबूर हो जाते हैं। ये प्राकृतिक आपदाएं प्रत्येक वर्ष राज्य के 33 जिलों में से कम से कम 25 जिलों को तबाह करती ही हैं।

असम आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के अनुसार चक्रवात असानी के कारण आई बाढ़ से कम से कम 30 लोगों की मौत हो गई। प्रशासन के अनुसार, 1000 पीड़ित समुदायों में से 956 अभी भी निचले क्षेत्रों में रह रहे हैं, जो जलमग्न है।

असानी द्वारा प्रेरित बाढ़ आगामी मानसून के मौसम में अपेक्षा से पहले ही आ गई और लगभग पांच लाख लोगों पर खराब असर डाला। इनमें लगभग हरेक पांचवां एक बच्चा है। कई लोग कहते हैं कि उन्होंने इस साल की बाढ़ का अनुमान नहीं लगाया था, और वे सबसे खराब थे। यहां के निवासियों को अब एक निराशाजनक वर्तमान के साथ खराब भविष्य का सामना करना पड़ता है, जिसमें सड़कें, स्कूल और उनके घर तक जलमग्न हो गए हैं और तिस पर कनेक्टिविटी चली गई है।

 कछार जिले के जलालपुर गांव के निवासी मुजानिल के अनुसार, असम में बाढ़ 15 मई को आई, जब राज्य का जल निरीक्षण विभाग सुरक्षा उपायों को लागू करने और स्लूइस गेट खोलने में विफल रहा। उन्होंने कहा, "लोग अपनी जमीन, अपना घर-बार गंवा चुके हैं और यहां तक कि उन्होंने जो कुछ कमाया था, वह सारा का सारा खो चुके हैं। यह अप्रत्याशित था, और इसके नतीजतन हमारे लोगों को बहुत नुकसान हुआ है।"

गुवाहाटी विश्वविद्यालय के एक भूविज्ञानी ने नाम न छापने की शर्त पर न्यूजक्लिक से बातचीत की। उन्होंने कहा कि  "मुद्दा यह है कि सरकार सिर्फ राहत का ब्यौरा बताती है, जिसका मायने यह है कि वह बाढ़ को नियंत्रित करने में मदद नहीं कर सकती है। हां, उसके आने के बाद ही उससे निपट सकती है," गुवाहाटी विश्वविद्यालय के एक भूविज्ञानी ने नाम न छापने की शर्त पर न्यूजक्लिक से बातचीत में यह बात कही।

कछार के जलालपुर गांव में एक छोटे से व्यवसाय के मालिक और गैर सरकारी संगठनों के साथ मिल कर बाढ़ पीड़ितों की मदद करने वाले शम्सुल ने कहा कि "कम से कम 250-300 व्यक्तियों ने बारिश से उनके घरों में बाढ़ आने और तीन फीट गहरे पानी जमा हो जाने के बाद एक नजदीकी सरकारी स्कूल में सुरक्षा की मांग की थी।"

शम्सुल ने न्यूजक्लिक को बताया कि "अगर गैर सरकारी संगठन नहीं होते, तो हमारे लोगों की कठिनाइयां काफी बढ़ जातीं। तब बाढ़ की विनाशलीला में लापता होने वालों के और मृतकों के आंकड़े आसमानी होते,"

बाढ़ पूरे राज्य में हर साल आती है,जबकि इससे राहत दिलाने के सरकारी तरीके अस्थायी हैं। असम सरकार की तरफ से जारी आंकड़ों के अनुसार, बाढ़ से हर साल राज्य की 40 फीसदी से अधिक भूमि तबाह हो जाती है। इससे राज्य को हर साल औसतन लगभग 200 करोड़ रुपये का नुकसान होता है।

 सालाना आने वाली बाढ़ की एक प्रमुख वजह ब्रह्मपुत्र नदी है। इस नदी के आक्रामक प्रवाह के कारण हर साल नदी के तट के कुछ हिस्से नष्ट हो जाते हैं। राज्य सरकार के पास उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, 1950 से ब्रह्मपुत्र के कारण 4.27 लाख हेक्टेयर या लगभग 8 फीसदी भूमि का क्षरण हो चुका है।

असम सरकार के अनुसार, राज्य के कुल 78.523 लाख हेक्टेयर रकबा में से 31.05 लाख हेक्टेयर भूमि बाढ़ संभावित है, जिसका अर्थ है कि राज्य की लगभग 40 फीसदी भूमि बाढ़ग्रस्त है। असम के प्राकृतिक इलाके और यहां सालाना होने वाली भारी वर्षा के अलावा, राज्य को तबाह करने वाली विनाशकारी बाढ़ विभिन्न मानव निर्मित और प्राकृतिक कारकों के कारण होती है।

