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कोरोना संकट से भारत में भुखमरी की समस्या कितनी बड़ी है?

विश्व खाद्य कार्यक्रम का अनुमान है कि पेट भर भोजन नहीं पाने वालों की संख्या पूरे विश्व में 2020 में बढ़कर 26.5 करोड़ हो सकती है, जो 2019 में 13.5 करोड़ थी।
भुखमरी की समस्या
Image courtesy: Outlook Poshan

विश्‍व खाद्य कार्यक्रम और संयुक्त राष्ट्र खाद्य व कृषि संगठन ने संयुक्‍त राष्‍ट्र को सौंपी अपनी रिपोर्ट में आशंका जताई है कि इस साल दुनियाभर में भुखमरी का सामना करने वालों की संख्‍या करीब-करीब दोगुनी हो सकती है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया में पिछले साल से ही खाद्य असुरक्षा बढ़ रही थी। अब कोरोना वायरस संकट के कारण हालात पहले के मुकाबले कहीं ज्‍यादा खराब हो सकते हैं। विश्व खाद्य कार्यक्रम का अनुमान है कि पेट भर भोजन नहीं पाने वालों की संख्या 2020 में बढ़कर 26.5 करोड़ हो सकती है, जो 2019 में 13.5 करोड़ थी।

विश्व खाद्य कार्यक्रम के प्रमुख डेविड बिसले ने कहा कि उन्होंने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को पिछले हफ्ते आगाह किया था कि जहां विश्व कोविड-19 वैश्विक महामारी से निपट रहा है वहीं वह ‘भुखमरी की वैश्विक महामारी के कगार पर’ है और अगर तत्काल कदम नहीं उठाए गए तो कुछ ही महीनों के भीतर यह ‘बड़े पैमाने के कई अकाल’ ला सकता है।

बिसले ने कहा कि बुरी स्थिति में करीब 36 देशों में अकाल पड़ सकता है और उनमें से 10 देशों में से प्रत्येक देश में 10 लाख से ज्यादा लोग पहले से भुखमरी की कगार पर हैं।

वहीं, विश्व खाद्य कार्यक्रम के मुख्य अर्थशास्त्री और रिसर्च, मूल्यांकन और निगरानी के प्रमुख आरिफ़ हुसैन ने कहा कि कोविड-19 उन लाखों लोगों के लिए विनाशकारी साबित हो सकता है, जो पहले से ही रोजी-रोटी और सर्वाइवल जैसी समस्याओं से घिरे हुए हैं।

आरिफ़ हुसैन ने कहा, "हम सभी को भुखमरी से निबटने के लिए एक साथ आने की जरूरत है, क्योंकि अगर ऐसा नहीं होता है तो हमें इसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ सकती है। कोरोना के बाद की दुनिया में वैश्विक लागत बहुत अधिक होगी, कई लोग अपना जीवन खो देंगे तो अधिकतर लोग अपनी आजीविका गंवा देंगे।"

आपको बता दें कि पिछले साल 2019 में ही भारत ग्लोबल हंगर इंडेक्स में 117 देशों की पांत में 102वें पायदान पर लुढ़क चुका था। यहां तक कि हम पड़ोसी पाकिस्तान, बंग्लादेश और नेपाल से भी पिछड़े हैं। इसमें कहा गया था कि 2014 के बाद भारत में भुखमरी को लेकर हालात में बहुत ज्यादा सुधार नहीं आया था।

यही नहीं वेल्थ हंगर हिल्फे एंड कन्सर्न वर्ल्‍डवाइड की तैयार की गई रिपोर्ट 2019 के मुताबिक भारत दुनिया के उन 45 देशों में शामिल है जहां भुखमरी काफी गंभीर स्तर पर है।

इसके अलावा संयुक्त राष्ट्र के तहत ग्लोबल फूड सिक्योरिटी ने हाल ही में भारत की इस चिंता को बढ़ा दिया है कि यदि खाद्य सुरक्षा प्रबंधन को ढंग से लागू नहीं किया गया तो पूरी दुनिया में अनाज का भीषण संकट खड़ा हो जाएगा।

