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हम अमेरिकी राजनीति की इस दुखद स्थिति तक कैसे पहुंचे?
दशकों तक रिपब्लिकन ने रिपब्लिकन पार्टी के उस आधार को सोच-समझकर 'बेज़ुबान' बनाने का काम किया, ताकि रिपब्लिकन अभिजात वर्ग अपनी मनपसंद नीतियों के साथ बिना किसी रुकावट के कार्य कर सके। इस वजह से जो जटिलता पैदा हुई, उसी से ट्रम्प सामने आये।
सुबीर पुरकायस्थ
15 Jan 2021
United States of America

हम अमेरिकी राजनीति की इस दुखद स्थिति तक कैसे पहुंचे?

दशकों तक रिपब्लिकन ने रिपब्लिकन पार्टी के उस आधार को सोच-समझकर 'बेज़ुबान' बनाने का सहारा लिया, ताकि रिपब्लिकन अभिजात वर्ग अपनी मनपसंद नीतियों के साथ बिना किसी रुकावट के कार्य कर सके। इस वजह से जो जटिलता पैदा हुई, उसी से ट्रम्प सामने आये।

सुबीर पुरकायस्थ

13 जनवरी 2021

अमेरिका ने हालिया यादों में अपने सबसे अहम राष्ट्रपति चुनावों में से एक का गवाह बना है। दूसरे कार्यकाल के लिए चुनाव लड़ रहे डोनाल्ड ट्रम्प डेमोक्रेटिक पार्टी के जो बाइडेन से हार गये। अभी भी कोविड-19 महामारी के दुष्चक्र में फ़ंसे अमेरिकी समाज उन नस्ल-विरोधी विरोध प्रदर्शनों से खुर्द-बुर्द हो चुका है, जो बात-बात पर गोली चला देने पर उतारू पुलिसकर्मियों द्वारा अश्वेत लोगों की हत्याओं से भड़के हुए हैं। लेकिन इसके बावजूद यह स्थिति व्यवस्थागत नस्लवाद की वजह से जारी है, और राष्ट्रपति ने सोच-समझकर ‘मेकिंग अमेरिका ग्रेट अगेन’ के नाम पर अमेरिकी महानता, पितृसत्ता और श्वेत वर्चस्व के सभी नाकारात्मक ताक़तो के घोड़ों को एक साथ छोड़ दिया है।

राष्ट्रपति ने जानबूझकर, मेकिंग अमेरिका ग्रेट अगेन ’के नाम पर अमेरिकी असाधारणता, पितृसत्ता और श्वेत वर्चस्व के सभी नकारात्मक ताक़तों को एकजुट कर दिया। जलवायु में हो रहे परिवर्तन से उनका इनकार, ब्राजील के बोल्सोनारो, ब्रिटेन के बोरिस जॉनसन और निश्चित रूप से भारत के प्रधानमंत्री मोदी जैसे दूसरे दक्षिणपंथी नेताओं का मिलता उनका समर्थन, उनका हथियार निर्माण को हवा देना, इज़रायल के विस्तारए अख़्तिवाद को उनका समर्थन और इसी तरह के कई अन्य विदेशी नीतियों के लियार किये गये उनके दूसरे रुख़ ने उन्हें वैश्विक स्तर पर बदनाम कर दिया है। यही वजह है कि यह चुनाव दुनिया भर के लोगों के लिए दिलचस्पी और चिंता का विषय रहा है। न्यूज़क्लिक इस तरह की टिप्पणियों को समय-समय पर प्रकाशित करता रहा है, आगे भी करता रहेगा।

अमेरिकी कांग्रेस की बैठक की जगह-कैपिटल हिल में हुए 6 जनवरी को दंगाई भीड़ के हमले का भयानक नज़ारा दुनिया भर के बहुत सारे अमेरिकियों और लोकतंत्र प्रेमियों के लिए बेहद चौंकाने वाला और दिल तोड़ देने वाला था। लंदन स्थित ब्रिटिश पार्लियामेंट हाउस और वाशिंगटन डीसी स्थित कैपिटल हिल आधुनिक विश्व के प्रतिनिधि लोकतंत्र के दो प्रतिष्ठित प्रतीक हैं। लोकतंत्र की जननी, यूनान दुर्भाग्य से उन स्थानों को संरक्षित नहीं कर पायी, जहां नागरिक प्राचीन नगर राज्यों में इकट्ठे होते थे, मुद्दों पर बहस करते थे और किसी भी प्रस्ताव के लिए सीधे-सीधे मतदान किया करते थे।