असम में ब्रह्मपुत्र और बराक नदियों के साथ-साथ 50 से भी अधिक सहायक नदियों सहित जलमार्गों का एक बड़ा नेटवर्क है, जो उन्हें खिलाते हैं। अरुणाचल प्रदेश और मेघालय जैसे पड़ोसी राज्यों से नदी का पानी असम तक पहुंचाया जाता है। मेघालय के जलग्रहण क्षेत्रों में बादल फटने के कारण, असम के निचले इलाके में 2004 और 2014 में ब्रह्मपुत्र की सहायक नदियों के दक्षिणी तट में भारी बाढ़ आ गई थी। इसी तरह की स्थिति 2011 में अरुणाचल प्रदेश में बनी थी, जिससे असम में बाढ़ आई थी।

ब्रह्मपुत्र के तट में कटाव असम में हर साल आने वाली बाढ़ का एक मुख्य कारण है। इसमें मजबूत जल प्रवाह के कारण तटों के साथ मिट्टी, गाद या चट्टान के टुकड़ों का क्षरण होना शामिल है। कटाव के कारण नदी की चौड़ाई बढ़ती है, और इसका मार्ग बदल जाता है। तट में कटाव के कारण, कुछ क्षेत्रों में नदी की चौड़ाई बढ़कर 15 किलोमीटर हो गई है, जिससे ब्रह्मपुत्र भारत की सबसे बड़ी नदी बन गई है। यह अनुमान लगाया गया है कि हर साल लगभग 8,000 हेक्टेयर भूमि कटाव के कारण नष्ट हो जाती है। कई अध्ययनों के निष्कर्ष ब्रह्मपुत्र के विस्तार की भयावह तस्वीर पेश करते हैं।

1912-28 के बीच ब्रह्मपुत्र के किए गए पहले सर्वेक्षण में इसका क्षेत्रफल 3,870 वर्ग किमी दिखाया गया था; 1963-75 के बीच दूसरे सर्वेक्षण में इसकी चौड़ाई बढ़कर 4,850 वर्ग किमी हो गई, और 2006 में किए गए अध्ययन में इसका पाट 6,080 वर्ग किमी की चौड़ा होना बताया गया है। गंभीर रूप से आक्रामक इस नदी के पाट में इस दर से हुए फैलाव ने राज्य के लोगों की आजीविका पर व्यापक दुष्प्रभाव डाला है। ब्रह्मपुत्र बोर्ड ने 1982 में असम को बाढ़ से निपटने में मदद करने के लिए बांधों और जलाशयों के निर्माण का प्रस्ताव रखा था। हालांकि बांधों का उद्देश्य नदी के जल प्रवाह को नियंत्रित करना है, पर वे डाउनस्ट्रीम जलमार्ग की क्षमता को भी पार कर सकते हैं, जो एक दोधारी तलवार साबित हो सकती है। ग्लोबल वार्मिंग के कारण ग्लेशियरों का तेजी से पिघलना और मॉनसून की बारिश के कारण जलस्तर बढ़ने से जल का प्रवाह और तेज हो जाता है। इसके अलावा,सरकार द्वारा निर्मित तटबंधों जैसे बाढ़ आने के कई मानव निर्मित कारण हैं, जिसका कोई उपयोग नहीं है, और वे हर साल ध्वस्त हो जाते हैं, उनके परिणामस्वरूप जल स्तर बढ़ता रहा है।

अरुण एक किसान हैं, और किराना दुकान के मालिक हैं। वे होजाई जिले के राधानगर गांव में रहते हैं। बाढ़ के कारण उनका दोनों काम चौपट हो गया है। उनके परिवार सहित अधिकांश आवास नष्ट हो गए। 18 मई को, जब मौसम में सुधार हुआ, तब राहत-बचाव दल उनके घर पहुंचा था। तब तक "हमें अपने बचने की कोई उम्मीद नहीं रह गई थी”,शिव ने कहा। “मैं खेती-किसानी का काम करता हूं। प्रलयकारी बाढ़ के कारण मेरी सारी फसल बर्बाद हो गई है। खाने के लिए एक दाना नहीं है, और पैसा बनाने का कोई तरीका नहीं है," उन्होंने अपने हालात पर अफसोस जताते हुए कहा।