आपको बता दें कि संयुक्त राष्ट्र के श्रम निकाय ने चेतावनी दी है कि कोरोना वायरस संकट के कारण भारत में अनौपचारिक क्षेत्र में काम करने वाले लगभग 40 करोड़ लोग गरीबी में फंस सकते हैं और अनुमान है कि इस साल दुनिया भर में 19.5 करोड़ लोगों की पूर्णकालिक नौकरी छूट सकती है। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) ने अपनी रिपोर्ट ‘आईएलओ निगरानी- दूसरा संस्करण : कोविड-19 और वैश्विक कामकाज' में कोरोना वायरस संकट को दूसरे विश्व युद्ध के बाद सबसे भयानक संकट बताया है।

रिपोर्ट में कहा गया है, ‘भारत में अनौपचारिक अर्थव्यवस्था में काम करने वालों की हिस्सेदारी लगभग 90 प्रतिशत है, इसमें से करीब 40 करोड़ श्रमिकों के सामने गरीबी में फंसने का संकट है।' इसके मुताबिक भारत में लागू किए गए देशव्यापी बंद से ये श्रमिक बुरी तरह प्रभावित हुए हैं और उन्हें अपने गांवों की ओर लौटने को मजबूर होना पड़ा है।

गौरतलब है कि हाल ही में कुछ भारतीय विशेषज्ञों और अर्थशास्त्रियों ने भी कोरोना वायरस के चलते देश में गरीबी और भुखमरी का खतरा बढ़ने का खतरे पर चिंता जताई थी। उनका मानना है कि अगर सही तरीके से भारत के लोगों को भोजन नहीं मुहैया कराया जाता है और दिहाड़ी मजदूरों की बढ़ती समस्याओं का समाधान नहीं किया जाता है तो देश में गरीबी बढ़ने और भुखमरी का खतरा बढ़ सकता है।

प्रख्यात अर्थशास्त्री और नोबेल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन, पूर्व आरबीआई गवर्नर रघुराम राजन और नोबेल पुरस्कार विजेता अभिजीत बनर्जी ने इंडियन एक्सप्रेस में लिखे अपने लेख में कहा है कि ये बात ठीक है कि सरकार को समझदारी से पैसे खर्च करना चाहिए लेकिन ऐसा न हो कि इस चक्कर में जरूरतमंदों को ही राशन न मिल पाए।

अर्थशास्त्रियों ने कहा कि ऐसा करने के लिए हमारे पास पर्याप्त संसाधन हैं। उन्होंने कहा कि मार्च 2020 में भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) में 7.7 करोड़ टन अनाज पड़ा हुआ था जो कि बफर स्टॉक का तीन गुना है। आने वाले दिनों में अनाज के भंडारण की मात्रा बढ़ेगी ही क्योंकि रबी फसलों की खरीदी होने वाली है। इसलिए राष्ट्रीय अपातकाल के समय जो पहले के स्टॉक पड़े हैं उसे खाली किया जाना चाहिए, इसमें देरी करना बुद्धिमानी नहीं है।

फिलहाल भारत की यह विडंबना रही है कि अन्न का विशाल भंडार होने के बावजूद भी बड़ी संख्या में लोग भुखमरी के शिकार भी होते हैं। अगर इसके कारणों की पड़ताल करें तो केंद्र और राज्य सरकारों के बीच तालमेल का अभाव, अकुशल नौकरशाही, भ्रष्ट सिस्टम और भंडारण क्षमता के अभाव में अन्न की बर्बादी जैसे कारक सामने आते हैं। यह सिलसिला लंबे समय से चल रहा है और सरकार इसका हल खोज पाने में असफल रही है।

ऐसे में अब कोविड-19 महामारी के बीच खाद्य सुरक्षा की समस्या और भी भीषण बन गयी है। सौभाग्य से हमारे पास अन्न के पहाड़ मौजूद हैं, जिनका तीव्र और विवेकपूर्ण इस्तेमाल इस संकट को बड़ी हद तक सुलझा सकता है। लेकिन इसके वितरण की चुनौती को हल करना पड़ेगा। नहीं तो भारत की एक बड़ी आबादी कोरोना से बच जाएगी लेकिन भूख का सामना नहीं कर पाएगी।

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