यह दोहरे तौर पर दुःखद और अपमानजनक था कि हमारे राष्ट्रपति ने 6 जनवरी को वाशिंगटन डीसी स्थित प्रमुख सार्वजनिक सभा स्थल-एलिप्से में एक विरोध रैली को संबोधित करते हुए एक 'चुराये गये चुनावी' नतीजों को फिर से अपने पक्ष में बहाल करने के मक़सद से अपने अनुयायियों से कैपिटल हिल पर "चढ़ाई" का आग्रह करते हुए इस विद्रोह के लिए सीधे-सीधे उकसाया था। उन्होंने "हमने यह चुनाव जीता था और हमने इसे एक ज़बरदस्त अंतर से जीता था’...अगर आप एक साथ मिलकर नहीं लड़ते हैं, तो आपके पास कोई देश नहीं बचेगा” जैसे झूठे दावे किये। यह विरोध रैली उसी दिन ट्रम्प महोदय और उनके इस अपराध के साथियों द्वारा आयोजित की गयी थी, जिस दिन उपराष्ट्रपति और कांग्रेस के सदस्य संवैधानिक रूप से जनादेश के अंतिम चरण को पूरा करने के लिए एक संयुक्त सत्र में इकट्ठा हुए थे, ताकि 14 दिसंबर, 2020 को निर्वाचक मंडल मतदाताओं द्वारा डाले गये चुनावी वोटों(बाइडेन के पक्ष में 306 वोट और ट्रम्प के पक्ष में 232 वोट) की गिनती कर सके।  

उस दोपहर में लिये गये व्हाइट हाउस के एक वीडियो में ट्रम्प कहते हुए देखे जा सकते हैं, “मैं आपका दर्द जानता हूं, मुझे आपका दुख पता है। हमारे पास एक जीत थी, जो हमसे चुरा ली गयी। यह एक प्रचंड जीत थी और हर कोई इस बात को जानता है।” ट्रम्प की क़ानूनी टीम की तरफ़ से दायर व्यापक जाली मतदान से जुड़े साठ से ज़्यादा क़ानूनी चुनौतियों को किसी सबूत के अभाव के चलते विभिन्न प्रांतीय अदालतों और अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया था। इस हक़ीक़त के बावजूद, बेउसूल और बेहद महत्वाकांक्षी टेक्सास के सीनेटर, टेड क्रूज़ और मिसौरी के सीनेटर, जोश हॉली के नेतृत्व में तक़रीबन 12 अमेरिकी सीनेटर और रिपब्लिकन अल्पसंख्यक नेता, केविन मैकार्थी सहित अमेरिकी प्रतिनिधि सभा (140+) के रिपब्लिकन सदस्यों के दो-तिहाई सदस्यों ने पहले ही ऐलान कर दिया था कि वे कांग्रेस के संयुक्त सत्र के दौरान व्यापक तौर पर हुई मतदान की धोखाधड़ी के इन रंगीन दावों का समर्थन करेंगे।

उन्होंने य़ह क़दम शायद अपने-अपने राज्यों में ट्रम्प के मतदाता आधार को हासिल करने के अपने स्वयं के कुटिल कारणों से उठाया था, जिन्हें 2024 तक कमज़ोर पड़ जाने का डर है। कई जाने-माने पर्यवेक्षकों ने इस बात का ज़िक़्र किया है कि 3 नवंबर को प्रतिनिधि सभा के सभी 435 सदस्य और अमेरिकी सीनेट के 33 सदस्य उसी मतपत्र द्वारा चुने गये थे, जिसके ज़रिये वे चुनाव लड़ रहे थे। मतदाताओं द्वारा डाले गये उसी मतपत्र के परिणामस्वरूप, 2020 के चुनाव में रिपब्लिकन ने 50 में से ज़्यादातर राज्यों में बड़ी जीत हासिल की थी। चुनाव नतीजे सदन और सीनेट में बहुत क़रीबी के रहे। इस बात की बिल्कुल संभावना नहीं है कि डेमोक्रेट्स ने सिर्फ राष्ट्रपति चुनाव के स्तर पर मतपत्र में किसी तरह की धोखाधड़ी की होगी।

भले ही अमेरिकी लोकतंत्र के इस मंदिर में ट्रम्प समर्थकों ने पूरी तरह अराजकता और तोड़-फोड़ फैलाई हो, लेकिन,अमेरिका के ज़्यादातर लोगों के लिए इस तरह की करतूत पूरी तरह से अस्वीकार्य और घृणास्पद है, आइये इसी घटना को हम दंगाइयों के नज़रिये से देखें। उनके प्यारे राष्ट्रपति पिछले दो महीनों से उन्हें बार-बार कहते रहे थे कि डेमोक्रेट्स ने उनसे यह चुनाव फ़िलाडेल्फ़िया, डेट्रायट और अटलांटा जैसे  बड़े-बड़े ‘भ्रष्ट’ शहरों में चुरा लिया है। क्या यह महज़ संयोग था कि ये तमाम शहर काले मेयरों और अन्य निर्वाचित काले नौकरशाहों द्वारा संचालित थे? वाशिंगटन स्थित सीनेट में बहुमत के नेता, मिच मैककोनेल सहित प्रभावशाली रिपब्लिकन सीनेटर आपसी मिलीभगत से राष्ट्रपति का या तो खुले तौर पर समर्थन कर रहे थे, या चुनाव के बाद छह से नौ सप्ताह तक बिल्कुल चुप्पी साधे रहे थे। सीनेटर मिट रोमनी को इसलिए श्रेय मिलना चाहिए कि इसका वह अकेला अपवाद थे। एक वरिष्ठ रिपब्लिकन नेता ने अपना नाम उजागर नहीं करते हुए वाशिंगटन पोस्ट के एक रिपोर्टर को बताया,“इस थोड़े समय के लिए उनका (ट्रम्प) अपमानित होना, क्या उनका नकारात्मक पहलू नहीं है? नतीजे के बदल दिये जाने के इस मामले को कोई भी गंभीरता से नहीं लेता है।” इसके अलावा,अमेरिका भर में दकियानुसी टेलीविज़न और रेडियो नेटवर्क ट्रम्प के इस झूठ को बेहद भड़काऊ तरीक़े से पेश कर रहे थे।