बाढ़ पीड़ित किसान के अनुसार, बचाव अभियान शुरू होने के दिन उन्हें बचाया गया। अरुण ने बताया, "पानी घुटनों तक था, कम से कम पांच दिन तक बिजली नहीं थी, और हम पूरी तरह से अनिश्चित थे कि बचाव अभियान हम तक कैसे पहुंचेगा, लेकिन वे किसी तरह पहुंच गए।”

एक स्थानीय पत्रकार, जो अपने नाम जाहिर नहीं करना चाहते, उन्होंने सरकार की तरफ से होने वाली समस्याओं पर न्यूज़क्लिक का ध्यान आकर्षित किया। उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार द्वारा उठाए गए अधिकतर कदम लोगों को बाढ़ से किसी भी प्रकार की राहत देने में विफल रहे हैं। इसके अलावा, उन्होंने इसको रेखांकित किया कि बाढ़ रोकथाम उपकरण पर हाल के वर्षों में बहुत कम ध्यान देने के कारण वे कम असरकारक रह गए हैं। उन्होंने बताया, "कछार हिल्स से बराक घाटी क्षेत्र तक कम से कम 10 स्लुइस गेट हैं। इनमें से नौ जरूरत के वक्त नहीं खुले। ये बीएसएफ शिविर के पास है, और जब उन्होंने यह फाटक खोलने की कोशिश की, तो वे असफल रहे क्योंकि उनकी मरम्मत नहीं की गई थी या पिछले 12-13 वर्षों में नहीं खोला गया था। इसके अलावा, इस क्षेत्र में बने कई तटबंधों का पिछले छह-सात वर्षों में बेहतर रख-रखाव नहीं किया गया है। इसके चलते उन क्षेत्रों में भी प्रलयकारी बाढ़ का रास्ता खोल दिया है और वहां गाद जमा कर दिया है, जहां पिछले 150 वर्षों में बाढ़ का असर नहीं पड़ा था।” उन्होंने कहा कि सरकार अपने वादे पर खरी नहीं उतरी है। उस पत्रकार ने कहा, “जब यह सरकार सत्ता में आई तो उसने कोई नया बांध न बनाने और न ही किसी बांध परियोजना का समर्थन करने की शपथ ली थी। लेकिन इसके लिए उनकी ओर से बहुत कम प्रयास किए गए हैं।”

असम के दीमा हसाओ जिले में न्यू हाफलॉग रेलवे स्टेशन बाढ़ से नष्ट हो गया। क्षेत्र में बारिश का कहर जारी है, जिसके चलते रेल और सड़क यातायात बाधित हुआ है। कई बार भूस्खलन होने की वजह से रेलवे स्टेशन कीचड़ में धंस गया था। हाफलॉग जो पूर्वोत्तर से बराक घाटी संबंध जोड़ने वाला एकमात्र रेलवे स्टेशन था, अब वह शेष दुनिया से कट गया है। कार्यकर्ताओं ने इस स्थिति के लिए सरकार के अनियोजित विकास को जिम्मेदार ठहराया है।

कार्यकर्ताओं का दावा है कि पीड़ित क्षेत्रों में मिट्टी की संरचना और वहन क्षमता की गहन जांच किए बिना सड़क संपर्क परियोजनाएं शुरू कर दी गई। इसकी वजह से भूस्खलन की नई समस्या से जूझना पड़ रहा है। नई सड़क संपर्क परियोजनाओं के विकास से पहले, दीमा हसाओ जिले ने कभी भी भूस्खलन नहीं हुआ था। असम रेलवे विभाग का अनुमान है कि हाफलॉग स्टेशन के लिए सेवा बहाल करने में कम से कम दो महीने लगेंगे।

“यह अब तक का सबसे शानदार ट्रेन स्टेशन था। इसको मलबे में देखना हमें कचोटता है," जहीर ने कहा, जो दीमा हसाओ में रहते हैं। “बराक घाटी का उत्तर-पूर्व के साथ संपर्क पूरी तरह खत्म हो गया है। इसके लिए सरकार जिम्मेदार है। यह नौबत ही नहीं आती, अगर वे इनका पहले से ध्यान रखते और उनके मुताबिक तैयारी करते।" बाढ़ सहसा धमक सकती है,लेकिन विकास निश्चित रूप से बिना पूर्व योजना और तैयारी के अचानक ही नहीं होता।

अंग्रेजी में मूल रूप से लिखे लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें

How Cyclone 'Asani' Wreaked Havoc and why Annual Floods Devastate Assam

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