कैपिटल हिल के हमलावर को ट्रम्प के नेतृत्व में वाशिंगटन के उनके चुने हुए नेताओं द्वारा दो महीनों तक के लिए आश्वस्त किया गया था कि चुनावी क़ानूनों को पहले ही उनके विरोधियों द्वारा तोड़े-मरोड़े गये थे और शहरों और राज्यों के चुनावी युद्ध के मैदान में भ्रष्ट नौककरशाहों द्वारा बेख़बर नागरिकों को भरपाई नहीं किया जाने वाला नुकसान पहुंचाया जा रहा था। दंगाई अपने ख़ुद के मन में क़ानून के पक्ष में खड़े थे और कानून को हाथ में लेने वाले लोगों को संघीय सरकार के प्रबंधनकारी शाखा को अवैध रूप से अधिकृत करने से रोकने की मंशा बना कर बैठे थे। जाने माने पत्रकार, एज़्र क्लेन ने अपने स्तंभ में लिखा था,"... उन्होंने वही किया, जो उन्हें लगा था कि उन्हें करने के लिए कहा गया था।" विभिन्न स्तरों पर लगातार चलाये जा रहे ग़लत सूचना अभियान के चलते रिपब्लिकन मतदाताओं में से ज़्यादातर अब यह मानते हैं कि बाइडेन ने इस चुनाव को चुरा लिया है, यह रुख़ आगामी जो बाइडेन-कमला हैरिस प्रशासन के विधिवत चुने जाने को अवैध ठहराने का यह एक मनहूस कोशिश है।

इससे पहले कि हम अमेरिकी राजनीति की इस मौजूदा दुखद स्थिति की जांच-पड़ताल करें, आइये हम पांच जनवरी को जॉर्जिया की दो सीनेट सीटों के लिए निर्णायक चुनाव के ऐतिहासिक नतीजों पर नज़र डाले। सभी बाधाओं को पार करते हुए उस एबेनेज़र बैपटिस्ट चर्च, जहां डॉ.मार्टिन लूथर किंग जूनियर ने एक बार अपना भाषण दिया था, वहां से एक काले पादरी, राफेल वार्नॉक, 94,000 वोट (51% बनाम 49%) मामूली अंतर से चुन लिये गये, यहां के सुदूर दक्षिण जॉर्जिया में काले लोगों को मौत के घाट उतारने का लंबा इतिहास रहा है। वार्नॉक किसी भी सुदूर दक्षिण राज्य से निर्वाचित होने वाले पहले लोकप्रिय काले सीनेटर हैं! दूसरी तरफ़ जॉर्जिया के लोगों ने एक 33 वर्षीय यहूदी फ़िल्म निर्माता, जॉन ओसॉफ़ को चुना, जिनकी जीत का फ़ासला 56,000 वोट (50.6% बनाम 49.4%) बहुत मामूली था। ओसॉफ़ 1880 के बाद से किसी भी सुदूर दक्षिण राज्यों से चुने जाने वाले दूसरे यहूदी सीनेटर हैं! अश्वेत कार्यकर्ताओं/मतदाताओं, उदार गोरों, हिस्पैनिक्स और एशियाइयों का एक मजबूत गठबंधन दक्षिणी राज्यों में भविष्य के लिए भारी निहितार्थ वाले राजनीतिक परिदृश्य को साकार कर रहा है। क्या टेक्सास और फ़्लोरिडा अगले पांच से दस वर्षों में या इससे भी पहले जॉर्जिया की इसी राह का अनुसरण करेंगे? नवंबर 2018 और नवंबर 2020 के बीच काले कार्यकर्ता संगठनों ने 8,00,000 काले मतदाताओं को पंजीकृत किया था और यह सुनिश्चित किया था कि इस चुनाव में ज़्यादातर काले मतदाता मतदान करें। जॉर्जिया में कुल मतदाताओं का तक़रीबन 30% मतदाता काले मतदाता हैं। दक्षिणी राज्यों के रिपब्लिकन विधायकों और गवर्नरों से उम्मीद की जाती है कि वे निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने के बहाने ज़्यादा सख़्त प्रांतीय कानूनों को पारित करके भविष्य में अल्पसंख्यक और नौजवान मतदाताओं के मतदान में ज़्यादा से ज़्यादा अवरोध पैदा करेंगे।

जॉर्जिया में इन दो जीत के कारण डेमोक्रेट ने सीनेट में रिपब्लिकन के साथ 50-50 की बराबरी हासिल कर ली। सीनेट के पीठासीन अधिकारी के तौर पर उपराष्ट्रपति, कमला हैरिस अपना वोट डालकर इस टाई होने की स्थिति को तोड़ेंगी और 20 जनवरी के उद्घाटन के बाद अमेरिकी सीनेट का नियंत्रण डेमोक्रेट्स के हाथों में सौंप देंगी। 12 सालों बाद डेमोक्रेट्स का अपना राष्ट्रपति होगा और पार्टी का अपना बहुमत होगा, हालांकि प्रतिनिधि सभा और सीनेट में यह बहुमत बहुत मामूली अंतर वाला होगा। नवंबर 2022 में अगले मध्यावधि चुनाव तक अगले दो वर्षों के लिए अपने एजेंडे को लागू करने को लेकर सार्थक क़ानून पेश करने और उन्हे पारित करने के लिहाज़ से इस बहुमत का बाइडेन प्रशासन के लिए सकारात्मक निहितार्थ हैं।

अमेरिकी लोकतंत्र यहां कैसे पहुंचा ?

किसी भी कामकाजी स्वस्थ लोकतंत्र में कम से कम दो ऐसे प्रमुख राजनीतिक दलों की ज़रूरत तो होती ही है, जो स्वतंत्र रूप से सत्यापित तथ्यों, लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं, मानदंडों और सबसे ऊपर, स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों में विश्वास करते हों। आइये, हम इस बात की पड़ताल करें कि अमेरिकी लोकतंत्र अपनी मौजूदा दुर्दशा की स्थिति में पहुंचा कैसे, जहां स्वतंत्र रूप से सत्यापित तथ्य, विज्ञान या लोकतांत्रिक प्रक्रियायें किसी बड़ी राजनीतिक पार्टी और अमेरिका की आबादी का बड़े हिस्से के लिए अब मायने नहीं रखते। क्या यह स्थिति रिपब्लिकन पार्टी और ख़ास तौर पर डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा पैदा की गयी कोई परिघटना है? या फिर क्या उन्होंने रिपब्लिकन पार्टी और हमारे नागरिक के बीच चल रहे विमर्श में दशकों पहले शुरू हुई एक गहरी बेचैनी को कुशलता से अपने पक्ष में इस्तेमाल कर लिया है? आइये, हम इसकी गहराई में उतरते हैं।

कैनेडी और जॉनसन प्रशासन (1961-1968) के दौरान 1960 में डेमोक्रेटिक पार्टी में प्रगतिशील हिस्से का नेतृत्व पूर्वी उदारवादियों ने किया था, हालांकि लिंडन जॉनसन ख़ुद टेक्सास के दक्षिणी प्रांत से थे। आम तौर पर दक्षिणी डेमोक्रेट बहुत रूढ़िवादी थे, और कई मामलों में तो खुल्लमखुल्ला नस्लवादी थे। इसी तरह, रिपब्लिकन पार्टी के पास उत्तरी राज्यों के कई प्रगतिशील दिग्गज नेता थे। 1960 के दशक में रिपब्लिकन पार्टी में उदारवादी हिस्से का नेतृत्व न्यूयॉर्क के गवर्नर, नेल्सन रॉकफेलर करते थे, पूर्व उपराष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन (बाद में राष्ट्रपति बने) ने उदारवादी हिस्से और कैलिफ़ोर्निया के गवर्नर रॉनाल्ड रीगन रूढ़िवादी हिस्से की अगुवाई कर रहे थे।

राष्ट्रपति कैनेडी के नागरिक अधिकार बिलों को कांग्रेस में दक्षिणपंथी डेमोक्रेट्स द्वारा अड़ंगा लगाया गया था। 1963 में उनकी हत्या के बाद दक्षिणपंथी डेमोक्रेट नरम पड़ गये और राष्ट्रपति जॉनसन ने 1964 में ऐतिहासिक नागरिक अधिकार बिल और 1965 में मताधिकार क़ानून को दोनों दलों के बड़े बहुतम से पारित करा लिया। इन क़ानूनों का पारित होना सही मायने में एक ऐसी ऐतिहासिक घटनायें थीं, जिनका अल्पसंख्यकों और पूरे अमेरिकी समाज पर गहरा सकारात्मक प्रभाव पड़ा था।

रिपब्लिकन राष्ट्रपतियों की आख़िरी कड़ी, जो मानते थे कि सरकार जनता की भलाई का एक साधन हो सकती है, उनमें रिचर्ड निक्सन और जेराल्ड फ़ोर्ड थे। निक्सन की बड़ी चारित्रिक ख़ामियों को इतिहास में अच्छी तरह से दर्ज किया गया है, लेकिन भले ही वह और फोर्ड रूढ़िवादी राजनेता रहे हों, लेकिन वे बुनियादी तौर पर ऐसी सरकारों में विश्वास करते थे, जो जनता की भलाई के लिए काम करती थीं। रिचर्ड निक्सन ने 1969 में पर्यावरण संरक्षण एजेंसी की स्थापना की थी। स्वच्छ वायु अधिनियम और स्वच्छ जल अधिनियम क्रमशः 1970 और 1972 में अमेरिकी कांग्रेस में दोनों ही दलों के बड़े बहुमत के साथ पारित किया गया था। इस पर ग़ौर किया जाना चाहिए कि स्वच्छ जल अधिनियम का एक पुराना संस्करण 1966 में राष्ट्रपति लिंडन जॉनसन और सीनेटर एड मुस्की द्वारा पारित किया गया था। पर्यावरण संरक्षण के मुद्दों को दोनों दलों की तरफ़ से व्यापक समर्थन हासिल था और उस दौर में बड़े पैमाने पर आबादी भी इसके पक्ष में थी।

1980 के चुनावी चक्र और आठ वर्षों के अपने लम्बे राष्ट्रपति शासन काल में रोनाल्ड रीगन ने इस मंत्र को लोकप्रिय बना दिया था कि "सरकार ही समस्या है"। राष्ट्रपति रीगन के प्रमुख उद्देश्यों में अमीरों और कॉर्पोरेटों के लिए करों में ज़बरदस्त कटौती करना, और सरकार के विस्तार को काफी छोटा करना था। ज़्यादातर लोग रीगन के उस "वूडू" आर्थिक सिद्धांत को याद करते हैं, इस सिद्धांत के तहत माना गया था कि बड़े पैमाने पर करों की कटौती ख़ुद अपने आप में फ़ायदा पहुंचाने वाली चीज़ है (यह सिद्धांत रीगन, बुश जूनियर और ट्रम्प के राष्ट्रपति शासनकाल के दौरान तीन बार ग़लत साबित हुआ)। कई लोगों को याद नहीं होगा कि रीगन प्रशासन उल्लेखनीय रूप से विज्ञान विरोधी थे। उद्योग के लिए विज्ञान-आधारित विनियमनों को शिथिल करने को लेकर रीगन के अधिकारी कई साल तक अम्लीय वर्षा के प्रतिकूल प्रभावों से इनकार करते रहे। रीगन के राष्ट्रपति शासन के दौरान पहली बार रिपब्लिकन पार्टी में धार्मिक अधिकार एक प्रमुख राजनीतिक शक्ति बन गया। ज़रूरी नहीं कि धार्मिक अधिकार सार्वजनिक विमर्श में विज्ञान समर्थक रुख़ ही अख़्तियार करे। जनता की भलाई के लिए एक साधन के तौर पर सरकार का इस्तेमाल करने के बजाय, रीगन ने लगातार सरकार को ख़तरनाक बताने की कोशिश की। नतीजतन, रूढ़िवादी रिपब्लिकन की तीन पीढ़ियां इस विश्वास के साथ पलती-बढ़ती रहीं कि "सरकार ही समस्या है", इन पीढ़ियों में वे लोग हैं, जो रीगन, बुश जूनियर और ट्रम्प के शासनकाल के दौरान अपनी उम्र के बीसवें वर्ष में थे।

रीगन / जॉर्ज बुश सीनियर के शासनकाल (1981-1992) के दौरान प्रतिनिधि सभा में डेमोक्रेटिक का बहुमत था और सीनेट में उदारवादियों के प्रतिष्ठित रिपब्लिकन नेताओं का एक ठोस समूह था, जिसने कार्यकारी शाखा यानी राष्ट्रपति और उनके कैबिनेट सदस्यों के किसी भी तरह के अति के ख़िलाफ एक सुरक्षा दीवार का काम करता था। 1994 के चुनाव में रिपब्लिकन के एक और ज़्यादा कट्टरपंथी समूह ने अमेरिकी प्रतिनिधि सभा में बहुमत हासिल कर लिया। स्पीकर, न्यूट गिंगरिच ने किसी भी बजट को पारित करने से तब तक के लिए इनकार कर दिया, जब तक कि राष्ट्रपति क्लिंटन बजट में अनुचित और लापरवाह कटौती को लेकर सहमत नहीं हो जायें। लेकिन, जैसा कि हम जानते हैं कि राष्ट्रपति क्लिंटन ने इससे इनकार कर दिया, अमेरिकी संघीय सरकार का कामकाज तक़रीबन 20 दिनों तक बाधित रहा। अंततः, स्पीकर गिंगरिच को झुकना पड़ा और संघीय बजट को पारित करना पड़ा। लेकिन, यह कांग्रेस में विपक्षी पार्टी की तरफ़ से राष्ट्रपति की राह में खुल्लमखुल्ला अड़ंगा डाले जाने और ब्लैकमेल करने के दौर की शुरुआत थी।

रिपब्लिकन ने जीवाश्म ईंधन और रिपब्लिकन के चुनावी अभियानों को वित्तपोषित कर रहे उन रासायनिक उद्योगों को लेकर विज्ञान आधारित पर्यावरणीय नियमों में ढिलाई बरतने के लिए संघीय और राज्य स्तरों पर 90 के दशक में विज्ञान और साक्ष्य-आधारित नीतिगत रुख़ों के ख़िलाफ़ बड़ा दुष्प्रचार अभियान शुरू कर दिया। इन अभियानों के पीछे का विचार यह था कि रिपब्लिकन पार्टी के आधार को सोचने समझने से रहित बनाकर "बेज़ुबान" कर दिया जाये ताकि रिपब्लिकन अभिजात वर्ग अमीरों के लिए की जा रही करों में कटौती की अपनी मनपसंद नीतियों से उन्हें दूर कर सके। इस तरह, औद्योगिक क्रांति के बाद मानव निर्मित गतिविधियों द्वारा साक्ष्य-आधारित ग्लोबल वार्मिंग के बढ़न को अमेरिका के दुश्मनों द्वारा वित्त पोषित वैज्ञानिकों की तरफ़ से प्रचारित "एक धोखा और साज़िश रचने वाला सिद्धांत" हो गया। अमीरों के लिए करों में कटौती से “धीरे-धीरे नीचे के तबके को मिलने वाला आर्थिक लाभ” किसी भी सबूत-आधारित डेटा से रहित,नागरिक विमर्श में रूढ़िवादी पंडितों के बीच एक विश्वास का मुद्दा बन गया।

2000 में जॉर्ज डब्ल्यू बुश जूनियर के निर्वाचित होने के बाद, सीनेट में डेमोक्रेट के एक दिग्गज सीनेटर,टेड कैनेडी ने अमेरिकी कांग्रेस से जॉर्ज डब्ल्यू बुश जूनियर की अहम शिक्षा नीति,"नो चाइल्ड लेफ़्ट बिहाइंड" क़ानून के बनवाने में सक्रिय रूप से उनका सहयोग किया था। 9/11 के बाद दोनों दलों ने अच्छे-बुरे कई क़ानूनों को ठोस बहुमत के साथ पारित किया। ज़रूरी होने पर राष्ट्रपति बुश को इराक़ पर हमले को लेकर अधिकृत करने वाला द्विदलीय अमेरिकी सीनेट प्रस्ताव सही मायने में तबाही वाले क़ानून की श्रेणी में ही आता है। लेकिन,यहां ग़ौर करने वाली बात यह है कि कांग्रेस में डेमोक्रेट्स किसी तरह की कोई रुकावट पैदा नहीं कर रहे थे।

बुश जूनियर के शासनकाल (2001-2008) के दौरान राजनीतिक नियुक्तियों का एक नया संवर्ग,जो मानता था कि सरकार ही समस्या है, उसके हाथों में महत्वपूर्ण संघीय विभागों का प्रभार आ गया। उनमें से कई को तो बहुत सारे उद्योगों की तरफ़ से पैरवी करने के लिए भुगतान किया जाता था,जबकि उन्हें जनता के हित में क़ानून बनाना था। उस समय तक,सदन में डेमोक्रेटिक बहुमत और सीनेट में उदारवादी रिपब्लिकन ख़त्म हो चुके थे,या फिर काफी हद तक कम हो रहे थे। इन अहम सरकारी नियुक्तियों का कुल नतीजा विनाशकारी था,लेकिन यह तो पहले से ही तय था। 2000 के चुनाव में अल गोर की हुई बेहद मामूली अंतर से हार के साथ ही बुश प्रशासन के सभी स्तरों पर रिपब्लिकन राजनेताओं के बीच जीवाश्म ईंधन उद्योगों (तेल, गैस, कोयला आदि) को असंगत हद तक धक्का पहुंचा। राष्ट्रपति बुश जूनियर का दावा था कि इस बात का कोई निर्णायक सबूत नहीं है कि ग्लोबल वार्मिंग के लिए मानव निर्मित गतिविधियां ही ज़िम्मेदार हैं। ये विज्ञान सम्मत रवैया नहीं था। 2006 में न्यू जर्सी के एक पूर्व गवर्नर और एक प्रगतिशील रिपब्लिकन पर्यावरण संरक्षण एजेंसी के प्रशासक,क्रिस्टी टॉड व्हिटमैन(जी हाँ, वह पंद्रह साल पहले भी हाशिये पर ही थे) ने राष्ट्रपति बुश जूनियर और पर्यावरणीय नियमों को लागू करने वाले उनेक प्रमुख प्रशासनिक अधिकारियों की ओर से मिलने वाले समर्थन की कमी का हवाला देते हुए निराशा में इस्तीफ़ा दे दिया था। राष्ट्रपति निक्सन अपनी क़ब्र में करवट बदल रहे होंगे।

राष्ट्रपति बराक ओबामा द्वारा 2008 के चुनाव को एक प्रचंड बहुमत से जीत लेने के बाद एक गहरी आर्थिक मंदी के बीच रिपब्लिकन ने कांग्रेस में ओबामा के राष्ट्रपतिकाल को नुकसान पहुंचाने के लिए अपने अर्थहीन संघर्ष को फिर से शुरू कर दिया। 2009 की शुरुआत में इस बात की विश्वसनीय प्रेस रिपोर्टें थीं कि रिपब्लिकन सीनेट अल्पसंख्यक नेता ने रिपब्लिकन सीनेटरों से कहा था कि ओबामा को कामयाबी से वंचित करने और उन्हें एक कार्यकाल वाले राष्ट्रपति बनाने को लेकर उन्हें एकजुट रहने की ज़रूरत है। सीनेट में रिपब्लिकनों ने बुनियादी ढांचे के सुधार के लिए बहुत ज़रूरी आर्थिक प्रोत्साहन और निवेश के ख़िलाफ़ कामयाबी के साथ संसदीय कार्यवाही में अंड़ंगा डाला। 2010 में लाखों अमेरिकियों को स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने वाला ओबामा का अहम क़ानून,अफोर्डेबल केयर एक्ट (ओबामाकेयर) को पारित कर दिया गया था,रिपब्लिकन की तरफ़ से इस क़ानून को लेकर लोगों के बीच भय पैदा करते हुए  तिरस्कार के साथ ग़लत तरीके से प्रचारित-प्रसारित किया गया था। रिपब्लिकनों ने एक काले राष्ट्रपति और डेमोक्रेटिक पार्टी के ख़िलाफ़ धार्मिक दक्षिणपंथियों, राजनीतिक रूढ़िवादियों और जातीय प्रवृत्ति वाले मतदाताओं को कामयाबी के साथ भड़काया था। 2010 के मध्यावधि चुनाव में रिपब्लिकन ने सदन में बहुमत हासिल कर लिया और डेमोक्रेट ने सीनेट में अपना प्रचंड बहुमत खो दिया। अगले छह वर्षों तक रिपब्लिकन अल्पसंख्यक नेता,मिच मैककोनेल (बाद में ज़्यादातर नेता) हर मोड़ पर ओबामा प्रशासन के सीनेट की कार्यवाही को अवरुद्ध करते रहे। दुनिया का विचार-विमर्श का सबसे बड़ा मंच,अमेरिकी सीनेट लोक कल्याण के लिए ज़रूरी कई बिलों का एक क़्रबिस्तान बन गया।

ओबामा प्रशासन को कमज़ोर करने के लिहाज़ से रिपब्लिकन सीनेटरों को एकजुट बनाये रखने में मैककोनेल बेहद सफल रहे थे, सरकार की समान अंग के रूप में अपनी गंभीर ज़िम्मेदारियों की उन्होंने पूरी तरह अनदेखी की थी।  इस ग़ैर-ज़िम्मेदाराना अड़ंगे का सीधा नतीजा यह हुआ कि कुछ भी हासिल करने के लिहाज़ से मतदाताओं का वाशिंगटन के राजनीतिक अभिजात वर्ग से पूरी तरह मोहभंग हो गया। यही वह पृष्ठभूमि थी,जिसने डोनाल्ड ट्रम्प की तरह के किसी बाहरी व्यक्ति को 2016 में रिपब्लिकन राष्ट्रपति के उम्मीदवार के तौर पर किसी लोकनायक की तरह, एक कामयाब कारोबारी (?) के रूप में चुनाव लड़ने का एक सही अवसर दे दिया,एक ऐसा शख़्स जो वाशिंगटन को हिला सकता था और काम भी करवा सकता था। सोच-समझकर बेज़ुबान बना दिये गये रिपब्लिकन जनाधार,पिछले चार दशकों में रिपब्लिकन मशीन का निर्माण,ये सबके सब चीज़ों को लेकर उनके लोकलुभावन संदेशों और दूसरे रिपब्लिकन उम्मीदवारों (गवर्नर्स क्रिस क्रिस्टी और जेब बुश) के अनुभव से प्यार करता थे। बाक़ी सब तो हालिया इतिहास है।

व्हाइट हाउस में जैसे ही डोनाल्ड ट्रम्प ने वाशिंगटन में रिपब्लिकन राजनेताओं के साथ कामयाबी के साथ तालमेल बिठा लिया,वैसे ही उन्होंने रिपब्लिकन पार्टी के जनाधार पर भी पूरी तरह नियंत्रण हासिल कर लिया। ट्रम्प ने जो भी कहा,वह रिपब्लिकन पार्टी के जनाधार के लिए "सत्य" बन गया। तीन दशकों से ज़्यादा समय तक उन्हें अपने नेताओं की तरफ़ से किसी भी सुबूत-आधारित डेटा या मुख्यधारा के मीडिया पर भरोसा नहीं करने के लिए प्रशिक्षित किया गया था। ट्रम्प ने किसी भी तरह की असहमति को बर्दाश्त नहीं किया। वह उस किसी भी रिपब्लिकन राजनेता को पूरी तरह दरकिनार करने को लेकर पूरी तरह से तैयार रहते थे, जिसने उनका विरोध करने का साहस किया था। डोनाल्ड ट्रम्प के एक प्रतिकूल ट्वीट से किसी भी रिपब्लिकन के लिए यह असंभव हो जाता कि वह अपना अगला जीतने के लिए रिपब्लिकन प्राइमरी के किसी आम चुनाव में उस सीट के लिए पार्टी का उम्मीदवार बन जाये। एक पेशेवर राजनेता के लिए यह एक मौत की सज़ी ही होगी। रिपब्लिकन जनाधार के मूल में ट्रम्प की पकड़ शायद पार्टी के ठहर जाने या चुनाव के बाद अमेरिकी कांग्रेस में रिपब्लिकन सदस्यों द्वारा प्रदर्शित ज़बरदस्त चाटुकारिता को दिखाती है।

जिस तरह लोकतंत्र आजकल चलन में है, वैसे में दुनिया के सभी बड़े लोकतंत्रों की तरह अमेरिकी लोकतंत्र में भी बड़ी खामियां हैं। लोकतंत्र आज भी निरंतर प्रयोग से गुज़र रहा है और आज भी विकसित हो रहा है। श्रमिक वर्ग के लिए इसके बेहद प्रतिगामी आर्थिक मॉडल के अलावा,अमेरिका में कालों के लिए यह नस्लवाद तक़रीबन 400 साल पुराना, एशियाइयों और यहूदियों के लिए सौ साल से ज़्यादा पुराना और हिस्पैनिक्स के लिए 200 से 60 साल के बीच पुराना है, यह नस्लवाद कितना पुराना है,यह इस बात पर निर्भर करता है कि आप किसके सिलसिले में पूछ रहे हैं। अमेरिकी संविधान के मसौदे को तैयार किये जाने के दौरान, संविधान निर्माताओं में से एक बेन फ़्रेंकलिन से किसी नागरिक ने पूछा था, "आप हमें किस तरह की सरकार दे रहे हैं ?" बेन फ़्रेंकलिन ने कथित तौर पर जवाब दिया था, “गणतंत्र, अगर आप इसे रख सकते हैं।” लोकतंत्र में हम नागरिकों को इस लोकतंत्र को कभी भी हल्के में नहीं लेना चाहिए। हर पीढ़ी को इसे पल्लवित-पुष्पित और हिफ़ाज़त करने की ज़रूरत है। ज़बरदस्त तौर पर आपस में जुड़ी आधुनिक दुनिया में सभी प्रमुख लोकतांत्रिक देशों के नागरिकों का भाग्य एक दूसरे के साथ जुड़ा हुआ है। किसी बड़े लोकतांत्रिक देश में सत्तावाद या अराजकतावाद का उदय दुनिया भर के अन्य लोकतंत्रों में इसी तरह के प्रतिगामी ताक़तों को ऑक्सीजन मुहैया कराता है।

अमेरिकी लोकतंत्र को अपने मौजूदा दुर्दशा की स्थिति में पहुंचने में चार दशक का वक़्त लग गया। इस बात की कोई गारंटी कहां है कि पेंडुलम तुरंत वापस डोलना शुरू कर दे। बेहतर होने से पहले यह बदतर भी हो सकता है। राष्ट्रपति ट्रम्प का मौजूदा कार्यकाल 20 जनवरी, दोपहर को पूरा हो जायेगा। अगर 6 जनवरी को हुए विद्रोह में उनकी भूमिका के लिए प्रतिनिधि सभा द्वारा उनपर महाभियोग लगाया जाता है, जिसकी संभावना है और सीनेट द्वारा दो तिहाई द्विदलीय बहुमत (मुमकिन तो नहीं दिखता, मगर संभव हो भी सकता है) के साथ दोषी ठहरा दिया जाता है, तो उन्हें भविष्य में किसी भी संघीय पद पर काबिज होने के अयोग्य घोषित कर दिया जायेगा। लेकिन, अमेरिकी संस्थाओं की राजनीति में उन्होंने जो गहरा विभाजन और विद्रुप पैदा किया है, कम से कम अगले 20 से 30 साल तक उसके बने रहने की आशंका है।

तो सवाल है कि हम अमेरिकी लोकतंत्र में यहां से कहां पहुंचते हैं ? इस सवाल का जवाब पाने के लिए कृपया डलास से भेजे जाने वाली अगली रिपोर्ट पढ़ने के लिए तैयार रहें।

लेखक टेक्सास के डलास में रहते हैं और 2020 के अमेरिकी चुनाव से गहरे तौर पर जुड़े रहे हैं।

 

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करे

https://www.newsclick.in/How-Did-We-Get-This-Sad-State-US-Politics

 

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